Wednesday, August 16, 2023

बनारस: मुसहर बस्ती में पुलिस बर्बरता का आरोप, चोरी के शक में बाप-बेटे पर ‘टॉर्चर’

 मुसहर समुदाय के उत्थान के लिए दशकों से काम कर रहे एक्टिविस्ट डॉ. लेनिन रघुवंशी कहते हैं, "पेंडुका की मुसहर बस्ती में पुलिस बर्बरता कोई छोटी घटना नहीं है। बिना किसी कुसूर के समूची बस्ती पर कहर बरपाना सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के ख़िलाफ़ है। लगातार चार दिनों तक पूछताछ के लिए किसी को हिरासत में रखना गुनाह है। इस मामले की शिकायत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से की जाएगी। सिर्फ पुलिस ही नहीं, सामंती तबका भी मुसहरों को बंधुआ मज़दूर बनाता आ रहा है। कई बार पुलिस मुसहर समुदाय के लोगों के माथे पर फर्जी मुकदमें मढ़ देती है। फिर समाज के ये दबे-कुचले लोग तारीख पर तारीख पाते हैं और अदालतों के चक्कर लगाते हैं। गरीबी के चलते वे मुकदमे नहीं लड़ पाते और जेल चले जाते हैं।"

डॉ. लेनिन यह भी कहते हैं, "जमींदारी उन्मूलन अधिनियम की धारा 144 बी 4 एफ में इस बात का प्रावधान किया गया है कि साल 2013 से पहले कोई भी दलित अथवा आदिवासी समुदाय का व्यक्ति जिस स्थान पर रह रहा है वहां से उसे नहीं हटाया जा सकेगा। वह असंक्रमणीय भूमिधर हो जाता है। इसके बावजूद मुसहर समुदाय पर ज़ुल्म कम नहीं।"

"बनारस की लगभग सभी मुहसर बस्तियों में वनवासी समुदाय के हज़ारों लोग ज़िंदगी की जंग लड़ रहे हैं। यूपी में दलितों में भी महादलित कहे जाने वाले मुसहर समुदाय के करीब 9.50 लाख लोग दशकों से शिक्षा, पोषण और पक्के घरों जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित रहे हैं। इनका जीवन तो ख़ासतौर पर कभी न खत्म होने वाली अनगिनत चुनौतियों का एक अंतहीन सिलसिला भर है।"

https://hindi.newsclick.in/Banaras-Allegations-of-police-brutality-in-Musahar-Basti-torture-on-father-son-on-suspicion-of-theft

बनारस: मुसहर बस्ती में पुलिस बर्बरता का आरोप, चोरी के शक में बाप-बेटे पर ‘टॉर्चर’

“रामेश्वर चौकी में मुझे और मेरे बेटे को हर रोज़ टॉर्चर किया गया। जुर्म क़बूल करने के लिए हम दोनों पर दबाव डाला गया।”
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करमू की रिहाई के लिए बनारस के शात्री घाट पर पहुंची समूची मुसहर बस्ती

उत्तर प्रदेश के बनारस का एक कस्बा है रामेश्वर। यहां से महज़ दो किमी दूर है पेंडुका मुसहर बस्ती। गंभीर आरोप है कि जंसा थाने की पुलिस ने 09 अगस्त की शाम चोरी की एक वारदात को लेकर इस बस्ती में काफ़ी बवाल मचाया, इसके बाद पुलिस ने इस बस्ती में रहने वाले करमू मुसहर और उनके बेटे को हिरासत में ले लिया। रामेश्वर चौकी के हवालात में इन्हें चार दिनों तक बंद रखा गया। आरोप है कि "पूछताछ के नाम पर इनके साथ थर्ड डिग्री इस्तेमाल किया गया। पुलिस ने इनके साथ बर्बरता की और गुनाह कुबूल करने के लिए दबाव डाला।"

