Wednesday, June 05, 2019

वह व्यथा-कथा जो अकथ रही


                     वह व्यथा-कथा जो अकथ रही
                                                                         पुनर्लेखन – अपर्णा

नाम- आबिद 
पिता का नाम – सजब
जाति- पठान
रोज़गार –रोजी-मजदूरी
आश्रित – पांच सदस्य ( पत्नी, दो लड़के, दो लड़की )
 उम्र- 20 वर्ष
पता- ग्राम-चुर्क, पो.-चुर्क, थाना- राबर्टसगंज, जिला-सोनभद्र (यू.पी.)
आरोप – गुंडा एक्ट के अंतर्गत धमकी दे मारपीट कर थाने में ले जाकर प्रताड़ित किया.


एक दोपहर मैं आबिद से मिलने राबर्ट्सगंज थाना के अंतर्गत आने वाले ग्राम चुर्क पहुंचा. तंग और गन्दी गलियों को पार करता हुआ सोचता जा रहा था कि आखिर पुलिसिया निशाने पर ये गरीब,कमजोर और ऐसे लोग ही क्यों आते हैं जिनका जीवन बहुत कठिन होता है । जिनके खाने तक का कोई स्थायी ठिकाना नहीं है । रोज कुआं खोदना होता है तब जाकर पानी मिलता है और जो इतने कमजोर और लाचार हैं कि हर आघात के बाद उन्हें संभलने में भी बरसों लगते हैं । जिंदगी दुःस्वप्न सरीखी हो जाती है . वे पुलिस के दमन का विरोध करने में अक्षम होते हैं. जैसे ही मैं वहां पहुंचा उदास बैठे आबिद ने उठकर मेरा स्वागत तो किया लेकिन घर की मनहूसियत देखकर  ऐसा लग रहा था जैसे उस घर में मौत का मातम छाया हुआ है. सबके उदास और डरे हुए चेहरे. बात करते हुए आबिद ने 4 सितंबर 2017 के दिन की घटना का ब्यौरा सिलसिलेवार ऐसा दुहराया जैसे उसके सामने वे दृश्य और घटनायें घट रही हो.
उसने बताया कि पुलिसवाले कई गाड़ियों में भरकर हमारी बस्ती में पहुँचे और पुलिसिया दबंगई दिखाई। बस्ती में घुसते ही डराने के उद्देश्य से गंदी-गंदी गालियाँ देने लगे । अचानक हुये ऐसे हमले से हम सब सकते में आ गए और डर से थर-थर कांपने लगे ।
अपने परिवार और माली हालत के बारे में आबिद ने बताया कि रोजी-मजदूरी कर  भले ही कठिनाई से भरे पूरे परिवार में अपनी पत्नी, दो बेटियों और दो बेटों का जीवन यापन करता था लेकिन फिर भी कम में संतोष कर सभी खुश थे । हमारे जैसे लोगों की सबसे बड़ी समस्या तो रोटी की ही है और बिना रोजगार के हमको जीने की कोई सूरत ही नहीं है लेकिन उस मनहूस सुबह दस बजे ही हमारी जिंदगी में दहशत भर दी गई । पुलिसवाले  आते ही गालियाँ देने लगे । डरकर जब बस्ती के लोग अपने घरों के दरवाजे बंद कर छुप गए तो वे गालियाँ देते हुये बन्दूक के कुंदों से दरवाजे को तोड़ने की कोशिश करने लगे। उन्होने कुंडे से मारकर मेरे घर का दरवाजा तोड़ा और घर में घुस कर मेरी पत्नी से बदतमीजी करते हुये उसे घसीटकर घर से बाहर ले आये । जब मैंने मना किया तो मुझे मां-बहन कि गालियाँ देते हुए और गुंडा बताते हुए पकड़कर थाने ले गए । घर के सारे सदस्य रोने- गिडगिडाने लगे और मुझे छोड़ देने के लिए हाथ पैर जोड़ने लगे। इतना ही नहीं , बल्कि जिस घर को हम लोगों ने अपने दम पर खड़ा किया था। जिसमें रहते हुए वह किसी महल से नहीं लगता था, जिसे देखकर अपनी एक छत होने का एहसास होता था उस घर को बुलडोजर चलवाकर हम सबकी नज़रों के सामने तहस-नहस कर दिया। मेरे समेत घर के सब लोग भय और घबराहट में रोते हुए मुझे छोड़ देने कि अपील करते रहे लेकिन उन लोगों पर इसका कोई असर नहीं हुआ। शायद पुलिस वालों की ट्रेनिंग में संवेदना को उनके दिल  से डिलीट कर दिया जाता है । कोई कैसे इतना क्रूर हो सकता है । हाथ-पैर और बन्दूक की बट से शरीर के हर हिस्से पर  बुरी तरह मारा और चोटिल करने के बाद मुझे हवालात में बंद कर दिया गया । दर्द और डर से हाल-बेहाल होते हुए मैं इतना सहम गया कि क्या कहूँ ...
इंसान की कुदरती जरूरत देखिए कि वह किसी भी स्थिति में रहे लेकिन उसके पेट की आग को इससे कोई मतलब नहीं वह किस हालत में पड़ा है । वह अपने समय से कुलबुलाएगी । मेरी भी अंतड़िया भूख से ऐंठ रही थीं । मैंने बहुत हिम्मत कर कुछ खाने के लिए माँगा लेकिन मोटी –मोटी गालियों के अलावा कुछ नही मिला । मैं भूख से बेहाल तो था ही और रात भर मच्छरों ने भी चीथ डाला । इतनी प्रताड़ना और दर्द में भी मुझे बस अपना परिवार और टूटा हुआ घर ही दिखाई दे रहा था । बच्चों का सहमा चेहरा रह-रहकर नज़रों के सामने आ रहा था । मैं खुद को एकदम असहाय महसूस कर रहा था । गरीबों के लिए कौन आवाज़ उठाता है ? इस घटना के बाद हम अकेले पड़ गए और आज भी मैं अपने परिवार और बच्चों के साथ खुले आसमान के नीचे डर के साए में रात बिताता हूँ कि पता नहीं कब पुलिस वाले आकर हमारी बची-खुची इज्जत उतार दें । रातभर जागते हुए अकेलपन महसूस करता हूँ.
इस दुःख और कष्ट को महसूस करते हुए आबिद ने कहा हम आज भी गुलाम ही नहीं है बल्कि गुलामों से भी बदतर जीवन जीने को मजबूर हैं । ये सच में किसी भी संवेदनशील आदमी को अंदर से हिला सकता है लेकिन सच यही है।
आबिद और उसके परिवार वाले बस यही चाहते हैं कि दोषी पुलिस वालों को ऐसी सजा मिले ताकि आगे कभी इस तरह की घटना करने कि हिमात न कर सकें । लेकिन क्या सजा मिलेगी ? पता नही ।  पर मुझे अपना हाल आपसे कहकर बहुत सुकून और हल्का महसूस हो रहा है ।


