मनु
मैं नहीं चिढ़ता तुमसे
मैं जानता हूँ तुम्हारे जन्म की कहानी
तुम्हारी माता पर रीझे थे
... खुद उनके ही पिता
ब्रह्मा-शतरूपा का संयोग
संयोग नहीं था
पर तब कहाँ थी विवाह की कोई रीति
मैथुन निषेध का सिद्धांत तो
थी बाद की कोई घटना
जिसे हवा दिया
खुद तुमने भी
मनु,
स्त्री स्वतंत्र क्योंकर हो
जब नहीं था संस्कारों का बंधन
और दिखना था हमें पशुओं से अलग
तब ही तो कहा था तुमने
कुमारियों की रक्षा करे पिता
यौवना का पति
और वृद्धा का पुत्र
जब वस्तु नहीं कुछ ख़ास थी स्त्री
तब ही तो की तुमने
उसके स्वतंत्र न होने की घोषणा
और फिर अपने ही घर में
स्वतंत्र रहने लगी स्त्री
मनु,
क्यों मैं चिढूं तुमसे
जबकि करते हो तुम
खरीदी और हथियाई गई कन्या से
विवाह की निन्दा
हुंकारते हुए ..
मनु,
कहो याज्ञवल्क्य से कि माफ़ी मांगे
विवाद में हारने पर
गार्गी का सर फोड़ने की दी गयी धमकी उसकी
अस्वीकार है मुझे ...
( आलोक जी )
Tuesday, February 07, 2012
Poem
Labels:
PVCHR post in Hindi
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
https://www.scribd.com/document/733437019/PVCHR-works-in-IRCT-annual-report PVCHR works in IRCT annual report by pvchr.india9214 on S...
-
In the annals of cultural confluence and societal upliftment, the third convention of the Sahastrabuddhe (Chitpawan Brahmin) Kool Sammelan, ...
-
In a small courtroom in Varanasi, the heavy air was filled with anticipation. Paru Sonar, a name once synonymous with despair, was now on ...
No comments:
Post a Comment