Sunday, February 20, 2022

काशी का हाल: गंगा जमुनी तहज़ीब का उद्गम

 सूफी संतों की दरगाहों पर होली मनाई जाती थी और दीपावली के दिन मुगल बादशाहों के दरबारों में जश्न-ए-चिरागां का आयोजन होता था। हिन्दू पूरे उत्साह से मोहर्रम में भागीदारी करते थे तो मुसलमान हिन्दू त्योहारों का आनंद लेते थे। दक्षिण में आदिलशाही शासक इब्राहिम द्वितीय ने 'किताब-ए-नौरंग' का संकलन किया था, जिसकी पहली कविता सरस्वती देवी का आव्हान करती है। रहीम और रसखान ने भगवान कृष्ण के बारे में अतुलनीय साहित्य लिखा है। आधुनिक युग में उस्ताद बिस्मिल्ला खां हिन्दू देवी-देवताओं की शान में शहनाई बजाते थे।

ये हमारी समृद्ध सांझा संस्कृति के चन्द उदाहरण मात्र हैं। परंतु साम्प्रदायिक राष्ट्रवाद, जो इस समय दिन दूनी, रात चौगुनी गति से अपना प्रभाव बढ़ा रहा है, को इस सबसे कोई मतलब नहीं है। वह चाहता है कि हर संस्कृति, हर विचार और हर परंपरा हिन्दू संस्कृति का अंग बन जाए। तुर्रा यह है कि हिन्दू संस्कृति क्या है इसे भी वे ही परिभाषित करना चाहते हैं और इसलिए उन्हें गंगा-जमुनी तहजीब से एलर्जी है।


#Kashi #Varanasi #Fascism #Sanatan #Shraman #Benaras #Democracy #Mahadev #Pluralism #Diversity

No comments: