Friday, January 23, 2015

उत्तर प्रदेश के जिला बरेली से क्वालिटी इंस्टीट्युशनल केयर एंड अल्टरनेटिव चिल्ड्रेन (QIC-AC), मानवाधिकार जननिगरानी समिति (PVCHR) और समग्र विकास समिति के सहयोग रेस्क्यू आपरेशन कर नाबालिग बच्ची को बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराने की रिपोर्ट













उत्तर प्रदेश के जिला बरेली से क्वालिटी इंस्टीट्युशनल केयर एंड अल्टरनेटिव चिल्ड्रेन (QIC-AC), मानवाधिकार जननिगरानी समिति (PVCHR) और समग्र विकास समिति के सहयोग रेस्क्यू आपरेशन कर नाबालिग बच्ची को बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराने की रिपोर्ट

बंधुआ मजदूर नाबालिग बच्ची का नाम    :     नाज़िया
उम्र                                 :     लगभग 9 वर्ष
बच्ची के पिता का नाम                 :     ताज मोहम्मद
बच्ची के माता का नाम                 :     आसमा
निवासी                              :     अंगूरीटांडा, रामगंगा, बरेली ऊ०प्र०    
बंधुआ मजदूरी कराने वाले मालिक का नाम :     सुहैब तथा जैनब
मालिक का पता                                   :     कलईग्रान मस्जिद के सामने सादात
बिल्डिंग के सामने प्रथमतल फ़िरोज़ प्रिंटर्स, मोहल्ला साहाबाद, थाना- प्रेमनगर, जिला- बरेली, उत्तर प्रदेश
केस में हस्तक्षेप करने वाली संस्था/व्यक्ति  :     उत्तर प्रदेश राज्य बालक अधिकार संरक्षण
आयोग के सदस्य श्री.रविन्द्र कुमार चौहान
रेस्क्यू टीम के सदस्य                  :     श्रुति नागवंशी, विनिका करौली, अनूप
कुमार श्रीवास्तव, ताहिर आदिल,
राजकुमार शर्मा
रेस्क्यू टीम के सहयोगी                 :     बरेली जिले के थाना प्रेमनगर की पुलिस
टीम


