Wednesday, August 24, 2011

Open Letter to Anna ji

अन्ना हजारे को खुला पत्र

आदरणीय अन्ना जी

सादर प्रणाम!

          मैं पूर्णकालिक कार्यकर्ता हूँ और आजकल मानवाधिकार जननिगरानी समिति के लिए कार्य करता हूँ।ढाँचागत परिवर्तन के लिए डाक्टरी छोड़कर पूर्णकालिक कार्यकर्ता बन गया। मेरे दादा स्व0 शांति कुमार ने मुझे काफी प्रेरित किया। वे गाँधीवादी विचारधारा के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उन्होंने बताया कि कैसे 1857 के गदर में हमारे परिवार व गाँव के लोगों को अंग्रेजों ने फांसी दे दिया। दादा कहते थे किआजादी की दूसरी लड़ाई ऊपर से नहीं नीचे से शुरू होगी। ढांचागत परिवर्तन सामाजिक पिरामिड की तलहटी से आ सकती है उन्होंने कहा कि गांधी जी का तालीसमान याद रखना कि कुछ भी करो, उसका असर आखिरी इंसान पर क्या पड़ता है ? उसे जानो! मैं गाँवों, कस्बों में गया, देखा, समझा तभी बाबा साहेब डा0 अम्बेडकर को पढ़ने व समझने का मौका मिला। तब समझ में आया कि मैं तो एक भ्रष्ट और डकैत जाति में पैदा हुआ हूँ। जिसने दलितों एवं शूद्रों से उनका सब कुछ छीन लिया। यही नहीं एक तरफ ऊँची जातियों के लोग उपभोक्ता की तरह शूद्रों व अति शूद्रों की पैदावार को मुफ्तखोरों की तरह उपयोग करते रहे और दूसरी तरफ श्रम की महत्ता को खत्म कर दिया। यहीं से हमने एक लालची समाज की तरह भ्रष्टाचार शुरू कर दिया। जब अंग्रेज आये, तो ऊँची जातियों से कई रायबहादुर साहब, जमीदार बन गये और ब्रिटिश हुकूमत के चमचे हो गये। इस तरह ऊँची जातियों के लोगों ने काफी संसाधन इकट्ठा किया। वर्ण व्यवस्था वाले समाज की अगर चर्चा करें, (जो सबसे भ्रष्टतम व क्रूरतम व्यवस्था थी) तो और भी बातें खुलती हैं। सबसे ज्यादा गुलामी भारत ने झेला, क्या करते रहे क्षत्रिय ? सबसे ज्यादा निरक्षर हमारे देश में हैं, क्या करते रहे ब्राम्हण ? सबसे ज्यादा कर्जदार है हमारा देश, क्या करते रहे वैश्य ? किन्तु शूद्रों व अति शूद्रों ने हाड़तोड़ मेहनत कर उत्पादन किया, अनाज पैदा किया। इन तीन वर्णों का अपने वर्ण के अनुसार कार्य करने में विफल होना, इंसान को इंसान न समझना एवं श्रम की महत्ता को खत्म करना क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है ? आपको समर्थन करने वाला एवं आपके भ्रष्टाचार विरोधी अभियान को चलाने वाले “इण्डिया अंगेस्ट करप्सन अपने फेसबुक पर लिखते हैं कि पटना की गलियों से ये आवाजें आती हैं, जिन्हें भैंस चराना चाहिये वो सरकार चलाते हैं- कुमार विश्वास। यह क्या है अन्ना जी ? यही नहीं क्षत्रिय महासभा एवं क्रान्तिकारी मनुवादी मोर्चा का बैनर रामलीला मैदान में लगा है, लोग पोस्टर लेकर आये हैं “आरक्षण हटाओ और जन लोकपाल लाओ ये क्या है ? खुद अरविन्द केजरीवाल ने आरक्षण विरोधी संगठन “यूथ फार इक्वैलिटी के आरक्षण विरोधी बैठक में हिस्सा लिया। इसका अर्थ हुआ पांच हजार साल की व्यवस्था में ऊँची जाति के अमीरों ने जो अपना सम्पर्क-ताकत, प्रभाव व पैसे की ताकत बनायी है, उसका भ्रष्टतम उपयोग आपके आंदोलन में हो रहा है।

