Monday, March 11, 2019

"दिव्य कुम्भ भव्य कुम्भ का एक चेहरा ऐसा भी ......" श्रुति नागवंशी

25 करोड़ लोगों ने इस कुम्भ का वैभव देखा आम श्रधालुओं के साथ-साथ 3200 प्रवासी भारतीय, 71 देशों के राजनायिक, माननीय राष्ट्रपति, माननीय उपराष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री मारीशस, प्रधानमन्त्री भारत सरकार, मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश, उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट प्रमुख रूप से शामिल हुए | 500 शटल बसों का एक रूट पर एक साथ संचालन, 7000 से अधिक लोगों द्वारा हैण्ड पेंटिंग और 10 हजार सफाई कर्मियों द्वारा तीन सडकों पर सफाई जैसे रिकार्ड गिनीज बुक में दर्ज कराया गया | लेकिन इसी बीच कुम्भ का एक ऐसा चेहरा भी उभरकर सामने आया जिसकी सबने अनदेखी किया या नियति मानकर आगे बढ़ गए | कुम्भ में सैकड़ों बच्चे अपने परिवार के साथ या खुद अकेले श्रधालुओं के लिए उपयोग में आने वाले विभिन्न प्रकार के सामान बेचते रहे हैं या फिर देवी देवताओं का रूप धारण करके भीख मांगते फिरते रहे | संसाधनों के अभाव में जो देवी देवताओं का रूप धारण नही कर पाए वे दीनहीन अवस्था में भीख मांगते नजर आए | रुक्मिणी, गीता, रोहित, बबलू, मीना और रानी जैसे सैकड़ों बच्चे  अपने माता पिता के साथ कुम्भ के शुरूआती दिनों से ही आ गए थे और अंत समय तक बने रहे लेकिन कुम्भ की  दिव्यता और भव्यता चकाचौंध उनके लिए बेमानी रहे |  

रुक्मिणी के माता पिता अक्षय त्रिवेणी संगम पर गंगाजल भरने का डिब्बा, श्रधालुओं के उपयोग में आने वाले अन्य सामानों के साथ श्रृंगार का सामान बेचते हैं | 13 वर्षीया रुक्मिणी के कुल पांच भाई बहन हैं, सभी कुम्भ मेला     परिक्षेत्र में देवी देवताओं का वेश धारण करके अपने आप का प्रदर्शन करके घूम-घूमकर भीख मांगते हैं | जिससे एक दिन में 400 से 500 रूपये मिल जाता है | जब भूख लगता है तो मेले में लगे चाय नाश्ते के दुकानों से चाय, आलू टिकिया, ब्रेड पकौड़ा, जैसी चीजों को खरीदकर खा लेते हैं | क्योंकि चावल दाल रोटी बहुत दूर मिलता है सो, शाम को भी खाना नही मिल पाता है इन्हीं चीजों को खाकर भूख मिटानी पडती है | शाम को बड़े हनुमान मन्दिर के पास परिवार के सभी लोग इकठ्ठा होते हैं वंही मन्दिर के पास ही सोते हैं | इन बच्चों से बात करने पर पता चला कि, चित्रकूट, मैहर जैसे धार्मिक स्थलों पर आयोजित होने वाले बड़े मेले में देवी देवताओं का रूप धारण करके भीख मांगने का काम करते हैं |

मिर्जापुर की 12 वर्षीया सुनीता ने बताया कि, जब कभी भीख मांगने में कमी हो जाता है तो माता पिता गालियां तो देते ही हैं साथ ही तसली जिसमें भीख मांगते हैं उसी से मार भी खाना पड़ता है | सुनीता, सुम्मी (उम्र10 वर्ष) और बबलू (उम्र 8 वर्ष) सभी भाई बहन अपने माता पिता सहित कुम्भ मेले में शुरुआत से ही आए हैं | उन्होंने बताया कि, स्नान पर्व पर हममे से हरेक को 10 से 12 किलो चावल और लगभग 400 से 500 रुपए मिल जाता है, जबकि सामान्य दिनों में 150 से 200 रुपए मिल जाया करता है | रात में हनुमान मन्दिर के पास सोते हैं लेकिन कभी-कभी वंहा जगह नही मिलता तो यंही रेत पर ही भीख मांगते-मांगते सो जाते हैं | चावल दाल खाने का बहुत मन करता है लेकिन संगम घाट के बहुत दूर होने के कारण हम ठेले पर से ब्रेड पकौड़ा, टिकिया आदि खाकर संतोष करना पड़ता हैं | पूछने पर की पढने जाते हो तो उन्होंने कहाकि, हम कभी स्कूल नही गए |