केस में की गयी पैरवी व कार्यवाही की रिपोर्ट :
बाल अधिकार के मुद्दे पर कार्यरत संस्था चाईल्ड राईट्स एंड यू (CRY) को जिला बरेली से एक शख्स ने फोन पर यह सूचना दी कि उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के थाना प्रेमनगर अन्तर्गत निवासी सुहैब तथा जैनब ने अपने घर में लगभग 9 वर्षीय बच्ची नाज़िया को बंधुआ बनाकर घर का काम-काज करवाते थे | उस बच्ची को न तो ठीक से खाना दिया जाता है और न ही उसे किसी से मिलने या कंही बाहर आने-जाने की आजादी थी, ना ही बच्ची पढ़ने जाती थी | उस शख्स ने किसी तरह बच्ची का फोटो खींचकर CRY को ई-मेल करके बच्ची को मुक्त कराने का निवेदन किया साथ ही उस शख्स ने अपनी पहचान को जाहिर न करने का भी निवेदन भी किया जिस कारण इस रिपोर्ट में उनका नाम नहीं दिया जा रहा है |
क्राई द्वारा इस केश को उत्तर प्रदेश में बाल संरक्षण के मुद्दे पर कार्यरत एलायंस क्वालिटी इंस्टीट्युशनल केयर एंड अल्टरनेटिव चिल्ड्रेन (QIC-AC) की राज्य समन्वयक विनिका करौली द्वारा इस केस को उत्तर प्रदेश राज्य बालक अधिकार संरक्षण आयोग को 14 जनवरी, 2015 को ईमेल द्वारा इस केस की डिटेल के साथ शिकायत किया गया | जिसके पश्चात उत्तर प्रदेश राज्य बालक अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य श्री रविन्द्र कुमार चौहान द्वारा जिलाधिकारी बरेली और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक जनपद बरेली को यह निर्देश दिया कि उस बच्ची को बंधुआ मजदूरी से मुक्त करने में राज्य समन्वयक क्वालिटी इंस्टीट्युशनल केयर एंड अल्टरनेटिव चिल्ड्रेन (QIC-AC) व उनकी टीम का सहयोग करे (संलग्नक-1) |  
इसके पश्चात् क्वालिटी इंस्टीट्युशनल केयर एंड अल्टरनेटिव चिल्ड्रेन (QIC-AC) द्वारा बच्ची को बंधुआ मजदूरी से मुक्त कराने हेतु मानवाधिकार जननिगरानी समिति की मैनिजिंग ट्रस्टी श्रुति नागवंशी से मदद माँगी गयी | जिसके पशचात एक टीम बनाई गयी जिसमे क्वालिटी इंस्टीट्युशनल केयर एंड अल्टरनेटिव चिल्ड्रेन (QIC-AC) की विनिका करौली, ताहिर आदिल, मानवाधिकार जननिगरानी समिति (PVCHR) की श्रुति नागवंशी और अनूप कुमार श्रीवास्तव और समग्र विकास समिति के राज कुमार शर्मा शामिल हुए | बरेली पहुंचने से पूर्व ही सूचना देने वाले शक्स से मकान तक पहुचने के रास्ते का नक्सा बनवाकर स्कैन कर मंगवा लिया गया था |
20 जनवरी, 2015 को उपरोक्त टीम के सभी सदस्य बरेली पहुंचे, तय रणनीति के अनुसार सबसे पहले जिलाधिकारी बरेली से उनके कार्यालय पर मुलाकात करने गए परन्तु मंगलवार को तहसील दिवस था जिससे जिलाधिकारी महोदय तहसील दिवस फरीदपुर तहसील पर गए थे, जो की उनके कार्यालय से लगभग 20-25 किलोमीटर की दूरी पर था |  जिलाधिकारी कार्यालय में सिटी मजिस्ट्रेट साहब बैठे थे, सो हमलोग उनसे मुलाकात कर अपने आने का औचित्य बताया, उन्होंने एसडीएम (सदर) से मुलाकात करने को कहा | जिसके पश्चात् पूरी टीम सदर तहसील में एसडीएम (सदर) महोदय से मुलाकात कर केस के बारे में बताया गया | जिस पर उन्होंने तुरन्त सकारात्मक प्रतिक्रया देते हुए तुरन्त प्रेमनगर थाने से आये दरोगा को केस सौपते हुए कार्यवाही हेतु निर्देशित किया | जिसके बाद दरोगा द्वारा प्रेमनगर थानाध्यक्ष के मोबाईल पर सूचना दी गयी और हम लोगों को थाना प्रेमनगर जाने को कहा जिसके पश्चात टीम 11:30 बजे सुबह प्रेमनगर थाने पर पहुची और थानाध्यक्ष महोदय से मुलाकात कर उन्हें केस के बारे में बात की गयी | जिस पर थानाधय्क्ष महोदय ने कहा की अभी पुलिस फ़ोर्स तहसील दिवस व अन्यत्र गयी है उनके आने पर ही आपकी कोई मदद हो सकेगी | अतः हम सभी लोग थाने पर ही बैठ कर पुलिस फ़ोर्स आने का इंतजार करने लगे साथ ही तय रणनीति के आधार पर हमलोगों ने थानाध्यक्ष महोदय को उपरोक्त मालिक का पता नहीं बताया | इसके बाद आपस में यह तय किया गया की पुलिस के आने तक टीम के सदस्य जाकर पहले से लोकेशन देखकर उस घर की पुष्टी कर ले जहाँ बच्ची को बंधुआ बनाकर रखा गया था जिससे पुलिस के साथ जाकर सीधे वही पर छापा मारा जाय, जिससे मालिक व उसके घर के सदस्यों को बच्ची को छिपाने का मौक़ा न मिले | जिसके बाद टीम के सदस्य जाकर उस घर का लोकेशन देख आए जहाँ पर बच्ची से बंधुआ मजदूरी कराया जा रहा था |
इस बीच टीम द्वारा बाल कल्याण समिति की अध्यक्षा श्रीमती शीला सिंह से भी फोन पर संपर्क किया और उनसे रेस्क्यू में बाल कल्याण समिति के सदस्य को भेजने हेतु निवेदन किया गया | परन्तु उन्होंने यह कहते हुए इन्कार कर दिया की बाल कल्याण समिति रेस्क्यू में नहीं जाती है | आप लोग उसका रेस्क्यू कराकर बाल कल्याण समिति के कार्यालय पर लाईयेगा |
इसके बाद करीब 3:00 बजे दोपहर तक टीम प्रेमनगर थाने पर पुलिस फ़ोर्स आने का इंतज़ार करती रही | उस दौरान कई बार प्रेमनगर थाना के पुलिसकर्मियों द्वारा हमारे आने और वंहा बैठने का औचित्य पूछा गया लेकिन हमारे द्वारा हर बार आने का कारण बताते हुए, मालिक का पता जान बुझकर नही बताया गया | इसके बाद पुनः टीम द्वारा थानाध्यक्ष महोदय से बात की गयी और फिर उन्होंने लिखित शिकायत पत्र माँगा जो हमलोगों ने पहले से तैयार किया था उन्हें दे दिया जिस पर पुनः उनसे कुछ तर्क वितर्क हुआ और उन्होंने पूछा कि बच्ची को मुक्त कराकर कहा रखा जायेगा जिस पर उन्हें बताया गया कि उसे बाल कल्याण समिति के समक्ष प्रस्तुत किया जायेगा फिर समिति ही तय करेगी की बच्ची को कहा रखा जाय | जिसके बाद थानाध्यक्ष महोदय ने कहा की बाल कल्याण समिति की अध्यक्षा से बात कराये कि वो तैयार है जिस पर उनसे फोन पर बात की गयी तो उन्होंने 2:00 बजे कार्यालय बंद होने की बात कही और जिसपर उन्हें काफी बातचीत के पश्चात् वो तैयार हुई की उस बच्ची को छुड़ाने के पश्चात् उनके घर पर ले आया जाए जिसके बाद भी काफी मुश्किल से थानाध्यक्ष महोदय ने पुलिस टीम के 7 सदस्यों को रेस्क्यू के लिए भेजा |  
