महिलाओं के हक की लड़ी लड़ाई; बाल विवाह के खिलाफ उठाई आवाज, जानिए वाराणसी की श्रुति नागवंशी की कहानी
मशहूर गीतकार जावेद अख्तर ने वर्ष 2000 में जन मित्र पुरस्कार से किया सम्मानित.
14 बाल विवाह को रोका : श्रुति के मुताबिक, वाराणसी में जन्मी ज्योति कुमारी का जीवन शुरू से ही संघर्षों से घिरा रहा. आर्थिक तंगी, सामाजिक उपेक्षा उनके लिए बड़ा चैलेंज था, लेकिन यह कठिन परिस्थितियां उनके सपनों को तोड़ नहीं सकीं. छह साल की उम्र में जब ज्योति ने एक शिक्षा केंद्र में पढ़ाई शुरू की. उनका दावा है कि ज्योति ने अब तक लगभग 14 बाल विवाह को रोका है. ऐसे में ज्योति को वह अवसर मिला, जो शायद उन्होंने कभी सपनों में भी नहीं सोचा था. उन्हें नॉर्वे में फेलोशिप मिली. वह दक्षिण युवा विनिमय कार्यक्रम का हिस्सा बनीं. इस कार्यक्रम में उन्होंने नेपाल और नॉर्वे दोनों देशों में अनुभव पाया. वहां जाकर उन्होंने जाना कि शिक्षा और स्वास्थ्य केवल व्यक्तिगत विकास नहीं, बल्कि पूरे समुदाय के उत्थान का आधार हैं.
खेती कर चला रहीं घर का खर्च : वाराणसी की मंटा देवी पति की मृत्यु के बाद आर्थिक तंगी से जूझ रही थीं. कोविड की दूसरी लहर ने उन्हें और खराब स्थिति में ला दिया. श्रुति और एक संस्था ने जब उनकी मदद की, तो उनके जीवन में बड़ा बदलाव आया. उन्होंने अपने आंगन को झाड़ियों से साफ किया और सब्ज़ियां बोईं. कुम्हड़ी, नेनुआ और करेला की खेती शुरू की. अब वह अपने घर का खर्च भी चलाती हैं. बकरी पालन से उन्हें अतिरिक्त सहारा मिला.
श्रुति को मिले कई प्रतिष्ठित सम्मान : यह दो महिलाएं सिर्फ एक उदाहरण हैं. मानवाधिकार और महिलाओं के साथ बच्चों की लड़ाई लड़ रहीं श्रुति ने मानवाधिकार कार्यकर्ता के तौर पर अपनी एक अलग पहचान बनाई है. सबसे बड़ी बात यह है कि श्रुति ने रेक्स कर्मवीर चक्र (सिल्वर) सम्मान के साथ ही देश के कई प्रतिष्ठित सम्मान भी पाए हैं. उनकी सेवा के लिए देश की 100 महिलाओं में उन्हें शामिल करते हुए सम्मानित भी किया जा चुका है.
'कमजोर तबके की लड़ाई लड़ रहीं' : बनारस की रहने वाली श्रुति नागवंशी मानवाधिकार जन निगरानी समिति के माध्यम से दलितों, पिछड़ों, आदिवासी और समाज के कमजोर तबके की लड़ाई को आगे बढ़ा रही हैं. श्रुति का कहना है कि बनारस, आसपास के जनपदों, जिसमें झारखंड और छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्से भी शामिल हैं, इन क्षेत्रों के 200 से ज्यादा इलाकों में श्रुति का यह काम आगे बढ़ रहा है.
'समिति के जरिए बालश्रम की लड़ाई शुरू की' : श्रुति बताती हैं कि उन्होंने अपने पति के साथ 30 साल पहले इस काम को शुरू किया और जन मित्र न्यास और मानवाधिकार जन निगरानी समिति के जरिए बालश्रम की लड़ाई शुरू की. वह बताती हैं कि उन्होंने देखा कि उस वक्त उन महिलाओं के सामने अपने अधिकारों के लिए बड़ा संकट था, जो मलिन बस्तियों में रहती थीं.