मीना (उम्र12 वर्ष) और रानी (11वर्ष) स्कूल नही गयी है लेकिन हिसाब धडल्ले से करती है, कुम्भ मेला में शुरुआत के समय से ही परिवार के साथ आयी है, दोनों बहनें 4 बजे भोर से ही संगम घाट पर पहुंचकर ग्राहक के पीछे पीछे दौड़कर फूलमाला बेचती हैं | ग्राहक जो बड़ी गाडियों से आते हैं वे 10 के माल का 100 रुपए भी दे देते हैं | अगर कई लोग एक साथ आ जाते हैं तो माल जल्दी बिक जाता है हम हिसाब करके पूरा पैसा माता पिता को दे देते हैं | जब कभी कम बिक्री होता है तो, माता पिता कि डांट खाने को मिलता है | रात में हनुमान मन्दिर के पास माता पिता के साथ जाकर सोते हैं, माता पिता में से कोई एक जागकर सामान की पहरेदारी करते हैं |    

  रोहित के माता पिता दोनों अलग-अलग फूलमाला और श्रृंगार के सामान का दुकान लगाते हैं, वंही 14 वर्षीय रोहित संगम घाट पर 4 बजे भोर से ही टोकरी में फूलमाला लेकर बेचने पहुंच जाता है, कभी-कभी पैसे वाले ग्राहकों से 10 के माला फूल का 100 रुपए भी मिल जाता है | फूलमाला बेचने के लिए ग्राहकों के पीछे-पीछे दूर तक भागना पड़ता है उन्हें बार-बार फूलमाला लेने के लिए कहना पड़ता है | यदि दुसरे से फूलमाला ले लेते तो हमें दुत्कारते भी देते हैं जो मुझे बिल्कुल नही अच्छा नही लगता है | पूरा दिन भागने दौड़ने के बाद खाने और आराम करने का कोई साधन नही होता हम हनुमान मन्दिर के पास जाकर सोते हैं |
कुम्भ के महीनों के दौरान यह पुरे समय अनवरत चलता रहा जब विशेष पर्व के समय अधिक पैसों के दबाव व और लालच में वे बड़ी गाडियों और देखने में धनी लोगों के पीछे-पीछे भागते रहें | कड़ाके की हाड़ कपा देने वाले ठंढ में ये बच्चे सुबह के 4 बजे से स्नान घाटों पर पहुंचकर अपने काम में यानि जिन्हें भींख माँगना हो वे भीख मांगने में और जिन्हें सामान बेचना हो वे सामान बेचने में लग जाया करते हैं | धार्मिक मान्यताओं अनुसार सूरज निकलने से पुर्व स्नान फिर दान से पुण्य के भागी बनते हैं सो, भोरहरी में अधिक श्रधालु आते हैं | कुम्भ स्नान से अपने पाप धोकर अन्न एवं पैसों का दान करने पुण्य कमाने कि मंशा लिए श्रद्धालू आगे बढ़ जाते हैं | सो अँधेरी सुबह से ही इन्हें अपने काम में लग जाना मजबूरी है चाहे भीख मांगना हो या काम करना उनकी इच्छा हो या ना हो उन्हें पूछता कौन है ? अपने काम में लापरवाही करने पर माता पिता की गांलिया सुननी पड़तीं हैं | इन बच्चों में से कई बच्चों के माता पिता कुम्भ क्षेत्र में ही दैनिक जरूरत कि वस्तुओं का दुकान लगाते हैं कुछ बच्चों के माता पिता खुद भी भीख मांगने का काम करते हैं | भूख लगने पर मेला क्षेत्र में लगे दुकानों से आलू टिकिया, पकौड़ी, ब्रेड पकौड़ा, समोसा आदि खरीदकर खा लेते है | रात में आराम करने के लिए मन्दिर के आसपास जंहा भी उन्होंने अपना ठौर ठिकाना बनाया हो वंही परिवार संग आराम करते हैं उसमें भी माता पिता बारी–बारी से सोते हैं क्योंकि उन्हें अपने सामान की पहरेदारी करना पड़ता है |  