दोपहर 3:15 बजे प्रेमनगर थाने पर क्षेत्रीय चौकी साहाबाद के चौकी इंचार्ज के आने के बाद रेस्क्यू टीम बच्ची को रेस्क्यू कराने उपरोक्त मालिक के पते पर गयी, पुलिस टीम ने मालिक के घर का पता पहले से लिखित शिकायत पत्र के माध्यम से संज्ञान में था और चौकी इंचार्ज उनके साथ थे सो वे हमसे बिना कोई जानकारी लिए सीधे मालिक के घर पहुंच गये | लेकिन उन्हें सम्भवत: बच्ची के मालिक के नाम को लेकर थोडा भ्रम था, वे फिरोज प्रिन्टर को बच्ची का मालिक समझ रहे थे वंहा पहुचने पर वे फिरोज प्रिंटर के घर की तरफ जाने लगे जबकि फिरोज प्रिंटिंग प्रेस के ऊपरी मंजिल पर बच्ची के मालिक सुहैब और जैनब का घर था | रेस्क्यू टीम के सदस्य जो पहले ही मालिक का घर देख चुके थे उन्होंने बताया की उनका घर प्रिंटिंग प्रेस के ऊपर प्रथम तल पर है | यह जानकर पुलिस और संस्था के साथी तुरन्त ही सीढियों से बच्ची के मालिक के घर की तरफ हो लिए | पुलिस द्वारा दरवाजा खटखटाने पर वही बच्ची ही दरवाजा खोलने आई, हमने प्राप्त फोटो से तुरन्त बच्ची को पहचान लिया और दरवाजा खुलते ही बच्ची से पूछाकि वह यंहा काम करती है क्या ? बच्ची ने अपना सर हाँ में हिलाकर अपनी सहमति दी, यह सब रेस्क्यू टीम की पुलिस अधिकारी देख रहे थे उन्हें भी हमारी शिकायत में सच्चाई नजर आई | उन्होंने घर के महिला मुखिया जैनब से बच्ची के बारे में पूछा तो उन्होंने स्वीकार किया कि वह अपने किसी जानने वाले के माध्यम से इस बच्ची को काम करने के लिए लायी हैं | जैनब का कहना था की   उन्होंने उस बच्ची को काम पर रखकर क्या गलत किया है उनके यंहा काम करने से कम से कम उसे अच्छा खाना तो मिलता है, वे उसे उसे दीनी तालीम सिफर पढ़ाती हैं लेकिन स्कूल नही भेजती लेकिन उनकी नजर में कोई गलत काम नही है | पुलिस के साथ यह सब बातें चल रही थी कि इस बीच बच्ची रसोईघर में जाकर खाना खाने लगी थी, इस समय दोपहर के लगभग 3.30 बज चुके थे | जैनब से हल्के विरोध का सामना करने के बाद वहाँ से बच्ची बरामद करके प्रेमनगर थाने लाया गया और आश्चर्य की बात यह रही कि कुछ ही मिनट में  मालिक सुहैब भी थाने पर आ गया | उक्त मालिक द्वारा लगातार यह प्रयास किया जा रहा था कि केस में कोई कार्यवाही न हो और मामला ख़त्म हो जाय | पुलिस और सुहैब (मालिक) दोनों ही केश में कोई लीगल कार्यवाही नही होने देना चाहते थे और केश को रफा दफा करने का दबाव बनाया जाने लगा | जिस पर थाने में काफी बहस भी हुई और पुलिस ने जब देखा कि हमलोग किसी भी तरह के समझौते के लिए तैयार नहीं होंगे | तब पुलिसिया धौंस जमाने लगे और हमलोगों से पहचान पत्र माँगने लगे और हमलोगों पर दबाव बनाने का प्रयत्न करने लगे की किसी प्रकार केश रफा दफा हो जाय | जिसके बाद हमलोगों द्वारा जब उत्तर प्रदेश राज्य बालक अधिकार संरक्षण आयोग के पत्र को दिखाया गया जिस पर साफ़-साफ़ यह निर्देशित था कि इन लोगों का इस कार्यवाही में पूरा सहयोग करे और इसकी रिपोर्ट भी आयोग को उन्हें करने का निर्देश दिया गया था, जो उनको पहले ही दिया जा चुका था | जिसके बाद पुलिस वाले थोडा सहयोगात्मक हुए और काफी दबाव बनाने के बाद बच्ची को लेकर पुलिस की टीम व हमलोग बाल कल्याण समिति बरेली के अध्यक्षा महोदय के घर गए | जहाँ पर कमेटी के एक और सदस्य देव शर्मा यजुर्वेदी के समक्ष बच्ची को प्रस्तुत किया गया | बाल कल्याण समिति के लोगों के उदासीन रवैये और जानकारी के अभाव में वहाँ पर भी काफी मशक्कत करनी पडी | उन लोगों ने न तो बच्ची का अकेले में बयान लिया और न ही वो कोइ कार्यवाही करने को तैयार हो रहे थे | साथ ही महिला पुलिस भी अपना गला छुडाकर वहाँ से जाने लगी जिस पर हमलोगों द्वारा विरोध किया गया कि बच्ची को आपके द्वारा संरक्षण देने के आदेश का पालन पुलिस को ही करना है, हमलोग केवल सहयोगी की भूमिका में है | जिस पर उन महिला पुलिस को रोका गया और कई घंटे की बहस के बाद उन लोगों ने पुलिस से लिखित शिकायत पत्र माँगा लेकिन पुलिस ने लिखित पत्र देने से मना कर दिया | इसके बाद हम लोगों की तरफ से लिखित शिकायत बाल कल्याण समिति को दिया गया जिसके बाद बाल कल्याण समिति ने थाना प्रेमनगर को यह आदेश दिया कि बच्ची का मेडिकल परीक्षण कराकर बच्ची नाज़िया को बार्न बेबी फोल्ड, सिविल लाईन्स बरेली के सुपुर्द करने का आदेश दिया |
  इसके बाद पुनः बच्ची को लेकर हमलोग पुलिस की टीम के साथ थाना प्रेमनगर वापस आये और वहाँ घंटो लिखा पढी होने के पश्चात् महिला टीम के साथ जिला चिकित्सालय जाने हेतु पत्र दिया गया | जब हमलोग उस बच्ची को लेकर महिला पुलिस के साथ जिला चिकित्सालय जा रहे थे तभी उक्त मालिक पुनः थाने में आ गया और फिर से हमलोगों के ऊपर दबाव बनाने लगा की केस को रफा दफा कर दे | ऐसा प्रतीत हो रहा था की पुलिस लगातार उक्त मालिक के संपर्क में थी और उसे सारी सूचना दे रही थी, तभी तो हमलोग के थाने पहुचने के पहले ही उक्त मालिक वहाँ थाने में मौजूद था | इसके उपरान्त बच्ची और एक महिला कांस्टेबल हमलोग के साथ रिजर्ब किये गए ऑटो से और महिला दरोगा अपनी स्कूटी से जिला चिकित्सालय में बच्ची के मेडिकल परीक्षण के लिए गए | जहाँ पर बच्ची का मेडिकल परीक्षण और उपचार हुआ | वही पर हमलोगों द्वारा बच्ची को एक शाल और मोजा भी खरीदकर दिया गया क्योकि ठण्ड बहुत ज्यादा थी और बच्ची ने केवल एक स्वेटर पहना था और सिर्फ चप्पल पहन रखा था | चूंकी इस दौरान रात ज्यादा हो गयी थी जिससे महिला पुलिस बहुत झुझला रही थी और हमलोगों को लगातार बुरा भला बोल रही थी जिससे वहाँ भी नोकं झोंक हुई इसके बाद महिला पुलिस ने हमलोगों के ऑटो से न जाकर बच्ची को लेकर अपनी स्कूटी से वार्न बेबी फोल्ड, सिविल लाईन लेकर चली गयी और हमलोग ऑटो से वहाँ पहुचे हम लोगो को जगह की जानकारी न होने और रात ज्यादा होने के कारण हम लोग काफी देर भटकने के बाद वार्न बेबी फोल्ड पहुचे | जहाँ पर बच्ची का मालिक अन्य पुलिसवाले और बच्ची के माँ बाप भी पहुच चुके थे | वो लोग पुलिस वालो के साथ मिलकर बच्ची को वहाँ से अपने साथ ले जाने हेतु दबाव बना रहे थे | जिसके बाद हमलोगों द्वारा पुनः वहाँ पर बाल कल्याण समिति के उस आदेश को दिखाते हुए कहा की बच्ची को वार्न बेबी फोल्ड के सुपुर्द करने को कहा है, तब जाकर उक्त मालिक और पुलिस वहाँ से वापस गयी और बच्ची का दाखिला वहा करा दिया गया | इस पुरे दिन भर के रेस्क्यू से लेकर बच्ची के दाखिले तक वहाँ के स्थानीय ऑटो ड्राईवर ने पूरे दिन हमलोग का सहयोग किया |
इसके बाद उत्तर-प्रदेश राज्य बालक अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य श्री रविन्द्र कुमार चौहान ने कहा कि इस केस में बच्ची और उसके माता-पिता की काउंसलिंग की जायेगी और वो सीधे इस केस को देखने के लिए अगले हफ्ते बरेली भ्रमण करेंगे |