            बुद्द ने कहा है कि, जैसा आप सोचते हैं वैसी ही दुनिया आप बनाते हैं। इसलिए मुझे जानना है कि कैसी व्यवस्था आप चाहते हैं ? और इतिहास में आप किसके साथ हैं ? क्योंकि आपने खाप पंचायत व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर एस एस) के समर्थन का विरोध नहीं किया। खाप पंचायतें जाति पर आधारित हैं और आनर कीलिंग” करती हैं। जबकि आर एस एस के दूसरे सर संचालक गुरू गोलवलकर ने अपनी आत्मकथा में भारतीय संविधान और तिरंगे का विरोध किया भी। इनके समर्थन का विरोध आप और आपकी टीम क्यों नहीं करती है ?

          यहाँ 22-29 अक्टूबर 1922 की घटना का जिक्र करना बहुत प्रासंगिक है। इटली की सिविल सोसायटी के लगभग तीस हजार लोगों ने रोम की सड़कों और संसद को घेर लिया। इन्हें इटली के उद्योगपतियों का समर्थन था। इसके बाद वहां के राजा ने चुनी हुई सरकार की जगह मुसोलिनी को सत्ता सौंप दी। यह यूरोप के अधिनायक तंत्र के विस्तार की दिशा में निर्णायक कदम था। इसकी परिणति दूसरे विश्व युद्द हुई, जिसमें 6 करोड़ लोग मारे गये। तो क्या आप भी भारत में ऐसा करने के पक्ष में हैं ? ये तो महात्मा गांधी जी का रास्ता नहीं है। ये तो महात्मा गांधी और उनके मूल्यों से गद्दारी होगी।

          जब आपको जेल भेजा गया, तो हमलोगों ने विरोध किया। हमें पता है कि जाति व्यवस्था व भूबाजारीकरण की व्यवस्था की सरकार कभी भी जनवादी हो ही नहीं सकती है। किन्तु जेल से आपका बयान वीडियो में आया, ये भी भ्रष्टाचार है और कानून के राज पर खतरा!!

        आपने आज 23 अगस्त 2011 की सुबह कहा कि अपने गांव के दलित की जमीन पर आप लोगों ने काम कर 60 हजार कर्ज से मुक्त किया। बहुत बड़ा चैरिटी किया आपने। कितने प्रतिशत दलितों के पास जमीन है ? जमीन तो जाति व्यवस्था द्वारा हम ऊँची जातियों ने कब्जा करके रखी और बाद में कुछ उच्च जातियों के लोगों ने भी भारत माता के साथ गद्दारी कर ब्रिटिश हुक्मरानों के जमींदार बनकर कब्जाया। हमलोग सोनभद्र जैसे आदिवासियों के संसाधन का इस्तेमाल कर समृद्द हो रहे हैं। उनका पानी कब्जा कर बिजली बना रहे हैं किन्तु आदिवासियों को बिजली नहीं मिलती है और हम शहर वाले अधिक से अधिक बिजली प्रयोग कर रहे हैं। उसी तरह जिस तरह उत्तर के देश जी-7 के लोग ( दुनिया की 20 प्रतिशत आबादी) विश्व के 80 प्रतिशत संसाधन का इस्तेमाल करते हैं और गांव के 20 प्रतिशत आबादी वाली उत्तर टोले के लोग 80 प्रतिशत संसाधनों का इस्तेमाल करते हैं। क्या यह भ्रष्ट-आचार (भ्रष्टाचार) नहीं है ? संसाधन ही वास्तविक राजनैतिक ताकत को निर्धारित करता है।