मेला प्रशासन, पुलिस सुरक्षा व्यवस्था, धार्मिक संस्थाएं, विभिन्न प्रकार कि स्वयंसेवी संस्थाएं, बाल अधिकारों की पैरोकार संस्थाएं इन सबके प्रयास इन बच्चों के लिए नाकाफी रहे, क्योंकि यही स्थिति कुम्भ के अंतिम दिन तक बनी रही | 45 दिनों तक पूरी दुनिया को आध्यात्मिक और सांस्कृतिक यात्रा कराने वाला सर्वसिद्धिप्रद कुम्भ के आयोजन का बजट 2012 के बजट 200 से बढाकर 12 गुना अधिक बजट 2500 करोड़ कर किया गया | मेला परिक्षेत्र को बढ़ाकर दोगुना किया गया, स्वच्छ कुम्भ, सुरक्षित  कुम्भ, सांस्कृतिक कुम्भ, डिजिटल कुम्भ एवं उच्च स्तरीय मिडिया प्रबंधन जैसे उद्देश्यों के लेकर योजनाओं को जमीनी स्तर पर अंजाम देने के लिए अच्छे प्रशासनिक रिकार्ड वाले अधिकारियों के हाथों में कुम्भ के आयोजन का कमान सौंपा गया | शहर को सुन्दर और सुविधायुक्त बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के निर्माण कार्य सडकें, सेतु / फ्लाईओवर, अंडरपास, पीपापुल, पार्किंग, लाइटिंग, एयरपोर्ट टर्मिनल निर्माण, रेलवे स्टेशनों का उच्चीकरण, अस्पतालों का नवीनीकरण, पर्यटन स्थलों की सजावट, शटल बस सेवा, ई-रिक्शा सुविधा, शौचालय और चेंजिंग रूम, अत्याधुनिक और भौतिक संसाधनों से युक्त टेंट आदि का व्यवस्था किया गया जिससे कुम्भ को दिव्य और भव्य बनाया जा सके | जाहिर है इन ढेर सारे प्रयासों में एक लम्बा समय भी लगा और शहर के बाशिंदों को काफी दिक्कतों से जूझना पड़ा जो किसी भी निर्माण के समय आया करता है | इस प्रयास में सबसे पहले इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज किया |


लेकिन क्या इन सभी प्रयासों से हम कुम्भ में शामिल होने वाले उन वंचित परिवारों के बच्चों के जीवन में कोई बदलाव नही ला पाए | बच्चे अपने बचपन की कीमत पर कुम्भ में श्रधालुओं के जरूरत के सामान बेचकर या फिर विभिन्न स्वांग धरकर भीख मांगकर अपना पेट पालने को विवश रहे ऐसा नही कि, वे यह सब अपनी मर्जी और रूचि से कर रहे थे, बल्कि उन्होंने ने अपनी विवशता को ही अपनी रूचि बना लिया था | पिछले कुम्भ के आयोजनों के अनुभवों के आधार पर बाल सुरक्षा पर कार्यरत राज्यस्तरीय नेटवर्क “ महफूज ” द्वारा बाल हितैषी कुम्भ की परिकल्पना को लेकर महिला एवं बाल कल्याण मंत्री सुश्री रीता बहुगुणा से भेंट में बच्चों कि दुर्दशाजनक स्थितियों कि ओर ध्यान आकृष्ट कराया गया | उनके द्वारा केवल खोया पाया कैम्प के बारे में काफी उत्साह से बताया गया, लेकिन भीख मांगने वाले बच्चों के मुद्दों पर विशेष रूचि नही लिया गया | राज्य बाल अधिकार आयोग, चाइल्ड लाइन सहित बाल अधिकारों की पैरवी करने वाले तमाम संस्थाओं कि दृष्टि से भी ये बच्चे अछूते रहे गए | महफूज के द्वारा समदर्शी संस्थाओं, बाल अधिकारों के संरक्षण के लिए उत्तरदायी अधिकारीयों के साथ आयोजित बैठकों में बताया गया कि, कुम्भ परिक्षेत्र में मेला अवधि तक बच्चों के लिए आंगनबाड़ी केंद्र और प्राथमिक विद्यालय खोला जाएगा, लेकिन यह बच्चों को अपने साथ जोड़ पाने में भी सफल नही रहा | बच्चे पैसे होने के बावजूद दाल चावल खाने को तरसते रहे |
वाराणसी के बाल अधिकार पैरोकारश्रुति नागवंशी, मंगला प्रसाद एवं विनोद के रिपोर्ट के आधार पर लेख लिखा गया है एवं सभी बच्चों के नाम बदले गए हैं |

#कुम्भ 

Thursday, March 07, 2019

Recognizing of displaced people after peoples’ advocacy

कानून का राज या फिर अत्याचार का ?


