Sunday, July 08, 2012

ईंट भट्ठे और बंधुआ मजदूरी एक दूसरे के पर्याय हो गये हैं। डा. लेनिन जैसे लोग खुद ऐसे मामले में फंसाये जा सकते हैं, तो कमजोर, अछू्त और आदिवासी लोगों की क्या बिसात?

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ईंट भट्ठे और बंधुआ मजदूरी एक दूसरे के पर्याय हो गये हैं। डा. लेनिन जैसे लोग खुद ऐसे मामले में फंसाये जा सकते हैं, तो कमजोर, अछू्त और आदिवासी लोगों की क्या बिसात?

एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास

ईंट भट्ठे और बंधुआ मजदूरी एक दूसरे के पर्याय हो गये हैं। शिशु श्रमिकों को बंधुआ बनाकर देशभर में ग्रामीण, शहरी और अधशहरी इलाकों में ये ईंट भट्ठे कायदा कानून को ताक पर रखकर चल रहे हैं, जहां सामती शोषण का हर रंग देखने को मिलता है। सामाजिक कार्यकर्ताओं की पहल पर कहीं कहीं ऐसे बंधुआ ​​मजदूर मुक्त करा लिये जाते हैं या फिर एकाध ईंट भट्ठे पर हड़ताल या श्रम विभाग की दबिश से मजदूरी बढ़ जाती है। पर ईंट भट्टा मालिक की ताकत किसी माफिया डान से कम नहीं होती। अपना साम्राज्य बनाये रखने में वह हर किस्म की जुगत लगाये रहता है और पुलिस और प्रशासन को पटाये रखता है। चूंकि यह असंगठित क्षेत्र है और अलग अलग राज्यों में अलग अलग संगठनों की सक्रियता के बावजूद ईंट भट्ठों में काम कर रहे श्रमिकों के अधिकारों की​​ रक्षा और बंधुआ मुक्ति के लिए कोई राष्ट्रव्यापी आंदोलन नहीं है और न ही कोई ऐसा संगठन जो ईंट भट्ठों को बंधुआ मजदूरी से मुक्त करा सकें। इसके विपरीय सामाजिक कार्यकर्ताओं को इस क्षेत्र में काम करने में भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। मसलन उत्तर प्रदेश में मानवाधिकार जननिगरानी समिति पीवीसीआर के कार्यकर्ताओं ​​का मामला है, जहां अंतरराष्ट्रीय ख्याति के सामाजिक कार्यकर्ता डा. लेनिन भी ईंट भट्ठा में बंधुआ मजदूरों को मुक्त कराने के पीवीसीआर के ​​अभियान के कारण फर्जी मुकदमे में फंसे हुए हैं। मायावती राज में दर्ज यह मुकदमा अखिलेश यादव के जमाने में भी ताजा जानकारी मिलने तक वापस नहीं हुआ है। स्वामी अग्निवेश राष्ट्रीय बंधुआ मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष हैं लंबे अरसे से , पर ईंट भट्ठों का अभिशाप खत्म करने में वे भी कामयाब नहीं हुए हैं।गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर जिले की प्रति व्यक्ति आय देश में सबसे ज़्यादा है और वहीं से करीब 1000 बंधुआ मजदूरों को मुक्त कराया गया है।बाकी जिलों में क्या हाल होगा, इसका महज अंदाजा लगाया जा सकता है जबकि कानूनन बंधुआ मजदूरी और बाल मजदूरी दोनों संगीन अपराध हैं और मानवाधिकार आयोग से लेकर आदालतें तक इन अपराधों के खिलाफ मुखर हैं। फिर भी हालात नहीं बदल रहे हैं।


