मिर्ज़ा ग़ालिब के “काबा-ए-हिंदुस्तान” काशी में मनाई गयी उनकी पुण्य तिथि की 150वीं वर्षगाठ
· पदमश्री राजेश्वर आचार्य जी को काशी का गौरव व मान बढ़ाने के लिए उन्हें दिया गया “जनमित्र सम्मान”
· यातना से संघर्षरत 7 पीडितो को किया गया सम्मानित
· वाराणसी के 20 मदरसों में वितरित की गयी लाईब्रेरी की किताबे, आलमारी, कुर्सी व टेबल
वाराणसी, 25 फरवरी, 2019 | उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब के पुण्य तिथि की 150वी वर्षगाठ के उपलक्ष्य में पराड़कर स्मृति भवन, मैदागिन पर एक गोष्ठी का आयोजन मानवाधिकार जननिगरानी समिति (PVCHR), जनमित्र न्यास (JMN),
ग्लोबल इंगेजमेंट, जर्मन सरकार व इण्डो जर्मन सोसाईटी (DIG) रेमसाईड,
जर्मनी, इन्सेक (INSEC), नोरेक (NOREC), शांति सद्भावना मंच, सेंटर फॉर
हारमोनी एंड पीस और यूनाइटेड नेशन वोलंटरी ट्रस्ट फण्ड फॉर टार्चर विक्टिम
(UNVFVT) के संयुक्त तत्वाधान में किया गया |
कार्यक्रम में उपस्थित सभी अतिथियों का स्वागत व कार्यक्रम की रूपरेखा रखते हुए मानवाधिकार जननिगरानी समिति के सीईओ डा0 लेनिन रघुवंशी ने बताया कि 19वीं
सदी के भारतीय साहित्य में सबसे बड़े और महान शायर के रूप में पहचान बनाया
है | बनारस में रहकर बनारस के बनारसी मिजाज़ से वह इतना प्रभावित हुए कि
चार सप्ताह तक रुकने के लिए मजबूर हो गए | साथ ही उन्होंने यहाँ की गंगा
जमुनी तहजीब को देखते और महसूस करते हुए काशी को “काबा-ए-हिंदुस्तान” की
उपाधि दे डाली | आज उनकी पुण्य तिथि की 150वी वर्षगाठ पर यह कार्यक्रम
आयोजित कर उनके द्वारा जो साझा संस्कृति और साझी विरासत को कायम रखने का जो
उन्होंने प्रयास किया था उसी को हम आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे है |
इस कार्यक्रम में पदमश्री राजेश्वर आचार्य जी को उनके शास्त्रीय संगीत में अपना उत्कृष्ट योगदान देने और काशी का गौरव व मान बढ़ाने के लिए उन्हें “जनमित्र सम्मान” से नवाज़ा गया | उन्हें मानवाधिकार जाननिगरानी के ट्रस्टी डा0 महेंद्र प्रताप द्वारा
प्रशस्तिपत्र व शाल भेट कर उनको सम्मानित किया | आचार्य मृत्युंजय
त्रिपाठी ने अभिनन्दन पत्र देकर काशी गौरव पदमश्री राजेश्वर आचार्य का
सम्मान किया |
पदमश्री राजेश्वर आचार्य जी ने
कहा कि ग़ालिब का यह सपना था कि हिन्दुस्तान में जो विभिन्न सम्प्रदायों की
संस्कृति की जो मिली जुली एक एकता है व अनवरत ऐसे ही कायम रहे इसके लिए वह
सतत अपनी ग़ज़ल और शायरी के माध्यम से उसको आगे बढ़ाते रहे |
कार्यक्रम में आगे आचार्य मृत्युंजय त्रिपाठी जी ने
कहा कि ग़ालिब ही एकमात्र ऐसे शायर है जो किसी एक सम्प्रदाय विशेष के न
होकर सभी सम्प्रदायों पर अपनी अमिट छाप छोड़ते है | हमें भी उनसे प्रेरणा
लेकर अपने व्यक्तित्व को ऐसे ही बनाना चाहिए |
मौलाना हारून रशीद जी ने कहा कि 'बेदिल' से
प्रभावित गालिब फारसी में शायरी करते थे | उर्दू शायरी के भीतर एक नई
परंपरा की बुनियाद डाली | गालिब अपने जीवन में ही नहीं बल्कि शायरी में भी
इंसानी रिश्तों को जीते हैं |
प्रोफ़ेसर शाहिना रिज़वी ने कहा कि उन्होंने अपनी प्रसिद्ध मसनवी 'चराग-ए-दैर' (मंदिर का दीप) में बनारस की आध्यात्मिकता, पवित्रता और सौंदर्य को बेहद खास अंदाज में चित्रित करते हुए इसे 'काबा-ए-हिंदोस्तान' कहा है । गालिब का मानना था कि बनारस की हवा में उन्हें शक्ति की अनुभूति होती है जो मृत शरीर को भी जीवित कर देती है।
डॉ0 मोहम्मद आरिफ ने कहा कि ग़ालिब उर्दू साहित्य और साझी विरासत के सिरमौर है | भविष्य का भारत कैसा हो इसकी परिकल्पना ग़ालिब ने बनारस में बैठ कर ही महसूस की थी और 'चराग-ए-दैर' लिखकर उसे साकार किया है |
इसके बाद कार्यक्रम में यातना से संघर्षरत पीडितो ने सबके सामने अपनी स्व व्यथा कथा रखी
और अपने संघर्षो के बारे में विस्तार से लोगो को बताया कि कितने संघर्षो व
मानसिक यातनाओ के उपरांत उन्हें न्याय मिलने की उम्मीद जगी है | ऐसे ही यातना से संघर्षरत 7 पीडितो को उनकी टेस्टीमनी और एक शाल देकर उनको सम्मानित किया गया |
इसी अवसर पर मानवाधिकार जननिगरानी समिति की मैनेजिंग ट्रस्टी श्रुति नागवंशी ने बताया कि ग्लोबल इंगेजमेंट, जर्मन सरकार व इण्डो जर्मन सोसाईटी (DIG), रेमसाईड, जर्मनी के आर्थिक सहयोग से मदरसों में शिक्षा की गुणवत्ता को और मजबूत करने के लिए वाराणसी के बजरडीहा व लोहता के 20 मदरसों में लाईब्रेरी स्थापित करने के लिए लाईब्रेरी की किताबे वितरित
की गयी | जिससे बच्चो को पाठ्य पुस्तक के अलावा अन्य माध्यम से पढ़ने लिखने
का अवसर भी मिल सके जिससे उनकी शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार हो सके |
इसके साथ ही 10 मदरसों में किताबो की रख-रखाव के लिए आलमारी के साथ कुर्सी और मेज भी वितरित किया गया |
इस अवसर पर मदरसों के मैनेजमेंट सदस्य व प्रधानाचार्य के साथ ही समुदाय के भी लगभग 250 लोग उपस्थित रहे |
इस
कार्यक्रम का सञ्चालन मानवाधिकार जननिगरानी समिति के सीईओ डा0 लेनिन
रघुवंशी ने किया और धन्यवाद मानवाधिकार जननिगरानी समिति के ट्रस्टी डा0
महेंद्र प्रताप ने किया |