छान घोंट के: चितरंजन सिंह का अर्थ है मानवाधिकार में सबसे आखिरी व्यक्ति के साथ खड़े होना
बचपन से मेरे पिता मुझे राजनीति में जाने के लिए कहते रहे. पिता जी की राजनीति के करीब थे चितरंजन जी, जिनसे बैठकों में मैं कई बार मिल चुका था. ये बात बचपन बचाओ आन्दोलन के दिनों की है जब मैं वहां काम करता था. मुझे अच्छी तरह याद है, कामरेड चितरंजन जी ने मुझसे कहा था कि बुनियाद की जगह तुम लक्षण के साथ लड़ रहे हो. फिर उन्होंने बुनियाद के बारे में समझाया, जो कि जातिवाद, पितृसत्ता के साथ मिलकर मुनाफे की लूट है.
इस संवाद के अंत में उन्होंने दो बातें कहीं थीं. एक, अंतिम आदमी के लिए लड़ने वाले लोगों के अधिकार के लिए लड़ना और उसे किसी भी हालत में अकेला नहीं छोड़ना ही आन्दोलन की मज़बूत बुनियाद को कायम करेगा. दूसरी बात यह थी कि अपनों को मुसीबत में छोड़ना आन्दोलन के साथ गद्दारी है.
कामरेड चितरंजन की मृत्यु ने आज मुझे अंतिम आदमी के लिए लड़ने वाले एक ऐसे शख्स पर लिखने को मजबूर किया है जिस पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के अधिकारों के लिए चलने वाले प्रोजेक्ट और अभियान चुप्पी साधे हुए हैं.
ये कहानी बनारस के मंगला की है लेकिन ये चितरंजन सिंह को एक श्रद्धांजलि है.
मंगला और उसकी पत्नी का रुदन और दर्द आज भी मैं नहीं भूला हूं, जब मंगला को 5 अप्रैल को सुरक्षित जगह के लिए रवाना करने मैं उसके घर गया था. उसकी पत्नी ने कहा था, “मुसहरों और आखिरी लोगों के लिए जिन्दगी देने वाले के साथ सरकार यही सलूक कर रही है!” बार–बार मुझे अब भी वह दृश्य याद आ जाता है और मेरे दिल में एक टीस उठती है.
ठीक एक दिन पहले की बात है. जनसंदेश टाइम्स में प्रकाशित ख़बर “अनाज वितरण को लेकर फूलपुर के थाने गांव में जमकर बवाल, दरोगा समेत कई घायल पर” पर मैंने 4 अप्रैल, 2020 को दिन में 11:14 बजे माननीय राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को शिकायत करके इस मामले में स्वतंत्र एजेंसी से उच्चस्तरीय जांच कराकर दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की मांग की थी.
इस मामले की गंभीरता को देखते हुए मैंने ख़बर का हवाला देकर रात में ही उत्तर प्रदेश पुलिस व उत्तर प्रदेश सरकार को ट्वीट किया था कि यदि यह मामला सच है, तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है. कृपया कानून का राज सुनिश्चित करें.
इस मामले में जब एफआइआर की कॉपी मिली, तब पढ़ने पर पता चला कि वाराणसी के थाने रामपुर के मुसहर के साथ सामाजिक कार्यकर्ता मंगला प्रसाद राजभर पर भी फूलपुर थाने में मुकदमा दर्ज हुआ है.
1. मुकदमा संख्या 0103/2020 IPC की धारा 147, 148, 149, 307, 308, 323, 504, 506, 395, 397, 332, 353, 33, 427 व अपराधिक कानून (संसशोधन) अधिनियम 1932 के 7 व सार्वजनिक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम 2 व 3 के अंतर्गत;
2. मुकदमा संख्या 0104/2020 IPC की धारा 147, 148, 149, 323, 504, 506, 336, 307 के अंतर्गत.
सामाजिक कार्यकर्ता मंगला राजभर के खिलाफ दर्ज केस में NHRC का UP के DGP को नोटिस
प्रथम सूचना रिपोर्ट में लिखा है कि फूलपुर थानान्तर्गत ग्राम थाने रामपुर में मौके पर मंगला प्रसाद भी उपस्थित थे. मंगला के गाँव कुआर से थाने रामपुर काफ़ी दूरी पर है. यदि मंगला उस गाँव में जाते भी तो उनको मुख्य राजमार्ग से होकर जाना पड़ता जबकि लॉकडाउन के कारण रास्ते में जगह-जगह पुलिस का पिकेट लगा हुआ था.
दरअसल, 21 दिन का लॉकडाउन घोषित होने के बाद से मंगला प्रसाद राजभर अपने घर पर ही बैठ के वंचित समुदाय खासकर मुसहर, नट में खाद्य सुरक्षा के लिए शासन व प्रशासन से लगातार पैरवी कर रहे थे. प्रदेश सरकार की योजनाओं और मुख्यमंत्री की घोषणाओं के बारे में वे मोबाइल से इन वंचित समुदायों को जानकारी दे रहे थे. उन्हीं की वजह से बड़ागांव एवं पिंडरा ब्लाक में बड़ी संख्या में मुसहर व अन्य वंचित तबकों को इसका लाभ भी हुआ. सभी जगह शांतिपूर्ण तरीके से राशन उपलब्ध हुआ.
यही नहीं, लॉकडाउन के शुरूआती चरण यानी मार्च के तीसरे हफ्ते में ही उन्होंने कोइरीपुर की मुसहर बस्ती में भोजन की कमी को फेसबुक से प्रकाश में लाने का काम किया, जिस पर जनसन्देश टाइम्स ने बच्चों द्वारा जंगली घास ‘अकरी’ खाने के मामले में हस्तक्षेप किया था और उस पर प्रशासन द्वारा अविलम्ब राशन उस बस्ती के लोगो को वितरित किया गया था.
घटनास्थल पर मंगला प्रसाद की उपस्थिति को दिखाना उस क्षेत्र के प्रभावशाली तबके के कुछ लोगों की साज़िश है जो संविधान की मूल भावना व समानता के विरोधी हैं और उनसे अदावत रखते हैं. वे लोग मुसहरों के उत्थान के लिए काम करने के खिलाफ हैं. उन्हीं लोगो की सूचना पर मंगला का नाम प्राथमिकी में परेशान करने की मंशा से डाला गया है क्योंकि मंगला लगातार अपने कार्यक्षेत्र में मानवाधिकार हनन के मामले प्रशासन के स्तर पर उठाते रहे हैं.
मंगला विगत कुछ वर्षों से स्पेशल जुवेनाइल पुलिस यूनिट (SPJU) में NGO कमेटी का स्थानीय स्तर पर प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा बालिका सुरक्षा के लिए संचालित “कवच कार्यक्रम” में मास्टर ट्रेनर के रूप में उन्होंने कई जगह पुलिस व जिले के अधिकारियों के साथ ट्रेनिंग भी दी और उनको सम्मानित भी किया गया है. पिछले दिनों हर रविवार को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर आयोजित “मुख्यमंत्री आरोग्य मेला” में स्टॉल लगाकर उन्होंने समुदाय को स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी देने का जो काम किया, वह शासन-प्रशासन के संज्ञान में है. मुख्यमंत्री आरोग्य मेला में अलग-अलग रविवार को मुख्यमंत्री, क्षेत्रीय विधायक डॉ. अवधेश सिंह, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण निदेशक, जिलाधिकारी वाराणसी कौशल राज शर्मा, मुख्य चिकित्साधिकारी वाराणसी डॉ. बी. बी. सिंह शामिल हुए और इन सब ने मंगला प्रसाद के सहयोग की सराहना की है. विधायक डॉ. अवधेश सिंह द्वारा उनके काम की सराहना करते हुए मंगला को माला पहनाकर सम्मानित भी किया गया था.
मंगला प्रसाद राजभर ने अपने मोबाइल पर गूगल मैप लगा रखा है जिसमें उनको ईमेल से सूचना मिलती है कि वह किस जगह यात्रा किये हैं. घटना के दिन मैप में यह साफ़ दिख रहा है कि वे अपने घर पर ही थे.
यही नहीं, ग्राम नथाईपुर की ग्राम प्रधान श्रीमती हिरामनी ने पत्र लिखकर बताया कि 4 अप्रैल की शाम लगभग 7 बजे मंगला प्रसाद से उनके पति उमा शंकर राजभर की मुलाकात उनके घर पर ही हुई थी, जिसमें लॉकडाउन का पालन कराने को लेकर बातचीत हुई. उस दिन 4 अप्रैल, 2020 को मंगला प्रसाद घर पर ही थे.
मंगला के निर्दोष होने और उनको फंसाये जाने के इतने सारे स्पष्ट साक्ष्यों के बावजूद मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लिए काम करने वाले अभियानों और नेटवर्कों ने अब तक बनारस के इस आखिरी आदमी के पक्ष में आवाज़ नहीं उठायी है. ये अलग बात है कि उनके समर्थन में मीडिया के कुछ लोगों, फ्रीडम होम से लेकर अमेरिका के दूतावास तक ने लिखा-पढ़ा है और साथ खड़े हुए हैं.
बीते दिनों गुज़रे हमारे गुरु कामरेड चितरंजन सिंह यही तो कहते थे! किसी मानवाधिकार कार्यकर्ता, पीड़ित और आन्दोलनकारी के साथ खड़ा होना ही उनको मेरी सच्ची श्रद्धांजलि है.
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