सत्तर के दशक में प्रख्यात लेखिका महाश्वेता देवी ने अपनी पत्रिका वर्तिका में ईंट भट्ठों पर सिलसिलेवार सर्वे प्रकाशित किया था। लेकिन आज इन ईंट भट्ठों ​​के बारे में ऐसा कोई अध्ययन भी सामने नहीं आता, जिसेस देशभर की तस्वीर सामने आ पाती।खास बात यह है कि विकास के नाम पर उखाड़े गये आदिवासी गांवों के लोग जत्था के जत्था इन ईंट भट्ठों में खप जाते हैं, भिन्न राज्य के इन आदिवासियों को लंबे समय तक बंधुआ बना लिये जाने की किसी को कानों कान खबर नहीं होती। अल्पसंख्यक समुदायों के स्थानीय लोगों को बंधुआ बनाये जाने या अनुसूचित जनजाति के बच्चों के वहां कैद हो जाने पर सत्ता वर्ग को कोई पर्क नहीं पड़ता। जब डा. लेनिन जैसे लोग खुद ऐसे मामले में फंसाये जा सकते हैं, तो कमजोर, अछू्त और आदिवासी लोगों की क्या बिसात?

डा0 लेनिन रघुवंशी एक सामाजिक कार्यकर्ता है एवं मानवाधिकार जननिगरानी समिति का महासचिव/अधिशासी निदेशक है। डा0 लेनिन को मानवाधिकार के क्षेत्र में किये गये कार्य को देखते हुए दक्षिण कोरिया से 2007 ग्वान्जू एवार्ड, ह्यूमन राइट्स 2008 आचा पीस स्टार अवार्ड (यू0ए0ए0) व 2010 वाइमर अन्तर्राष्ट्रीय मानवाधिकार पुरस्कार (जर्मनी) जनमित्र गाँव की परिकल्पना के लिए वांशिगटन स्थित अशोका फाउण्डेशन ने ''अशोका फेलोशिप'' प्रदान किया। जन निगरानी समिति भारत में मानवाधिकारों की रक्षा में सक्रिय अत्यंत सक्रिय और प्रभावशाली गैरराजनीतिक स्वयंसेवी​ ​ संगठने है जो खासकर कर बुनकरों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए सक्रिय है।मालूम हो कि उत्पीड़ितो के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए डा. लेनिन ने देशव्यापी नवदलित आंदलन शुरू किया है। जिसका देश विदेश में भारी स्वागत हुआ है। उत्तर प्रदेश की पूर्ववर्ती मायावती सरकार को मानवाधिकार जन निगरानी समिति और डा. लेनिन के समाजसेवा मूलक कामकाज, दलितों, उत्पीड़ितों कें बीच उनकी गतिविधियां पसंद नहीं थी और डा. लेनिन को फर्जी मुकदमे में फंसाने का काम हो गया। पर सत्ता बदलने के बावजूद उनके खिलाफ लंबित मुकदमा वापस नहीं हुआ, यह हैरतअंगेज है। इस सिलसिल में डा. लेनिन ने युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, जो मानवाधिकार जन निगरानी के कामकाज से वाकिफ है, एक आवेदन पत्र भेजकर यह फर्जी मुकदमा वापस करने की गुहार लगायी है।डा0 लेनिन जो जिला बंधुवा निगरानी समिति का सदस्य भी हैं, उन्हें श्रम प्रवर्तन अधिकारी को राजेन्द्र प्रसाद तिवारी पुत्र श्री राजनरायन तिवारी निवासी ग्राम-बेलवां, थाना-फूलपुर, जिला-वाराणसी के विरूद्ध शिकायत की थी और उनकी शिकायत पर दिनांक 23/4/2002 को 10:00 बजे राजेन्द्र तिवारी के ईंट भट्ठा के प्रतिष्ठान की जाँच की गयी, तो श्रमिक गहरू पुत्र-सुखदेव, ग्राम-बेलवां, बडे़पुर, थाना-फूलपुर, वाराणसी बांडेड लेबर के रूप में ईंट भट्ठे के रूप में पाया गया, उसका बयान उप जिलाधिकारी पिण्डरा द्वारा लिया गया, जिसमें उसने बताया कि राजेन्द्र तिवारी उसे काम न करने पर धमकी देता है, किसी अन्य जगह काम करने नहीं देता, उसकी मजदूरी नहीं देता है। श्रम प्रवर्तन अधिकारी वाराणसी श्री ओ0पी0 गुप्ता द्वारा राजेन्दर प्रसाद तिवारी के विरूद्ध थाना-फूलपुर, वाराणसी में अ0सं0 114/02 अन्तर्गत धारा-374 भा0द0वि0 में दिनांक 23/4/2012 को थाना-फूलपुर, वाराणसी में रिपोर्ट दर्ज की गयी, जिसकी विवेचना अधिकारी द्वारा विवेचना के बाद आरोप पत्र न्यायालय में प्रेषित किया और उक्त मुकदमा सप्तम् ए0सी0जे0एम0 की न्यायालय में लम्बित है।इसकी प्रतिक्रिया में डा0 लेनिन रघुवंशी व उसकी पत्नी श्रुति रघुवंशी व उनकी साली अनुपम नागवंशी व संगठन में उस समय कार्यरत प्रेम व कलावती के विरूद्ध अपराध संख्या 357/07 अन्तर्गत धारा-505बी0 भा0द0वि0 थाना-फूलपुर, जिला-वाराणसी में एक प्रथम सूचना रिपोर्ट दिनांक 9/12/2007 को 17:00 बजे राजेन्दर प्रसाद त्रिपाठी पुत्र-स्व0 राजनारायण त्रिपाठी निवासी-बेलवां, थाना-फूलपुर, वाराणसी द्वारा दर्ज करा दिया। मानवाधिकार जननिगरानी समिति का कहना है कि प्रथम सूचना रिपोर्ट रंजिश वश साजिशन प्रार्थी व उसके संगठन पर नाजायज दबाव डालने के उद्देश्य से दर्ज करायी गयी।प्रथम सूचना रिपोर्ट के अवलोकन से प्रथम दृष्टया यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रार्थी व अन्य के विरूद्ध 505बी0 भा0द0वि0 का कोई अपराध नहीं बनता है। प्रथम सूचना रिपोर्ट रंजिशन एवं साजिशन मनगढ़त झूठे कथानक के आधार पर दर्ज करा दी गयी है।मानवाधिकार जननिगरानी समिति का कहना है कि विद्वेष व रंजिश वश राजेन्द्र तिवारी द्वारा थाना स्थानीय से मिलकर प्रार्थी व उसकी पत्नी व उसके कार्यकर्ता के विरूद्ध उक्त मुकदमा अन्तर्गत धारा-505बी0 भा0द0वि0 थाना-फूलपुर, वाराणसी में गलत तरीके से दर्ज करा दिया। गौरतलब है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री माननीया बहन मायावती ने समिति के कुपोषण उन्मूलन अभियान के खिलाफ प्रेस बयान दिया। जिसके तुरन्त बाद जिला प्रशासन ने मिलकर समिति के लोगों पर राजेन्द्र तिवारी से फर्जी मुकदमा लिखवाकर चार्जशीट लगा दी। जिस पर माननीय उच्च न्यायालय ने स्टे आर्डर दे रखा है।