विवरण – 
 2. नाम- अम्बेडकर प्रसाद / पिता का नाम – गुलाब राय/उम्र-40/जाति-चमार/रोज़गार-पान की दुकान/ आश्रित – पांच सदस्य ( पत्नी, एक पुत्री,तीन पुत्र)
पता- ग्राम-बकाहें , पो.-केकहारी, थाना- राबर्टसगंज, जिला-सोनभद्र
आरोप –पान की दुकान से गांजा बेचने का आरोप
3.  नाम-घुनवा देव /पत्नी- गुलाब /उम्र-60वर्ष/जाति-चमार/रोज़गार- पान की दुकान
आश्रित-चार लड़का और दो लड़की
पता- ग्राम-बकाहें , थाना- राबर्टसगंज, जिला-सोनभद्र
आरोप –पान की दुकान से गांजा बेचने का आरोप

एक गरीब आदमी की सबसे बड़ी अपेक्षा रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं से अधिक  कुछ भी नहीं होती । लेकिन आज के पूंजीवादी लुटेरे समाज ने इन चीजों को मुहैया तो नहीं ही होने दिया बल्कि कहा जा सकता है उसने गरीबों को लूटने के अलावा कुछ भी नहीं किया है । देश की लगभग 39 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन गुजार रहे हैं लेकिन उनके लिए कोई ठोस योजना नहीं आती और जो थोड़ी आती हैं वह भी इम्प्लीमेंट होने के पहले ही दलालों और मध्यस्थों का पेट भरने के काम आती हैं । नई लागू योजना का प्रचार तो ऐसे लिया जता है कि बस अब इस देश से गरीबी का नामो-निशान मिट जाएगा लेकिन करोड़ों रुपए दलाल-मंत्री-संत्री बिना डकार लिए ही पचा जाते हैं. इसीलिए कोई गरीब अपने दम पर मजबूत स्थिति को हासिल कर पायेगा ऐसा सोचना भी असंभव है.
अम्बेडकर प्रसाद के साथ हुई घटना पर बातचीत के लिए जब मैं ग्राम-बकाहें, पोस्ट-केकहारी में पहुंचा तो देखा कि अम्बेडकर प्रसाद रोज़ की ही तरह अपनी पान की दुकान में व्यस्त हैं .पान की छोटी सी दुकान से छ: सदस्यों का गुजारा कैसे चलता होगा य कोई भी सहज ही अनुमान लगा सकता है. बहरहाल...मैंने जब पांच सितम्बर 2017 को हुई घटना का ज़िक्र किया तो उसने चुप्पी साध ली । उसे लगा कि मैं कोई पुलिस का आदमी हूँ और फिर से कुछ गड़बड़ी करने आया हूँ. लेकिन जब मैंने अपने बारे में बताते हुए उसे भरोसे में लिया तब उसने जिन बातों के बारे में बताया उसे सुनकर पुलिस के वाहिशयाना रूप सामने आता है. आखिर पुलिस ऐसा क्यों करती है. किसका दबाव होता है जब वह निरपराध और समाज के हाशिये पर पड़े लोगों को प्रताड़ित करती है.
उसने बताया कि रोज की तरह मैं अपनी दुकान में काम में व्यस्त था । अचानक देखता हूँ कि दुकान के सामने एक स्कार्पियो आकर खड़ी हुई जिसमें से पांच वर्दीधारी पुलिस उतरे. मुझे लगा कि वे पान के तलबगार होंगे. लेकिन मैं कुछ समझ पाता इसके पहले वे सब मेरी दुकान पर टूट पड़े । जबरदस्ती मुझे मारते हुए कॉलर से पकड़ते हुए मां-बहन की गालियाँ देते हुए खींचते हुए बाहर निकाला और सारा सामान बाहर फेंकने लगे. सारा सामान नष्ट करते हुये पूरी दुकान तहस-नहस कर दिया. अचानक हुए इस हमले से मैं बेहद घबरा गया ,मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था. वे पाँचों पुलिसवाले धाराप्रावाह गालियां दे रहे थे, पुलिसवालों को गाली देने और पिटाई करने की बेहतरीन ट्रेनिग दी जाती है. इसी खींचातानी और मारपीट के दौरान जब मैंने पुलिसवाले से पूछा कि क्या किया है मैंने? क्या कसूर है मेरा?  तब उसमें से एक पुलिसवाले ने मेरी कमर पर लात मारते  हुए माँ की गाली देते हुए कहा पान की दुकान में गांजा सप्लाई करने का धंधा करते हो. गांजा सप्लाई करने  के आरोप में तुम्हारे नाम से एफ.आई.आर दर्ज है. और सवाल करते हो कि क्या कसूर है मेरा ? और इसी आरोप में तुम्हें गिरफ्तार करने आये हैं.
गांजा सप्लाई के जुर्म में एफआईआर सुनकर मेरे होश उड़ गए. आँखों के आगे अँधेरा छा  गया.मैंने रोते हुए कहा कि ये आरोप झूठ है । मैंने हर तरह से उन्हें विश्वास दिलाने की कोशिश की लेकिन पुलिस वाले ने  पेट और पीठ पर लात मारते हुए चिल्लाते हुए कहा - हरामखोर...............ज्यादा मुंह खोला तो तेरे उपर इतने एफआईआर कर देंगे कि कभी जेल से वापस नहीं आ पायेगा .कहाँ मरेगा, कहाँ जायेगा इसका पता तेरे घर वालों को मालूम भी नहीं चल पायेगा.मुंह बंद कर चुपचाप चल मेरे साथ.
मेरा रो-रोकर बुरा हाल हो गया था, कभी सपने में भी ऐसी स्थिति की कल्पना नहीं की थी मैंने. मेरे सामने मेरे बच्चों और पत्नी का चेहरा सामने आ रहा था कि इस आरोप में जेल जाने पर  कैसे गुजारा करेंगे? क्या खायेंगे? कैसे अपना पेट भरेंगे?  लेकिन पुलिस वालों ने मुझे उठाया और थाने ले गए. घर वालों को इसकी कोई खबर तक  नहीं दी गई.
