https://www.youtube.com/watch?v=ONlYm_BrKKc
सुने और देखे. हमारे संस्थापक लेनिन रघुवंशी का भी बयान है.
19 वीं और 20 सदीं के ब्रिटिश राज वाले भारत में अकाल के चलते
लाखों लोगों की भूख से दर्दनाक मौतें हुईं थीं लेकिन क्या आजाद भारत में यह
स्थितियां पलट गईं और क्या हम 21 वी शताब्दी में यह कह सकते
हैं कि देश को भुखमरी से आजादी मिल चुकी है? यही सवाल 18 जनवरी, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने भुखमरी का रिकॉर्ड न रखने वाली केंद्र सरकार से भी तल्ख
अंदाज में पूछा... सुप्रीम कोर्ट की प्रधान पीठ ने कहा ....क्या हम यह बात पूरे
यकीन से कह सकते हैं कि देश में भूख से मौतें नहीं हो रहीं ? कोर्ट को अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल की तरफ से फिलहाल इसका जवाब नहीं मिल
सका लेकिन डाउन टू अर्थ ने भूख से होने वाली मौतों की गहन छानबीन की है। मुद्दा कार्यक्रम की इस कड़ी में हम भुखमरी पर
ही विस्तार से चर्चा करेंगे, जिसमें आपको बताएंगे कि
आखिर गरीबी, भूख और कुपोषण से होने वाली मौत की देश में असली
तस्वीर क्या है और क्या कोविड के बाद आई भयंकर गरीबी और भूख या कुपोषण से मौतों की
क्या स्थिति है हम इस चर्चा में आगे
बढ़े, आपसे गुजारिश करेंगे कि आप कृपया हमारी वेबसाइट www.downtoearth.org.in
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मिलेंगे। दिसंबर, 2021 में नीति आयोग ने पहली बार राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक रिपोर्ट जारी की
थी। इसके मुताबिक देश की 25.01 फीसदी आबादी बहुआयामी तौर
पर गरीब है। नीति आयोग के इस पहले बहुआयामी गरीबी सूचकांक के मुताबिक बिहार (51.9
फीसदी) शीर्ष पर है जबकि उसके बाद झारखंड (42.16), उत्तर प्रदेश (37.9 फीसदी) और मध्य प्रदेश (36.6
फीसदी) शामिल है। इन्हीं राज्यों में गरीब श्रमिक और भूख से मौतों के मामले भी हाल-फिलहाल सामने
आए हैं। भुखमरी यानी स्टार्वेशन के
तीन प्रकार हैं इनमें पहला है सुसाइडल, दूसरी है होमोसाइडल
और तीसरी एक्सीडेंटल। इन तीनों में सुसाइडल स्टार्वेशन बहुत ही दुर्लभ है। वहीं,
एक्सीडेंटल स्टार्वेशन का कारण अकाल, आपदा, युद्ध जैसी घटनाएं हैं जबकि वृद्ध, असहाय, मानसिक रोगी, अनाथ बच्चे को पर्याप्त भोजन न मिल पाना होमोसाइडल स्टार्वेशन कहलाता है। भारत
में खाद्य असुरक्षा वाले आदिवासी क्षेत्र ज्यादा जोखिम में रहते हैं। और भारत इन
तीनों तरह की भुखमरी का सामना कर चुका है। इस मुद्दे को और आगे बताएं पहले यह कुछ तथ्य और आंकड़े जान लीजिए... पांच वर्ष तक के बच्चों के स्वास्थ्य का
मूल्यांकन करके हर वर्ष आयरिश एड एजेंसी कन्सर्न वर्ल्डवाइड और जर्मन ऑर्गेनाइजेशन
वेल्ट हंगर हिल्फे संयुक्त तौर पर वैश्विक भूख सूचकांक रिपोर्ट जारी करता है। इस
बार कोरोना महामारी के बीच जब दुनियाभर में भयंकर गरीबी का आगमन हुआ है तब अक्तूबर
2021 को जारी इस रिपोर्ट ने भारत की चिंताएं और ज्यादा बढा दीं
हैं रिपोर्ट के मुताबिक - 116 देशों के वैश्विक भूख