डा0 लेनिन रघुवंशी नवदलित आंदोलन के तहत लेनिन के समर्थक अब जाति उन्मूलन के लिए एक अभूतपूर्व मतसंग्रह अभियान में जुटे हुए हैं।

Vote to PVCHR:Grassroot politics is the future
Pvchr India posted in Please vote Lenin Raghuvanshi as reconciliation movement against caste system for Roland Berger Human Dignity Award
*
Pvchr India
9:48am Jul 6

http://www.rolandbergerstiftung.org/index.php?id=188
* The Award
www.rolandbergerstiftung.org

Der Roland Berger Preis für Menschenwürde soll zur Förderung eines friedlichen Miteinanders in der W...




Mahatma Gandhi says,"Earth provides enough to satisfy every man's need, but not every man's greed". Lenin Raghuvanshi's grandfather Shanti Kumar Singh, a Gandhian freedom fighter, who used to say that grassroot politics is the future.
Read more at: http://indiatoday.intoday.in/story/Mobilise%20and%20empower/3/36130.html


Teaching from his Gandhian grand father and understanding from Baba Saheb Ambedkar and Budhha are base of Lenins' work.
http://voteforleninraghuvanshi.blogspot.in/2012/06/please-vote-lenin-raghuvanshi-as.html?spref=bl/

Please support Lenin.Cast your vote against caste system.