कुछ समझ नहीं आ रहा था ...असल में पुलिस वालों को पैसे चाहिए थे और इसी वजह से मुझ पर झूठा केस दज कर प्रताड़ित कर रहे थे .मेरे पास कहाँ पैसे थे. मुझे लगा जब पैसे नहीं दे पाऊंगा तो ज़िन्दगी  कैद में कटेगी . सोचकर कलेजा मुंह को आने लगा था . किधर जाऊं  ? किसे कहूँ समझ नहीं आ रहा था ...सोचते हुए मुझे अपने एक दोस्त की याद आई । लगा वमेरी मदद कर सकता है  । मैंने  किसी तरह से दरोगा के माध्यम से कोशिश कर अपने दोस्त से बात की. मुझे मालूम है कि पुलिस पैसे  कार कर ही मुझे छोड़ेगी।
इतनी बातें अम्बेडकर बता ही रहा था कि उनकी मां भी आकर हमारे साथ बैठ गईं और बातों-बातों में जब उन्हें पता चला कि हम 5 सितम्बर की घटना पर बातचीत कर रहें हैं तो उसकी मां ने रोते हुए अपनी आँखों के सामने अपने निर्दोष बेटे के साथ हुए अत्याचार का जो वर्णन किया सच में व रोंगटे खड़े करने वाला था.उसने सबसे पहले यही बात कही कि आज तक कभी कोई पुलिस मेरे घर नहीं आई ,कभी किसी पर कोई इल्जाम नहों लगा,थाने जाने की नौबत कभी नहीं आई .ऐसे में जब पुलिस वालों ने मेरे बेटे अम्बेडकर पर झूठे ही गांजा रखने का आरोप लगाया तो मेरे तो होश उड़ गए . मेरी आँखों के सामने उसे बहुत मारा-पीटा और जबरदस्ती उसे पकड़कर थाने ले गए. जाते-जाते बेटे को छुडाने के लिए उन्होंने 35000  रुपए की मांग रखी. किसी भी मां के लिए इससे ज्यादा दुखदायी स्थिति और नहीं हो सकती. मेरा रो-रोकर बुरा हाल हो गया । क्या करूँ?  किससे कहूँ? किसके पास मदद के लिय जाऊं कुछ समझ नहीं आ रहा था.बस आँखों के सामने अन्धेरा छा गया था .
आगे की बात अंबेडकर ने बताया कि पुलिस वाले मुझे थाने ले गए । मैंने किसी तरह से अपने दोस्त से संपर्क किया और दोस्त ने मदद का पूरा भरोसा दिया और मेरे घर जाकर कुछ घंटे बाद पैतीस हजार रुपए लेकर माँ के साथ थाने में आया । दोस्त और अपनी माँ को देखकर मुझे बहुत ही सुकून मिला । पुलिसवाले को पैतीस हजार देकर मुझे नरक से निकाला.
थाने से निकल जब घर पहुंचा तब तक घर वालों को खबर हो चुकी थी ..पहुँचते ही मेरी पत्नी और बच्चे मुझसे लिपटकर रोने लगे । कोई किसी को ढाढ़स बंधाने के स्थिति में नहीं था.बस रोये जा रहे थे. थाने के सात घंटे मुझे सात वर्ष के समान लगे.
इस झूठे आरोप ने मुझे आज तक चैन से रहने नहीं दिया. हर वक्त डर लगा रहता है कि कब पुलिस आकर पकड़ कर ले जायेगी. मैं अंदर से हताश हो गया हूँ और टूट चुका हूँ. लेकिन फिर भी चाहता हूँ कि मुझे प्रताड़ित करने वालों के खिलाफ कार्यवाही हो ताकि किसी पर झूठा आरोप लगाकर उसे प्रताड़ित नहीं किया जाए.
 अम्बेडकर की मां ने बताया कि रोज़ की तरह बेटा पान की दुकान पर था ,तभी कुछ पुलिस वाले स्कार्पियो से उसकी दुकान पर आये और बिना जांच-पड़ताल किये गांजा बेचने के आरोप लगाकर उसके साथ गाली-गुफ्तार  करते हुए मारने-पीटने लगे.और पकड़कर उसे थाने ले गए.और मुझसे कहा कि यदि बेटा चाहिए तो 35000 रु. ले आना. मेरे तो हाथ-पांव ठन्डे होने लगे.पैंतीस हजार सुनकर लगा कहाँ से लाऊंगी. कोई मददगार नहीं दिखाई दे रहा था . भागकर मदद के लिए नेता के पास गई लेकिन किसी ने कोई मदद नही की.
क्या किया जाए ? घर पर सभी बहुत चिंतित थे किस तरह बेटे को छुडाया जाए । वहां बेटा थाने प्रताड़ित हो रहा था . उसकी प्रताड़ना मझे कष्ट दे रही थी. क्या करती पैंतीस हजार इकठ्ठा करने के लिए सभी बहुओं के पास जमा रकम,उनके गहना-गुरिया ,चांदी की पाजेब और खेत गिरवी रखकर पैंतीस हजार की व्यवस्था कर थाने पहुंची । मैंने कहा कि बेटे को छोड़ दो पैसा लेकर आई हूँ .पुलिस वाले ने गाली देते हुए कहा मैंने ठेका लेकर नहीं रखा है जो तेरे बेटे को छोड़ दें । जाओ और रुपए लेकर आओ । नहीं लाओगी तो हम इसको नहीं छोड़ेंगे । लेकिन मां का दिल कैसे मानता मैं  पुलिस के सामने बहुत गिडगिड़ाई-रोई-हाथ-पांव जोड़ी लेकिन वे छोड़ने को तैयार नहीं थे.उसे कालापानी भेज देंगे ..बहुत कहने और उनकी गालियाँ सुनने के बाद उन्होंने भाव खाते हुए कहा तेरा मुंह देखकर छोड़ रहे हैं..और पांच घंटे थाने में मारने-पीटने के बाद पैंतीस हजाए लेकर छोड़ दिया.घटना के बाद हस अब ऐसा डर गए कि पता नही कब किस झूठे आरोप में पुलिस  हमें पकड़कर ले जाये. चाहटी हूँ कि इन पुलिस वालों की सही कबर ली जाये और सजा दी जाए .
मन में एक सवाल आता है हमेशा पुलिस जाति देखकर कमजोर लोगों को ही झूठे आरोप में क्यों पकड़कर ले जाती है


