मानव अधिकारों की एक ऐसी प्रबल पक्षधर, जिन्होंने अपना पूरा जीवन भारत के पददलितों, वंचितों और उपेक्षितों के उत्थान के लिए झोंक दिया है। जी हाँ, हम यहाँ बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के वाराणसी की जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता श्रुति नागवंशी की। 2 जनवरी 1974 को वाराणसी के दशाश्वमेध में जन्मी, श्रुति का विवाह 22 फरवरी, 1992 को डॉ. लेनिन रघुवंशी के साथ हुआ। उनके बेटे का नाम कबीर कारुणिक है जिन्होंने बिजनेस मैनेजमेंट में स्नातक किया है और वह राष्ट्रीय स्तर के स्नूकर खिलाड़ी भी हैं।
श्रुति
नागवंशी दो दशक से भी अधिक समय से मानव अधिकार और सामाजिक न्याय के क्षेत्र में
सक्रियता से काम कर रही हैं। वह दलित और आदिवासी समुदायों के अधिकारों की प्रबल
पक्षधर हैं। वंचितों और उपेक्षितों के साथ होने वाले भेदभाव और अन्याय के खिलाफ लड़ाई
में वह अनेक आंदोलनों और अभियानों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती रही हैं। उनके सतत प्रयासों
से न केवल वंचित एवं उपेक्षित समुदायों के उत्थान में मदद मिली है बल्कि इन
समुदायों द्वारा सामना की जाने वाली समस्याओं के प्रति जनजागरुकता पैदा करने में
भी सहायता मिली है।
कम
उम्र में ही श्रुति के मन में सामाजिक कार्य के प्रति जुनून पैदा हो गया था। तभी
से उन्होंने वंचित समुदायों के उत्थान और सशक्तिकरण के उद्देश्य से आयोजित होने
वाले विभिन्न स्थानीय कार्यक्रमों में जाना शुरू कर दिया था। बाद में,
वह
संयुक्त राष्ट्र युवा संगठन (यूनाइटेड नेशंस यूथ ऑर्गेनाइजेशन) के उत्तर प्रदेश
चैप्टर में शामिल हो गईं। जरूरतमंद लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का
उनका संकल्प इसके बाद और भी दृढ़ होता गया।
उन्हें
अपने कॅरियर में अनेक चुनौतियों से जूझना पड़ा है,
जैसे
कि सामाजिक सहयोग न मिलना, उनके
कार्य एवं सोच के प्रति सामाजिक उदासीनता। उन चुनौतियों को याद करते हुए,
श्रुति
बताती हैं, "महिला
नेतृत्व के विकास और भागीदारी के लिए पितृसत्ता की निरंतरता और वर्चस्ववादी पुरुष
सोच सबसे बड़ी चुनौती है।" हालांकि, उनकी
माँ ने उन्हें पढ़ाई-लिखाई के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित किया। और माँ से मिली इस
प्रेरणा का ही यह परिणाम था कि उन्होंने तमाम बाधाओं को पार करते हुए अपना अध्ययन
पूरा किया। कॉलेज की पढ़ाई के दौरान उन्हें वंचित समुदायों के लिए अवसरों के अभाव
का अहसास हुआ। और इसी अहसास ने उन्हें सामाजिक कार्यों में भाग लेने और अपने आसपास
के जीवन को करीब से जानने-समझने का हौसला दिया।
श्रुति,
सावित्री बाई फुले महिला पंचायत
की संस्थापिका है। यह महिलाओं के लिए बनाया गया एक मंच है जो कानून के दायरे में
रहते हुए धार्मिक अल्पसंख्यकों को सशक्त बनाने की दिशा में कार्य करता है। वह जन
मित्र न्यास और पीपुल्स विजिलेंस कमिटी ऑन ह्युमैन राइट्स
(जेएमएन/पीवीसीएचआर) की भी सह-संस्थापिका हैं। यह संगठन सक्रिय संवाद,
समानुभूति
के जरिए और जानकारी, प्रवृत्ति
एवं व्यवहार (केएपी) में बदलाव के माध्यम से वंचित समुदायों की चुप्पी और माफी की
संस्कृति को तोड़कर सभी के लिए गरिमामय समाज के निर्माण की दिशा में कार्य करता है।
श्रुति
को अपने कॅरियर के शुरू में जिन सबसे बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा,
उनमें
से एक है - अपने परिजनों और दोस्तों से सहयोग न मिल पाना और उन्हें नजरंदाज किया
जाना। वह कहती हैं, "मेरी
शादी पुराने ख्यालातों वाले एक रूढ़िवादी परिवार में हुई थी और इसकी अपनी स्वयं की
चुनौतियाँ थीं लेकिन समय के साथ मुझे जातिवादी सोच की प्रकृति एवं परिणामों को
काफी करीब से समझने में मदद मिली।" उनके सास-ससुर इस बात को सहजता से स्वीकार