Process of Voting:

When you click the link http://www.human-dignity-forum.org/2012/05/lenin-raghuvanshi/
you can see the number of votes. Press on that than Thank you will come. Click on thank you and you cast your vote. You can also post your comment below. Please mobilise your friends if you believe or support the cause of my organisation.

उत्तर प्रदेश सहारनपुर से एक अच्छी खबर यह मिली है कि मजदूरी बढ़वाने को लेकर आंदोलन कर रहे भट्टा मजदूरों को आखिर न्याय मिल ही गया। उप श्रमायुक्त एवं भट्टा मालिकों के बीच 357 रुपये प्रति हजार ईंट का पथाई का समझौता तय हुआ है। इससे जनपद के तीस हजार भट्टा मजदूरों को लाभ होगा। भट्टा मजदूरों की मजदूरी बढ़ाने की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन में उप श्रमायुक्त कार्यालय पर भट्टा मालिक एसोसिएशन के दीपक कुमार, चौधरी बख्तावर सिंह, यूनियन की ओर से तिलकराज भाटिया, अहबाब हसन, मेलाराम मौर्य, जयराम सिंह तथा उप श्रमायुक्त बीके सिंह के बीच हुए समझौते में भट्टा मजदूरों को पूर्व मिल पथाई के लिए मिल रहे 290 रुपये प्रति हजार में 67 रुपये की वृद्धि की गई है। अब भट्टा मजदूरों को एक हजार ईंट पथाई के बदले 357 रुपये मिलेंगे। समझौते का विरोध कर रहे एक गुट ने इसे मजदूरों के साथ धोखा करार दिया है। ईंट भट्टा वर्कर्स संघर्ष समिति के बैनर तले भट्टा मजदूरों ने उप श्रमायुक्त कार्यालय पर धरना दिया। अध्यक्ष रतिराम ने कहा कि समझौते में भट्टा मजदूरों के हितों की अनदेखी की गई है। डीएलसी ने मजदूरों को यह आश्वासन दिया था कि 10 अप्रैल को रेट तय किये जाएंगे। मगर उन्होंने कुछ तथाकथित नेताओं के साथ बैठकर गुपचुप समझौता किया है। जनेश्वर प्रसाद ने कहा कि यदि डीएलसी ने पुन: कोई ठोस निर्णय नहीं लिया तो जिले की औद्योगिक शांति को खतरा उत्पन्न हो सकता है। कामरेड मदन सिंह खालसा, धर्मसिंह, धीरजपाल, रामपाल, इरशाद, इरफान, देवी सिंह, रहतु, सुंदर आदि मौजूद रहे।इस खबर में भी मजदूरों के हितों से ज्यादा नेताओं और यूनियनों के हितों के वर्चस्व की लड़ाई ज्यादा है।

पूर्वी उत्तर प्रदेस की तरह पश्चमिमी उत्तर पर्देश में भी भारी संख्या में ईंट भट्ठों में बंधुआ मजदूर हैं। पर असंगठित क्षेत्र के मजदूर संगठनों का जोर न्यूनतम मजदूरी के लिए सौदेबाजी पर है, बंधआ मजदूर उनके एजंडा में नहीं हैं। यह बात अलग है कि उत्तर प्रदेश के बाकी जिलों के साथ देश भर में ईंट भट्ठों का न तो को ई नियमन है और न उन पर सरकार का कोई नियंत्रण है। सर्वत्र ले देकर,.खाओ और खाने दो के सिद्धांत के हिसाब से ईंट भट्टे चलते हैं जहां मुनाफे का सारा गणित ईंट भट्ठे में बंधुआ मजदूरों की संख्या और उनकी दक्षता पर निर्भर है और यह तिलिस्म तोड़ना किसी चंद्रकांता संतति के बूते में नहीं है।