        गांधी जी जब 1919 में हड़ताल शुरू किये, तो उन्होंने आंतरिक बदलाव पर जोर दिया। आपके आंदोलन में शामिल कितने लोग सामाजिक भ्रष्टाचार रूपी दहेज के खिलाफ हैं ? कितने लोग गर्भ में बच्चियों की हत्या नहीं कर रहे ? कितने अपने परिवारों में इसका विरोध करेंगे ? मीडिया जो विज्ञापनों पर चलता है और जहां आज भी समाज के समृद्द तबके के लोग काम करते हैं, वे भी खेला खेल रहे हैं। नये भूमि अधिग्रहण बिल से कारपोरेट (अमीर लोग) परेशान हैं। मीडिया की ही राडिया 2जी स्पेक्ट्रम में फंसी है इसे भी आप सोचें। हम लोगों ने बंधुआ मजदूरी की शिकायत बनारस के प्रशासन को किया। एस.डी.एम. ने उल्टा बंधुआ मजदूरों को बुलाया और डांट कर भगा दिया। इसके बाद बंधुआ मजदूरों से बिना बात किये मीडिया ने समाचार छाप दिया। फिर हमलोगों ने शासन में शिकायत की, जांच हुई और फिर प्रशासन ने जांच की और बंधुआ मजदूरी को माना तब मीडिया ने छापा। यह है मीडिया की निष्पक्षता ? सभी घोटालों की बात हो रही है, किन्तु ताबूत घोटाले की बात नहीं हो रही है,जो शहीद सैनिकों के ताबूत में किया गया है क्यों ? आपके साथ जुड़ी किरण बेदी जी ने अपनी बेटी का मिजोरम कोटे में गलत तरीके से एम्स मेडिकल कालेज नई दिल्ली में प्रवेश कराया। क्या यह भ्रष्टाचार नहीं है ? या आपके द्वारा द्रोणाचार्य की तरह छूट है ?

         हम लोग भी सशक्त बहुजन लोकपाल बिल चाहते हैं और इसके लिए हांगकांग के अति सफल “इण्डियेन्डेन्ट कमीशन अगेन्स्ट करप्शन का माडल सरकार को दिया है अपील की और इसके लिए दो सालों से लड़ रहे हैं।

        आपको पता है कि नवउदारवादी अर्थव्यवस्था की नीतियों ने बेरोजगारी, मंहगाई एवं भ्रष्टाचार बढ़ाया। इसकी खिलाफत कब होगी ? क्योंकि क्रान्ति तो व्यवस्था बदलती है, सत्ता नहीं। क्या आपकी क्रान्ति में यह नहीं है ? विश्व बैंक भी भ्रष्टाचार का विरोध करता है, किन्तु नवउदारवादी नीति का नहीं। जबकि नवउदारवादी नीतियां समस्त राष्ट्रीय मूलभूत संसाधनों को बेचने की पैरोकारी करती हैं।

         नवउदारवाद के कारण सब काम का अधिकांश हिस्सा कारपोरेट व एनजीओ को आयेगा, इन्हें जनलोकपाल बिल से बाहर क्यों रखा गया ? कहीं नवउदारवादी नीतियों के दलाली तो नहीं हो रही है?  मेरा एनजीओ तो तीन साल सोशल आडिट करता है क्या आपके साथ जुड़े एनजीओ सोशल आडिट करते हैं ?

         किसान से सस्ते में अनाज खरीद कर साहूकार बाजार में महंगा बेचता है। उसे जन लोकपाल बिल” से रोका नहीं जा सकता, क्योंकि निजी लोगों का भ्रष्टाचार के खिलाफ भ्रष्टाचार जन लोकपाल बिल के तहत नहीं आता है। तो फिर महंगाई (जनता के साथ भ्रष्टाचार) व किसान के साथ भ्रष्टाचार कैसे रोका जायेगा ??