नहीं कर पा रहे थे कि वो और उनके पति 'अछूतों'
के
लिए काम करते हैं और शुरू में, श्रुति
को भी इस बारे में उनसे कुछ कहने में संकोच होता था। लेकिन आखिरकार वो उनके पक्के
समर्थक बन गए।
वो
अपने व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन के बीच कैसे तालमेल बिठाती हैं,
इस
बारे में पूछे जाने पर, वह
बताती हैं, "यदि
आपके भीतर कुछ कर गुजरने की धुन सनक की हद तक सवार हो और आपके इरादे चट्टानी हों
तो जीवन की अल्पकालिक बाधाएं और दीर्घकालिक चुनौतियाँ खुद-ब-खुद आपका रास्ता छोड़
देती हैं। झूठे प्रभाव, डराना-धमकाना
और भ्रष्ट नौकरशाही जीवन का हिस्सा बन गई जिसके लिए साहस,
धैर्य
और निरंतर अहिंसात्मक प्रतिरोध की आवश्यकता थी।"
कामकाजी
महिलाओं के लिए मौजूदा संगठनात्मक संस्कृति के बारे में,
श्रुति
का मानना है कि व्यवसाय जगत में बदलाव आ रहा है और अब यह अधिक लोकतांत्रिक एवं
समावेशी दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ रहा है। श्रुति के ही शब्दों में,
"कहा
जाता है कि 'लोकतंत्र
को तो बाजार पसंद है लेकिन बाजार को लोकतंत्र पसंद नहीं।'
हालांकि,
व्यवसायों
की 'घराना'
संस्कृति
नवोन्मेषी मूल्य के साथ वृहत व्यावसायिक पारिस्थितिकी तंत्र को स्वीकारने लगी है। व्यवसाय
का लोकतंत्रीकरण और जमीनी स्तर पर संपत्ति का वितरण समय की मांग है।"
सामाजिक न्याय और मानव अधिकारों के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यों के लिए श्रुति नागवंशी को अनेक सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। वंचित समुदायों के उत्थान और अधिक समावेशी एवं न्यायसंगत समाज के निर्माण हेतु उनके योगदान को स्वीकारा गया है और इसके लिए उन्हें सम्मानित किया गया है। वो कई महत्वपूर्ण सम्मानों से सम्मानित हो चुकी हैं जैसे कि केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (एमडब्ल्यूसीडी) और फेसबुक द्वारा वर्ष 2016 में संयुक्त रूप से 'एक्सेस टू जस्टिस प्रोटेक्टिंग वीमेन एंड देअर राइट्स' श्रेणी में भारत की शीर्ष 100 महिला अचीवर्स की सूची में स्थान दिया जाना और कनाडा से पब्लिक पीस प्राइज। उनके कार्य को स्वीकार करते हुए फिल्म अभिनेता आमिर खान द्वारा टीवी शो, सत्यमेव जयते में भाग लेने के लिए उन्हें आमंत्रित किया जा चुका है। आमिर खान ही इस कार्यक्रम के मेजबान थे जिसमें बलात्कार के मुद्दे पर चर्चा की गई और यह कार्यक्रम वर्ष 2014 में प्रसारित हुआ था। शिक्षाविद डॉ. अर्चना कौशिक के साथ मिलकर लिखी गई उनकी नवीनतम पुस्तक 'मार्जिन्स टू सेंटर स्टेज: एम्पॉवरिंग दलित्स इन इंडिया (Margins to Centre Stage: Empowering #Dalits in India)' में वाराणसी जिले के चार ब्लॉक्स के 50 गाँवों और कुछ सबसे वंचित समुदायों की मलिन बस्तियों में जन मित्र न्यास द्वारा चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) के सहयोग से बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं को हल करने हेतु किए गए कार्यों का उल्लेख है। इन समुदायों में मातृत्व मृत्यु दर, शिशु मृत्यु दर एवं कुपोषणजनित मृत्यु के मामलों में महत्वपूर्ण रूप से गिरावट आई है। अपने कॅरियर में तमाम चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, श्रुति अपने कार्य के प्रति संकल्पित रही हैं और उन्होंने समाज में बदलाव लाने के लिए दूसरों को भी लगातार प्रेरित किया है। उन्होंने अपने अथक प्रयासों के बल पर यह दिखा दिया है कि यदि व्यक्ति में जुनून व दृढ़ संकल्प हो और सीखने एवं तद्नुसार स्वयं को अनुकूल बनाने की इच्छाशक्ति हो, तो वंचित समुदायों के जीवन में वास्तविक अर्थों में सकारात्मक बदलाव लाना असंभव नहीं है।
#SDGs #PVCHR #JanMItraNyas #Kashi #Varanasi #women
No comments:
Post a Comment