Thursday, August 26, 2021
A victory in case of Anti-CAA activists in Varanasi: Victory of continuous and silent struggle of PVCHR
Tuesday, August 24, 2021
Lockdown, custodial torture , NHRC and breaking of the impunity
---------- Forwarded message ---------
Date: Mon, Aug 23, 2021 at 10:19 PM
Subject: Additional Information Called for(AIC) - 15390/24/2/2020-AD
To: <dmamb@nic.in>, <spabr-up@nic.in>, <etahjail1861@rediffmail.com>, <uphrclko@yahoo.co.in>, <CFR.PVCHR@gmail.com>
Cc: <ar1.nhrc@nic.in>
Case No.- 15390/24/2/2020-AD |
NATIONAL HUMAN RIGHTS COMMISSION |
(LAW DIVISION) |
* * * |
MANAV ADHIKAR BHAWAN, BLOCK-C, |
G.P.O. COMPLEX, INA, NEW DELHI- 110023 |
Fax No.: 011-24651332 Website: www.nhrc.nic.in |
Date : 24/08/2021 |
To, |
THE DISTRICT MAGISTRATE Collectorate Campus, Tehsil - Akbarpur, Ambedkar Nagar, (U.P) - 224122 AMBEDKAR NAGAR UTTAR PRADESH Email- dmamb@nic.in THE SENIOR SUPERINTENDENT OF POLICE SP Office,Tanda Road Near Reserve Police Line, Akbarpur, Ambedkarnagar (U.P.)-224122 AMBEDKAR NAGAR UTTAR PRADESH 224122 Email- spabr-up@nic.in THE SUPERINTENDENT District jail, Etah, Uttar Pradesh AMBEDKAR NAGAR UTTAR PRADESH Email- etahjail1861@rediffmail.com THE SECRETARY - State Humna Rights Commission Manav Adhikar Bhawan, TC-34, V-1, Vibhuti Khand, Gomti Nagar, Lucknow LUCKNOW UTTAR PRADESH 226010 Email- uphrclko@yahoo.co.in |
Sub : Complaint from |
LENIN RAGHUWANSHI |
Subject: Additional Information Called for(AIC) -15390/24/2/2020-AD. |
Sir/Madam, |
I am directed to say that the matter was considered by the Commission on 24/08/2021 and the Commission has directed as follows.: |
The Commission has received a complaint from Dr. Lenin Raghuvanshi, a human rights activist regarding custodial death of an Under Trial Prisoner, Surajpal S/o Sundar Singh, of the District Jail Etah (Aligarh) on 09.08.2020. The complainant has alleged that the victim boy was beaten up brutally by the Aliganj Police officials when he had gone out to buy some food items during the lockdown. The complainant has further alleged that the injured boy was admitted in the hospital and later he succumbed to his injuries. The complainant has sought intervention of the Commission in the matter. The Commission took cognizance of the matter and directed the District Magistrate (DM) Ambedkar Nagar (Uttar Pradesh), Senior Superintendent of Police (SSP) Ambedkar Nagar (Uttar Pradesh) and Superintendent of District Jail Etah (Aliganj) (Uttar Pradesh) to send the requisite reports to the Commission. Registry was also directed to take up the matter with the Uttar Pradesh State Human Right Commission to enquire whether they have taken cognizance of this case of judicial custody death, if so the date of cognizance to be obtained from the Uttar Pradesh Human Rights Commission. Since no report has been received from the concerned authorities, let a reminder be issued to the District Magistrate (DM) Ambedkar Nagar (Uttar Pradesh), Senior Superintendent of Police (SSP) Ambedkar Nagar (Uttar Pradesh) and Superintendent of District Jail Etah (Aliganj) (Uttar Pradesh), for submission of the following reports within six weeks positively:- i. Initial health screening report, as per NHRC format.