मेरा नाम अब्दुल
जब्बार उर्फ़ नसुरुद्दीन उम्र-26 वर्ष है| मेरे पिता का नाम हबीबउल्ला है| मेरी
माता का नाम-जायदा बीबी है| मै बजरडीहा रजानगर थाना - भेलूपुर जिला - वाराणसी का
निवासी हूँ| अभी मै अविवाहित हूँ| मै अपने परिवार के लोगो के साथ बिनकारी का कार्य
करता हूँ| मै मुसलमान और अंसारी बिरादरी से तालुख रखता हूँ| हम लोग 5 भाई 3 बहन
है| पहले भाई का नाम अब्दुल सप्तार उम्र- 40 वर्ष, दुसरे भाई का नाम-अब्द्दुल
जफ्फार उम्र- 35 वर्ष, तीसरे भाई का नाम –मो० बेलाल उम्र- 22 वर्ष, चौथे भाई का
नाम –मो० नेहाल उम्र- 20 वर्ष है|
फर्जी केस में फ़साना और पुलिस लॉक अप में यातना :
21 दिसम्बर 2019 दिन शनिवार को मै अपने घर
में परिवार के बाकी लोगो के साथ सो रहा था| अचानक धम –धम दरवाजे पीटने की आवाज आने
लगी, तभी मेरे अब्बू जी उठकर आवाज लगाये की कौन दरवाजा कौन पिट रहा है? दूसरी तरफ़
से माँ- बहन की गाली देते हुए आवाज़ आई, खोल दरवाजा नही तो तोड़ देंगे| जैसे ही
अब्बू दरवाज़ा खोलने पहुँचे वैसे ही दरवाज़ा तोड़ते हुए धडधडा कर पुलिस घर में घुसने
गयी| करीब 20 पुलिसकरवाले थे जिसमे कुछ सादे कपड़े और कुछ वर्दी में घुस कर घर की तलाशी
लेने लगे| इतनी पुलिस देकर हम लोग सहम गए थे| हिम्मत करके मेरे अब्बू पूछे कि हम
लोगो से कौन सा जुर्म हो गया है कि आप इतनी रात को मेरे घर आये है? इतने में एक
पुलिसकर्मी बोला कि तुम्हारे बेटे को आन्दोलन करने का बहुत शौक चढा है| अब हम लोग
उसको दिखाएँगे कि आन्दोलन कैसा होता है| यही कहते हुए पुलिसकर्मी मेरे भाई अब्दुल
गफ्फार के कमरे में घुस गए|
कमरे में मेरे भाई (अब्दुल गफ्फार) और
भाभी (रेशमा बानो) के साथ सो रहे थे| पुलिस वाले बोले कि कम्बल हटाओ हम मुहँ
देखेंगे| जब भाई ने कम्बल हटाया तो पुलिस वाले उनको जबरजस्ती खीचते हुए बाहर ले
गये| उस भाई घबराकर पूछा साहब मेरा क्या कसूर है? पुलिस वाले बोले चलो चौराहे पर
बताते है कि तुम्हारा कसूर क्या है| बोले चौराहे चलो तुम्हे बताते है| इतना कहते
हुए भाई को पुलिस ले गयी| हम सभी लोग बाहर बैठकर उनके आने का इंतज़ार करने लगे| मन
में कई तरह का ख्याल आ रहा था| काफ़ी देर बाद भाई घर वापस आये घर पहुँचते हुए सभी
लोगो पूछ रहे थे कि किस आन्दोलन की पुलिस वाले बात कर रहे थे? तुम इतना परेशान
क्यों दिख रहे हो? सब खैरियत तो है| मेरे भाई सिर्फ इतना कहकर कमरे में चले गए कि
परेशान होने की जरूरत नही है सब ठीक हो जायेगा| उनके पीछे – पीछे हम लोग भी घर में
चले गए|
अगले दिन 22 दिसम्बर. 2019 की सुबह मै
अपने भाई (अब्दुल गफ्फार) के ससुर हाजी हारून साहब पर था| हाज़ी साहब के घर दिलशाद
खान सिपाही आये| उस वक़्त हाज़ी साहब घर पर ही थे उन्होंने दिलशाद सिपाही को बैठकर
नाश्ता – पानी मंगवाया| नाश्ता करने के बाद हाज़ी साहब मुझको बुलाकर बोले कि तुम
दिलशाद सिपाही के साथ चले जाओ| दिलशाद सिपाही मुझसे कह रहे थे कि तुमको कोई मारेगा
नहीं हम लोग है न तुम्हारे साथ|
सिपाही के साथ जाने की बात सुनकर मुझे
अन्दर से बहुत डर लग रहा था और रात में पुलिस द्वारा बदसलूकी का मंजर मेरे आँखों
के सामने चलने लगा| मुझे हाज़ी साहब और दिलशाद सिपाही के बात पर रत्ती भर भी यकीन
नहीं हुआ है| लेकिन उस वक़्त मेरे पास सिपाही के साथ जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं
दिख रहा था| मन में उधेड़ बुन करते हुए हम भेलूपुर थाना पहुँच गए| थेन में शांत
होकर मै एक तरफ़ खड़ा हो गया| दिलशाद खान सिपाही ने थाने में मौजूद सिपाही से बोला
कि इसको मारना नही अजय प्रताप दरोगा भेजे है| लेकिन किसी ने दिलशाद खान सिपाही के
बातो का कोई महत्व नही दिया| जब दिलशाद खान सिपाही सबको समझा कर चले गये|
मेडिकल कराने में भ्रस्टाचार एवं भेदभाव:
मुझे मारने के बाद बगल के सरकारी हास्पिटल