बनारस के जंसा थाना क्षेत्र के जगापट्टी ग्राम पंचायत से जुड़ी है पेंडुका मुसहर बस्ती। गांव के सीवान में बसी इस बस्ती की आबादी करीब सौ के आसपास है। यहां पहुंचने का रास्ता ऊबड़-खाबड़ और खतरनाक है। बस्ती के पास एक पुराने ईंट-भट्ठे का खंडहर है। 08 अगस्त 2023 की रात पेंडुका गांव में संतोष यादव के घर चोरी हुई। बदमाश घर में रखे सारे आभूषण व नगदी उठा ले गए। बाद में गहनों की खाली पेटियां पेंडुका मुसहर बस्ती के पास खंडहर में मिली। 09 अगस्त 2023 की शाम जंसा थानाध्यक्ष राकेश पाल और दर्जन भर दरोगा भारी पुलिस फोर्स के साथ पेंडुका मुसहर बस्ती में पहुंचे और समूची बस्ती को घेर लिया। बारी-बारी से सभी घरों की तलाशी ली गई। आरोप है कि जिन घरों के लोग काम पर निकले थे, पुलिस ने उन घरों के ताले कटवा डाले और एक-एक चीज़ की तलाशी ली। करमू की मायके में रह रही बहू की तबीयत खराब थी और बेटा संजय उसका इलाज कराने गया था। स्थानीय लोगों का कहना है कि पुलिस ने करमू के आवास का ताला कटवाया और तलाशी शुरू की।

करमू मुसहर

करमू मुसहर कहते हैं, "दरोगा-पुलिस सबसे पहले मेरे घर पहुंचे और बाद में समूची मुसहर बस्ती में तलाशी शुरू कर दी। पुरुषों के अलावा औरतों व बच्चों के साथ मारपीट और गाली-गलौच किया गया। पुलिस वालों ने कपड़े, बर्तन, घरेलू सामान फेंकने शुरू कर दिए। यहां तक कि घर में रखे अनाज (चावल, गेहूं और आंटा) को बिखरा दिया। फिर भी पुलिस के हाथ कुछ भी नहीं लगा। काफी देर तक ये सब चलता रहा। पुलिस वालों ने धमकी तक दी।"

"पुलिस जब तक पेंडुका मुसहर बस्ती में रही, सभी को गालियां देती और बवाल मचाती रही। बाद में वो चोरी के बाबत पूछताछ के लिए मुझे और मेरे बेटे संजय को उठाकर रामेश्वर पुलिस चौकी ले गए। तब हमने कहा कि पेट्रोल डालकर मेरा घर फूंक दो या हमें फांसी पर लटका दो। हमने चोरी नहीं की है तो हम गुनाह कैसे कुबूल कर लें।"

पुलिस पर बर्बरता का आरोप

करमू यह भी बताते हैं, "रामेश्वर चौकी में मुझे और मेरे बेटे को हर रोज़ टॉर्चर किया गया। रामेश्वर चौकी इंचार्ज ने हम दोनों का बाल पकड़कर घसीटा और जुर्म कुबूल करने के लिए दबाव डाला। हमने तो पहले ही दिन कह दिया था कि हमने चोरी नहीं की है। भले ही हमारी जान चली जाए, पर हम जबरन गुनाह कुबूल नहीं करेंगे। हमें लगातार चार दिनों तक पुलिस चौकी में टॉर्चर किया गया। इस बीच पुलिस मुसहर बस्ती से दो और लोगों को पकड़कर ले गई। गुनाह कुबूल करवाने के लिए सभी के साथ पुलिस ने थर्ड डिग्री इस्तेमाल किया।"

करमू मुसहर के पांच बच्चे संजय, अजित, अच्छेलाल, सोनू और मोनू हैं। चार बेटियां भी हैं जो शादी-शुदा हैं और सभी ससुराल में रहती हैं। मुसहर बस्ती के लोगों का कहना है कि जिस दिन पुलिस ने इस बस्ती में इस तरह की कार्रवाई की, उसके बाद कई दिनों तक किसी के घर खाना नहीं बना। बच्चे भूख से तड़पते रहे। औरतों का रो-रोककर बुरा हाल था।

संगीता, रोना और जड़ावती ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा, "जंसा थाना पुलिस जैसे ही बस्ती में पहुंची, बवाल मचाना शुरू कर दिया। सिर्फ गाली-गलौच ही नहीं, लोगों के साथ मारपीट करने से भी पुलिस बाज़ नहीं आई। हम डरे हुए थे कि पुलिस कुछ भी सामान रखकर हमारे ऊपर चोरी का इलज़ाम न लगा दे। इसलिए हमने ग्राम प्रधान घनश्याम सिंह यादव को बुलवा लिया था। प्रधान की मौजूदगी के चलते पुलिस फर्जी केस नहीं गढ़ पाई। हालांकि हमारा सारा सामान और अनाज तहस-नहस कर दिया।"