(including report of previous jail, if applicable). ii. Complete medical treatment records, including previous jail, if applicable. (a brief medical summary in chronological order should be made available mentioning ailment(s) and in-door/outdoor treatment given to the deceased). iii. Inquest panchnama. v. CD of postmortem examination. vi. Chemical examination of viscera (if applicable). vii. Histopathology examination of viscera (if applicable). viii. Final cause of death based on FSL report (if applicable). Following reports, if applicable, may also please be sent: i) Action Taken Report on the Magisterial Enquiry Report. ii) Final Outcome/Status of Departmental action or criminal proceedings. iii) CB/CID Inquiry Report, if applicable. Since, no report has been received from the Uttar Pradesh Human Rights Commission, let a reminder be issued to Registrar/Secretary, Uttar Pradesh State Human Right Commission to enquire whether they have taken cognizance of this case of judicial custody death, if so the date of cognizance to be obtained from the Uttar Pradesh State Human Rights Commission, within six weeks positively. |
2. It is therefore, requested that the additional/complete report as directed by the Commission in the matter be sent latest by 15/10/2021, for futher consideration by the Commission. |
3. Any communication by public authorities in this matter may please be sent to the Commission through the HRCNet Portal (https://hrcnet.nic.in) by using id and password already provided to the public authorities (click Authority Login), or through Speed Post/ at email-id cr.nhrc@nic.in. Any Audio/ Video CDs/ pen drives etc. and bulky reports may be sent through Speed Post/ per bearer. |
Your’s faithfully Sd/- Mukesh ASSISTANT REGISTRAR (LAW) M-1 Section Ph. No. 011-24663285 Email. ar1.nhrc@nic.in |
CC to |
Sunday, August 08, 2021
यूपी में हाशिये पर मुसहर: न शौचालय है, न डॉक्टर हैं और न ही रोज़गार
https://hindi.newsclick.in/UP-Musahar-Community-crisis-No-toilet-no-doctor-no-employment
यूपी में हाशिये पर मुसहर: न शौचालय है, न डॉक्टर हैं और न ही रोज़गार
विजय विनीत की रपटउत्तर प्रदेश के वाराणसी जनपद के अनेई में गांव के मुहाने पर बसी मुसहर बस्ती के इकलौते कुएं की जगत (चबूतरा) पर बैठे बड़े-बूढ़े, जवान और महिलाएं उदास नजर आते हैं। इस बस्ती में तकरीबन 56 परिवारों के करीब 250 लोगों ने सालों पहले अपने टोले के कायाकल्प के वादे सुने थे, सपने बुने थे लेकिन कोई भी साल इनकी सामाजिक और आर्थिक स्थित में बदलाव नहीं ला सका। बांस और सूखी घास से बनी अपनी झोपड़ी के सामने नंग-धड़ंग बच्चों के साथ हताशा में डूबे इन चेहरों से ही झलकता है कि उनका जीवन कितना मुश्किल भरा है।