केस के दौरान अनुभव और सुझाव :    
·   रेस्क्यू के लिए रेस्क्यू स्थल की बिलकुल सही जानकारी होनी चाहिए |
·   रेस्क्यू के दौरान पैरवी हेतु टीम के पास अपनी संस्था द्वारा जारी पहचान पत्र अवश्य  
 रखना चाहिए |
·      थाने स्तर पर JJ Act की जानकरी का बिलकुल न होना |
·      बाल कल्याण समिति की भूमिका भी बच्चो के केस के हिसाब से सही नहीं दिखी क्योकि समिति ने बच्ची का अकेले में बयान तक दर्ज नहीं किया |
·      बाल कल्याण समिति महिला दरोगा के सामने ही बच्ची से सवाल जवाब कर रहे थे |
·      पुलिस रेस्क्यू के समय वर्दी में गयी थी कोइ भी सादे वर्दी में नहीं गया था जिससे बच्ची काफी घबराई हुई थी |
·      थाने पर भी बच्ची को किसी भी प्रकार की सहानुभूति या डर ख़त्म करने हेतु प्रयास नहीं किया गया |
·      बाल कल्याण समिति के अध्यक्षा व सदस्य को खुद भी अपनी भूमिका के विषय में बहुत नहीं पता था |
·      पूरे प्रक्रिया में बच्ची का कही भी काउंसलिंग और बयान दर्ज नहीं किया गया |
·      सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह रही की मौके से बरामद बंधुआ बच्ची को बरामद करने के बाद भी पुलिस ने मालिक के खिलाफ कोइ भी मुकदमा पंजीकृत नहीं किया और हम लोगो को ही वादी बना दिया |