रेखा वनवासी कहती हैं, "हम सालों से पेंडुका गांव में रह रहे हैं। हमारी बस्ती में कोई शख्स ऐसा नहीं है जिसके ख़िलाफ़ पुलिस थाने में एक भी केस दर्ज हुआ हो। हम पुलिस के आगे गिड़गिड़ाते रहे, पर उन्होंने किसी की एक नहीं सुनी। हमने यह तक कहा, हुजूर, हम मेहनत-मजूरी करते हैं। हमारा काम चोरी-चकारी करना नहीं। हम ईमानदारी से ईंट-भट्टों पर काम करते हैं। जो भी कमाते हैं उसी से गुज़ारा करते हैं। हम पढ़े-लिखे नहीं हैं। शायद इसीलिए हमारे नसीब में सिर्फ रूखी-सूखी रोटियां ही आती हैं।"

रेखा के पास खड़ी शकुंतला ने भी पुलिसिया कार्रवाई का आंखों देखा हाल सुनाया। शकुंतला करमू की बहन हैं और इसी बस्ती में रहती हैं। वह कहती हैं, "करमू भईया गांव के सबसे जागरूक व्यक्ति हैं। वह भले ही पढ़े-लिखे नहीं हैं, लेकिन पुलिस ज़ुल्म और दबंगों की दबंगई का हमेशा विरोध करते हैं। वो पुलिस से भी नहीं डरते। नौ अगस्त की शाम खाकी वर्दी वाले हमार घर में घुसे तो हमें भी पीटा और गालियां दी। हमारा कंडाल और बक्सा खुलवाया। प्रधान ने मारपीट का विरोध किया तो उनके साथ भी पुलिस वालों ने बदसलूकी की।"

पेंडुका गांव में 8 अगस्त 2023 को चोरी की पहली घटना हुई। जिस रोज़ करमू को पुलिस ने हिरासत में लिया, उसके अगले दिन मुसहर बस्ती के ठीक सामने जगापट्टी गांव में मन्नर यादव के घर में बदमाश घुसे और ससुराल से मायके में आई इनकी बेटी के सारे आभूषण ले गए। पुलिस अभी तक दोनों घटनाओं में चोरों का सुराग नहीं लगा सकी है।

करमू मुसहर के मुताबिक, "पुलिस ने चोरी के इसी मामले में उनके साथ कई अन्य लोगों को भी पकड़ा था। जुर्म कुबूल कराने के लिए पुलिस कई लोगों को टॉर्चर कर रही थी। जंसा थाना पुलिस का हाल यह है कि दोनों मामलों में वह अभी तक कुछ नहीं कर सकी है। चोरी का माल बरामद करना तो दूर, बदमाशों का सुराग तक नहीं लगा सकी है।"

क्या कहती है पुलिस?

पुलिसिया कार्रवाई के बारे में न्यूज़क्लिक से बात करते हुए गोमती ज़ोन के एडीसीपी टी सरवणन ने मुसहर समुदाय के आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। उन्होंने कहा, "जासूसी कुत्ता करमू मुसहर के घर पहुंचा था, इसलिए पुलिस उन्हें और उनके लड़कों को पूछताछ करने के लिए रामेश्वर चौकी ले गई थी। किसी के साथ कहीं भी मारपीट नहीं की गई।" जब हमने उनसे करमू को लगातार चार दिनों तक पुलिस चौकी में रखे जाने के बारे में पूछा तो उन्होंने फोन काट दिया।

इस बाबत जंसा के थाना प्रभारी राकेश पाल से बात की गई तो उन्होंने भी जासूरी कुत्ते वाले कहानी दोहराई। चौबीस घंटे से ज़्यादा समय तक पुलिस किसी व्यक्ति को हिरासत में नहीं रख सकती तो करमू मुसहर को चार दिनों तक चौकी में क्यों बैठाया गया? इस सवाल पर इंसपेक्टर राकेश पाल भी निरुत्तर हो गए और उन्होंने भी फोन काट दिया।