भारत प्रशासन व पुलिस प्रशासन की घोर लापरवाही से कटोंना मे भगदड़ की स्थिति के कारण 11 हजार बोल्ट के तार से करेंट की चपेट मे आने से एक युवक की मौत व 6 लोग गम्भीर रूप से घायल हुए इसके बाद १२ बजे रात दलित बस्ती में जबरजस्ती घर का दरवाजा तोड़कर महिलाओं, बच्चो, पुरुषो को लाठी डंडो से पिटाई की साथ ही पुलिस द्वारा महिलाओं को भी प्रताड़ित कर जेल भेजा गया |

 घटना का विवरण:

 28/29 जुलाई, 2017 को लगभग 12 बजे रात को कई थाने की पुलिस दलित बस्ती कटोंना में जबरजस्ती घर का दरवाजा तोड़कर महिलाओं, बच्चो, पुरुषो को लाठी डंडो से पिटाई की| यहाँ तक की 25 वर्षीया दिव्यांग (मूकबधिर) बुद्धि राम पुत्र स्व० रामकरन को भी बुरी तरह से मारा पीटा और फिर हवालात मे ले जाकर बंद कर दिया| पुलिस घर में रखा हुआ खाने का संमान बहार फेक दिया और घर में रखा हुआ मोबाइल, लैपटॉप  अपने साथ लेकर चले गए|  मीडिया द्वारा प्रकाशित खबर के बाद उसको 24 घंटे के बाद पुलिस ने छोड़ दिया|  पुलिसिया प्रताड़ना के कारण अधिकांश लोग डर से अपना घर और सामान छोड़कर भाग गये थे| 

हर साल की भांति इस साल भी कटोंना शिव मंदिर मे नागपंचमी के अवसर पर जल चढ़ाने के दौरान गाँव वाले श्रद्धालुओं की सहायता के लिये गाँव वाले लोग सड़क के किनारे टेंट लगाकर ग्रामीण लोग उनकी मदद कर रहे थे|  28 जुलाई, 2017 को प्रातः 11 बजे दिन में पुलिस वालो ने कहा कि टेंट हटाकर दुसरे जगह लगा दीजिये| इस पर ग्रामीणों ने कहा ठीक है| उसके बाद करीब १ बजे पुलिस वालो ने कहा कि जल चढ़ाने का समय समाप्त हो गया है| उसके बाद गाँव वालो ने कहा नहीं जलाभिषेक हो रहा है शाम तक टेंट हटा देंगे, इसपर वह मौजूद प्रशासनिक अधिकारी व पुलिस (ए.डी.एम.गिरजेश त्यागी, ए.एस.पी ओमप्रकाश सिंह,एस.डी.एम.अकबरपुर रामलखन पटेल और अरिया चौकी इंचार्ज) ने जबरन ३५ वर्षीय राम आशीष राजभर पुत्र जैराम को टेंट खोलने के लिए मजबूर कर दिए, उसी दौरान टेंट खोलते वक़्त 11 हज़ार वोल्ट के लाईन का तार अचानक सिर से छू गया और मौके पर राम आशीष की मृत्यु हो गयी और 6 लोग लाईट से गंभीर रूप से घायल हो गए|


स्व० रामआशीष की 24 वर्षीय सुषमा देवी बताती है कि उस दिन मै सोमवार की व्रत थी और मै मन्दिर पर जल चढ़ाने गयी थी उस दिन सुबह 9 बजे जल चढाकर कावरिया लोग नाच रहे थे| पुलिस के डर से खम्भे पर चढ़कर टेंट खोलने लगे| टेंट खोलते समय तार मेरे पति के सिर मे सट गया| बिजली का तार तब तक सटा था जब तक उनका का खून खीच न गया हो जैसे ही पुरे शरीर का खून चूस गया वैसे ही तार से छूटकर नीचे गिर गये|

