कानून का राज और मानवाधिकारों के लिए ‘‘सत्याग्रह‘‘ में शामिल हों।
18 सितम्बर, 2013 बुधवार प्रातः 10 बज
विधानसभा भवन, लखनऊ चलो।
विधानसभा भवन, लखनऊ चलो।
आज गाँधी जी व बाबा साहब डा0 अम्बेडकर जी हमारे बीच नहीं है लेकिन उनका दिया हुआ क्रमशः सत्याग्रह मंत्र व सामाजिक न्याय आज भी कमजोर व बेबस लोगो की ताकत है। स्वतंत्र भारत में भी अपनी मांगो को पूरा करने के लिए जनता सत्याग्रह करती चली आ रही है। भारत के इतिहास में गाँधी जी व बाबा साहब अम्बेडकर जी ही एकमात्र ऐसे नेता रहे, जो देश के अंतिम आदमी तक पहुँचे। आज हिन्दुओ के नेता अलग है मुस्लिमो के नेता अलग है, अगडी जाति के नेता अलग है तो पिछड़ी जाती के नेता अलग है। अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के नेता अलग है। लेकिन गाँधी जी व बाबा साहब अम्बेडकर हिन्दू, मुस्लिम, अगडी, पिछड़ी, अनुसूचित जाति, वंचित, महिलाओं सभी के नेता रहे है। उन्ही के बताये रास्ते पर मानवाधिकार जननिगरानी समिति ने चलते हुए आज सभी वंचितों, महिलाओं,ऊची जातियों में पैदा हुए प्रगतिशील लोगो की एकता को मजबूत करने के लिए “नव दलित आन्दोलन” के माध्यम से कानून का राज स्थापित करने के लिए ‘‘सत्याग्रह’’ चला रहा है।
हम लोगों का मानना है कि मानवाधिकार व कानून के राज को लागू करने की सबसे बड़ी एजेंसी पुलिस है। इसीलिए आई०पी०सी० की 330-331 के तहत पुलिस यातना/उत्पीडन का निषेध है। वही यदि पुलिस सी०आर०पी०सी० की धारा161 के तहत अपराध स्वीकृत कराती है, तो साक्ष्य अधिनियम की धारा 26 के तहत न्यायालय में साक्ष्य नहीं है, यदि वह मजिस्ट्रेट के सामने नहीं दिए गए है। फिर सवाल उठता है कि पुलिस उत्पीडन/यातना का सहारा क्यों लेती है ?
यदि भारत में पुलिस उत्पीडन के इतिहास को देखे तो 1857 के विद्रोह को दमनकारी तरीके से कुचलने व रोकने के लिए 1861 में पुलिस मैनुअल एक्ट बनाया गया और अंग्रेजी थानों का निर्माण किया गया। आज आजादी के इतने वर्षो के बाद भी भारतीय संविधान व भारतीय कानून में भी 1861 के पुलिस मैनुअल एक्ट में आज तक कोइ भी संसोधन नहीं किया गया, जिसका परिणाम यह है कि आज भी भारतीय पुलिस ब्रिटिश हुक्मरानों के पदचिन्हों पर चल रही है और शासन, ताकतवर लोगो, माफियाओ के इशारे पर किसी भी प्रकार के लोकतांत्रिक आवाज को कुचल दिया जाता है।
इसका ज्वलंत उदाहरण वाराणसी के मानवाधिकार कार्यकर्ता डा0 लेनिन रघुवंशी और श्रुति नागवंशी (http://shrutinagvanshi.com/)के ऊपर 19 जून, 2013 को पुलिस द्वारा लगाये गए फर्जी केस मुकदमा अपराध संख्या 199/13 का है। एक घरेलु महिला हिंसा के केस में पीडिता के मदद करने के परिणामस्वरूप पीडिता के माफिया व दबंग पति और पुलिस की मिली भगत से मुख्य चिकित्साधिकारी को प्रेषित पत्र को संज्ञान में लेकर पुलिस ने इन दोनों मानवधिकार कार्यकर्ताओं पर घरेलू उत्पीडन का केस दर्ज कर दिया जो कि बहुत हास्यास्पद है, क्योकि पीडिता से कोई भी रिश्ते का सम्बन्ध इन दोनों का नहीं है। इसके अलावा यह माननीय हाई कोर्ट इलाहाबाद के उस आदेश का उल्लघन भी है जिसमे माननीय हाई कोर्ट ने पेटीशन संख्या 8753/2013 में पीडिता के पक्ष दिनाक 18 मार्च, 2013 को फैसला दिया था।
इसके अलावा जब 25 अप्रैल, 2013 को डा0 लेनिन(https://en.wikipedia.org/wiki/Lenin_Raghuvanshi) के घर पर उनके ऊपर गोली चलाकर जानलेवा हमला किया गया तब भी पुलिस ने उदासीनता दिखाते हुए पहले तो FIR दर्ज नहीं किया। उच्च अधिकारियो के दबाव के बाद थ्प्त् मुकदमा संख्या 359/13 दर्ज हुई लेकिन 90 दिन बीत जाने के बाद भी पुलिस द्वारा न तो कोइ जांच की गयी और न ही चार्जशीट दाखिल की गयी। इस सिलसिले में 18 जून, 2013 में पत्र लिखकर तथ्य दिया कि सुनील गुप्ता ने अपना सम्बन्ध माफियाओं से बताया है। जिसके टेप की सी0डी0 पुलिस अधिकारियों को दी गयी है। पुलिस अधिकारियों को यह सी0डी0 में कुछ सुनायी नही देता है। अपनी जाँच रपट में वे सी0डी0 का जिक्र करना भूल जाते है। किन्तु you tube पर सुनिल गुप्ता की आवाज सभी का सुनायी देती है और लोग इससे चिन्तित है। विदित है कि भारत सरकार का गृह मंत्रालय भी इस मामले को लेकर संजीदा हैं।