में मेरा मेडिकल कराया गया| दरोगा साहब, डाक्टर से बोले की मेडिकल में बना दो की
उपद्रवियों को भगदड़ में भागने में हल्की फ़ुल्की चोट आयी| जबकि पुलिस द्वारा पिटाई से जो चोट लगी थे उसको हल्की
फ़ुल्की चोट में बदलकर दिखाया गया| जब मेडिकल बन गया तो 5 बजे के लगभग चालान करके जेल
भेज दिया गया|
वाराणसी के जिला जेल में यातना और भ्रस्टाचार:
जेल जाते वक़्त मै पुलिस की पिटाई से लगी
चोट को भूल गया| सिर्फ यही सोचकर लगातार मेरे आंख से आँसू लगातार बह रहा था कि
थाने में इतनी मार पड़ी पता नहीं जेल के अन्दर क्या होगा| पता नहीं हाज़ी साहब में
मेरे साथ कौन सी दुश्मनी निकाली है| हम सब लोग तो उनकी बहुत इज्ज़त करते है|
जेल के अंदर जाने के बाद मुझे अजीब सी
उलझन होने लगी| बस एक टक जिधर देखता उधर ही देखता रहता| एक –एक दिन पहाड़ की तरह
लगने लगा| हमेशा सोचता रहता कि कब मै अपने घर जाऊंगा| दिन काटना मुश्किल हो रहा
था| 24 दिन बाद जेल से 14 जनवरी, 2020 को जमानत हुयी थी लेकिन रिहाई 15 जनवरी,
2020 को हुयी|
जेल में घर से कोई मिलने जाता था तो पुलिस
वाले पैसा मांगते बोलते कि तुम्हारे घर से मिलने आये है| जो पैसा मिला है उसमे से
आधा हमको दो| मै मार के डर से पैसा दे देता था| जब मै कहता की साहब इतना ही पैसा
है तो मेरे ऊपर यकीन न करके मेरी तलाशी ली जाती थी|
मेरे परिवार के लोग 1 हजार रुपया जेल में दिये थे
की जेल में मुझे काम न करना पड़े| इसलिए मुझसे जेल में काम नही कराया जाता था| बैरक
में सोने का मन नही करता था| एक बैरक में 150 लोग होते थे| इसलिए ज्यादा दिक्कत
होता था, किसी को सोने के लिए जगह भी नही मिलता था| लोग बैठकर रात गुजारते थे और झपकी
ले लेकर गिरते रहते थे| मै भी बैठकर रात गुजरता|
जेल में मुझे घर के लोगो की बहुत याद आती
थे| घर वालो से पता चला कि भतीजी घर में पुलिस की गाली गलौज से सदमे में आ गयी थी|
मै जेल के अंदर ही सोचता रहता पता नहीं वह सही हुई होगी की नहीं|
घर आने पर पता चला कि 21 दिसंबर, 2020 की
रात में पुलिस ने मेरे भाई अब्दुल सत्तर को पुलिस ने चौराहे पर ले जाकर आधार कार्ड
पर नाम चेक करने के बाद जूता और डंडे से पिटाई किये थे|
मेरे भाई अब्दुल सत्तर ने कहा कि साहब मै कि मै अपने
ससुर हारून हाजी का अनु हास्पिटल में लीवर का आपरेशन करा रहा था| तो कैसे मै
आन्दोलन में हिंसा ले सकता हूँ| हम लोगो को नहीं पता कि किस
चीज का और कहाँ आन्दोलन हो रहा था| उन्होंने अपने जेब में
अस्पताल की मौजूद पर्ची को दिखाया| लेकिन पुलिस वाले उनकी
कोई बात सुनने को तैयार नहीं थे| उनको लगातार मारे जा रहे थे|
मेरा भाई लगातार हाँथ जोड़कर विनती कर रहा था की साहब मै नही था|
उसी दौरान अजय दरोगा प्रताप यादव आ गये| दरोगा
साहब बोले कि इसको छोड़ दो, हमको पता है कि इसके ससुर का
आपरेशन हुआ था|
भाई को छोड़ते हुए पुलिस ने कहा कि अपने छोटे भाई
अब्दुल गफ्फार उर्फ़ नसुरुद्दीन को बजरडीहा चौकी पर हाजिर कर देना| मेरा नाम
सूनते ही मेरा भाई सहम गया कि पुलिस अभी मेरे साथ इतनी बदसलूकी किया है न जाने
मेरे भाई के साथ क्या – क्या करेंगे| मेरे
भाई सिर्फ सिर हिलकर वापस चले आये|
मै चाहता हूँ की
जिस तरह बिना कसूर के मुझे व मेरे भाई को फसाया गया है अब आगे से मेरे घर के किसी
भी सदस्य को न फसाया जाये| इसलिए की मेरे माता –पिता वृद्ध अवस्था में है| उनके
अंदर अब ये सब देख पाने की क्षमता नही है| आपको अपनी घटना बताकर बहुत हल्कापन
महसूस कर रहा हूँ| किसी ने मेरी बातो को इनता ध्यान से आज तक नही सुना| जिसने सुना
भी तो उसने आरोपी के नजर से देखा|
आज ऑफिस में Testimonial Therapy के अन्तर्गत सम्मान समारोह में मेरे भी आँखों में आंसू आ गए. पुलिस वही कर रही हैं, जो ब्रिटिश औपनिवेशिक हुकूमत में करती थी. पुलिस सुधार और फासीवाद का खात्मा बहुत जरुरी है.
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