मेरे पति को खम्भे से सटा देखकर गाँव के जितने लोग वहा मौजूद थे सभी लोगो ने उन्हें बचाने के लिए गए, वो लोग भी करेंट से झुलस गये उस समय चारो तरफ हाहाकार मच गया| पति को इस हालत में देख मेरे मुंह से आवाज नही आ रहा था| उस समय ऐसा लगा जैसे सब कुछ खत्म हो गया मै अपने पति को सिर्फ फटी हुयी आँखों से देखती रही| न तो मेरे आँखों में आंसू थे न तो मुंह में आवाज ,जैसे लगा मै पागल सी हो गयी हूँ| मेरा तो सब कुछ लुट गया, ‘’कौन देखेगा मुझे कौन बच्चे का परवरिश करेगा कौन बूढ़े माँ बाप को देखेगा मुझे और मेरे बच्चे को पुलिस वालो ने अनाथ बनाकर छोड़ दिया| मैंने कभी सपनों में भी नही सोचा मेरे पति का इतने कम दिन का साथ है |अगर मुझे मालूम होता तो मै उनको मन्दिर नही जाने देती| दिन रात यही सोचकर रोती रहती हूँ |मेरे बच्चो (दो बच्चे बेटा 3 साल का बेटी 6 महिना) को कौन देखेगा|

उसी दौरान अचानक बिजली के तार आपस में टकराने से तड़तड़ाने का आवाज़ हुआ जिसपर कुछ आसामाजिक तत्वों ने अफ़वाह फैला दिया कि पुलिस ने ग्रामीणों पर फायरिंग शुरू कर दिया और ग्रामीण आक्रोशित हो गए| उसी दौरान पुलिस के कुछ अधिकारी भी घायल हो गए और पुलिस ने लाठी चार्ज,
आंसू  गैस और फायरिंग शुरू कर दिए| 

4 अप्रैल, 2018 को मानवाधिकार जननिगरानी समिति (PVCHR) की एक टीम पीडितो को मनो सामाजिक संबल प्रदान करने के लिए कटोंना गयी|