नाम- इमाम
पिता का नाम -मोहम्मद
जाति- पठान
रोज़गार –दिहाड़ी -मजदूरी
आश्रित – पांच सदस्य (पत्नी, पांच लड़के, दो लड़की )
 उम्र-  70 वर्ष
पता- ग्राम-चुर्क, पो.-चुर्क, थाना- राबर्टसगंज, जिला-सोनभद्र (यू.पी.)
आरोप – गुंडा एक्ट के अंतर्गत धमकी दे मारपीट कर थाने में ले जाकर प्रताड़ित किया.

जहाँ  सरकार गरीबों को आवास मुहैय्या कराने के लिए प्रधानमन्त्री आवास योजना जैसी योजना लागू कर उन्हें छत देने का वादा कर रही है वहीं  सरकार के पिट्ठू गरीब मजदूरों के साथ मार-पीटकर उनकी बनी-बनाई  छत से भी मरहूम कर सबको सड़क पर लाने के विशेष कार्यक्रम में लगे हुये हैं ।  किसी भी व्यक्ति को यदि जंगल में जाकर खुले आसमान के नीचे रहना पड़े और अपने पूरे परिवार के साथ जीवन गुजारना पड़े जहाँ न अपना समाज हो, न रहने-खाने की कोई सुविधा तो सोचकर ही मन में एक अजीब सा सन्नाटा छा जाता है.
यही हुआ 70 वर्षीय इमाम और उसके परिवार वालों के साथ . इमाम ने अपने ध्वस्त  हुए घर को याद करके बहुत ही भावुक और दुखी होकर  4 सितम्बर  2017 के दिन को  याद करते हुए  उस जगह वापस पहुँच गया जहाँ उसका घर हुआ करता था.याद करते हुए उसने कहा हम सब अपने घर में बैठे यूँ ही बातचीत कर रहे थे कि अचानक घर से बाहर देखा कि टोले  में वन विभाग का गार्ड और कुछ पुलिस वाले बुलडोजर के साथ बाहर खड़े होकर बस्ती वालों को चिल्लाकर धमका  कह रहें थे ‘ सब अपना-अपना घर छोड़कर बाहर निकल जाओ और इस बस्ती से अभी दफा हो जाओ, नहीं तो तुम लोग ज़िंदा नहीं बचोगे’. ये सुनते ही हम सबके  होश फाख्ता हो गए.ऐसे कैसे हम अपना घर छोड़कर चले जाएँ और क्यों चले जाए? किसका आदेश है ये ?  ये सब बातें सोच ही रहे थे कि अचानक पुलिस वालों ने लाठी से मारना शुरू कर दिया और बुउल्ड़ोजर चलवाकर घर गिराना शुरू कर दिया .  अचानक हुए हमले से हम घबरा गए और हमने जब बुल्डोजर चलवाने से मना किया तो जैसा कि होता है कि उनके मुंह से बस गलियों की बौछार  निकली. और लात-डंडे से इतना मारा कि मेरा हाथ टूट गया ..मैं दर्द से चिल्लता रह लेकिन उन लोगों को कोई तरस नहीं आया उस भयंकर मार से घुटने में गंभीर  चोट लगी , सर फट गया .पूरे टोले में तहलका मच गया सब अपने घर को बचाने कि गुहार लगा रहे थे लेकिन घर क्या, घर का एक भी सामान भी सलामत नहीं बचा.पूरी ग्रहस्थी को सब लोगों ने मिटटी में मिलते देखा. मुझे तो मारा ही साथ ही दहशत फैलाने के उद्देश्य से स्त्रियों को भी खूब गालियां दी और उन्हें भी बेतहाशा  मारा .पूरे बारह घंटे ये उत्पात चलता रहा और हम लोग बेबसी से सब कुछ देखते रहे.कोई बचाने वाला नहीं था ...कोई बोलने वाला नहीं था क्योंकि यहाँ बचाना वाला खुद ही डाकू बनकर आया था तब किस्से उम्मीद करते .
अंततः हम सड़क पर आ गए क्योंकि किसी के सर पर छत नही थी .खाने-पीने का सारा राशन  नष्ट कर   दिया गया ..हाथ खाली हो गए थे औए बच्चे भूख से बिलबिला रहे थे .और जो कीमती सामान था उसे वे पुलिस वालों ने उस पर डाका डाल दियाऔर धमकी देते हुए कि....अगर इस जगह पर दुबारा दिखे तो सबकी जान ले लूँगा,पूरा का पूरा खानदान खत्म कर दूंगा.’
क्या करते हम उस जगह से दस किलोमीटर दूर पड़ने वाले घनघोर जंगल में खुले आसमान के नीचे रहने लगे.जहाँ न पानी का कोई ठिकाना न खाने-पीने के सामान का.क्योंकि हमारा राशन कार्ड और पहचान पत्र दोनों ही नहीं है घर तोड़ते समय उसे भी उन्होंने नष्ट कर दिया था.  कोई जरुरत  हो तो दस किलोमीटर दूर चलकर व्यवस्था करनी होती..नहीं तो ऐसे ही खाली पेट सोना पड़ता. और जब कोई बीमार पड़ता तो डॉक्टर के पास मरीज को खाट में लिटा कर दस किलोमीटर का पैदल सफ़र करते हैं..बहुत कष्ट है .शारीरिक रूप से तो हमें अपाहिज बना ही दिया है लेकिन मानसिक रूप से भी हम बिलकुल टूट चुके हैं.
गरीबों की बातें करती है सरकार अपने भाषण में लेकिन जब गरीबों के उपर कहर टूटता है उनके अपने आदमी के द्वारा  तब किस्सी को कुछ दिखाई नहीं देता न ही कोई विरोध होता है ..क्योंकि हम लोग गरीब हैं और सबसे जयादा पठान है. हम पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं.. दहशत के साए में जी रहे हैं..न चैन से खा पाते हैं न ही सो पाते हैं .

