Friday, January 23, 2015

उत्तर प्रदेश के जिला बरेली से क्वालिटी इंस्टीट्युशनल केयर एंड अल्टरनेटिव चिल्ड्रेन (QIC-AC), मानवाधिकार जननिगरानी समिति (PVCHR) और समग्र विकास समिति के सहयोग रेस्क्यू आपरेशन कर नाबालिग बच्ची को बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराने की रिपोर्ट













उत्तर प्रदेश के जिला बरेली से क्वालिटी इंस्टीट्युशनल केयर एंड अल्टरनेटिव चिल्ड्रेन (QIC-AC), मानवाधिकार जननिगरानी समिति (PVCHR) और समग्र विकास समिति के सहयोग रेस्क्यू आपरेशन कर नाबालिग बच्ची को बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराने की रिपोर्ट

बंधुआ मजदूर नाबालिग बच्ची का नाम    :     नाज़िया
उम्र                                 :     लगभग 9 वर्ष
बच्ची के पिता का नाम                 :     ताज मोहम्मद
बच्ची के माता का नाम                 :     आसमा
निवासी                              :     अंगूरीटांडा, रामगंगा, बरेली ऊ०प्र०    
बंधुआ मजदूरी कराने वाले मालिक का नाम :     सुहैब तथा जैनब
मालिक का पता                                   :     कलईग्रान मस्जिद के सामने सादात
बिल्डिंग के सामने प्रथमतल फ़िरोज़ प्रिंटर्स, मोहल्ला साहाबाद, थाना- प्रेमनगर, जिला- बरेली, उत्तर प्रदेश
केस में हस्तक्षेप करने वाली संस्था/व्यक्ति  :     उत्तर प्रदेश राज्य बालक अधिकार संरक्षण
आयोग के सदस्य श्री.रविन्द्र कुमार चौहान
रेस्क्यू टीम के सदस्य                  :     श्रुति नागवंशी, विनिका करौली, अनूप
कुमार श्रीवास्तव, ताहिर आदिल,
राजकुमार शर्मा
रेस्क्यू टीम के सहयोगी                 :     बरेली जिले के थाना प्रेमनगर की पुलिस
टीम


केस में की गयी पैरवी व कार्यवाही की रिपोर्ट :
बाल अधिकार के मुद्दे पर कार्यरत संस्था चाईल्ड राईट्स एंड यू (CRY) को जिला बरेली से एक शख्स ने फोन पर यह सूचना दी कि उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के थाना प्रेमनगर अन्तर्गत निवासी सुहैब तथा जैनब ने अपने घर में लगभग 9 वर्षीय बच्ची नाज़िया को बंधुआ बनाकर घर का काम-काज करवाते थे | उस बच्ची को न तो ठीक से खाना दिया जाता है और न ही उसे किसी से मिलने या कंही बाहर आने-जाने की आजादी थी, ना ही बच्ची पढ़ने जाती थी | उस शख्स ने किसी तरह बच्ची का फोटो खींचकर CRY को ई-मेल करके बच्ची को मुक्त कराने का निवेदन किया साथ ही उस शख्स ने अपनी पहचान को जाहिर न करने का भी निवेदन भी किया जिस कारण इस रिपोर्ट में उनका नाम नहीं दिया जा रहा है |
क्राई द्वारा इस केश को उत्तर प्रदेश में बाल संरक्षण के मुद्दे पर कार्यरत एलायंस क्वालिटी इंस्टीट्युशनल केयर एंड अल्टरनेटिव चिल्ड्रेन (QIC-AC) की राज्य समन्वयक विनिका करौली द्वारा इस केस को उत्तर प्रदेश राज्य बालक अधिकार संरक्षण आयोग को 14 जनवरी, 2015 को ईमेल द्वारा इस केस की डिटेल के साथ शिकायत किया गया | जिसके पश्चात उत्तर प्रदेश राज्य बालक अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य श्री रविन्द्र कुमार चौहान द्वारा जिलाधिकारी बरेली और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक जनपद बरेली को यह निर्देश दिया कि उस बच्ची को बंधुआ मजदूरी से मुक्त करने में राज्य समन्वयक क्वालिटी इंस्टीट्युशनल केयर एंड अल्टरनेटिव चिल्ड्रेन (QIC-AC) व उनकी टीम का सहयोग करे (संलग्नक-1) |  