इसी प्रकार मई, 2013 में उसी पीडिता के दबंग व माफिया पति द्वारा श्रुति नागवंशी के सोसल साईट फेसबुक से फोटो चुराकर अपने फेसबुक पर लगाकर अश्लील टिप्पणी की गयी जिसके खिलाफ भी थाने में आईटी एक्ट के तहत मुकदमा संख्या 418/13 पंजीकृत किया गया जिसमे भी पुलिस द्वारा आज तक न तो की कार्यवाही की गयी और न ही चार्जशीट ही लगाया गया। 26 जून, 2013 को माननीय मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव नं समिति के 8 सदस्य वाले प्रतिनिधि मण्डल से अपने आवास पर मुलाकात की, मुलाकात में पुलिस महानिदेशक उपस्थित थे। वहाँ डा लेनिन व श्रुति नागवंशी पर फर्जी मुकदमें के साथ अनेक केस दिये गये। सभी मामलों पर कार्यवाही हुयी किन्तु उपरोक्त मामले को वाराणसी पुलिस ने दबा लिया। क्यो ? यही है सत्याग्रह की शुरूआत
यही दमनात्मक कार्यवाही आज पुरे देश में मानवाधिकार कार्यकर्ताओ के साथ किया जा रहा है। जो भी मानवाधिकार कार्यकर्ता चुप्पी की संस्कृति को तोड़कर लोकतंत्र व कानून के राज को लागू करने के लिए काम कर रहा है उसे स्थानीय स्तर से लेकर केंद्र स्तर तक सामंतवादी विचारधारा की ताकते उन्हें रोकने के लिए पुलिस की मदद से उनके अस्तित्व को मिटाने की कोशिश कर रही है। जिसमे इरोम शर्मिला, विनायक सेन, शैला मशूद, संजय सिंह, परवेज आलम जैसे कितने मानवाधिकार कार्यकर्ता या तो मार दिए गए है या उनके ऊपर फर्जी मुकद्दमा लगाकर उन्हें झूठे केस में फसाया गया है।
पुलिस की इसी दमनात्मक कार्यवाही को रोकने के लिए और कानून का राज स्थापित करने के लिए मानवधिकार जननिगरानी समिति ने आजादी के दिन 15 अगस्त, 2013 को शाम 06ः00 बजे से शुरू ‘‘सत्याग्रह’’ को पूरे प्रदेश में अनवरत जारी रखते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री महोदय व पुलिस महानिदेशक महोदय को इन सभी मांगो के समर्थन में आमजनों के हस्ताक्षरयुक्त 15 फीट के फ्लैक्स को भेजा गया है।
इस सत्याग्रह में लोगो द्वारा उपरोक्त मांगो के लिए उत्तर प्रदेश के वाराणसी, मिर्जापुर, सोनभद्र, जौनपुर,अम्बेडकरनगर, अलीगढ़, मुरादाबाद, मेरठ, आदि कई जिलो में लोग अनवरत यह सत्याग्रह जारी रखे हुए है और अपने समर्थन के लिए हस्ताक्षरयुक्त मांग पत्र मुख्यमंत्री महोदय को भेज रहे है।
संविधान के अनुच्छेद 21 गरिमापूर्ण सम्मान के साथ जीवन जीने का अधिकार देता है। आइए हम सब मिलकर कानून का राज व मानवाधिकार को लागू करने के लिए एक ऐसे समाज की स्थापना करे जहाँ कानून का राज लागू करने की प्रतिबद्धता हो।
इसी कड़ी में 18 सितम्बर, 2013 को विधान सभा भवन के सामने मुख्यमंत्री महोदय से मिलकर ज्ञापन देने के आप सभी से अपील है कि भारी संख्या में आप सुबह 10ः00 बजे विधान सभा भवन के सामने पहुंचे।
1. महिलाओं के खिलाफ अपराधों की जाँच में लीपा.पोती क्यों ?
2. हाईकोट के आदेश (पेटीशन संख्या 8753/2013) का वाराणसी पुलिस द्वारा अवमानना क्यों ?
3. माननीय मुख्यमंत्री के आदेश के बाद भी कार्यवाही क्यों नहीं ?
4. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर फर्जी मुकदमें क्यों ?
5. यातना पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCAT) का अनुमोदन किया जाए।
6. यातना और संगठित हिंसा के शिकार पीडि़तों की पुनर्वासन नीति बनायी जाए।
7. संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCAT) के मद्देनजर यातना पर घरेलू कानून अविलम्ब बनाया जाए।
8. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का ‘‘ह्यूमन राइट्स डिफेन्डर डेस्क‘‘ को मजबूत व प्रभावशाली बनाया जाए।
9. गाँव व कस्बों की जन मांगों को तुरन्त पूरा किया जाए।
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