नाम-ग्यास जान
पति का नाम –सजब
जाति- पठान
रोज़गार –दिहाड़ी -मजदूरी
आश्रित – पांच सदस्य (पत्नी,लड़की-तीन, लड़के- चार )
 उम्र-  52 वर्ष
पता- ग्राम-चुर्क, पो.-चुर्क, थाना- राबर्टसगंज, जिला-सोनभद्र (यू.पी.)
आरोप -  


मैं जैसे ही ग्यास जान से मिलने पहुंचा उसने सबसे पहले यही कहना शुरू किया कि वर्दीधारी गुंडों को सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए. जिसने हमें इंसान नहीं बल्कि जानवर समझा और अपने दुःख को व्यक्त करते हुए कहा कि कोई जानवर से भी ऐसा क्रूर व्यवहार नहीं करता. हम गरीबों कि कहीं कोई इज्जत ही नहीं बल्कि हर सरकारी आदमी अपनी तरह से हमें अपमानित और प्रताड़ित करता है. हमारे छोटे से घर पर ही इन लोगों की नज़र रहती है.उनके खिलाफ ऐसी कड़ी कार्यवाही हो कि दुबारा ऐसा करने वाला सोचे...ऐसा कहते हुए जब उसने अपनी बात बताना शुरू किया तो लगा कि गरीबों के साथ हो रहे अन्याय के लिए कौन उनके साथ है......उस 4 सितम्बर की शाम जब काम से वापस आये ही थे कि देखा कि  13 थाने की पुलिस  टोले में पहुंची हुई है और वो भी बुलडोजर के साथ  आते ही बिना किसी सूचना के तोड़-फोड़ शुरू कर दिए ..मैं घबरा कर पुलिस वाले के पास पहुंचा और पूछा कि ‘साब ये क्यों तोड़ रहे हो?’ इतना पूछना था कि बिना कोई जवाब दिए उसने लाठी से इतना मारा और उठाकर पटक दिया..धरती पर  गिरते ही मेरी पीठ पर गिट्टी घुस गई ..दर्द से जैसे ही मैं  चिल्लाया उसने फिर पूरी ताकत से मारा.. मैं चिल्लाता रहा और वे मारते रहे ...चिल्लाता रहा मारते रहे .......दर्द से बिलखता रहा,रोता रहा, छोड़ने की मिन्नतें करता रहा  लेकिन उन लोगों को  जरा भी दया नहीं आई.
लेकिन सबसे ज्यादा कष्ट हुआ जब मेरी ही आँखों के सामने उसने  मेहनत से बनाए घर पर बुलडोजर चला कर सारा सामन नष्ट कर दिया.मैं सन्न रह गया ,मेरे हाथ-पांव ठन्डे पड़ गए ,मैं हाथ-पांव जोड़ता रहा लेकिन उन लोगों ने मेरी तरफ एक बार भी देखा नहीं. बुलडोजर चलाने से पहले कोई सूचना नहीं ..ताकि घर पर रखा राशन ,बर्तन,कपड़ा और दुसरे सामान वहाँ से हटा पाते बल्कि घर में रखा राशन फेंक दिया. मेरी पालीं हुई मुर्गियां और बकरी के बच्चे दबकर मर गए . मैं  तड़प कर रह गया उसके बाद भी उनका मन नहीं भरा उसने मुझे घसीटते हुए सड़क पर लाया और लाठी से बेदम पिटाई की. ...रात 8 बजे  तक तांडव मचाते रहे . पुलिस वालों ने हमें जानवरों की तरह जंगल में खदेड़ दिया.धुप,बारिश,हवा की मार के साथ जंगली जानवरों का खौफ लगा  रहता है. सभ्यता के शहर में जब इंसानों की ज़िन्दगी का भरोसा नहीं तब जंगल में कैसे कोई सुरक्षित रह सकता है .कब किसका आक्रमण हो जाए इस वजह से रात को ठिकसे सो भी नहीं सकते.
संवेदनशील इंसान को इस बात का एहसास हो सकता है कि बेघर होने के बाद खुले आकाश के नीचे वो भी जंगल में रहना कैसा लगता है. आज भी जब पुरवा हवाएं चलती हैं तो पूरे शरीर में बहुत दर्द होता है.
उसने मुझसे उम्मीद भरी नज्रोंकेसाथ कहा कि हमें जल्द ही घर दिलाने में आप मदद करें और जिन्होंने हमारे साथ अत्याचार किया है उन्हें सख्त से सख्त सज़ा दिलाई जाए.
पिंटू-पूजा