'महिलाओं के हितों की लड़ाई लड़ने को ठानी' : वह बताती हैं कि इन्हीं बातों को देखकर मेरा मन बहुत विचलित हुआ और मैंने यह ठान लिया कि मुझे अब इन महिलाओं के हितों की लड़ाई को लड़ना है. और सरकारी योजनाओं से वंचित महिलाओं को ग्रामीण परिदृश्य में जाकर सम्मान और अधिकार दिलाना है, जो इससे पीछे रह जा रही हैं. बस इसी उम्मीद के साथ मैंने इस लड़ाई को शुरू किया.
'परेशानियों के बाद भी नहीं हारी हिम्मत' : श्रुति बताती हैं कि मुझे भी समय-समय पर परेशान किया गया. कभी मुझ पर मुकदमे हुए तो कभी प्रताड़ित किया गया. महिलाओं के विरोध में खड़े होने वालों ने मेरा विरोध शुरू कर दिया. मुझे पुलिसिया कार्रवाई और बार-बार घर पर पुलिस के आने और परेशान करने जैसी दिक्कतें भी हुईं, लेकिन मैंने हिम्मत नहीं हारी.
परिवार ने दिया पूरा साथ' : श्रुति बताती हैं कि मेरा परिवार कभी भी मेरे विरोध में नहीं था. वह बताती हैं कि पढ़ाई पूरी की थी कि तभी शादी हो गई, लेकिन मेरे ससुर और मेरे पति ने मेरा पूरा साथ दिया. शादी के बाद मेरा ग्रेजुएशन हुआ और ग्रेजुएशन होने के साथ ही मैंने इस लड़ाई को और मजबूती के साथ आगे बढ़ाया. आगे पढ़ने की इच्छा थी, लेकिन जिम्मेदारियां आईं
बड़ा अभियान चला रही हैं श्रुति : वह बताती हैं कि ग्रेजुएशन करके मैंने अपने काम को आगे चलते रहने की ठान ली थी. मनरेगा के तहत ग्रामीण मजदूरों पर हो रहे अत्याचार और सोशल ऑडिट के दौरान मिलने वाली गड़बड़ियों पर जब मैंने आवाज उठाई तो मुझ पर हमला हुआ. इसके बाद भी मैंने रास्ता नहीं बदला. अपने संगठन के माध्यम से वह बनारस सहित आसपास के जनपदों में बड़ा अभियान चला रही हैं.
'100 गरीब परिवारों को दिलाया लाभ' : वह बताती हैं कि इस कवायद में दो स्कूल, पांच कम्युनिटी भवन बनवाकर सरकार को समर्पित कर चुकी हैं. उनकी यह लड़ाई दलित और पिछड़ों के लिए ज्यादा है. स्वीडन की संस्था के माध्यम से 100 गरीब परिवार की लड़कियों को छात्रवृत्ति देने से लेकर अन्य कई तरह के लाभ भी श्रुति इन महिलाओं और परिवारों को दिला चुकी हैं.
महिलाओं को सरकारी योजनाओं की दी जानकारी : श्रुति का मानना है कि इस वक्त मेरे साथ बनारस, जौनपुर और सोनभद्र की लगभग तीन हजार ऐसी महिलाएं जुड़ी हैं जो कल तक अपने घरों में रहती थीं, उन्हें अधिकारों के बारे में पता ही नहीं होता था. उनके बीच जाकर उन्हें स्वास्थ्य, शिक्षा, सरकारी योजनाओं के बारे में बताकर उन्हें न सिर्फ इसका लाभ दिलवाया, बल्कि वृद्धा पेंशन, विधवा पेंशन से लेकर अन्य कई तरह के लाभ भी इन महिलाओं को दिलवाए जा रहे हैं.
किचन गार्डन की शुरुआत की : वह बताती हैं कि महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए किचन गार्डन की शुरुआत की. 1999 में उन्होंने सामाजिक स्तर पर कार्य करने के लिए अपनी समिति की शुरुआत अपने पति के साथ की थी. उनको एनजीओ श्रेणी में 2024 में ग्रेट कंपनी इंटरनेशनल अवार्ड से भी सम्मानित किया गया. वह बताती हैं कि बाल विवाह पर भी नकेल कसने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी.