इसके पश्चात् क्वालिटी इंस्टीट्युशनल केयर एंड अल्टरनेटिव चिल्ड्रेन (QIC-AC) द्वारा बच्ची को बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराने हेतु मानवाधिकार जननिगरानी समिति की मैनिजिंग ट्रस्टी श्रुति नागवंशी से मदद माँगी गयी | जिसके पशचात एक टीम बनाई गयी जिसमे क्वालिटी इंस्टीट्युशनल केयर एंड अल्टरनेटिव चिल्ड्रेन (QIC-AC) की विनिका करौली, ताहिर आदिल, मानवाधिकार जननिगरानी समिति (PVCHR) की श्रुति नागवंशी और अनूप कुमार श्रीवास्तव और समग्र विकास समिति के राज कुमार शर्मा शामिल हुए | बरेली पहुंचने से पूर्व ही सूचना देने वाले शक्स से मकान तक पहुचने के रास्ते का नक्सा बनवाकर स्कैन कर मंगवा लिया गया था |
20 जनवरी, 2015 को उपरोक्त टीम के सभी सदस्य बरेली पहुंचे, तय रणनीति के अनुसार सबसे पहले जिलाधिकारी बरेली से उनके कार्यालय पर मुलाकात करने गए परन्तु मंगलवार को तहसील दिवस था जिससे जिलाधिकारी महोदय तहसील दिवस फरीदपुर तहसील पर गए थे, जो की उनके कार्यालय से लगभग 20-25 किलोमीटर की दूरी पर था |  जिलाधिकारी कार्यालय में सिटी मजिस्ट्रेट साहब बैठे थे, सो हमलोग उनसे मुलाकात कर अपने आने का औचित्य बताया, उन्होंने एसडीएम (सदर) से मुलाकात करने को कहा | जिसके पश्चात् पूरी टीम सदर तहसील में एसडीएम (सदर) महोदय से मुलाकात कर केस के बारे में बताया गया | जिस पर उन्होंने तुरन्त सकारात्मक प्रतिक्रया देते हुए तुरन्त प्रेमनगर थाने से आये दरोगा को केस सौपते हुए कार्यवाही हेतु निर्देशित किया | जिसके बाद दरोगा द्वारा प्रेमनगर थानाध्यक्ष के मोबाईल पर सूचना दी गयी और हम लोगों को थाना प्रेमनगर जाने को कहा जिसके पश्चात टीम 11:30 बजे सुबह प्रेमनगर थाने पर पहुची और थानाध्यक्ष महोदय से मुलाकात कर उन्हें केस के बारे में बात की गयी | जिस पर थानाधय्क्ष महोदय ने कहा की अभी पुलिस फ़ोर्स तहसील दिवस व अन्यत्र गयी है उनके आने पर ही आपकी कोई मदद हो सकेगी | अतः हम सभी लोग थाने पर ही बैठ कर पुलिस फ़ोर्स आने का इंतजार करने लगे साथ ही तय रणनीति के आधार पर हमलोगों ने थानाध्यक्ष महोदय को उपरोक्त मालिक का पता नहीं बताया | इसके बाद आपस में यह तय किया गया की पुलिस के आने तक टीम के सदस्य जाकर पहले से लोकेशन देखकर उस घर की पुष्टी कर ले जहाँ बच्ची को बंधुआ बनाकर रखा गया था जिससे पुलिस के साथ जाकर सीधे वही पर छापा मारा जाय, जिससे मालिक व उसके घर के सदस्यों को बच्ची को छिपाने का मौक़ा न मिले | जिसके बाद टीम के सदस्य जाकर उस घर का लोकेशन देख आए जहाँ पर बच्ची से बंधुआ मजदूरी कराया जा रहा था |
इस बीच टीम द्वारा बाल कल्याण समिति की अध्यक्षा श्रीमती शीला सिंह से भी फोन पर संपर्क किया और उनसे रेस्क्यू में बाल कल्याण समिति के सदस्य को भेजने हेतु निवेदन किया गया | परन्तु उन्होंने यह कहते हुए इन्कार कर दिया की बाल कल्याण समिति रेस्क्यू में नहीं जाती है | आप लोग उसका रेस्क्यू कराकर बाल कल्याण समिति के कार्यालय पर लाईयेगा |