ग्राम लहनपुर, थाना -अकबरपुर की 25 वर्षीया सुन्दरमा वर्मा बताती है कि उसी जगह मेरे पति (अर्जुन वर्मा) भी खम्भे मे सटकर बैठे थे| उनको भी करेंट मार दिया जिसमे बुरी तरह से चपेट मे आ गये, मै चिल्लाते हुये अपने पति के पास गयी तो पुलिस वालो ने मुझे भद्दी -भद्दी गाली देते हुये बोला की ज्यादा चिल्लाओगी तो तुम्हे ले जाकर जेल मे बंद कर देंगे| उस समय मैंने पुलिस की बातो को अनसुना करते हुये मै अपने पति की हालत देखकर अपने आप को रोक नही पायी | किसी तरह लोगो ने मेरे पति को हास्पिटल मे भर्ती कराया| पुलिस ने मुझे तुरंत वही से गिरफ्तार कर महिला थाने मे ले जाकर डाल दिये, ‘’यह कहते हुये की तुम ज्यादा चिल्ला रही थी’’ अब तुमको समझ मे आयेगा जब जेल मे रहोगी तब तुम्हारी बोली बंद हो जायेगी |उस समय मुझे लगा की ये क्या हो गया है, आखिर मुझे क्यों ले जा रहे है, ऐसा कौन सा गुनाह किये थे की मुझे जेल ले जा रहे है | पुलिस वाले मेरे पति की ऐसी हालत कर दी अगर समय से अस्पताल न ले जाते तो जान जाने का डर था |दूसरी तरफ मुझे जेल मे डाल दिये| पुलिस ने मुझे कही का नही छोड़ा|मेरे बच्चे किस हाल में होंगे | मेरे पति की देखभाल कौन करता होगा, क्या बीतती होगी मेरे परिवार के ऊपर ये सोच -सोचकर मन बैठ रहा था|
 मुझे जेल के अन्दर डालने के बाद पुलिस वाले  मेरे घर का सारा सामान तोड़ दिये| जो कीमती सामान मोबाइल, फ़ोन उसको उठा ले गये और टीवी को फोड़ दिए|                                       घर मे रखे अंनाज रखा फेक थे| ऐसा कौन सा गुनाह मेरे परिवार वालो ने किया था| जिसकी इतनी  दर्दनाक तरीके से मेरे परिवार को सजा मिली |पुलिस ने मेरी पूरी इज्जत मिट्टी मे मिला दी| एक तरफ मै जेल के अन्दर घुट रही हूँ दूसरी तरफ मेरे पति हास्पिटल मे जिन्दगी और मौत के बीच जूझ रहे थे | मेरे बच्चे घर पर भूख से तड़प रहे थे |मेरा एक सवाल है की हमने क्या बिगाड़ा था| मुझे फर्जी केस मे फसाकर जेल मे 3 महीने के लिये डाल दिया गया जब रात होता था तो जेल के अन्दर बहुत डर लगता था, की कही फिर न पुलिस वाले सादे वर्दी मे आ जाये क्योकि हर रोज 4,5 पुलिस सादा वर्दी पहन कर बैरक मे आते थे और मारते पिटते रहते बैरक महिला गार्ड से खुलवाकर अन्दर आते और गंदी -गंदी गालिया देते और मारते पिटते हम लोग डर के मारे एक दुसरे मे सिमटे हुये रहते थे| भगवान से मनाते रहते की जल्दी से पुलिस वाले यहा से चले जाये | घर की बहुत याद आती थी| बच्चो की बहुत याद आती थी रह रह कर मन बिल्कुल बेचैन हो जाता है की किस तरह अपने पति व बच्चे से जाकर मिल लू,लेकिन सोच सोच कर मन बहुत लाचार हो जाता था|जब इस चारदिवारी से बाहर निकलू तब ना उनको भर आँख देख पाऊँगी | अगर थोड़ी देर बाद पुलिस टेंट उतरवाती तो क्या जाता, कम से कम इतने लोगो का जीवन तो बर्वाद नही होता, क्या मिला है पुलिस को इतने लोगो का जीवन बर्वाद करके|
मृतकों की सूचि-
राम आशीष पुत्र जय राम ग्राम – गोपालपुर थाना- अलीगंज टांडा, आंबेडकर नगर                                                                                                                                                                                                                

घायलों की सूचि
1 -अर्जुन राजभर पुत्र सीताराम राजभर उम्र -40 वर्ष,
2-रामपाल राजभर पुत्र लोधई राम राजभर उम्र -42 वर्ष,
3-रामराज राजभर पुत्र रामउजागिर राजभर उम्र 18 वर्ष,
4 -संदीप कनौजिया पुत्र शिवशंकरउम्र 22 वर्ष,
5 -पति राजभर पुत्र रामदेव राजभर उम्र 18 वर्ष,निवासी ग्राम -गोपालपुर थाना अलीगंज टांडा |
6-राम कुवेर वर्मा,ग्राम -लहंनपुर थाना अकबरपुर गम्भीर रूप से घायल हो गये|

  
आजीविका के साधन ने लोगो की कमर तोड़ दी – ज्यादातर इस मामले में घर के कमाने वाले सदस्य को जेल भेज दिये, जिससे लोग भुखमरी के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया| घर के लोगो के पास इतना पैसा नहीं है कि वो घायल का इलाज करा सके व जमानत ले सके| अपने बच्चो को दो वक़्त का भोजन दे सके और फीस न देने के कारण शिक्षा से वंचित हो रहे है|  ग्राम गोपालपुर, थाना- अलीगंज 55 वर्षीया सुशीला देवी बताती है कि मेरे  सबसे छोटे बेटे और पति को करेन्ट लगा| वह राम आशिष को बचाने के चक्कर में बिजली के करन्ट से झुलस गये। उन्हें इलाज के लिए जिला चिकित्सालय अम्बेडकर नगर में लाया गया लेकिन उनके तबियत में कोई सुधार नही हुआ| उनकी हालत देख हम किसी तरह कर्ज लेकर प्राईवेट अस्पताल, बलरामपुर मे ले गये | वहाँ पर इलाज कराया| उन लोगो को इस हालत में देख मुझे बहुत तकलीफ हो रही थी|
कुछ दिन बीतने के बाद मै घर पर गयी |देखा मेरे घर का सारा सामान विखरा हुआ था मै देखकर बहुत दुःखी हुई| उस समय हमें लगा कि गरीबो की मजबूरी समझने वाला कोई नहीं है|आस पास से पता लगा पुलिस ने तोड़ फोड़ किया है| हमने बनी मजदूरी कर एक एक चीज इकटठा किया था |सब तहस नहस हो गया| कमजोर को पुलिस वाले कही का नहीं छोड़े|
पति और बच्चे की यह हालत क्या करू मुझे उस समय कुछ समझ नही आ रहा था| मै एकदम टुट गयी हॅू|कमाने वाले बिस्तर पर पड़े है। कर्जदार कब तक चुप रहेगे|

इस घटना में पुलिस ने 43 लोगो के ऊपर नामजद मुकदमा  अपराध संख्या 0379/2017 धारा 147, 148, 353, 323, 333, 326,307,504,427,435 सार्वजनिक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम 1984 धारा 3- 4 व दंडविधि (संशोधन) अधिनियम 1932 धारा 7 के अंतर्गत किया गया| अज्ञात मे 60 से 70 व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है| सभी लोगो जमानत पर रिहा हो गए है और विवेचना में 307 धारा को हटा दिया गया है|


1-  इस मामले की जाँच निष्पक्ष एजेंसी या राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की इन्वेस्टीगेशन टीम द्वारा कराया जाय|
2-  मृतकों व घायलों को मुआवजा दिया जाये |

 PVCHR urgent appeal desk (pvchr.india@gmail.com)



Neo Dalit Consultation at Varanasi,India



#PVCHR #NeoDalit #U4HumanRights

Tuesday, March 05, 2019

Lenin Raghuvanshi: Modi’s hypocrisy vis-à-vis Dalits who die in the sewers


Lenin Raghuvanshi: Modi’s hypocrisy vis-à-vis Dalits who die in the sewers
In Varanasi two Dalits die. The prime minister pulls a stunt washing the feet of manual sanitation workers. He "is not interested in these deaths, because the waste is collected by untouchables."

Varanasi (AsiaNews) – Two Dalit men died asphyxiated last week in Varanasi (Uttar Pradesh) whilst cleaning the sewers ahead of an election rally by Indian Prime Minister Narendra Modi next Friday. Manual waste collection is traditionally reserved for Dalits, the most discriminated community in India.
"This is Modi’s hypocrisy, leaving manual waste collectors to die” in Varanasi, said Lenin Raghuvanshi, a Dalit rights activist and executive director of the Peoples' Vigilance Committee on Human Rights (PVCHR), speaking to AsiaNews.
The prime minister “does nothing to improve the living conditions of the Dalit community. He only invests in the economy, and not to free the untouchables from caste discrimination."
The victims were Rajesh Paswan, originally from Motihari (Bihar), and Chandan, a resident of Shivpur district. The incident in which they lost their life occurred last Thursday near Kali Mandir, in the Pandeypur area.
"The two entered a sewer line that was chocked,” Raghuvanshi said. “At one point, another pipe started leaking and the wall of the chamber slipped and they were trapped inside. They died suffocated. They rescued the dead bodies only after eight hours”
The activist noted that “no one was there to help them. There should be a backup system, so that when two or three people are inside, some help is available to them.”
Varanasi is the prime minister's constituency and a large number of supporters are expected at the rally.
For Raghuvanshi, the prime minister behaves in a contradictory manner. Just a week ago, media showed him washing the feet of some sanitation workers. For India, where those once referred to as pariahs remain excluded, the gesture had great resonance.
Human rights activists complain, however, that "feet washing" was rather a political stunt ahead of the election.
In fact, the place where it was done was not random. It was during the Kumbh Mela pilgrimage, with thousands of propaganda posters with the picture of the prime minister dotting the site.
After immersing himself in the waters of the Ganges, Modi squatted in front of some sanitation workers (safai karamchari) to wash their feet.
The Safai Karamchari Andolan group, which is opposed to manual waste collection, reports that "105 workers were killed in sewers and septic tanks in 2018 alone. In 2019, 13 workers have died."
The real issue, for its president, Bezwada Wilson, "is no longer about equipment or safety gear”. Instead, “what we want is that no human being should be allowed to enter sewer lines and septic tanks."
For Raghuvanshi, "The prime minister is not interested in these deaths, because the waste is collected by untouchables."
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