अब इस मामले को देखें। सुंदरगढ़ जिले के बड़गांव थाना अंचल के एक ईंट भट्टा में बंधक बने छत्तीसगढ़ के पांच मजदूर परिवारों को वहां की पुलिस मुक्त कराकर अपने साथ ले गई।छत्तीसगढ़ राज्य के जांजगीर जिले के बरकेल गांव के पांच श्रमिक परिवारों को किसी दलाल ने लाकर बड़गांव थाना अंचल के मुंडा गांव में स्थित एक ईंट भट्टे में काम पर लगाया था। लेकिन ईंट भट्टे के मालिक ने उन्हें वेतन न देकर जबरन वहां पर काम करने के लिए बंधक बनाकर रखा था। इस ईंट भट्टा में बंधक बने परिवार डर के मारे इसका विरोध भी नहीं कर पा रहा था। बाद में किसी तरह यहां के एक श्रमिक ने अपने किसी रिश्तेदार लछोराम सतनामी को इसकी सूचना दी थी। लछोराम ने जांजगीर एसपी को सूचित करने से उनके निर्देश पर हेड कांस्टेबल कन्हेइलाल पटेल, आलोक शर्मा की टीम ने यहां पहुंचकर बड़गांव पुलिस की मदद से सुनीता बाइ(20), एतवारी बाइ(12), सुनीता सतनामी(19), सीमारानी बाइ(28), देव कुमार(02), धन बाइ(21),जन बाइ(15), गुहाराम सतनामी(40), उपेंद्र(01) तथा राहुल कुमार(07) को वहां से छुड़ाया। पुलिस की छापामारी में ईंट भट्टा का मालिक अथवा मुंशी वहां न होने से इस मामले में किसी को गिरफ्तार नहीं किया जा सका।यही तकनीक देश भर में लागू है। दलालों के मारफत दूर दराज से अच्ठी मजदूरी की लालच देकर कमजोर वर्ग के लोगों को ईंट भट्ठों में खपा दिया​ ​ जाता है। अगर खबर लीक हो गयी और नाते रिश्तेदार या सामाजिक कार्यकर्ता खुछ ज्यादा सक्रिय हो गये तो कुछेक परिवार मुक्त करा लिये ​​जाते हैं। मीडिया में यह खबर भी प्लैश हो जाती है। लेकिन बाकी बंधुआ मजदूर ईंट भट्ठों में ही फंसे रह जाते हैं। भट्ठा मालिकों को के लिए तो जेल की कोई दीवारे होती ही नहीं हैं।मजदूरों से संबंधित कोई रिकॉर्ड ही नहीं होता।

राजस्थान के खमनोर में अपने प्रदेश की सीमा लांघकर कमाई के लिए आए ईंट भट्टा मजदूरों को जीवन जीने के औसत तौर-तरीके भी नसीब नहीं हैं। ना खुद का पेट भर पाते हैं, ना अपने ब'चों का। ना रहने को घर है ना सोने को बिछौना। इस बीच श्रम निरीक्षक ने ईंट-भट्टा क्षेत्र का दौरा किया। इलाके में मोलेला के खेड़ादेवी मंदिर के पास करीब एक दशक से चल रहे ईंट भट्टों पर करीब दो सौ से अधिक असंगठित मजदूर कार्यरत हैं, जिन्हें पूरी मजदूरी नहीं मिलती है। इसी आधार पर दैनिक भास्कर ने समाचार प्रकाशित किए थे। समाचार प्रकाशन के बाद श्रम निरीक्षक ने ईंट-भट्टों का निरीक्षण किया। निरीक्षण के दौरान कई प्रकार की खामिया सामने आई। इसको लेकर श्रम निरीक्षक ने ईंट-भट्टा मालिक को नोटिस जारी किया है। निरीक्षण में लेबर इंस्पेक्टर ने भट्टा मालिक से बातचीत की, लेकिन मौके पर मजदूरों से संबंधित कोई रिकॉर्ड ही नहीं मिला। इससे पहले खुद विभाग के पास भी इन मजदूरों से संबंधित रिकार्ड नहीं था। श्रम निरीक्षक ने भट्टा मालिक को नोटिस देकर 15 दिन में जवाब मांगा है। दौरे के बाद भास्कर ने श्रम निरीक्षक से अंतररा'यीय प्रवासी अधिनियम 1979 का हवाला देते हुए कई सारे सवाल किए।