इसके बाद करीब 3:00 बजे दोपहर तक टीम प्रेमनगर थाने पर पुलिस फ़ोर्स आने का इंतज़ार करती रही | उस दौरान कई बार प्रेमनगर थाना के पुलिसकर्मियों द्वारा हमारे आने और वंहा बैठने का औचित्य पूछा गया लेकिन हमारे द्वारा हर बार आने का कारण बताते हुए, मालिक का पता जान बुझकर नही बताया गया | इसके बाद पुनः टीम द्वारा थानाध्यक्ष महोदय से बात की गयी और फिर उन्होंने लिखित शिकायत पत्र माँगा जो हमलोगों ने पहले से तैयार किया था उन्हें दे दिया जिस पर पुनः उनसे कुछ तर्क वितर्क हुआ और उन्होंने पूछा कि बच्ची को मुक्त कराकर कहा रखा जायेगा जिस पर उन्हें बताया गया कि उसे बाल कल्याण समिति के समक्ष प्रस्तुत किया जायेगा फिर समिति ही तय करेगी की बच्ची को कहा रखा जाय | जिसके बाद थानाध्यक्ष महोदय ने कहा की बाल कल्याण समिति की अध्यक्षा से बात कराये कि वो तैयार है जिस पर उनसे फोन पर बात की गयी तो उन्होंने 2:00 बजे कार्यालय बंद होने की बात कही और जिसपर उन्हें काफी बातचीत के पश्चात् वो तैयार हुई की उस बच्ची को छुड़ाने के पश्चात् उनके घर पर ले आया जाए जिसके बाद भी काफी मुश्किल से थानाध्यक्ष महोदय ने पुलिस टीम के 7 सदस्यों को रेस्क्यू के लिए भेजा |  
दोपहर 3:15 बजे प्रेमनगर थाने पर क्षेत्रीय चौकी साहाबाद के चौकी इंचार्ज के आने के बाद रेस्क्यू टीम बच्ची को रेस्क्यू कराने उपरोक्त मालिक के पते पर गयी, पुलिस टीम ने मालिक के घर का पता पहले से लिखित शिकायत पत्र के माध्यम से संज्ञान में था और चौकी इंचार्ज उनके साथ थे सो वे हमसे बिना कोई जानकारी लिए सीधे मालिक के घर पहुंच गये | लेकिन उन्हें सम्भवत: बच्ची के मालिक के नाम को लेकर थोडा भ्रम था, वे फिरोज प्रिन्टर को बच्ची का मालिक समझ रहे थे वंहा पहुचने पर वे फिरोज प्रिंटर के घर की तरफ जाने लगे जबकि फिरोज प्रिंटिंग प्रेस के ऊपरी मंजिल पर बच्ची के मालिक सुहैब और जैनब का घर था | रेस्क्यू टीम के सदस्य जो पहले ही मालिक का घर देख चुके थे उन्होंने बताया की उनका घर प्रिंटिंग प्रेस के ऊपर प्रथम तल पर है | यह जानकर पुलिस और संस्था के साथी तुरन्त ही सीढियों से बच्ची के मालिक के घर की तरफ हो लिए | पुलिस द्वारा दरवाजा खटखटाने पर वही बच्ची ही दरवाजा खोलने आई, हमने प्राप्त फोटो से तुरन्त बच्ची को पहचान लिया और दरवाजा खुलते ही बच्ची से पूछाकि वह यंहा काम करती है क्या ? बच्ची ने अपना सर हाँ में हिलाकर अपनी सहमति दी, यह सब रेस्क्यू टीम की पुलिस अधिकारी देख रहे थे उन्हें भी हमारी शिकायत में सच्चाई नजर आई | उन्होंने घर के महिला मुखिया जैनब से बच्ची के बारे में पूछा तो उन्होंने स्वीकार किया कि वह अपने किसी जानने वाले के माध्यम से इस बच्ची को काम करने के लिए लायी हैं | जैनब का कहना था की   उन्होंने उस बच्ची को काम पर रखकर क्या गलत किया है उनके यंहा काम करने से कम से कम उसे अच्छा खाना तो मिलता है, वे उसे उसे दीनी तालीम सिफर पढ़ाती हैं लेकिन स्कूल नही भेजती लेकिन उनकी नजर में कोई गलत काम नही है | पुलिस के साथ यह सब बातें चल रही थी कि इस बीच