मुसहर समुदाय की औरतों के पास भी कोई काम नहीं है।
कुछ गज जमीन, जर्जर मकान, सुतही-घोंघा और चूहा पकड़कर जीवन की नैया खेते-खेते थक हार चुका है मुसहर समुदाय। और वह आज भी हाशिये पर खड़ा है। सत्ता के कई रंग लखनऊ की सियासत पर चढ़े। कभी पंजे का जलवा, कभी कमल खिला, कभी हाथी जमकर खड़ा हुआ तो कभी साइकिल सरपट दौड़ी। लेकिन आर्थिक तंगी ने इनके साथ आंखमिचौली तो खेली ही, किसी भी सरकार ने इस समुदाय के लिए कुछ भी नहीं किया।
अनेई मुहसर बस्ती के प्रकाश वनवासी कहते हैं, " चुनाव के दौरान सभी दलों के नेता आते हैं। कहते हैं कि स्थितियां बदलेंगी, मगर आज तक हालात नहीं बदले। स्थिति सुधरने के बजाय बिगड़ती जा रही है। पहली बारिश में ही कच्चे घर और रास्ते पानी में डूब गए। अब तो यही लगता है कि सभी दलों के नेता सिर्फ ढकोसला करते हैं। तभी तो हमारे पास न शौचालय है, न डाक्टर हैं और न ही रोज़गार। यह सिर्फ हमारी नहीं, मुसहर समुदाय के सभी टोलों की कहानी है।"
कोरोना और लॉकडाउन ने मुसहर समुदाय के लोगों पर कितना सितम ढाया है, अनेई मुसहर बस्ती इसकी जीती-जागती मिसाल है। यहां इकलौते कुएं के चबूतरे पर हताशा की हालत में बैठे लक्ष्मण वनवासी के पास कोई रोजगार नहीं है।
लक्ष्मण कहते हैं, " मुसहर टोले के ज्यादातर लोग बनारस और जौनपुर में ईंट के भट्ठों पर काम करते थे। कोरोना लहर में घर लौटे तो फिर काम ही नहीं मिला। स्कूल बंद होने से बच्चों को मिड डे मील नहीं मिल पा रहा है, जिससे दो वक्त की रोटी जुटा पाना मुहाल हो गया है।"
आंखों में उदासी, नींद गायब
चेहरे पर मोटी झुर्रियां और नीली साड़ी पहने 80 बरस की बुढ़िया झबरी की भूरी आंखों में एक सख़्त उदासी नजर आती है। वह अपनी झोपड़ी में भर आए बारिश के पानी की वजह से चिंतित हैं।
बिना सवाल पूछे झबरी कहने लगीं, "हमारे यहां चलकर देख लीजिए। हमारी झोपड़ी में पानी घुस गया है। घर तक का रास्ता भी पानी में डूबा है। तेज बारिश में समूची बस्ती पानी से सराबोर हो जाती है। तब कई दिनों तक हमें नींद नहीं आती। "
तभी इनके पीछे बैठी दुर्गावती की आवाज आई, "एक तो पानी भर गया है और ऊपर से मुसहर बस्ती में किसी के पास कोई काम नहीं है। सारे मर्द और महिलाएं खाली हाथ बैठे हैं। कोरोना चला गया, लेकिन भूख दे गया। दो वक्त की रोटी तक मयस्सर नहीं हो पा रही है। बस किसी तरह से चल पा रही है जिंदगी।"
यह कहानी सिर्फ अनेई की नहीं। पूर्वी उत्तर प्रदेश की सभी मुसहर बस्तियों में लोगों का जीवन एक जैसा ही है। अकेले अनेई में 38 में से चार बच्चों को छोड़ सभी कुपोषित हैं। यहां गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की संख्या 16 हैं।
मुसहर टोले की रीता कहती हैं, "बच्चों में कुपोषण की समस्या मिड डे मील योजना के बंद होने की वजह से आई है। किसी भी मुसहर बस्ती में जाइए, औरतों के पिचके हुए गाल और नर-कंकाल सरीखे कुपोषित बच्चे कहीं भी दिख जाएंगे।"
