‘’मैं किसी जुलुस
में शामिल नही था न किसी का विरोध किया, उसके बावजूद पुलिस ने मेरी गिरफ्तारी कर
मुझे बुरी तरह मारकर जेल भेज दिया’’
मेरा नाम तजम्मुल
उम्र 26 वर्ष है| मेरे पिता स्व० नुरुल हक है| मैंने कक्षा आठ तक
की शिक्षा ली है| मै विवाहित हूँ मेरे दो बच्चे है बेटी तहमीना परवीन तीन वर्ष
बेटा तन्जील अहमद डेढ़ वर्ष का है| मै दुसरो के पावरलूम पर बुनकरी का काम करता हूँ|
मै गल्ला बजरडीहा, थाना-भेलूपुर, जिला-वाराणसी का रहने वाला हूँ|
22 दिसम्बर 2019 की
रात के डेढ़ बजे थे| मै अपने कमरे में सो रहा था| तभी मेरे घर के दरवाजा गिरने की आवाज सुनकर मै हडबडा
कर उठ गया| मैंने देखा कि पांच छ: पुलिस वाले वर्दी में मेरे बड़े भाई मुमताज का
नाम लेकर बुला रहे थे| उस दिन वह घर पर नही था| भाई को पुलिस क्यों पूछ रही है यह
सुनकर मै अन्दर से डर गया| तभी उन पुलिस वालो ने मेरे पास आकर कहा कि तुम भी जुलुस
में थे चलो| मै कुछ बोल पाता इसके पहले ही वह लोग मुझे पकड़कर घर के बाहर गली में
ले जाने लगे| मैने गुजारिश की साहब कपड़ा तो पहन लेने दीजिये| उस वक़्त मै सिर्फ
बनियान और पैन्ट पहना हुआ था| इस पर पुलिस वाले मुझे गंदी-गंदी गालिया देने लगे|
उसी हालत में पुलिस वाले मुझे गली के बाहर ले आये| मै ठंड से कॉप रहा था| लेकिन गली के बाहर 100 पुलिस वालो को वर्दी में देखकर डर गया था| जिधर नजर पड़ती उधर पुलिस ही पुलिस ही दिख रही थी| हर तरफ़ खौफ़ का माहौल था| सभी डर से अपने घरो में दुबके हुए थे| पुलिस ने हमे जीप में बैठाया, जिसमे पहले से ही मुहल्ले के तीन लड़के जियाउल हक, मो० नसीम और अब्दुल जब्बार उर्फ़ नसरुद्दीन बैठे थे| रास्ते भर मै यही सोच रहा था कि पुलिस हमे क्यों ले जा रही है, हमने किया क्या है| जुलुस में तो मै था ही नही|
Testimony देकर सम्मानित करते हुए
फर्जी केस में फसाना और पुलिस लॉक अप में यातना
पुलिस हम सभी को मडुआडीह थाने ले गयी और लाकअप में बंद कर दिया| लाकअप में पहले से एक आदमी मौजूद था| लाकअप में बहुत अजीब लग रहा था| अन्दर से बहुत घबराहट हो रही थी, सोच रहा था कि हम कहा आ गये| लाकअप बहुत गंदा था पेशाब पैखाना की बदबू आ रही थी| समझ में नही आ रहा था कि कहा बैठे| तभी ओढने के लिए हमे कम्बल दिया गया| ठंड इतनी ज्यादा थी पूरा बदन कांप रहा था| कम्बल ओढ़ने के लिए उठाया तो उसमे अजीब सी महक आ रही थी| किसी तरह रात गुजारा| रात भर हम रोते रहे घर की बहुत याद आ रही थी| वह रात इतनी लम्बी थी खत्म होने का नाम नही लेती|
सुबह हुआ हम इसी इन्तेजार में थे हमे
लाकअप से बाहर निकाला जायेगा| लेकिन ऐसा नही हुआ हमें अंदर ही रखा गया| हम भूखे
प्यासे लाकअप का दरवाजा निहारते रहे| दोपहर बीत गया हमे एक कप चाय और पानी नसीब
नही हुआ|
घर वालो को मालूम नही था कि पुलिस वाले
हमे कहा ले आये है| कुछ खाने का मन नही कर रहा था| लेकिन सुबह से बिना खाए पिए पेट
और सिर में दर्द होने लगा था| जब भी हम दरवाजे पर जाकर कुछ खाने पिने के लिए मागते
तो बोलते घबराओ मत आ रहा है| लगभग तीन बजे तक हम बिना खाना पानी के रहे| उसके बाद
उसी हालत में हमे लाकअप से निकालकर भेलूपुर थाने ले गये| थाने में पुलिस मोबाईल