बच्ची रसोईघर में जाकर खाना खाने लगी थी, इस समय दोपहर के लगभग 3.30 बज चुके थे | जैनब से हल्के विरोध का सामना करने के बाद वहाँ से बच्ची बरामद करके प्रेमनगर थाने लाया गया और आश्चर्य की बात यह रही कि कुछ ही मिनट में  मालिक सुहैब भी थाने पर आ गया | उक्त मालिक द्वारा लगातार यह प्रयास किया जा रहा था कि केस में कोई कार्यवाही न हो और मामला ख़त्म हो जाय | पुलिस और सुहैब (मालिक) दोनों ही केश में कोई लीगल कार्यवाही नही होने देना चाहते थे और केश को रफा दफा करने का दबाव बनाया जाने लगा | जिस पर थाने में काफी बहस भी हुई और पुलिस ने जब देखा कि हमलोग किसी भी तरह के समझौते के लिए तैयार नहीं होंगे | तब पुलिसिया धौंस जमाने लगे और हमलोगों से पहचान पत्र माँगने लगे और हमलोगों पर दबाव बनाने का प्रयत्न करने लगे की किसी प्रकार केश रफा दफा हो जाय | जिसके बाद हमलोगों द्वारा जब उत्तर प्रदेश राज्य बालक अधिकार संरक्षण आयोग के पत्र को दिखाया गया जिस पर साफ़-साफ़ यह निर्देशित था कि इन लोगों का इस कार्यवाही में पूरा सहयोग करे और इसकी रिपोर्ट भी आयोग को उन्हें करने का निर्देश दिया गया था, जो उनको पहले ही दिया जा चुका था | जिसके बाद पुलिस वाले थोडा सहयोगात्मक हुए और काफी दबाव बनाने के बाद बच्ची को लेकर पुलिस की टीम व हमलोग बाल कल्याण समिति बरेली के अध्यक्षा महोदय के घर गए | जहाँ पर कमेटी के एक और सदस्य देव शर्मा यजुर्वेदी के समक्ष बच्ची को प्रस्तुत किया गया | बाल कल्याण समिति के लोगों के उदासीन रवैये और जानकारी के अभाव में वहाँ पर भी काफी मशक्कत करनी पडी | उन लोगों ने न तो बच्ची का अकेले में बयान लिया और न ही वो कोइ कार्यवाही करने को तैयार हो रहे थे | साथ ही महिला पुलिस भी अपना गला छुडाकर वहाँ से जाने लगी जिस पर हमलोगों द्वारा विरोध किया गया कि बच्ची को आपके द्वारा संरक्षण देने के आदेश का पालन पुलिस को ही करना है, हमलोग केवल सहयोगी की भूमिका में है | जिस पर उन महिला पुलिस को रोका गया और कई घंटे की बहस के बाद उन लोगों ने पुलिस से लिखित शिकायत पत्र माँगा लेकिन पुलिस ने लिखित पत्र देने से मना कर दिया | इसके बाद हम लोगों की तरफ से लिखित शिकायत बाल कल्याण समिति को दिया गया जिसके बाद बाल कल्याण समिति ने थाना प्रेमनगर को यह आदेश दिया कि बच्ची का मेडिकल परीक्षण कराकर बच्ची नाज़िया को बार्न बेबी फोल्ड, सिविल लाईन्स बरेली के सुपुर्द करने का आदेश दिया |
  इसके बाद पुनः बच्ची को लेकर हमलोग पुलिस की टीम के साथ थाना प्रेमनगर वापस आये और वहाँ घंटो लिखा पढी होने के पश्चात् महिला टीम के साथ जिला चिकित्सालय जाने हेतु पत्र दिया गया | जब हमलोग उस बच्ची को लेकर महिला पुलिस के साथ जिला चिकित्सालय जा रहे थे तभी उक्त मालिक पुनः थाने में आ गया और फिर से हमलोगों के ऊपर दबाव बनाने लगा की केस को रफा दफा कर दे | ऐसा प्रतीत हो रहा था की पुलिस लगातार उक्त मालिक के संपर्क में थी और उसे सारी सूचना दे रही थी, तभी तो हमलोग के थाने पहुचने के पहले ही उक्त मालिक वहाँ थाने में मौजूद था | इसके उपरान्त बच्ची और एक महिला कांस्टेबल हमलोग के साथ रिजर्ब किये गए ऑटो से और