650 से अधिक बाल विवाह को रुकवाया : वह बताती हैं कि अनहोनी और शिक्षा के डर से कम उम्र में ही लड़कियों की शादी करवा दी जाती थीं. इसकी शिकायतें जिला बाल संरक्षण इकाई, बाल कल्याण समिति, चाइल्ड लाइन या संबंधित थाने तक पहुंच ही नहीं पाती हैं. श्रुति का कहना है कि महिला व बाल संरक्षण पर काम करते हुए अब तक 650 से अधिक बाल विवाह को रुकवा चुकी हैं और यह प्रयास अनवरत जारी है जो जारी रहेगा.
श्रुति पीपुल्स विजिलेंस कमेटी और हुमन राइट्स के संस्थापक सदस्य भी हैं. सावित्रीबाई फुले महिला पंचायत जो महिलाओं के दिशा में एक सबसे महत्वपूर्ण प्रयास है. उसकी शुरुआत 2006 में ही श्रुति ने की थी. वह बताती हैं कि इस महिला पंचायत को शुरू करने का मकसद ही महिलाओं को सशक्त बनाना था, क्योंकि यह देखा गया कि दलित बस्तियों में महिलाओं पर होने वाले अत्याचार या किसी भी तरह की गलत चीज खाने तक नहीं पहुंचती थी.
महिला पंचायत की शुरुआत : वह बताती हैं कि 100 से ज्यादा ग्रामीण इलाकों में पहुंचकर महिलाओं के लिए सावित्रीबाई फुले महिला पंचायत की शुरुआत की. महिलाओं को मंच दिया. वहां पर महिलाएं अपनी बातों की चर्चा करती थीं. संगठन बनाकर थाने पहुंचती थीं. स्वास्थ्य संबंधी लाभ लेने के लिए सरकारी अस्पतालों में जाती थीं. महिलाओं को संगठित करने के उद्देश्य से इस पंचायत की शुरुआत की गई, ताकि महिलाओं को उनके अधिकार न मिलने पर महिला आवाज उठाएं और अपनी लड़ाई खुद लड़ें.
'चार ब्लॉकों के 50 गांव को चुना' : वह बताती हैं कि 2017 में जन मित्र न्यास की टीम के साथ चाइल्ड राइट्स एंड यू के सहयोग से बच्चों के स्वास्थ्य के मुद्दे पर काम करने के लिए वाराणसी जिले के चार ब्लॉकों के 50 गांव को चुना. उसका असर यह हुआ कि कुपोषित बच्चों की मृत्यु दर में कमी आई. श्रुति को 2019 में रेस्ट कर्मवीर चक्र रजत मिला, उनके काम को फिल्म अभिनेता आमिर खान ने भी स्वीकार किया और अपने टीवी शो सत्यमेव जयते में आमंत्रित किया.
जन मित्र पुरस्कार से सम्मानित : वह बताती हैं कि मशहूर गीतकार जावेद अख्तर ने उन्हें वर्ष 2000 में जन मित्र पुरस्कार से सम्मानित किया. 2016 में केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय और फेसबुक की तरफ से न्याय तक पहुंच महिलाओं की सुरक्षा और उनके अधिकार की श्रेणी में 100 महिला अचीवर्स अवार्ड पाईं. दलित महिलाओं के अधिकार पर उनके काम के लिए उन्हें बिहार के भागलपुर स्थित गैर सरकारी संगठन अंग मदद फाउंडेशन ने उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया.
सार्वजनिक शांति पुरस्कार मिला : उत्तर प्रदेश में दलित अधिकारों के लिए लड़ रही श्रुति नागवंशी और उनके पति लेनिन को यूनाइटेड किंगडम की एक मीडिया ने स्वतंत्रता समानता बंधुत्व और अन्य भारतीय संवैधानिक मूल्यों के दृष्टिकोण से भारत के नायक के रूप में उल्लेखित किया है. श्रुति को बाल अधिकारों के लिए 2020-21 का सार्वजनिक शांति पुरस्कार भी मिला है.
यह पुरस्कार मिले : भारत की शीर्ष 100 महिला उपलब्धि पुरस्कार (महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (एमडब्ल्यूसीडी) 2016)
रेक्स कर्मवीर चक्र (2019)
सावित्री बाई फुले राष्ट्रीय पुरस्कार (2022)
कर्मवीर स्वर्ण चक्र (2024)
सार्वजनिक शांति पुरस्कार, कनाडा (2020-21)
मानव गरिमा में उत्कृष्टता के लिए बिजनेस टाइटन्स पुरस्कार (2025)





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