न्याय की गुहार लगातीं पेंडुका गांव की मुसहर समुदाय की महिलाएं

करमू की रिहाई के लिए प्रदर्शन

करमू की रिहाई के लिए मुसहर बस्ती की महिलाएं, बच्चे और पुरुष समेत सीपीएम के ज़िला मंत्री नंदलाल पटेल नारेबाज़ी करते हुए बनारस के शास्त्री घाट पर पहुंचे। धरना स्थल पर आयोजित सभा में नंदलाल पटेल ने कहा, "करमू मुसहर और उनके बेटों को चोरी के इलज़ाम में जंसा पुलिस पिछले चार दिनों से टॉर्चर कर रही है। उनके घर पर कुछ अज्ञात लोग रोज़ाना पथराव कर रहे हैं। करमू की अगुवाई में मुसहर जाति के लोग दबंगों के ज़ुल्म के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते रहे हैं। सामंतों के इशारे पर जंसा थाना पुलिस उन्हें प्रताड़ित कर रही है।"

धरना-प्रदर्शन के बाद सभी आंदोलनकारी पुलिस आयुक्त अशोक मुथा जैन से मिलने उनके दफ्तर पहुंचे। औरतों ने पुलिस आयुक्त को विस्तार से घटनाक्रम की जानकारी दी। साथ ही यह भी बताया कि "पुलिस वाले जान-बूझकर जासूसी कुत्ता लेकर करमू के घर पहुंचे। बाद में कहानी गढ़ दी कि कुत्ता खुद चोर की सुरागकशी करते हुए करमू के घर पहुंचा था। अगर करमू चोर थे तो तलाशी में उनके घर से चोरी का कोई सामान क्यों नहीं मिला?” महिलाओं ने पुलिस से सवाल किया कि "चार दिन बीत जाने के बाद आखिर कितने दिनों तक पुलिस करमू मुसहर और उनके बच्चों को हिरासत में रखेगी?" पुलिस आयुक्त ने करमू की रिहाई से पहले जांच कराने की बात कही तो पेंडुका बस्ती के लोग उन्हें ज्ञापन देकर लौट गए।

वाराणसी के पुलिस आयुक्त को ज्ञापन देने के बाद छूट पाए करमू मुसहर

नंदलाल पटेल ने ‘न्यूज़क्लिक’ से कहा, "करमू मुसहर की रिहाई के लिए हमने क्षेत्र के सभी पुलिस अफसरों से बातचीत की और उन्हें सुप्रीम कोर्ट की विशाखा गाइडलाइन का हवाला देते हुए 24 घंटे से ज़्यादा पुलिस हिरासत में न रखे जाने की ओर उनका ध्यान आकृष्ट कराया, फिर भी उन्हें रिहा नहीं किया गया। बनारस में धरना-प्रदर्शन के बाद एसीपी ने पुलिस आयुक्त को जांच रिपोर्ट दी। 12 अगस्त 2023 की रात करमू मुसहर और उनके बेटों से सादे पन्ने पर दस्तखत कराए गए। कुछ के अंगूठे के निशान भी लगवाए गए और रात करीब 10 बजे सभी को छोड़ दिया गया।"

सीपीएम के हाथी ब्रांच के सचिव शिवशंकर सिंह कहते हैं, "पेंडुका गांव की समूची मुसहर बस्ती खेत-मज़दूर यूनियन से जुड़ी है। जगापट्टी के ग्राम प्रधान घनश्याम सिंह यादव ने ईमानदार लोगों का साथ दिया। पुलिस को यह तक बताया कि मुसहर बस्ती के किसी भी व्यक्ति के बारे में कोई शिकायत आज तक नहीं आई है। वहां कोई अपराधी नहीं है। वो भला चोरी क्यों करेंगे? सिर्फ पेड़का ही नहीं, बरेमा, हीरमपुर, बरनी, महंगीपुर, तेंदुई, भाऊपुर, खरगूपुर समेत सभी मुसहर बस्तियों के लोग वर्षों से सताए जा रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि कहीं भी कोई अपराध होता है तो आरोप मुसहर समुदाय के लोगों के माथे पर मढ़ दिया जाता है। सच यह है कि पूर्वांचल में मुसहर ऐसा समुदाय है जो अपराध नहीं करता, फिर भी उनके ऊपर सबसे ज़्यादा फर्जी आरोप मढ़े गए हैं।"