नाम-लियाकत जान
पति का नाम –आबिद खान 
जाति- पठान
रोज़गार –पति आइसक्रीम बेचने का काम
आश्रित –दो बेटे और एक बेटी (आश्रित चार सदस्य)
उम्र-  20 वर्ष
पता-  ग्राम-भटवा , जिला-सोनभद्र (यू.पी.)
आरोप -  जगह खाली करवाने केलिए


 किसी भी स्त्री के लिए मां बनना बहुत ही सम्मानजनक और गर्व की बात होती है. मन बन्ने वाली स्त्री की विशेष देखभाल की जाति है और ध्यान रखा जाता है. लेकिन इस तथाकथित सभी समाज में पुलिस कितनी सभी है और आम जनता के प्रति दी गई जिम्मेदारी को किस तरह निभाती है इसका सबूत आये दिन हम देखते-सुनते आते हैं. ऐसी ही एक घटना  के बारे में लियाकत खान ने अपनी आपबीती जब हमें सुनाई तो लगा कि हम बर्बर समाज में रह रहें हैं . उसने बताया कि मैं तीन माह से गर्भ से थी और ये सितम्बर की बात है एक सुबह उठने के बाद जब वह सुबह के काम में लगी हुई थी उसे दूर से कुछ पुलिस वाले आते हुए दिखाई दिए .घबराई हुई कुछ आगे सोच पाती उन्होंने अचानक ही घर में घुस कर तबाही शुरू कर दी  .हम कुछ समझ पाते हमारा घर तोड़ना शुरू कर दिया हम देखते रह गए..घर का सारा सामान बर्तन,राशन,बिस्तर सब तहस-नहस कर दिया.सब  बिखेरना और फेंकना शुरू कर दिया. लियाकत ने  सहमते हुए हमसे कहा कोई भी हो अपना घर और सामान बचाने की कोशिश तो करता ही है न..हमने भी उन्हें मना करते हुए अपने सामान को बचाने का प्रयास किया तो सबसे पहला हमला उन्होंने मुझ पर किया और इतने जोर से लाठी से मारा कि लगा प्राण ही निकल जायेगा ..मई ज़मीन पर गिर पड़ी और दर्द से चिलाते हुए रोने लगी .उन्होंने कोई भी मानवीयता नहीं दिखाई.एक बार भी उनके मन में ये सवाल नहीं आया कि किसी गर्भवती स्त्री को ऐसे कैसे प्रताड़ित कर सकते हैं....कितनी भी दुश्मनी हो तब भी दुश्मान के मन में पेट में पल रहे बच्चे का ख्याल तो आता ही है..लेकिन इन बेरहम दिलों में बल्कि और खतरनाक तरीके से अत्याचार करने का विचार आया और उन्होंने  किया  भी.पेट में पल रहा बच्चा उसी दम खत्म हो गया.मैं पागलों जैसे चीखने लगी..मेरे चीखने से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा बल्कि उन्होंने मुझे गिराकर और लाठिया मुझपर बरसाई. पूरा घर बर्बाद कर वे भाग गए और मैं बेबस  होकर देखती रही...ये जुल्म गरीब पर ही क्यों होता है ? जबकि वे जब निर्दोष होते हैं...क्या करती सब लूट चुका था..जो भी सामान सामने दिखा  उसे भारी मन से उठाया और पास के जंगल में चले गए...खुली छत के नीचे रहना कैसा होता है ये हमसे पूछिये..जहाँ कोई सुरक्षा नहीं ..लेकिन कोई और रास्ता नहीं है.सब एक-दुसरे का ख्याल रखते हुए एक-दुसरे को हिम्मत देते हैं लेकिन अंदर से सब भयभीत हैं कि कब खाकीवर्दीधारी गुंडे  यहाँ आ धमके..इसी चिंता में न नींद आती न भूख लगती है.बस जी रहें हैं.
इतना भयानक हादसा होने के बाद भी कोई भी नेता या पुलिस वाला आकर पूछता नहीं क्योंकि किसी भी पुलिस वाले की हिमात इतनी नहीं होगी जब तक कि उपर से आदेश नहीं मिले.इसमें नेता,प्रशासन दोनों मिले हुए हैं...इसीलिए अब उनसे अपनी सुरक्षा की कोई उम्मीद नहीं कर सकते लेकिन इतना जरुर है है कभी न कभी उन्हें इस किये की सजा जरुर मिले .
ये बाते सुनने के बाद लगा कि सच ही कह रही है लियाकत जान कि इस घटना में सबकी मिलीभगत है.इसीलिए उच्च अधिकारी भी चुप्पी साधे रहते हैं.वो चाहती है कि किसी तरह इन लोगों पर सख्त कारवाही हो ताकि आगे से इस तरह की घटनाएँ न होने पायें.
ज्योति-पिंटू