उरई (जालौन)में ईंट भट्टा मालिक ने सभी मजदूरों का पांच माह की बकाया मजदूरी दे दी है। इसके लिए ईट भट्टा मालिक व भट्टा मजदूरों के बीच बकायदा लिखित समझौता इन सभी ईंट भट्टा मजदूरों ने बकायता शपथ पत्र देकर बताया कि लिखित समझौता के बाद हम सभी ईंट भट्टा मजदूरों की पांच पांच माह की बकाया मजदूरी ईंट भट्टा मालिक ने चुकता कर दिया। अमर उजाला ने इन ईंट भट्टा मजदूरों की खबर को २३ अप्रैल बंधुआ मजदूरी के मामले में जांच के आदेश शीर्षक से खबर पृष्ठ संख्या २ में यह खबर प्रकाशित की थी। कृष्ण गोपाल गुप्ता थाना व कसबा रामपुरा में ईंट भट्टा उद्योग चलाते हैं। बीती २२ अप्रैल को एक दर्जन ईंट भट्टा मजदूरों ने डीएम सौरभबाबू को प्रार्थनापत्र दिया था कि रामपुरा के ईंट भट्टा उद्योग मालिक कृष्ण गोपाल गुप्ता ने पांच महीनेकी बकाया मजदूरी नहीं दे रहा है। इस पर डीएम सौरभबाबू ने माधौगढ़ के एसडीएम गफ्फार खां को जांच के आदेश दिए थे। जांच होती इसके पहले ईंट भट्टा मालिक श्री गुप्ता ने ईंटा भट्टा मजदूरों क्रमशः ग्राम पुनिया पंचमलाल, कुंवर लाल, काम किशोर, लक्ष्मी, भूरेलाल, अलकराम, बारेलाल, भग्गू, वीरेंद्र, मूलचरनस ज्ञान सिंह के साथ बैठककर एक लिखित समझौता कर लिया तथा सभी बारह इन ईंट भट्टा मजदूरों की पांच माह की बकाया मजदूरी का भुगतान कर दिया।

मजदूरों के उत्थान के लिए चलने वाली परियोजनाओं का हश्र क्या हो रहा है इसका अंदाजा क्षेत्र में चल रहे भट्टों को देखकर लगाया जा सकता है। बाह, फतेहाबाद व आस-पास के क्षेत्रों में लगभग 60 ईंट भट्टे हैं जिन पर काम करने वाले मजदूरों की संख्या तीन हजार से भी ज्यादा है। यहां पर काम करने वाले मजदूर आज भी एक बंधक की तरह जिंदगी बसर करने को मजबूर हैं। क्षेत्र से पांच दर्जन से अधिक भट्टों पर तीन हजार से ज्यादा मजदूर काम कर रहे हैं। पेट की भूख मिटाने के लिए बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड व प्रदेश के कई जिलों से मजदूर आकर काम करते हैं और इसके बदले में इन्हें पेट भर खाना जुटाने के लिए भी धन मुहैया नहीं कराया जाता। हैरत की बात तो यह है कि सब जानते हुए प्रशासन भी कोई कार्रवाई करने के बारे में नहीं सोचता। कुछ दिन पहले ही बसई अरेला और पिनाहट में दो ईंट भट्टा संचालकों के खिलाफ बंधुआ मजदूरी कराने का मामला दर्ज कराया गया था, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। हालांकि लगभग एक साल पहले दर्ज कराई गई रिपोर्ट पर कार्रवाई हुई थी और मजदूरों को बंधन मुक्त कराया गया था। साथ ही उन्हें पुनर्वास योजना का लाभ देने की बात भी कही गई थी, लेकिन उनके पुनर्वास पते भी फर्जी निकले। ऐसे में सरकारी योजनाओं का धरातल पर असर कितना है इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।