एक बरगद के पेड़ के नीचे कटोरा लिए बैठी मिलीं माला। पैरों में न तो चप्पल थी, न जिंदगी में कोई रंग। कहने लगीं, " इस गांव में किसी को कोरोना की बीमारी नहीं हुई, लेकिन बंदी (लॉकडाउन) के बाद से काम मिलना बंद हो गया। हम रोज़ कमाने-खाने वाले लोग हैं, तो इतने महीनों से जब कोई मज़दूरी नहीं मिली तो घर चलाना और बच्चे पालाना बहुत मुश्किल हो रहा है। सिर्फ़ सरकारी राशन पर ज़िंदा हैं। लेकिन मज़दूरी न मिलने की वजह से हाथ में एक पैसा नहीं है। इसलिए तरकारी (सब्जी) मिलने का सवाल ही नहीं है।"
पहाड़ बनी जिंदगी
सरकारी राशन की वजह से यहां के लोगों को रोटी तो नसीब हो रही है, लेकिन कोरोना के बाद हुई देश-व्यापी बंदी ने उनकी कमर तोड़ दी है। अपनी झोपड़ी के सामने खड़े प्रकाश वनवासी कहते हैं, "बीमारी के बाद से तो रोपाई-कटाई के लिए भी कोई किसान हमें मजूरी देने के लिए नहीं बुलाता है। महीनों से हमारे पास कोई काम नहीं है। पहले जब काम मिलता था तो आदमी-औरत सब काम करते थे। हर किसी को रोज़ की सौ-दो सौ रुपये दिहाड़ी जरूर मिल जाया करती थी, लेकिन अब कुछ नहीं। बीमारी से हम भले ही नहीं मरे, लेकिन बेरोज़गारी ने जिंदगी पहाड़ बना दी।"
अपना ख़ाली जॉब कार्ड दिखाते हुए पप्पू कहते हैं, "सरकार सड़कें बनवा रही है और गड्ढे भरे जा रहे हैं, लेकिन हमें कोई काम नहीं देता। मनरेगा का कार्ड देख लीजिए, सभी के जॉब कार्ड ख़ाली हैं।"
दलितों में भी महादलित कहे जाने वाले मुसहर समुदाय के तक़रीबन 9.50 लाख लोग, उत्तर प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में सदियों से हाशिये पर रहते और जीते आए हैं। पूरी तरह भूमिहीन रहे इस समुदाय के लोग दशकों से शिक्षा, पोषण और पक्के घरों जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित रहे हैं।
बनारस के कोईरीपुर, दल्लीपुर, रमईपट्टी, औराब, सरैया, कठिरांव, असवारी, हमीरापुर, मारूडीह, नेहिया रौनाबारी, जगदीपुर, थाने रामपुर, बरजी, महिमापुर, सिसवां, परवंदापुर, सजोई, पुआरी खुर्द, मेहंदीगंज, शिवरामपुर, लक्खापुर सहित लगभग सभी मुहसर बस्तियों में वनवासी समुदाय के हजारों लोग जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं। इनका जीवन तो ख़ासतौर पर कभी न खत्म होने वाली अनगिनत चुनौतियों का एक अंतहीन सिलसिला है।
पूर्वांचल की किसी भी मुसहर बस्ती में जाइए, देखने से पता चल जाएगा कि उनकी जिंदगी पशुओं से भी बदतर है। जिस झोपड़ी में इनका पूरा परिवार रहता है, उसी में उनकी भेड़-बकरियां भी पलती हैं और भोजन भी बनता है। बारिश के दिनों में इनके घर चूते हैं, जिसे बनाने के लिए इनके पास पैसे ही नहीं हैं। ऐसा नहीं कि नाउम्मीदी सिर्फ़ अनेई के मुसहर समुदाय के हाथ आती है। वह तो समूचे पूर्वांचल के मुसहर टोले मे पसरी हुई है।
‘विकास’ के साथ दारू की दुकान भी आई
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 12 सितंबर 2018 को सोनभद्र की तीन ताली मुसहर टोले में पहुंचकर ऐलान किया था कि इस समुदाय के लोगों के दिन फिर जाएंगे। योगी के जाने के बाद यहां मुसहरों को आवास तो जरूर मिले, लेकिन इनकी जीवन शैली नहीं बदली। सोनभद्र के वरिष्ठ पत्रकार शिवदास बताते हैं," तीन ताली मुसहर बस्ती में सरकारी विकास तो पहुंचा, लेकिन उसी के साथ शराब का ठेका भी पहुंच गया। नतीजा, 80 फीसदी लोग शराब के नशे की जद में आ गए और तबाही बढ़ गई। सामाजिक स्तर पर इनका न तो इनका उत्पीड़न थमा, न ही पुलिसिया दमन। मशीनीकरण के चलते दोना-पत्तल और डोली-बहंगी उठाने का काम छिना तो ईंट-भट्ठों पर मजूरी करना सीख गए, लेकिन लॉकडाउन के बाद से ज्यादतर लोगों के हाथ खाली हैं।"