में फोटो दिखाकर पहचान करा रही थी| उसमे से मै किसी को जानता नही था| मैंने बोला
साहब मै इन सबको नही जानता|
इसके बाद पुलिस वाले मुझे थाने में पीछे
की ओर ले गये | बाथरूम की दीवाल की ओर मेरा मुहँ चिपकाकर मेरे दोनो हाथो को दो-दो
सिपाही पकड़कर पीछे से तीन चार पुलिस वाले राड से मेरे दोनों बटक और घुटने पर
बारी-बारी मारने लगे| मुझे बहुत दर्द हो रहा था| मै चिल्ला रहा था| बोले कितना
भैसा खाए हो| मिया को जितना मारो इनके आँख से आसू नही आता यह सुनकर मुझे बहुत
तकलीफ हो रही थी| वह बेरहमो की तरह मार रहे थे| 25 - 26 स्टिक मारने के बाद मैने
एक उम्र दराज पुलिस वाले से गिडगिडाया छोड़ दीजिये आप मेरे पिता के सामान है| इस पर
वह मेरे गा्ल पर तेज झापड़ मारा मै चौधिया सा गया| अपने आपको संभालता हुआ फ़िर खड़ा
हुआ| शरीर में ताकत नही थी| बस यही सोच रहा था कि सुबह से पुलिस वालो ने खाने को
नही दिया| बदन में जो ताकत थी उसे मारकर निकाल लिया| उस समय मै चल भी नहीं पा रहा था
बहुत तकलीफ हो रही थी|
उसी हालत में बगल के सरकारी अस्पताल ले
जाकर मेडिकल मुआयना कराया| जहा पुलिस ने मारा था वहा रिपोर्ट में लिखा जा रहा था
की भाग दौड़ में हल्की फुल्की चोट आयी है| यह सुनकर अफ़सोस हो रहा था| यह लोग हम
बेगुनाहों के साथ ऐसा क्यों कर रहे है| वहा से बाहर लाकर दुकान पर हमें दो-दो
समोसा खिलाया गया| उस समय मै बैठ नही पा रहा था| बहुत दर्द हो रहा था|
जिला जेल वाराणसी में यातना और भ्रस्टाचार:
वहा से कचहरी ले गये और साईंन कराकर
चौकाघाट जेल भेजा गया| यह सब इतना खौफनाक था कि जिसे मै जीते जी नही भूल सकता| लगभग
साढ़े सात बजे हमे जेल के अंदर ले जाने लगे| उस वक्त जेल में जाने में रूह काप रही
थी मैंने कभी सोचा नही था यह दिन भी देखना पड़ेगा|
जेल के 10 नम्बर बैरक में डाल दिया गया|
बहुत अजीब लग रहा था उसमे 100 के करीब लोग थे| घर की याद आ रही थी| तभी खाना लेने
की आवाज आयी खाना लेने गया| जिसमें मोटी-मोटी पांच छ: रोटिया पतली दाल और मोटे चावल
और बिना तेल की सब्जी मिली| खाना है उसके बारे में कुछ नही बोल सकता लेकिन खाना देखकर अजीब लग रहा था| भूखा इन्सान
भी ऐसा खाना देखकर छोड़ दे| उसमे से थोड़ा बहुत खाकर लोगो के पैताने सिकुड़ कर रात
गुजारी| रात भर आँख नही लगी दर्द में तड़पता रहा|पुलिस ने जहा मारा था पूरा स्याह
पढ़ गया था| घर वालो की याद आ रही थी| पता नही उन्हें हमारे बारे में पता है की नही
बीबी बच्चे कैसे होगे| सुबह हुई पानी की तरह चाय और भीगा चना दिया गया| मुझे झाड़ू
लगाने का काम सौपा गया| जब भी चल रहा था तो मुझे दर्द होता इसके बावजूद मै रोज
बैरक में सुबह शाम झाड़ू लगाता|
दो दिन बीतने के बाद मेरा भाई जेल में
मुझसे मिलने आया| वह बताने लगा की हम लोग सुबह से ही भेलूपुर थाने का चक्कर काट
रहे थे| लेकिन तुम्हारा कुछ पता नही चला| शाम को पुलिस तुम्हे ले जा रही थी तो
हमने तुम्हे देखा लेकिन मै मजबूर था अगर मै वहा आता तो पुलिस मुझे भी बंद कर देती|
मै उसकी यह बात सुनकर रोने लगा घर वालो का हाल पूछा मेरे आने के बाद माँ की हालत
और बिगड़ गयी बीवी का रो-रो कर बुरा हाल था| यह सब सुनकर उलझन होने लगा और मिलाई का