                                                             

Monday, January 19, 2015

Urgent Appeal: India: State of impunity and eye wash tactics in case of Bonded Labour

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ISSUES: Corruption; impunity; threat, right to live with dignity,  Malnutrition, Right to Education, Masculinity, Bonded labour, child labour, violence against women and children ……………………………………………………………………………………

19th January, 2015

Dear all,

On 4th October, 2014 18 bonded labour (8 adult male, 7 adult female and 3 child labour) belong to Musahar(mouse-eater) community of Schedule Caste resident of village Iariya under jurisdiction of Chunar in Mirzapur district of Uttar Pradesh, India went to work in the brick kiln of Sanotsh Patel from Other backward caste(it is noted that Patel in this area of Mirzapur are one of the biggest land lords) , village Parsaudha under jurisdiction of Chunar of Mirzapur districts.

The brick kiln owner and survivor agreed to prepare brick with rate of 500 Rupees for 1000 bricks. They only work in the brick kiln for four days and later engaged in this agriculture, in household work and as labourer in another work. These survivors do not received any single penny as an advance because he assured us for monthly settlement of account. When these labour demanded for the wages then Santosh Patel reimbursed 300 Rupees to a couple in end of the week. While demanding the remaining wages they were abused, beaten and got threat to life from brick kiln owner and started to work as forced labour.  

“I went to Santosh Patel and request money for the treatment of the two small children. He started to abuse me. I pleaded I will settle the remaining money from my wages. After hearing this Santosh Patel and Clerk started to abuse and beat us. They said how much brick you made how many amount we will give.”, Says Suresh Musahar. Being so horrified they ran away on 5th November, 2014 but owner Santosh Patel made bondage to five people (Murh s/o Bajrangi Age 50, Chinta s/o Murhu Age – 45, Bidesi s/o Lalchand age – 40, Lallu s/o Suresh age – 5 and Binod s/o Boader age 12).  

After reaching Paterwa I talked with phone to Bidesi, he said they were beaten and the owner closed them in a room. He pleaded us to get released them from there anyhow, we are fussed up. Because brick kiln is powerful.
On 6th November, 2014 these bonded labour came to PVCHR office along with the community leader Savitri, PVCHR immediately faxed to Sub – Divisional Magistrate Chunar and ranged and provided all information to him. But his attitude was indifferent. Same day letter was emailed to National Human Rights Commission (NHRC), New Delhi, Sub – Divisional Magistrate (SDM) – Chunar, Police Superintendent, Mirzapur, Director General of Police, Lucknow, Chief Minister, Uttar Pradesh and Prime Minister of India. http://www.pvchr.net/2014/11/blog-post_7.html