परिवार,समाज या गाँव में कोई भी दुर्घटना घटती है,लड़ाई-झगड़ा होता है तो हर कोई पुलिस पुलिस के पास भागकर जाता हैं.इस उम्मीद से कि स्थिति को नियंत्रित कर पायेगी.लेकिन अक्सर इसके उलट होता है कि पुलिस ही गुंडा बन आम नागरिकों,गरीबों के साथ लूटपाट कर उन्हें बर्बाद करती है. उच्च अधिकारीयों की शाह के बिना कोई भी पुलिस लूटपाट कर लोगों को सडक में लाने की हिम्मत नहीं कर सकता है .ऐसा हर शिकार व्यक्ति का मंतव्य होता है.रुखसाना ने भी जब अपनी बात कहनी शुरू की सबसे पहले उसने यही आशंका जताई.
उसने कहना शुरू किया कि किसे मालुम कि घर पर अकेले रहते हुए कभी कोई पुलिसवाला आ धमकेगा और बदतमीजी करते हुए सारा घर तहस नाहा कर उसे बर्बाद कर देगा.मेरे साथ ऐसा ही हुआ ..वो दिन 4 सितम्बर 2017 का था ,मेरा पति शहीद खान मजदूरी करने  जा चुका था. मैं अपने काम में लगी हुई थी कि अचानक बस्ती में गाड़ियों की आवाज़ आई मैंने घर से बाहर निकलकर देखा तो  पूरी बस्ती को गाड़ियों से आये पुलिस वालों ने घेर लिया था ,मैं घबरा गई और भागकर दरवाजा बंद कर घर के अंदर घुस गई.कुछ पलों बाद मुझे दरवाजे खटखटाने की आवाज़ आई .मैं समझ चुकी थी कि ये पुलिस वाले ही है लेकिन समझ नहीं पा रही थी यहाँ क्यों आये हुए हैं. मैंने दरवाजा नहीं खोला तब उन्होंने दरवाजा तोड़ दिया.घरवाला के बारे में पूछा . वह तो काम पर गया था . उसके बाद उसने मेरे साथ दुर्व्यवहार किया उअर मेरे मना करने पर मारा और बाल पकड़कर घसीटते हुए बाहर ले जाकर पटक दिया. मैं चीखती रही, छोड देने के लिए मिन्नतें करती रही लेकिन उन्होंने कुछ भी नही सुना. सारा सामान सड़क पर फेंक दिया. इसके पहले मैंने कभी पुलिस वालों को इस तरह से नहीं देखा था. गालियाँ देते हुए मेरे साथ मारपीट कर रहे थे.बचाने के लिए चिल्ला जरुर रही थी लेकिन कौन आता बचाने? सभी खौफ खाए हुए थे क्योंकि सारे पुलिस फ़ौज बस पूरी बस्ती को नेस्तनाबूद करने में लगी हुई थी और देखते-देखते पूरी बस्ती सड़क पर आ गई.गहर तो तोड़ होई दिया साथ ही सारा सामान,राशन भी नष्ट कर दिया..मैं रोती रहीऔर भाग कर सकल भटवा के जंगलों में शरण लिए हुए हैं. (पूजा कुमारी)
4 सितम्बर 2017 चुर्क गाँव के लिए काला दिन साबित हुआ.क्योंकि उस दिन सुबह से ही पुलिस की पूरी फौज गाँव में घुस आई थी और लोगों के घरों की नाकाबंदी कर दी थी.लोगोंके घरों की तोड़-फोड़ शुरू कर दी और सारा सामन ,राशन,उनके जानवर को पूरी तरह से खत्म कर उन्हें रस्ते पर ले आये. एक-एक कर जब लोगों से बात की गई तो उनकी प्रताड़ना सुनकर लगा कि कोई जानवरों से भी इस तरह का व्यवहार नहीं करता.
निकाम ,उम्र 20 वर्ष (पिता –निज़ाम), इकबाल उम्र 22 वर्ष (पिता-जमाल) ,नजब खान (पति स्व. इंसा खान)  ने जो कि विधवा है और 2 बेटियां और 6 बेटे हैं ने चुर्क गाँव (जो राबेर्त्स्गंज थाने में आता है) में रहते हैं किसी तरह मजदूरी-दिहाड़ी कर गुजारा कर अपनी गृहस्थी बसाई .इन लोगो से जब बात की तो इन्होंने विस्तार से बताया कि गाँव खाली कराने के लिए पुलिस ने क्या-क्या तांडव मचाया.बुलडोजर लेकर बिना किसी  सूचना के कोई आपके घर को गिराने आये तो आप पर क्या गुजेरेगी..वही मेरे साथ हुआ. गहर में कोई पुरुष नहीं और हम पूरा परिवार उन्हें देखकर डर गया मैंने बहुत बार घर न तोडने की गुहार लगाईं .मेरे मना करने पर मुझे धमकाया कि तेरा घर मस्जिद नहीं ही जो तू कहे और तेरे अलाह नियान जायेंगे..बल्कि बुलडोजर से मुझे कुचल दीं की बात कही. साथ में उन्होंने एक न सुनी .बल्कि मुझे लात,लाठी से इतना मारा की बहुत चोट आई.सर के अन्दरुनी हिस्से में जो चोट लगी उसमें आज भी दर्द होता है.मेरे घर का सारा सामान जिसकी कीमत लगभग तीन लाख रही होगी जो मैंने बहुत ही मेहनत से एक-एक पाई करके जोड़ा था,सब मेरी आँखों के सामने खत्म कर दिया ...क्या करती खुद को और बच्चों  को  बचाना जरुरी था .भाग कर गाँव वालों के साथ दस किलोमीटर दूर जंगल में डेरा दाल लिया ..डेरा क्या बस खुली छत थी और जंगली जानवरों का खौफ..इस जंगल में खाने का क्या कहे पीने के पानी भी तीन किलोमीटर दूर से लाना होता है...वो भी गन्दला सा. किसी को क्या चिंता .वैसे भी गरीबों का कौन साथ खड़ा होता है.  हम मरे-जियें किसे फर्क पड़ता है. बस हम चाहते हैं कि उन्हें कड़ी अस एकादी सजा मिले . लेकिन हमारे कहने से किसे सजा मिलती है. हम इसी उम्मीद में हैं .(छाया-पूजा)





