Friday, February 10, 2012

मतदाताओं से अपील जनप्रतिनिधियों से करें सवाल



मतदाताओं से अपील जनप्रतिनिधियों से करें सवाल
मतदाता जागरूकता अभियान के तहत
                सच्चर कमेटी में बयां की गयी मुसलमानों की जमीनी हकीकत को देखना है तो बनारस के सुविधा सम्पन्न रिहायशी इलाके के  बीच बचे बजरडीहा जाना चाहिये। बजरडीहा जाने पर साफ पता चलता है कि मुसलमानों की स्थिति अनुसूचित जाति से भी बदत्तर है।
                इस क्षेत्र की अस्सी प्रतिशत आबादी मुस्लिम है और विश्व प्रसिद्ध साड़ी बिनकारी उससे जुड़े विभिन्न कामों-रंगाई, डिजाइन बनाना, पत्ता काटना, तानी तानने आदि से अपनी रोजी रोटी कमा रहे है। इस क्षेत्र की सवा लाख की आबादी में सत्ताईस हजार वोटर है। क्षेत्र की हालात देखकर मालूम होता है कि किसी राजनीतिक पार्टी के लिये ये वोटर कोई महत्व नहीं रखते। वर्षो से इस इलाके की सूरत में कोई बदलाव नहीं आया है। जीवन की बुनियादी सुविधाओं की पहुच से दूर यहां के वाशिंदे दोयम दर्जे का जीवन जीने को मजबूत है।
                पिछले साल बारिश के महिने में हुए जल जमाव से अब भी पूरी तरह पानी निकासी नहीं करायी जा सकी। कुछ एक क्षेत्रों में प्रशासन ने पानी निकासी का काम कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्ति पा लिया। जो परिवार थोड़ा बहुत पैसा खर्च कर सकते है, उन्होंने खुद से किराया देकर अपने घर के आस-पास से पानी निकलवाया जो पैसा खर्च करने की स्थिति में नहीं थे। उनके घरों के सामने या आस-पास आज भी किचड़ युक्त पानी बुरी तरह से बजबजा रहा है। बदहाल शिवर व्यवस्था पर कई बार क्षेत्रीय नागरिकों व अखबारों ने ध्यान दिलाने की कोशिश की, लेकिन गलियों में मल और शिवर का पानी अब भी उफनाता देखा जा सकता है। क्षेत्र की गन्दगी का आलम देखकर प्रोफेसर रामाज्ञा सिंह की अगुवायी में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्रों ने खुद अपने हाथों से गलियों में झाड़ू लगाकर प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को उनकी जिम्मेदारी का एहसास कराया। जिसके बाद कुछ समय के लिए नगर निगम नीद से जागा। लेकिन थोड़े समय बाद स्थितियां फिर जस की तस हो गयी।
                हवा के बाद और भोजन से भी पहले जिन्दगी के लिये जरूरी पानी भी इस इलाके के लोगों को खरीदकर अपने रोज मर्रा की जिंदगी में उपयोग करना बड़ी मजबूरी है। यहा एक ही सरकारी स्वास्थ्य केन्द्र है। लेकिन वह भी डाक्टरों की मनमर्जी का मोहताज है। यह स्वास्थ्य केन्द्र कब खुलता है, कोई नही जानता है। इतनी बड़ी आबादी में एक ही प्राथमिक विद्यालय है। बच्चों की सेहत व पोषण के लिए आंगनबाडि़यां केवल कागजों में ही चलती है। इन केन्द्रों और उनसे मिलने वाली सुविधाओं के बारे में किसी को कोई जानकारी नही है। ऐसे में हम क्या उम्मीद करे कि ये सेवाएं औरतों और बच्चों को मिलती भी होगी। जहाँ बिनकारी उद्योग खुद अपनी खोती पहचान को बचाने के लिए जद्दोजहद में लगा है। ऐसे में महिलाओं व बच्चों के स्वास्थ्य और बच्चों की शिक्षा की क्या हालत होगी।
                2010 में होली के दिन पुलिस की गोली से घायल पीडि़त और मारे गए पीडि़त-परिवार आज तक न्याय की आस लगाए है। क्या जन प्रतिनिधि इस इलाके की बदहाली से अंजान है ? फिर क्यों सूरते-हाल में बदलाव नहीं है ? क्यों हर मुसलिम बाहुल्य मोहल्ला अपनी बेचारगी को रोता नजर आता है?
                आइए, इस चुनाव में जनप्रतिनिधियों से सवाल करें कि, कब तक शहर को दुनिया में पहचान देने वाले बुनकर इलाके (मुस्लिम बाहुल्य मुहल्ले) बदहाल और वहाँ के वाशिंदे बेबस और मजबूर रहेगें।


श्रुति नागवंशी
मानवाधिकार जननिगरानी समिति
सा0 4/2, दौलतपुर, वाराणसी।
मो0 नं0 : 09935599330




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