जगापट्टी ग्राम पंचायत के प्रधान घनश्याम सिंह यादव ‘न्यूज़क्लिक’ से कहते हैं, "पेंडुका गांव में कुछ बरस पहले तक मुसहर समुदाय के लोग छान-छप्पर में रहते थे। ढाई बरस पहले गांव के लोगों ने प्रधानी की बागडोर हमारे हाथ में सौंपी। हमने मुसहर समुदाय के विकास पर सबसे ज़्यादा ध्यान दिया। करीब 20 मुसहर परिवारों को प्रधानमंत्री आवास दिलाया। 15 अन्य लोगों के आवास स्वीकृत हो गए हैं। पेंडुका मुसहर बस्ती में हमने पीने के साफ पानी का इंतज़ाम कराया है। इस समुदाय का जीवन स्तर उठाने के लिए उनमें हिम्मत और हौसला भरा। इस बस्ती के लोग अब किसी के आगे सिर नहीं झुकाते।"

पेंडुका मुसहर बस्ती का सबसे बड़ा दर्द है - अशिक्षा। इस बस्ती के कुछ लोग सिर्फ दस्तखत करना जानते हैं। जिन झोपड़ियों में मुसहर समुदाय के लोग रहते हैं, उसी में उनके जानवर तक पलते हैं। अक्सर आरोप भी लगते हैं कि मुसहर समुदाय की छिटपुट आबादी होने के कारण राजनीतिक दल इन पर ध्यान नहीं देते। पेंडुका के बाबी जो वनवासी हैं, कहते हैं, "नेता आएगा, वोट लेगा और गायब हो जाएगा। ऐसे में वोट के बारे में क्यों सोंचे? चुनाव के दौरान सभी दलों के नेता आते हैं। कहते हैं कि स्थितियां बदलेंगी, मगर आज तक हमारे हालात नहीं बदले। स्थिति सुधरने के बजाय बिगड़ती जा रही है। हर साल पहली बारिश में हमारे घर और रास्ते पानी में डूब जाते हैं।"

"मुसहरों के जीवन में अंतहीन चुनौतियां"

ऐसा नहीं कि नाउम्मीदी सिर्फ़ पेंडुका के मुसहर समुदाय के हाथ आती है। यह तो समूचे पूर्वांचल के मुसहर टोले में पसरी हुई है। इस समुदाय के पास न रोज़गार है, न सम्मान। सरकारी योजनाएं आती हैं तो सामंतों के घरों में कैद हो जाती हैं। मुसहर बस्तियों में कुपोषण भी ज़ाहिर तौर देखा जा सकता है।

मुसहर समुदाय के उत्थान के लिए दशकों से काम कर रहे एक्टिविस्ट डॉ. लेनिन रघुवंशी कहते हैं, "पेंडुका की मुसहर बस्ती में पुलिस बर्बरता कोई छोटी घटना नहीं है। बिना किसी कुसूर के समूची बस्ती पर कहर बरपाना सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के ख़िलाफ़ है। लगातार चार दिनों तक पूछताछ के लिए किसी को हिरासत में रखना गुनाह है। इस मामले की शिकायत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से की जाएगी। सिर्फ पुलिस ही नहीं, सामंती तबका भी मुसहरों को बंधुआ मज़दूर बनाता आ रहा है। कई बार पुलिस मुसहर समुदाय के लोगों के माथे पर फर्जी मुकदमें मढ़ देती है। फिर समाज के ये दबे-कुचले लोग तारीख पर तारीख पाते हैं और अदालतों के चक्कर लगाते हैं। गरीबी के चलते वे मुकदमे नहीं लड़ पाते और जेल चले जाते हैं।"

डॉ. लेनिन यह भी कहते हैं, "जमींदारी उन्मूलन अधिनियम की धारा 144 बी 4 एफ में इस बात का प्रावधान किया गया है कि साल 2013 से पहले कोई भी दलित अथवा आदिवासी समुदाय का व्यक्ति जिस स्थान पर रह रहा है वहां से उसे नहीं हटाया जा सकेगा। वह असंक्रमणीय भूमिधर हो जाता है। इसके बावजूद मुसहर समुदाय पर ज़ुल्म कम नहीं।"

"बनारस की लगभग सभी मुहसर बस्तियों में वनवासी समुदाय के हज़ारों लोग ज़िंदगी की जंग लड़ रहे हैं। यूपी में दलितों में भी महादलित कहे जाने वाले मुसहर समुदाय के करीब 9.50 लाख लोग दशकों से शिक्षा, पोषण और पक्के घरों जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित रहे हैं। इनका जीवन तो ख़ासतौर पर कभी न खत्म होने वाली अनगिनत चुनौतियों का एक अंतहीन सिलसिला भर है।"

(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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