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​दैनिक ट्रिबयून में कैथल से २६ जून को ललित कुमार दिलकश की यह रपट आंखें कोलने वाली है।सर्व शिक्षा अभियान अपने सबको शिक्षित करने के उद्देश्य में स्वयं ही सेंध लगा रहा है। इस बात का उदाहरण कैथल जिले में उस वक्त देखने को मिला जब सर्व शिक्षा अभियान ने जिले में ईंट भट्ठों पर चल रहे 32 स्कूलों पर ताला जड़ दिया और उनमें पढऩे वाले 1380 बच्चों के भविष्य की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। इतना ही नहीं सर्व शिक्षा ने इस सत्र में ईंट भट्ठों पर चलने वाले उन 78 स्कूलों को भी नहीं खोला जिनकी विभाग ने रिपोर्ट मांगी थी। जिला कार्यालय में नियुक्त कर्मचारियों व अधिकारियों ने सर्वे कर एक रिपोर्ट तैयार कर विभाग को सौंपी दी जिसमें कहा गया कि कैथल जिले के विभिन्न ब्लाकों में 78 ईंट भट्ठों पर स्कूल खोलने की जरूरत है और इन ईंट भट्टों पर पढऩे वाले छात्रों की संख्या 1908 है।

जानकारी के अनुसार सर्व शिक्षा अभियान ने गैर सरकारी संगठनों के माध्यम से सबकों शिक्षित करने के अपने उद्देश्य को लेकर ईंट भट्ठों पर पाठशाला शुरू की थी ताकि ईंट भट्ठों पर काम करने वाले मजदूरों के बच्चे भी शिक्षित हो सके। सरकार का ईंट भट्ठों पर स्कूल खोलने के पीछे मकसद यह था कि ईंट भट्टे गांवों व स्कूलों से काफी दूर होते हैं और मजदूर तबके के लोग अपने छोटे बच्चों को स्कूल भेजने में असमर्थ थे। प्रदेश में सबको साक्षर करने के लिए सरकार ने ईंट भट्टों पर ही पाठशाला खोल दी। योजना में बच्चों को किताबें, बस्ता, मिड-डे-मील आदि देने का भी प्रावधान था। ये स्कूल भट्ठों पर दो घंटे चलते थे। लेकिन न जाने क्यों सरकार ने इन स्कूलों को बंद कर दिया। इससे इन ईंट भट्ठों पर चलने वाली पाठशालाओं में पढऩे वाले बच्चे अब ईंट भट्ठों पर ही काम कर रहे हैं। सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार उच्च अधिकारियों ने ये स्कूल इसलिए बंद कर दिए कि क्योंकि प्रदेश में कई जगह पर इन स्कूलों में पढ़ाई नहीं हो रही थी और एनजीओ पाठशालाओं के नाम पर हेराफेरी कर रहे थे। लेकिन विभाग ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया कि जो स्कूल ठीक चल रहे हैं और जिन स्कूलों में बच्चे वास्तव में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं आखिर उन्हें क्यों बंद किया जा रहा है।

इस संदर्भ में ईंट भट्टे पर काम करने वाले एक मजदूर राजेन्द्र ने बताया कि उनकी दो बेटियां मनीषा और काजल ईंट भट्टे पर चलने वाली पाठशाला में पढ़ती थी लेकिन स्कूल बंद होने की वजह से उनकी पढ़ाई रुक गई क्योंकि स्कूल भट्ठे से काफी दूर हैं और भट्ठों पर चलने वाले स्कूल बंद हो गए। उन्होंने बताया कि बच्चे छोटे होने की वजह से ज्यादा दूर के स्कूलों में जा नहीं सकते और वे सुबह उन्हें स्कूल छोडऩे में सक्षम नहीं है क्योंकि वही समय उनके काम का होता है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि इन ईंट भट्ठों पर पुन: पाठशाला शुरू की जाए ताकि गरीब लोगों के बच्चे भी पढ़ाई सकें।

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