टाईम खत्म हो गया| मै वापस जेल के अंदर जाने लगा गेट के अंदर जाने के लिए सिपाही
ने मुझसे 10 रुपया माँगा|
मै बोला पैसा नही है इस पर वह मुझे घुर कर
देखने लगा| मै उस समय समझ नही पाया| जब बैरक के अंदर गया तो सिपाही मुझे बैरक में
जाने के लिए 200 रुपया मांगे मैंने कहा नही है इस पर उन लोगो ने हमारी तलाशी ली और
छ सात डंडा फिर से मेरे बटक पर मारने लगे वहा मुझे पहले से तकलीफ थी| उनका एक-एक
डंडा चुभ रहा था मारने के बाद बोले चलो झाड़ू लगाओ| मुझे बहुत बुरा लगा| यह कैसा
सितम है हम गरीब बुनकर लोग है| पेट बहुत मुश्किल से चलता है| हम इनकी मांग को कहा
पूरा कर पाएंगे| जेल में जिसके पास पैसा नही है उसे यह लोग परेशान करते|
दूसरी बार भाई जब
मिलने आया तो मैंने उससे कहा कुछ पैसा है तो दे दो नही तो फिर मार खाना पड़ेगा| यह
सुनकर उसके जेब में जो कुछ भी था उसने दिया| मै जेल के अंदर गया उन लोगो ने पैसा
माँगा मैंने उन्हें दिया| जेल में यही फ़िक्र लगी थी कैसे सब होगा हम बाहर कैसे
आयेंगे| दिन रात इसी के बारे में सोचता रहता|
मुझे काम न करना
पढ़े करीब दस दिन बाद घर वालो ने कर्ज लेकर पैसा भेजा यह देखकर बहुत तकलीफ हुई|
1000 रुपया जेल में जमाकर बैठकी की| मुझे इस बात का अफ़सोस था जब कोई मिलने आता तो
बैरक में जाने के लिए पैसा देना पड़ता| मैंने दो बार पैसा नही दिया तो मुझे मारकर मुझसे
झाड़ू लगवाया गया|
पुलिस ने मुझ पर गम्भीर धारा लगाकर देशद्रोह
का मुकदमा दर्ज किया है| जबकि मुझे नही
मालूम है की यह आरोप मुझ पर क्यों लगाया गया है उस दिन मै जुलुस में शामिल नही था|
मै आकिफ भाई के पावरलूम पर काम कर घर वापस जा रहा था| रास्ते में कुछ भीड़ थी मुझे
नही मालूम वहा क्या हो रहा है|यह लोग किस चीज का विरोध कर रहे थे| उसके बाद भी मै
रोज अपने काम पर जाता | मैंने किसी का विरोध नही किया| उसके बावजूद मै 25 दिन तक
जेल में रहा| घर वाले गरीब थे मानवाधिकार जननिगरानी समिति की लिखा पढ़ी और कुछ
जिम्मेदार लोगो ने चंदा इकट्ठा कर 25 दिन बाद जमानत पर रिहा करवाया| मै घर आया और
परिवार के लोगो को देखकर खुशी मिली उसके लिए मेरे पास अल्फाज नही है| मै उन सभी का
शुक्रगुजार हूँ जिन्होंने हमारी मदद की|
लेकिन अभी भी वह सब
याद करता हूँ तो अजीब सी घबराहट होती है| एक डर सा बैठ गया है पुलिस फिर न उठा ले
जाय| रात भर इसी घबराहट से नीद नही आती है| घर वालो की फ़िक्र लगी रहती है| मेरे
जेल से छुटने के कुछ दिन बाद मेरे बड़े भाई का इन्तेकाल हो गया| वह टी वी के मरीज
थे | हम लोगो ने पेट काटकर उनका बहुत इलाज करवाया लेकिन उनकी जान नही बच पायी|
अम्मी भी अक्सर बीमार रहती है| मेरे जेल जाने के बाद वह और फिक्र मंद हो गयी है|
मै चाहता हूँ कि
मुझ पर जो भी बेबुनियाद गम्भीर आरोप लगा है उनसे मुझे निजात मिले जिससे मेरे और
परिवार के साथ न्याय हो सके|
तजम्मुल के साथ लेनिन रघुवंशी ऑफिस में
आज ऑफिस में Testimonial Therapy के अन्तर्गत सम्मान समारोह में मेरे भी आँखों में आंसू आ गए. पुलिस वही कर रही हैं, जो ब्रिटिश औपनिवेशिक हुकूमत में करती थी. पुलिस सुधार और फासीवाद का खात्मा बहुत जरुरी है.
#bazardeeha #Varanasi #PoliceTorture
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