On 7th November, 2014 letter along with affidavit sent through registered postage and fax NHRC, SDM, Chunar, Chief Minister of Uttar Pradesh. No action taken by any action taken by the concerned authorities. Brick kiln owners are searching workers in their village and also in Inariya. We are now mentally fussed with brick kiln owner now we are living in threat anytime owner can came searching. Due to lack of Medical ailment the condition of two children (Soni 1 month and Arti 1 year) started deteriorated.  Due to threat to life, PVCHR provide protection to survivors in its Savitri Bai Phule Woman Centre from 8 – 12 November, 2014 (http://pvchr.asia/report.php?id=49) and 1 year Arti was admitted in Jain Hospital. These families are living with relatives in Varanasi, but there is no action for security of bonded labour. There is biggest height of rule of lord, which is making mockery of rule of law that we received information on 15th December, 2015 about encroachment of their house through making cattle field by influenced people of villages, who are related with brick kiln owner. It is clear cut violation of constitution along with Bonded Labour Abolition act,1976 and Schedule Caste & Schedule tribe atrocities Prevention Act,1989.

On 8th November, 2014 PVCHR organized press conference and shared the incidence. On same day five bonded labour released after raid by Sub – Divisional Magistrate. But there is no release certificate and legal action. It is noted that Chunar is 30 Kilometres away from Parliamentary seat of Prime Minister Shri Narendra Modi ji and Brick kiln owner is very powerful person with feudal attitude based on mind of caste.   

PVCHR with the support of DIGNITY: Danish Institute against torture provided assistance (Medical, Meta- legal, Transportation and other welfare assistance) to the survivors and Justice Venture International (JVI) provided legal support.

Name of the Survivors:

  •        Suresh s/o Murahu
  •        Tribhuvan s/o Fauzdar
  •        Chita s/o Murahu
  •        Murahu s/o Bajrangi
  •        Raju s/o Bidesi
  •        Bidesi s/o Lalchand
  •        Manoj s/o  Murahu
  •        Sunita w/o Murahu
  •        Sanju w/o Tribhuvan
  •        Mila w/o Bidesi
  •        Pooja w/o Raju
  •        Kailash s/o Boader
  •        Chamela w/o Suresh
  •        Sita w/o late Sachu
  •        Rekha w/o Kailash

Bonded child labour


  •         Vinod s/o Boader Age 12
  •         Anita w/o Bidesi Age 8
  •         Brijesh s/o Tribhuvan Age 12

Therefore it is an urgent request immediate step to put an end to practice of contemporary form of slavery like bonded labour in the brick kiln factory:


  •       Take appropriate action as mentioned in the judgement given by honourable Supreme Court Neeraja Chaudhary vs. Government of Madhya Pradesh (http://indiankanoon.org/doc/1012224/) and Bandhuwa Mukti Morcha vs. Government of India (http://indiankanoon.org/doc/572040/).

  •       Issue release certificate and register the case against brick kiln owner under the Bonded Labour Act, 1976 Government of Uttar Pradesh and SC/ST (PoA), Act. Initiate the rehabilitation and security measure.

  •       Open special schools in the brick kiln factories for the migrant children according the code of conduct established by Brick kiln owners association of Uttar Pradesh.

  •        Initiate a state plan for eradication of bonded labour practice from UP.




Please send letter to:

Mr. Akhilesh Singh Yadav,
Chief Minister
Chief Minister's Secretariat
Lucknow
Uttar Pradesh - INDIA
Fax: + 91 522 223 0002 / 223 9234 E-mail: csup@up.nic.in


The Prime Minister
Prime minister of India,
Prime minister office,
New Delhi - 110101 - INDIA
Fax no. - +91 11 - 23016857, 23019545.
E-mail: pmosb@pmo.nic.in

Chairperson, National Human Rights Commission
Faridkot House, Copernicus Marg
New Delhi 110001 INDIA
Fax + 91 11 2338 486
E-mail: chairnhrc@nic.in

The Registrar
Supreme court of India,
Tilak Marg, New Delhi - 110001 - INDIA.
Fax No. - + 91 11 23381508, 23381584.
E-mail:- supremecourt@nic.in

District Magistrate,
Mirzapur - Uttar Pradesh,
India.        
Mobile:+91-9454417567

Superintendents of Police
Mirzapur, Uttar Pradesh,India.
Tel : + 91 - 05442 - 256655
Mobile : + 91 - 9454400299


Director General of Police
1-B.N., Lahari Marg / Tilak Marg,
Lucknow - 226001 - Uttar Pradesh - INDIA
Fax No. - +91 522 2206120, 2206174
E-mail - police@up.nic.in

Urgent Appeal Desk (pvchr.india@gmail.com)
Peoples' Vigilance Committee on Human Rights (PVCHR)

Saturday, January 17, 2015

A 12 year old girl was forcibly kept for many months as bonded labour without food and water




PVCHR  wishes to draw you kind attention to the sensitive case of Momina, a minor girl, age 12 years daughter of Mohammad Yusuf residing near government water tank in Kotwan police post area within the Lohta Police station, district Varanasi. Ms. Momina has been forcibly confined to work as a bonded labourer in most brutal manner without food and water and physically and mentally tortured for four months.