मानवाधिकार जन निगरानी समिति की काउंसलर संध्या और रूबी कहती हैं, " मुसहर समुदाय के पास न रोजगार है, न सम्मान। सरकारी योजनाएं आती हैं तो सामंतों के घरों में कैद हो जाती हैं। अनेई गांव मुसहर समुदाय के 22 आवास और शौचालय स्वीकृत हुए। जिन लोगों ने ख़ुद के पैसे लगाकर शौचालय बनवा लिया, उनको सरकार से मिलने वाला 12 हज़ार का अनुदान अब तक नहीं मिला है। जिन लोगों ने अपने आवास के निर्माण में खुद मजूरी की, वो लोग सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाते-लगाते थक गए हैं।
रूबी बताती हैं कि इस टोले में राम बहादुर की संगीता इंटरमीडिएट में प्रथम श्रेणी लेकर आई तो बनारस भर की मुसहर बस्तियों में ढोल-नगाड़े बजे। नौकरी की उम्मीद नहीं जगी तो पिता ने शादी कर दी। संध्या कहती हैं, "पहले सरकार लड़कियों को साइकिल और पोशाक के पैसे देती थी तो लगता था कि नौकरी भी देगी, लेकिन पढ़ाई-लिखाई करने पर भी अब कोई उम्मीद नहीं है।"
उत्तर प्रदेश में मुसहरों को अनुसूचित जाति (एससी) के रूप में मान्यता प्राप्त है। वे अलग-अलग बस्तियों में गांवों के हाशिये पर जीवित रहते हैं। उनका पारंपरिक पेशा था चूहों को खेतों में दफनाना। बदले में उन्हें मिलता था चूहे के छेद से बरामद अनाज और उस अनाज को चाक को रखने की मंजूरी। सूखे के समय ये चूहे ही इनकी आजीविका के खेवनहार बनते थे। बनारस के तमाम मुसहर परिवार आज भी ईंट भट्टों और कालीन के कारखानों में बंधुआ मजदूर के रूप में काम करते हैं।
भूख से मौत को नकार देती है सरकार
उत्तर प्रदेश के वाराणसी, चंदौली और कुशीनगर के मुसहर समुदाय के दर्द का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां से 'भूख से मौत' से जुड़ी विवादित ख़बरों का आना सामान्य बात है। मुसहर समुदाय के उत्थान के लिए काम करने वाले नागरिक अधिकार कार्यकर्ता मंगला राजभर कहते हैं, "साल 2019 में कुशीनगर में पांच मुसहरों की मौत 'भूख' से हुई, लेकिन प्रशासन ने उनकी मौत का कारण 'बीमारी' बता दिया और 'भूख' को मौत की वजह मानने से इनकार कर दिया। जबकि भाजपा के विधायक रहे गंगा सिंह कुशवाहा ने 'कुपोषण और दवाओं की कमी' को इनकी मौत के लिए ज़िम्मेदार माना था।"
मंगला यहीं नहीं रुकते। वह बताते हैं, "28 दिसंबर 2016 को इसी जिले में मुसहर समुदाय के सुरेश और गंभा नाम के दो सदस्यों की मौत हो गई थी। बनारस में पिंडरा के रायतारा मुसहर बस्ती कहानी भी कुपोषण के इस इतिहास से अछूती नहीं है। इस बस्ती के रोहित वनवासी की कुपोषण मौत हो गई तो राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के निर्देश पर शासन ने रोहित की मां मीना को एक लाख रुपये मुआवजा दिया था।"
राजनीति में दिलचस्पी नहीं
पूर्वांचल के मुसहर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में "वनमानुष" के नाम से जाते हैं। सरकारी अभिलेखों में दोनों को अलग-अगल जातियों में सूचीबद्ध कर दिया गया है, जबकि दोनों के जीवन-यापन का तरीका एक जैसा है। आबादी छिटपुट होने के कारण राजनीतिक दल इन पर ध्यान नहीं देते। चुनाव कोई भी हो, मुसहर बस्तियों में न कोई सियासी रंग दिखता है, न ही उत्साह। अनेई मुसहर की टोले की ऊषा कहती हैं, "नेता आएगा, वोट लेगा और गायब हो जाएगा। ऐसे में वोट के बारे में क्यों सोंचे?"