महिला दरोगा अपनी स्कूटी से जिला चिकित्सालय में बच्ची के मेडिकल परीक्षण के लिए गए | जहाँ पर बच्ची का मेडिकल परीक्षण और उपचार हुआ | वही पर हमलोगों द्वारा बच्ची को एक शाल और मोजा भी खरीदकर दिया गया क्योकि ठण्ड बहुत ज्यादा थी और बच्ची ने केवल एक स्वेटर पहना था और सिर्फ चप्पल पहन रखा था | चूंकी इस दौरान रात ज्यादा हो गयी थी जिससे महिला पुलिस बहुत झुझला रही थी और हमलोगों को लगातार बुरा भला बोल रही थी जिससे वहाँ भी नोकं झोंक हुई इसके बाद महिला पुलिस ने हमलोगों के ऑटो से न जाकर बच्ची को लेकर अपनी स्कूटी से वार्न बेबी फोल्ड, सिविल लाईन लेकर चली गयी और हमलोग ऑटो से वहाँ पहुचे हम लोगो को जगह की जानकारी न होने और रात ज्यादा होने के कारण हम लोग काफी देर भटकने के बाद वार्न बेबी फोल्ड पहुचे | जहाँ पर बच्ची का मालिक अन्य पुलिसवाले और बच्ची के माँ बाप भी पहुच चुके थे | वो लोग पुलिस वालो के साथ मिलकर बच्ची को वहाँ से अपने साथ ले जाने हेतु दबाव बना रहे थे | जिसके बाद हमलोगों द्वारा पुनः वहाँ पर बाल कल्याण समिति के उस आदेश को दिखाते हुए कहा की बच्ची को वार्न बेबी फोल्ड के सुपुर्द करने को कहा है, तब जाकर उक्त मालिक और पुलिस वहाँ से वापस गयी और बच्ची का दाखिला वहा करा दिया गया | इस पुरे दिन भर के रेस्क्यू से लेकर बच्ची के दाखिले तक वहाँ के स्थानीय ऑटो ड्राईवर ने पूरे दिन हमलोग का सहयोग किया |
इसके बाद उत्तर-प्रदेश राज्य बालक अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य श्री रविन्द्र कुमार चौहान ने कहा कि इस केस में बच्ची और उसके माता-पिता की काउंसलिंग की जायेगी और वो सीधे इस केस को देखने के लिए अगले हफ्ते बरेली भ्रमण करेंगे |

केस के दौरान अनुभव और सुझाव :    
·   रेस्क्यू के लिए रेस्क्यू स्थल की बिलकुल सही जानकारी होनी चाहिए |
·   रेस्क्यू के दौरान पैरवी हेतु टीम के पास अपनी संस्था द्वारा जारी पहचान पत्र अवश्य  
 रखना चाहिए |
·      थाने स्तर पर JJ Act की जानकरी का बिलकुल न होना |
·      बाल कल्याण समिति की भूमिका भी बच्चो के केस के हिसाब से सही नहीं दिखी क्योकि समिति ने बच्ची का अकेले में बयान तक दर्ज नहीं किया |
·      बाल कल्याण समिति महिला दरोगा के सामने ही बच्ची से सवाल जवाब कर रहे थे |
·      पुलिस रेस्क्यू के समय वर्दी में गयी थी कोइ भी सादे वर्दी में नहीं गया था जिससे बच्ची काफी घबराई हुई थी |
·      थाने पर भी बच्ची को किसी भी प्रकार की सहानुभूति या डर ख़त्म करने हेतु प्रयास नहीं किया गया |
·      बाल कल्याण समिति के अध्यक्षा व सदस्य को खुद भी अपनी भूमिका के विषय में बहुत नहीं पता था |
·      पूरे प्रक्रिया में बच्ची का कही भी काउंसलिंग और बयान दर्ज नहीं किया गया |
·      सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह रही की मौके से बरामद बंधुआ बच्ची को बरामद करने के बाद भी पुलिस ने मालिक के खिलाफ कोइ भी मुकदमा पंजीकृत नहीं किया और हम लोगो को ही वादी बना दिया |



                                                             

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