Friday, May 05, 2023

श्रुति नागवंशी को आईनेक्स्ट जागरण नारी टुडे अवार्ड


 केन्द्रीय राज्य मंत्री माननीया अनुप्रिया पटेल द्वारा आईनेक्स्ट जागरण नारी टुडे  अवार्ड  लेती श्रुति नागवंशी 


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Tuesday, May 02, 2023

ग्राउंड रिपोर्ट: ईंट भट्ठे में अपना वर्तमान और भविष्य झोंक रहे बंधुआ मजदूरों को आजादी का इंतजार

 https://janchowk.com/zaruri-khabar/bonded-laborers-of-brick-kiln-await-freedom/

बदल रही है व्यवस्था, आवाज उठाने लगे हैं मजदूर

मानवाधिकार जन निगरानी समिति के संयोजक व दलित मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ लेनिन रघुवंशी ने हाल के दस वर्षों में ईंट भट्ठे पर बंधुआ मजदूरी करने वाले तकरीबन 4000 से अधिक बंधुआ श्रमिकों को मुक्त कराने व पुनर्वास की व्यवस्था उपलब्ध कराया हैं। डॉ लेनिन बताते हैं “कर्ज लेने के चलते ही बंधुआ मजदूरी का कुचक्र चलता है। आज भी देश में ईंट भट्ठों पर लगभग 20 से 22 फीसदी मजदूर बंधुआ ही है। भट्ठों पर बहुत ही कठिन परिस्थितियों में ये मजदूर काम करते हैं।”

DR LENIN
मानवाधिकार जन निगरानी समिति के संयोजक व दलित मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ.लेनिन रघुवंशी

डॉ. लेनिन कहते हैं कि “चूंकि ईंट-भट्टों में काम करने वाले अधिकतर मजदूर झारखंड, बिहार और पड़ोसी जनपदों के होते हैं। इस वजह से इनका आर्थिक शोषण भी होता है। इन मजदूरों की ताकत दूसरे राज्यों में आकर कम हो जाती है। जागरूकता के अभाव में और कर्ज चुकाने की मजबूरी में यह कहीं शिकायत भी नहीं कर पाते। हालांकि, अब कई मामले देखने को मिल रहे हैं, जिसमें मजदूरी रोकने और बलपूर्वक काम लेने पर मजदूर पुलिस थाने का रुख कर रहे हैं।”

जमीन पर उतरेगा कानून तो मुख्य धारा में आएंगे मजदूर

बतौर डॉ. लेनिन, “आजादी के अमृतकाल में एक बड़ा वर्ग केंद्र और राज्य की दर्जनों कल्याणकारी योजनाओं से वंचित है। यह सभी को शर्मसार करने वाली तस्वीर है। श्रमिकों के बच्चों को स्कूल, आंगनबाड़ी से जोड़ने पर विचार किया जाना चाहिए। महिला और बच्चियों के स्वस्थ्य के लिए आशा और अन्य प्रकार के स्वास्थ्य कर्मियों को जिम्मेदारी दी जानी चाहिए।

भोजन की गारंटी के लिए राशन, आवास, कार्यस्थल पर साफ पेयजल, बाथरूम, शौचालय, रास्ते, काम के घंटों का निर्धारण, मानक के अनुरूप मजदूरी का भुगतान, पेशगी या एडवांस देने वालों पर कानून की नजर, कर्ज के ब्याज के रूप में महीनों काम करने पर रोक आदि की व्यवस्था की जानी चाहिए। समय-समय पर कई हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में फैसले दिए हैं, लेकिन जमीन पर उनकी पालन नहीं होती। मेरा मानना है कि कानून को जमीन पर प्रभावी बनाने के प्रयास सरकार को करने चाहिए।”

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