साल 1952 में किराय मुसहर ने पड़ोसी राज्य बिहार में सोशलिस्ट पार्टी से मधेपुरा से चुनाव लड़ा और जीता था। उसके बाद मिसरी सदा, नवल किशोर भारती, जीतन राम मांझी, भगवती देवी इस समुदाय से प्रभावशाली नेता के तौर पर सामने आए, लेकिन इस समुदाय के जीवन में कोई महत्वपूर्ण और व्यापक बदलाव ला पाने में असफल रहे।
पूर्वांचल के सोनभद्र में मुसहर समुदाय के दल्लू वनवासी पहली मर्तबा बीडीसी चुने गए। इस चुनाव का इन्हें कोई लाभ नहीं मिला। मुसहर समुदाय के उत्थान और उनके अधिकारों के लिए काम कर रहीं एक्टिविस्ट श्रुति नागवंशी कहती हैं, "पूरे महादलित समाज में परिवर्तन की गति बहुत धीमी है। साथ ही महादलित समाज से आए पुराने नेता, अपने समाज के बारे में कोई नीतिगत हस्तक्षेप कर पाने में सफल नहीं रहे। बिहार में महादलित समुदाय के जो नेता हैं वो समूचे समाज के बारे में नहीं, सिर्फ़ अपने बारे में सोचते है।"
दुखद है मुसहर समुदाय की पीड़ा गाथा
साहित्यकार रामजी यादव कहते हैं, "बिहार में महादलित और उत्तर प्रदेश में दलित जातियों में शामिल मुसहर जाति की अपनी पीड़ा गाथा है। वे भूमिहीन हैं और सामाजिक रूप से बहिष्कृत भी। आए दिन वे राज्य सत्ता के निशाने पर रहते हैं। उनकी पीड़ा का दस्तावेजीकरण आज तक नहीं किया गया। यहां तक कि दलित साहित्य में भी वे हाशिये पर हैं। आज़ादी के दशकों बाद भी वे लोकतंत्र में सबसे निचले पायदान पर हैं। प्रायः सभी गांवों में मुसहर आबादी की जमीन पर रहते हैं। जब जमीनों की कीमतें बढ़ने लगी तो दबंगों ने उन्हें वहां से हटाकर दूसरी जगहों पर बसने को विवश करना शुरू कर दिया ताकि वो उनसे दूर और निछद्दम में रहें।"
रामजी बताते हैं, "यूपी के जौनपुर जिले के मुंगरा बादशाहपुर इलाके के गरियाव गांव में मुसहर बस्ती से सड़क गुजरी तो जमीन महंगी हो गई। आजादी के पहले से बसे मुसहरों को वहां से हटाने के लिए सामंतों ने एक दलित से दूसरी दलित जातियों को उनके खिलाफ खड़ा किया और तूफानी नाम के एक व्यक्ति की जीभ कटवा दी। पुलिस आई तो मुसहरों ने वही गवाही दी, जो वहां के दबंग सामंत चाहते थे।"
शोषण और उत्पीड़न अधिक होने के बावजूद उनके पक्ष में बहुत ऊंची आवाज नहीं उठाई जा सकी है। वे राजनीतिक रूप से कमजोर हैं और नेतृत्व की इसी कमी ने उनकी बातों को बड़ा सवाल बनने में बहुत बड़ी बाधा खड़ी की है। इसलिए उत्तर प्रदेश में मुसहरों पर फर्जी मुकदमे लादे जाते रहने और अनेक बार झूठी मुठभेड़ों के नाम पर पुलिस द्वारा हत्या कर दिए जाने के बावजूद शासन-प्रशासन में एक सतत चुप्पी देखने को मिलती है। तूफानी के मामले में तो एफआईआर दर्ज कराने के लिए भी जनमित्र न्यास को एड़ी का पसीना चोटी पर चढ़ाना पड़ा।
मुसहर पुलिस के आसान शिकार
जनमित्र न्यास ने उत्तर प्रदेश के मुसहरों के लिए एक बेहतर सामुदायिक जीवन, शिक्षा और चिकित्सा के साथ ही सुरक्षा को एक जरूरी उपादान बना दिया है। सबसे बड़ी बात यह देखने को मिलती है कि अब मुसहर दब्बू नहीं रहे, बल्कि उनमें अपने अधिकारों, बराबरी और सम्मान को लेकर एक गहरी संजीदगी है। न्यास ने बनारस के सैकड़ों मुसहरों पर पुलिस द्वारा लादे गए फर्जी मामलों को संज्ञान में लिया और दर्जनों बंधुआ मजदूरों को छुड़ाया और उन्हें न्याय दिलाया। शायद इसीलिए इनके जीवन में बदलाव की एक उम्मीद दिखती है। एक्टिविस्ट डॉ. लेनिन कहते हैं "मुसहर समुदाय की जिंदगी में अभी बहुत अंधेरा है और अपनी गरीबी के कारण ये पुलिस और दबंगों के सबसे आसान शिकार हैं।"
डॉ. लेनिन से यह जानने की कोशिश की गई कि असल में इनकी समस्या के मूल में क्या है? जवाब मिला, "इनकी स्थिति अब पहले जैसी नहीं। ये थोड़े जागरूक जरूर हुए हैं, लेकिन शोषण तो अब भी हो रहा है। हालांकि शोषण पहले की अपेक्षा कम है, लेकिन थमा नहीं है। मुसहर समुदाय के लोग सामाजिक और आर्थिक धरातल से कटे हुए हैं। इन्हें खेती और आवास के लिए जमीन देना सरकार का बड़ा कमिटमेंट था। सीलिंग की जिस जमीन के पट्टे दिए गए, उस पर कब्जे नहीं दिए, जिसके लिए इन्हें बेवजह जुल्म-ज्यादती का शिकार होना पड़ रहा है।"
डॉ. लेनिन कहते हैं, " सरकारी फरमान जारी होते हैं कि मुसहरों को जमीन दी जाए। इनकी जमीनों की सुरक्षा के लिए सरकार ने कठोर कानून बना रखा है, फिर भी इनकी जमीनें घटती जा रही हैं। जिस मुहसर टोले में जमीन का आवंटन होता है, दबंगों की दबंगई उन पर हावी हो जाती है। जमीन पर फिर काबिज हो जाते हैं दबंग। बाद में कोर्ट इस जमीन पर स्टे आर्डर लगा देती है। फिर समाज के दबे-कुचले लोग तारीख पर तारीख अदालतों के चक्कर लगाते हैं। बाद में इस कदर टूट जाते हैं कि जमीन पाने का इनका सपना चकनाचूर हो जाता है। गरीबी के चलते वे मुकदमे नहीं लड़ पाते।"
भारतीय आदिवासी-वनवासी कल्याण समिति के संचालक हरिराम वनवासी इस बात से आहत हैं कि तरक्की के ढेरों सपने दिखाने वाले सियासी दलों ने मुसहर समुदाय को बहुत निराश किया है। यूपी की किसी मुसहर बस्ती में सरकारी स्कूल नहीं है। जो बच्चे पढ़ते हैं, बड़ी कक्षाओं में जाने पर ऊंची जातियों के बच्चे व टीचर उन्हें परेशान करते हैं और पढ़ने से रोकते हैं। मुसहर समुदाय के बच्चों की शिक्षा और बुनियादी ट्रेनिंग देने के लिए आदिवासी-वनवासी कल्याण समिति ने आजमगढ़ जिले में चार स्कूलों की स्थापना की है। संस्था की कोशिश है कि मुसहर समुदाय की आगली पीढ़ी शिक्षित होकर निकले।
हरिराम कहते हैं, "अमीर आदमी का बच्चा न खाने पर मार खाता है और पूर्वंचल में मुसहरों के बच्चे खाना मांगने पर मार खाते हैं। हमें इनकी समस्या का निराकरण करना ही होगा। अगर यह सुधार समय रहते नहीं किया गया तो समाज में ये खाई बढ़ती ही जाएगी। इसके बाद का जो सीन जो बनेगा उसे सोचकर कोई सिहर जाएगा।"
(बनारस स्थित विजय विनीत वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
Monday, August 02, 2021
Charge sheet has been filed against the delinquent police personnel before the Learned Court
To, |
THE CHIEF SECRETARY GOVERNMENT OF UTTAR PRADESH 101, LOK BHAWAN, U.P. CIVIL SECRETARIAT,VIDHAN SABHA MARG LUCKNOW UTTAR PRADESH UTTAR PRADESH 226001 Email- csup@nic.in |
Sub : Complaint from |
LENIN RAGHUVANSHI, SECRETARY GENERAL |
Subject: Relief granted [Compensation, Disciplinary & Prosecution](CMP) -2204/24/21/2020. |
Sir/Madam, |
I am directed to say that the matter was considered by the Commission on 02/08/2021 and the Commission has directed as follows.: |
In this case, the Commission received a complaint from Sh. Lenin Raghuvanshi, a resident of Varanasi, Uttar Pradesh, alleging that, the accused police officials on suspecting the victim of theft, severely assaulted him by putting their shoes on his face and beaten him mercilessly. The Commission took cognizance of the complaint on 10-02-2020 directed Superintendent of Police, Deoria, Uttar Pradesh to submit report within four weeks. The Commission received a report dated:30-08-2020 from the Superintendent of Police, Deoria, Uttar Pradesh, whereby, it was submitted that, on 08-01-2020 one Sumit Goswami was brought to the Police Station in connection with case Crime No.04/2020, P.S.- Madanpur, under section-379 of IPC. It has been admitted that, the Head Constable Lal Bihari, Constable Chandra Mauleshwar Singh and Constable Jitendra Yadav used force during questioning of the accused and accordingly on the complaint of Sub Inspector Rama Shankar Yadav, Day Officer of the Police Station, NCR No.04/2020, under section-323, 504 of IPC has been registered against the delinquent police personnel and the same is pending investigation. The Commission has considered the matter. As per the police report, it appears that, the accused was subjected to custodial violence and as a