The victim Momina, aged 12 years, daughter of Mohammad Yusuf, a resident of Kotwan police post area under Lohata Police station was employed by Naushad, son of Hazi Yunus, Ashfaq Nagar, Kamkaksha, police station- Bhelupur, district Varanasi on the pretext of providing better schooling and doing their house hold work nearly four years back. According the statements given by the victim and her parents, Naushad and his wife Mahi Noor are working as teachers in a government schools in Naanpara in Bahraich district who are known as a family with uncivilized and barbaric behaviours.

Before taking her the couple had promised to the 12 year old Momina’s parents (mother Shabina Bano and Father Mohammad Yusuf) that they would provide best education to her and Momina will look after their house and they will also arrange her marriage after she grows old. After Momina reached their house, the minor girl was forced to do house hold work as a bonded labourer by the cruel family. The minor victim was never sent to school to study, she was also deprived of daily food to grow normally. According to the video statement of the victim, she was usually served only one piece of bread (Roti) and drinking water in the night. In return she was made to clean the whole house, wash house hold utensils and look after 3 year old child.

Crossing all the limits of brutality the family used to burn the whole body of the little innocent girl with a burning candle and burning cloths. When the victim used to cry and weep with pain, piece of cloth was forcibly stuffed in her mouth. According to the victim, Naushad had bad intentions for her. When the victim used to go to the toilet, Naushad used to try to enter forcibly by switching off the light. On many occasions he made attempts to sexually abuse her. Whenever the minor victim called her parents on phone, the couple were always present around her with a baton and continued to threaten and intimidate her so that the victim does not dare to reveal about their cruel treatment.
The minor victim was forced to work as a bonded labour and tortured continuously for nearly 4 years generally but 4 months in particular. After undergoing the brutality for 4 long months when the victim’s condition became serious, she was not even provided medical treatment by the couple. With lot of difficulties the parents of the minor girl were informed. Somehow, on getting the information about their daughter, the parents after getting the address from his Ashfaq Nagar residence reached at Naushad’s current house at Naanpara and brought their daughter back who was on the verge of death.

When the minor girl came back home, the incident began to be raised publicly as her condition was found to be serious. Meanwhile some rich local sari merchants with mala fide intentions began trying to cover up the matter by giving Rs. 50,000 to the parents. After the meeting of community leaders on 7th January, 2015, the accused are trying to intimidate the parents of the victim not to pursue the matter. In the said incident the minor girl was tortured physically and mentally. It is therefore most essential to hold an impartial investigation in the case and it would be in the best interest of the protection of values of human rights.

It is noted that girl admitted in Pandit Deen Dayal Upadhayay Government Hospital on 8th January 2015 and she is under treatment until today.PVCHR with help of Dignity: Danish Institute against torture, Ms. Parul Sharma (Sweden) and 200 Swedish donors is supporting nutritional therapy, psychological and a part of medical treatment. Administrative magistrate recorded her statement and case as First information report registered crime no. 8/15 under section 323, 326 and 352 IPC but there is no action under Bonded Labour Abolition act, 1976, Child Labour Prohibition Act and POCSO Act, after intervention of print and electronic media.

Therefore it is an urgent request immediate step to put an end to practice of contemporary form of slavery and take appropriate action as mentioned in the judgement given by honourable Supreme Court Neeraja Chaudhary vs. Government of Madhya Pradesh (http://indiankanoon.org/doc/1012224/) and Bandhuwa Mukti Morcha vs. Government of India (http://indiankanoon.org/doc/572040/). Initiate the case against employers under the Bonded Labour Act, 1976. Government of Uttar Pradesh should be initiate state plan for eradication of bonded labour practice from UP.

More Information:

Section 352 in the Indian Penal Code (IPC):
352. Punishment for assault or criminal force otherwise than on grave provocation.—Whoever assaults or uses criminal force to any person otherwise than on grave and sudden provocation given by that person, shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to three months, or with fine which may extend to five hundred rupees, or with both. Explanation.—Grave and sudden provocation will not mitigate the punishment for an offence under this section. If the provocation is sought or voluntarily provoked by the offender as an excuse for the offence, or if the provocation is given by anything done in obedience to the law, or by a public servant, in the lawful exercise of the powers of such public servant, or if the provocation is given by anything done in the lawful exer­cise of the right of private defence. Whether the provocation was grave and sudden enough to mitigate the offence is a question of fact.