सूचकांक यानी (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) में भारत की रैकिंग और खराब हो गई। 2020
में जहां 94वें स्थान पर था अब वह 101वें स्थान पर है। रिपोर्ट के मुताबिक 38.8 के स्कोर के साथ, भारत में भूख का स्तर ‘गंभीर’ श्रेणी का है.... इस ग्लोबल हंगर इडेंक्स 2021 के मुताबिक म्यांमार (71), नेपाल (76), बांग्लादेश (76) और पाकिस्तान (92) रैंक पर हैं भूख के मामले में जिनकी स्थिति भारत से काफी अच्छी है। वहीं, जुलाई 2021 में द फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (एफएओ) ने स्टेट ऑफ फूड सिक्यूरिटी एंड
न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड 2021 ( State of Food Security and Nutrition in
the World 2021) रिपोर्ट में कहा कि कोविड महामारी ने 63 निम्न और मध्य आय वाले देशों की 3.5 अरब आबादी के आय को
प्रभावित कर दिया और इन देशों में अतिरिक्त 14.1 करोड़ लोगों को पौष्टिक आहार के चुनाव के लिए असक्षम बना दिया है। कोविड से दो वर्ष पहले ही 2018 में एफएओ ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारत में दुनिया के 82.1 करोड़ कुपोषित लोगों में से 19.5 करोड़ लोग रहते हैं,
जो दुनिया के भूखे लोगों का लगभग 24 फीसदी है। वहीं, सरकार के राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण द्वारा 2017 में बताया गया था कि देश में लगभग 19 करोड़ लोग हर रात
खाली पेट सोने को मजबूर हैं। सरकार की 66वीं नेशनल सर्वे सैंपल ऑर्गेनाइजेशन रिपोर्ट
बताती है कि देश में कृषि मजदूरों को दो वक्त का भोजन नहीं मिलता। इनमें उड़ीसा और
पश्चिम बंगाल की स्थिति बेहद खराब है। यह सारे आंकड़े बताते हैं कि देश का एक बड़ा हिस्सा भूख से परेशान है और असहाय
होकर चुपचाप मौत को गले लगा रहा है। मानवाधिकार और सामाजिक कार्यकर्ताओं के एक नेटवर्क राइट टू फूड कैंपेन ने
2015 -2020 तक भूख से होने वाली मौतों का एक आंकड़ा तैयार किया है।
डाउन टू अर्थ को साझा की गई जानकारी के मुताबिक इन पांच वर्षों में जब सरकार भूख
से एक भी मौत का आंकड़ा नहीं बता रही है तब 13 राज्यो में 108 मौतें भूख से होने का दावा इस रिपोर्ट में किया
गया है। मृतकों की इस सूची में 05 से 80 आयु वर्ग के दलित, पिछड़ा, आदिवासी और सामान्य वर्ग के लोग शामिल हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक झारखंड में
सर्वाधिक 29 मौतें, उत्तर प्रदेश में 22
मौतें, उड़ीसा में 15 मौतें, बिहार में 8 मौतें, कर्नाटक में 7, छत्तीसगढ़ में 6, पश्चिम बंगाल में 6, महाराष्ट्र में 4, मध्य प्रदेश में 4, आंध्र प्रदेश में 3, तमिलनाडु में 3, तेलंगाना में 1, राजस्थान में 1 मौत शामिल है। भूख या कुपोषण से
होने वाली मौतों की अंडर रिपोर्टिंग और ऑटोप्सी के सिवा कोई प्रभावी तरीका न होने
से न सिर्फ कई छिपे हुए स्टार्वेशन सेंटर की अनदेखी जारी रहेगी, बल्कि जलवायु परिवर्तन के कारण खाद्य असुरक्षा का जोखिम और पोषण की अपूर्ण
योजनाएं 21 वीं सदी में भी हमें चोट पहुंचाती रहेंगी।
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