नाम-   सरस्वती गुप्ता
पति का नाम –महेश  गुप्ता
जाति- तेली
रोज़गार –मजदूरी
आश्रित –दो बेटी,दो बेटे और पति 
उम्र-  30 वर्ष
पता-  ग्राम- केकहारी, थाना – कर्मा ,
जिला-सोनभद्र (यू.पी.)
आरोप -  जगह खाली करवाने केलिए


मेरा बेटा शिवनारायण 13 वर्ष का हो चुका है .कक्षा पांचवीं तक की पढ़ाई होने के बाद उसने पढ़ाई छोड़ दी . कारण बिना अपराध के जेल ले जाया जाना...जेल भेजने वालों को इस बात की परवाह थोड़ी होती है कि इस अतारह के व्यवहार से किसी की मनोस्थिति पर क्या प्रभाव पड़ेगा ...मैंने सोचा था कुछ पढ़ लेता तो ठीकठाक काम कि उम्मीद की जा सकती थी . जिससे कम से कम कमाने लगे. इसी बात को लेकर चिंतित थी और सोच रही थी. परिवार के हम छ सदस्यों का गुजारा पति की मजदूरी से होता है.इसके बाद भी हम अपने परिवार के साथ खुश हैं और आगे अच्छा होगा ये सोचकर संतुष्ट हो जाती हूँ.
पिछले वर्ष मई 2017 की शाम अचानक मेरी अनुपस्थिति में पुलिस मेर घर आई और मेरे 13 वर्षीय बेटे को पकड़कर ले गई .मैं अस्पताल गई हुई थी.वापास आते ही मेरी बेटी ने मुझे बताया कि भैया को पुलिस पकड़कर ले गई है.ये सुनकर पैरों तले ज़मीन खिसक गई. ,एरी समझ ये नहीं आ रहा था कि किस अपराध में उसे पुलिस ले गई. मैं भागते हुए थाने भागी ..जहाँ मेरे बेटे को रखा गया था ..मुझे देखते ही वह जोर-जोर से रोने लगा और वहां से वह दम घुटने की बात कहकर घरले जाने की बात कहने लगा .मेरा मन बिलकुल बैठ गया था. जब मैंने पुलिसवालों से उसका अपराध पूछा तो उसने चोरी का आरोप लगाया ..मोबाइल चोरी का..
बेटा रोये आ रहा है और कहते जा रहा है क उसने कोई मोबाइल चोरी नहीं किया.मुझ पर झूठा इल्जाम लगा रहे हैं .मैंने भी मेरा बेटा चोर हो ही नहीं सकता लेकिन वे मानने को तैयार नहीं हुए .मई परेशान –हैरान ,उस्न्हें छोड़ने को कहा तो उन्होंने साफ़-साफ़ शब्दों में कहा बीस हजार ले आना और बेटे को छुड़ाकर ले जाना.ल्बीस हजार.....कहना होता है हम गरीबो के पास बीस हजार..मैंने कहा तो साफ़ मुकर गए और कहा इसके सिवा कोई उपाय नहीं है.....और इस तरह बेटे को जेल भेज दिया..वैसे तो किसी भी अवयस्क को जेल भेजना क़ानूनी गलत होता है लेकिन उन्होंने मेरे बेटे को भेजा.
रात-दिन इसी चिंता में कि कैसे बीस हजार के व्यवस्था करूँ..न भूख लगती न नींद आती बस आँखों के सामने बेटे का रोता हुआ चेहरा सामने आता. जब जेल जाति बीटा रोता और बाहर ले चलने की बात कहता..पूरा घर परेशान ..कहीं से कोई व्यवस्था नहीं हो पा रही थी तब मैंने अपनी पायल,सिकड़ी और करधनी बेचकर पैसे की व्यवस्था की और पुलिसवाले के पास पहुंची.बेटा जेल छूटकर घर आ गया .हम सब बहुत खुश थे लेकिन मन में एक डर लगा हुआ था कि कब पुलिसवाले आ धमके..बेटे ने स्कूल जाना मारे शर्म के बंद कर दिया .एक साल हो गए लेकिन आज भी पुलिस वाले घर आकर बेटे के पूछताछ करते हैं ..नहिब बताने पर गलिया देते हुए मारने की धमकी दते हैं..इसी डर से हमने अपने बेटे को अपने से दूर रखा है...उसकी चिंता और बिछोह से बहुत दुखी हूँ.स्की कही बातें अब भी दिमाग को परशान कर देती हैं कि पुलिसवालों ने उसे बहुत मारा और प्रताड़ित किया.उसकी तो ज़िन्दगी बर्बाद हो गई.हमारा परिवार टूट गया ..
मेरी तो दिली इच्छा है कि उन लोगों को कड़ी से कड़ी सजा मिले लेकिन इस तरह की उम्मीद क्या एक आम नागरिक पुलिसवालों के लिए कर सकता है..या फिर केवल कल्पना की जा सकती है.

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