Section 323 of IPC:
​Whoever, except in the case provided for by section 334, voluntarily causes hurt shall be punished with imprisonment of either description for a term which may extend to one year, or with fine which may extend to one thousand rupees, or with both.​


Section 326 in the Indian Penal Code:
Voluntarily causing grievous hurt by dangerous weapons or means—Whoever, except in the case provided for by section 335, voluntarily causes grievous hurt by means of any instrument for shooting, stabbing or cutting, or any instrument which, used as a weapon of offence, is likely to cause death, or by means of fire or any heated substance, or by means of any poison or any corrosive substance, or by means of any explosive substance, or by means of any substance which it is deleterious to the human body to inhale, to swallow, or to re­ceive into the blood, or by means of any animal, shall be pun­ished with 1[imprisonment for life], or with imprisonment of either description for a term which may extend to ten years, and shall also be liable to fine.​




Thursday, January 15, 2015

Guests featured in Season 3 talk about the overwhelming response they received after they appeared on the show


I received so many calls, SMSes and messages on Facebook from people who watched the episode. Many of them loved Aamirji's stand on who a 'Moga' is. My mother told me after seeing the show that we need to bring a change in how we bring up our children. That was a great realization for her. Some casteist people as well as patriarchs said that they are surely going to change. My partner Shruti is very happy that I told the truth. Thank you for bringing me closer to my loved ones.


Thursday, January 08, 2015

Death of dear Shama and all victims for not in vain

Dear parents of “Shama”, (name changed)
After receiving the news from Dr. Lenin Raghuvanshi/PVCHR with details of your daughter Shama's torture and painful dying and cruelty of her death through 3 boys, and other cruel acts on innocent people, I feel deeply shocked, but immediately encouraged to write to you and in name for other discriminated and murdered innocent victims, too.

From far away country Germany, I would like firstly to express my sincerest condolences and sympathy to you, your family, Shama’s friends and all the other victims as well on behalf of the “Indo-German Society Remscheid” and its chairperson. However, most of all I feel with you as mother and already grandmother of a granddaughter of the age of 21, who is studying here, independent of religion or social class.

But murderer arbitrary by rape it can happen her in Germany too!
Secondly, we are aware of the apparent absence of the rule of law, tremendous justice and arbitrary acts, which come only into force for people like you and your dear daughter Shama!
Herewith I would like to assure our undivided solidarity and further support for you in agreement and together with Dr. Lenin Raghuvanshi/PVCHR, with whom we are working together since 2002 for the values of humanity: Human rights, dignity and education for all!

On 28 February 2012, the "Helma Ritscher Education Scholarship Fund” was established in Baghwanala by Dr. Lenin Raghuvanshi on my behalf. This long-term, sustainable initiative offers underprivileged boys and, in particular, girls a chance of further education.

It would have been such a great honour for me to see Shama participating in this scholarship…….
Dear parents, you are not alone any longer!

With Dr. Lenin Raghuvanshi and his organization at your side, your own power and undivided solidarity from us in Germany, you will never stop filing complaints and never stop fighting for justice in face of a long history of unfairness and injustice, because you will never stop loving your daughter!

God bless you! Now I am going to light a candle for you, PVCHR and our friends and for India!
Dear PVCHR,

After receiving your mail with the news of Shama's (name changed) torture and painful dying, being molested by 3 boys since June 2014, I feel not only so deeply shocked and speechless about the cruelty of her death, but also about the other “murdered human beings”.
On one hand, a girl in the age of 20, who was the only girl in her family, not bound by an arranged marriage, this girl was studying and had dreams of getting a job and supporting her poor family. With this attributes she and her poor family represent a progressive and democratic thinking and acting India, releasing from “degrading traditional fetters”.

On the other hand, it makes me seriously thinking about the apparent absence of the rule of law, tremendous justice and arbitrary acts, which come only into force for the “neglected human beings, suffering for their dignity and rights”, at the boarder of Indian society.

From my point of view, this is in opposite to the, for example, progressive and developed India as appreciated economic miracle and unique culture in the world.

I feel my duty and responsibility as human being at all, on behalf of the Indo- German Society Remscheid and as its Chairperson, again to assure our undivided solidarity and support with you, dear Lenin, and PVCHR. - Our undivided solidarity goes to Shama’s parents too, symbolically for all, who were and still arediscriminated and murdered by the “blind power from past”, which is still alive in the head of followers in present.

Dear Lenin, you and PVHR stand for the values of humanity. With and for the marginalized people -independent of religion or social class in their struggle for rights, rights for education, appreciation as equal human beings in dignity -you stigmatize the cruel criminals and “all the blind “ to the “real poor” and pay tribute to the death of dear Shama and all victims for not in vain.
Thank you heartily, dear Lenin/PVCHR, that we can stand behind you since 2002 and participate as your long lasting partner and friend through our cooperation in the fate of the marginalized people und friend of beloved India.

India remains for me a symbol of an immortal banyan tree where every moment new roots of love and appreciation are growing into the heart “of all Indian human beings”, while bad and ill roots are dying.

In deep attachment and with best wishes from Remscheid.
Links of original letters: