भारत के इतिहास में सावित्रीबाई फुले का नाम नारी शिक्षा और सामाजिक न्याय के प्रतीक के रूप में लिखा गया है। जब हमारे देश में महिला शिक्षा पर सामाजिक पाबंदियां थीं और महिलाओं के लिए पढ़ाई-लिखाई एक असंभव सपना था, उस समय सावित्रीबाई फुले ने न केवल शिक्षा प्राप्त की, बल्कि अन्य लड़कियों के पढ़ने का भी बंदोबस्त किया।
सावित्रीबाई फुले को समाज की विषमताओं का सामना करना पड़ा। जब वे स्कूल जाती थीं, तो लोग उन पर पत्थर फेंकते थे और उनके विद्यालय जाने का विरोध करते थे। इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई को आगे बढ़ाया। आज पूरा देश उन्हें एक महानायिका और सामाजिक सुधारक के रूप में देखता है।
लेकिन सवाल यह है: क्या सावित्रीबाई फुले का नारी शिक्षा का सपना आज पूरा हो पाया है? क्या आज भी महिलाएं और लड़कियां उन सामाजिक बंधनों से मुक्त हो पाई हैं, जिनसे सावित्रीबाई ने लड़ाई लड़ी थी?
बहुजन संवाद पर विशेष चर्चा
इन्हीं सवालों पर एक महत्वपूर्ण चर्चा आयोजित की गई है। बहुजन संवाद यूट्यूब चैनल और फेसबुक पेज पर आज शाम 6 बजे आप इन मुद्दों पर चर्चा में शामिल हो सकते हैं।
इस चर्चा में अपने विचार साझा करेंगे:
- श्रुति नागवंशी, संस्थापक, मानवाधिकार जन निगरानी समिति
- सरिता भारत, राष्ट्रीय संयोजक, राष्ट्रीय महिला हिंसा मुक्ति वाहिनी, अलवर
- भावना मंगलमुखी, लेखिका एवं सामाजिक कार्यकर्ता, मुंबई
- कॉ. चित्रा वंजारी, राष्ट्रीय काउंसिल मेंबर, भारतीय महिला फेडरेशन, अमरावती
- नीतू भारद्वाज, संयोजक, राष्ट्रीय महिला हिंसा मुक्ति मंच, दिल्ली
- अनुपमा तिवारी, कवयित्री एवं सामाजिक कार्यकर्ता, जयपुर
🎤 संचालन: एड. आराधना भार्गव
सावित्रीबाई फुले की प्रेरणा और उनके द्वारा शुरू किए गए सामाजिक आंदोलन की गूंज आज भी सुनाई देती है। इस चर्चा का हिस्सा बनें और उनके सपनों को साकार करने की दिशा में अपनी भूमिका पर विचार करें।