result legal action has been initiated by the local police itself against the delinquent police personnel. The action on the part of the delinquent police personnel is contrary to law and has resulted in violation of human rights of the victim. In these circumstances, the Commission vide proceeding dated:01-02–2021, a Notice under section- 18 of the Protection of Human Rights Act, 1993 was issued to the Government of Uttar Pradesh through its Chief Secretary to Show Cause within six weeks as to why an amount of Rs.50,000/- as interim relief may not be recommended to be paid to the victim for violation of his human rights by the public servants. The Commission vide its proceeding dated:01-02-2021 directed the Senior Superintendent of Police, Deoria, Uttar Pradesh to submit status/ outcome of the case registered against the delinquent police personnel and details of departmental action taken against them within four weeks. The Commission received a report dated:05-07-2021 from the Joint Secretary, Government of Uttar Pradesh, whereby, it was submitted that, the charge sheet has been filed against the delinquent police personnel before the Learned Court. The show cause notice regarding the interim assistance of Rs.50,000/- given to the victim by the Superintendent of Police, Deoria, Uttar Pradesh, it has been requested to consider adjourning till the results of the trial of the Learned Court. The Commission has perused the report dated:30-08-2020 received from the Superintendent of Police, Deoria, Uttar Pradesh and report dated:05-07-2021 received from the Joint Secretary, Government of Uttar Pradesh. It is pertinent to mention here that, the charge sheet has been filed against the delinquent police personnel before the Learned Court. The show cause notice regarding the interim assistance of Rs.50,000/- given to the victim by the Superintendent of Police, Deoria, Uttar Pradesh, it has been requested to the Commission to consider adjourning till the results of the trial of the Learned Court. The Chief Secretary is directed to make the payment of monetary compensation/ interim assistance of Rs.50,000/- (fifty thousand) to the victim and transmit the copy of receipt in respect of payment made within six weeks positively to the Commission. Put up on 23 September, 2021. |
It is therefore, requested that the compliance report in the matter be sent to the Commission latest by 07/10/2021, so that the same could be placed before the Commission. |
Any communication by public authorities in this matter may please be sent to the Commission through the HRCNet Portal (https://hrcnet.nic.in) by using id and password already provided to the public authorities (click Authority Login), or through Speed Post/ at email-id cr.nhrc@nic.in. Any Audio/ Video CDs/ pen drives etc. and bulky reports may be sent through Speed Post/ per bearer. |
Your’s faithfully Sd/- Om prakash Vyas DEPUTY REGISTRAR (LAW) M-3 Section Ph. No. 011-24663317 Email. dr2.nhrc@nic.in |
CC to |
Complainant Details Case No. 2204/24/21/2020 LENIN RAGHUVANSHI, SECRETARY GENERAL PEOPLES VIGILANCE COMMITTEE ON HUMAN RIGHTS, SA 4/2 A, DAULATPUR, VARANASI , UTTAR PRADESH 221002 Email- CFR.PVCHR@GMAIL.COM Om prakash Vyas DEPUTY REGISTRAR (LAW) M-3 Section Ph. No. 011-24663317 Email. dr2.nhrc@nic.in |
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