         लड़ाई के लिए हमें नवउदारवादी पूंजीवाद एवं साम्प्रदायिक नवफासीवादी गठजोड़ से मिलकर लड़ना होगा। हमारा आन्दोलन लोकतांत्रिक हो, धर्मनिरपेक्ष हो, जनवादी हो। आपको पता है हिन्दुत्व से प्रभावित एक व्यक्ति ने नार्वे में कितनों की हत्या की। यह नवउदारवादी पूंजीवाद एवं साम्प्रदायिक नव फासीवाद के गठजोड़ का प्रतीक है । और इस गठजोड़ के खिलाफ हमें टूटे हुए लोगों (जिसे दलित कहते हैं) की एकता बनानी होगी। जाति व्यवस्था के खिलाफ संघर्षरत दलित व प्रगतिशील लोग, साम्प्रदायिक फासीवाद के खिलाफ धर्मनिरपेक्ष लोग एवं नवउदारवादी नीतियों के खिलाफ लड़ते गरीब लोगों की एकता आप बनाये। हम जाति व्यवस्था की खिलाफत में किसी धर्म की खिलाफत नहीं करते और न ही ऊँची जाति में पैदा किसी व्यक्ति की। उसी तरह नवउदारवादी नीति की खिलाफत का अर्थ लोकतांत्रिक पूंजीवाद का खिलाफत नहीं है। इसे हम नवदलित आंदोलन कह रहे हैं। क्योंकि यह दलित समुदाय ही है, जो कि इस समूची स्थिति में सबसे ज्यादा यातना भुगत रहा है और यह नाम पहले से ही राजनैतिक संघर्ष का पर्याय रहा है।

आइये! एक नया भारत बनायें, जो लोकतांत्रिक व न्यायपूर्ण व धर्मनिरपेक्ष विश्व निर्माण के संघर्ष में शामिल हों!!

                                                               आपका साथी

डा0 लेनिन - मानवाधिकार जननिगरानी समिति

23 अगस्त 2011                                                                        सा. 4/2ए,दौलतपुर, वाराणसी-221002 
                                                                                                                                                        www.pvchr.net



Open letter to Anna ji

3 comments:

umar said...

where is the english version...

Paritosh said...

AAP JO BHI KAHNE KI KOSIS KAR RAHE HEY USSE YE PATA CALTA HEY KI AGAR AAP KUCH NAHI KAR PAYE TO ANNAJI NE KAISE KAR DIYA, CORRUPTION KE LIYE AANA JI AAGE AAYE TO AAP DALITO KAA MUDDA UTA DETE HEY. AAP KAMJOR PRAWATI KE LOG HEY JO KUCH NA KUCH KAMIYA NIKALTE HEY AUR KUSH HO JATE HEY. DO SAAL SE AAP LAD RAHE HEY PIR KYA GOVT. NE AAPKI SUNI . WO TO BILKUL GATIYA LOKPAL HE LAYA NA.. AB ANNA JI KE DABAB SE KUCH BEHTAR HONE JAA RAHA HEY TO AAPKO YE DECTERSHIP NAZAR AATI HEY. KASSOR AAPKA NAHI. AAPKI MAANSIKTA KA HEY.
KISI KA SATH NAHI DE SAKTE TO KAM SE KAM USE CRITISICE TO MAT KARO..
SORRY SIR :)

Peoples' Vigilance Committee on Human Rights (PVCHR) said...

@ paritosh,Anna ko bolene kee chhud hai aur mujhe aap chup karana chahate hai.badi gunddagardi hai.Ap Indian constitution ke right to expression ko violate kar rahe hai.Jan Lokpall bill is not covering corporate corruption.There is no accountability of cotractors who are mafia and doing all works of goverment.We are looking sun is going around earth but reality just return that earth is going around sun.Be logical and objective.

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