बनारस के बुनकरों का मक्का कहा जाने वाला बजरडीहा अपने सबसे बुरे दौर से गुज़र रहा है. मोदी ने सांसद बनने से पहले जो लंबे-चौड़े वादे किए थे, उसमें बुनकरों का विकास बेहद अहम था. बजरडीहा के बुनकरों को उम्मीद थी कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने से कुछ बेसिक सुविधाएं तो उनकी झोली में आएंगी ही, और वो कम से कम एक सम्मानजनक ज़िन्दगी के हक़दार हो सकेंगे. मगर ये सारे ख्वाब अब मिट्टी में मिल चुके हैं. बची है तो सिर्फ बजरडीहा के गलियों में उड़ती धूल जो अपने नाकाम मुस्तकबिल की बानगी पेश कर रहे हैं.
बजरडीहा… बनारस के बुनकरों का एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें 24-25 मुहल्ले आते हैं. यहां की जो तस्वीर है वो हिलाकर रख देती है. ढाई लाख की आबादी वाला यह इलाका इस क़दर बदहाली झेल रहा है कि विकास का नाम सुनते ही लोग थिथक कर खड़े हो जाते हैं. यहां का आधारभूत ढांचा बुरी तरह से चरमरा चुका है. सड़क, सफाई, पानी व बिजली चारों ही मोर्चों पर यहां के लोग त्राहि-त्राहि कर रहे हैं.
55 वर्षीय नसीम अजमल खुद को ठगा हुआ महसूस करते हुए बताते हैं कि चुनाव में वोट लेने सारे नेता आए. सबने हम बुनकरों को अनगिनत सपना दिखाया. लेकिन आज भी हालात वहीं के वहीं हैं. कुछ भी बदलाव नहीं हुआ. हां! महंगाई ज़रूर बढ़ गई है. समझ नहीं आ रहा है कि हमारे घरों में खाना कैसे बने? हमारे बच्चे भूखमरी के शिकार हो रहे हैं.
वो बताते हैं कि यहां सीवर की समस्या सबसे बड़ी समस्या है. शुक्र है कि अभी बारिश नहीं हुई है… बरसात में तो यह इलाका नरक बन जाता है. हमारा घरों से निकलना मुश्किल हो जाता है. पीने के पानी की भी काफी किल्लत है. पानी का कनेक्शन हमें मिलता ही नहीं है. अभी पानी के लिए हम लोगों ने चंदा करके ट्यूबवेल लगवाया है.
23 वर्षीय शबताब शाहीन सवालिया नज़रों से बताती है कि इतनी बड़ी आबादी में सिर्फ एक स्कूल है, सिर्फ पांचवी तक. वो भी हमारे घर से लगभग 2 किलोमीटर दूर. और उर्दू की पढ़ाई भी वहां नहीं होती. अब आप ही बताइए कि हमारे इलाकों के बच्चों के शिक्षा का अधिकार कहां है?
26 वर्षीय इरम अशरफ का कहना है कि पानी के लिए यहां हाहाकर मचा रहता है. पिछले 4 दिनों में हमारे घर में पानी नहीं आया है. बिजली के बारे में पूछने पर इरम बताती है कि बिजली में पहले से सुधार ज़रूर हुआ है. पहले 8-10 घंटे बिजली रहती थी. अब 13-14 घंटे ज़रूर रहती है.
40 साल से बुनकरी का काम कर रहे हुसैन काफी मायूस होकर कहते हैं कि सारी चीज़ों का दाम बढ़ गया है, पर बुनकरों की आज भी एक दिन की कमाई 200 रूपये से उपर नहीं जाती. आगे वो यह भी बताते हैं कि आज के टाइम रिक्शा चलाने या इंटा जोड़ने वाला भी रोज़ के 500 रूपये कमा ले रहा है, लेकिन हमारी अधिक से अधिक 200 हो पाती है. हमारी 4 बेटियां हैं, शादी कैसे करूंगा यह सोचकर मैं पागल हो जाता हूं.
27 वर्षीय नईमुद्दीन रेशम की धुलाई करने में व्यस्त हैं. जैसे ही उनके पास पहुंचते हैं. काम करते-करते वो हमसे ही पूछता है –फिर इलेक्शन आ गया है क्या? आप मीडिया वालों को तो गरीबों की याद चुनाव के समय ही आती है.
उसकी बातों से मीडिया के प्रति उसका गुस्सा साफ झलकता है. वो बताता है कि आपसे बात करने का आखिर फायदा ही क्या है? सब तो बिके हुए हो. हम जो बोलेंगे वो तो आप दिखाओगे नहीं…. और फिर वो काम लग जाता है. इससे आगे हमसे कुछ भी बात करने से इंकार कर देता है.
मानवाधिकार जन निगरानी समिति से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता गज़ाला क़मर काफी दिनों से इस इलाके में काम कर रही हैं. उनके मुताबिक इस इलाके में एक भी बैंक नहीं है. इतने बड़े इलाके में सिर्फ एक छोटा सा स्वास्थ्य केन्द्र है, जो सिर्फ 3 घंटे के लिए खुलता है. उसमें भी सिर्फ एक ही डॉक्टर है. लोगों को ज़्यादातर प्राइवेट डॉक्टर्स के पास जाना पड़ता है. उसमें भी हैरानी की बात यह है कि यह प्राइवेट डॉक्टरों में भी सब झोला छाप डॉक्टर ही हैं.
वो आगे बताती हैं कि यहां के लोगों को नए बिजली कनेक्शन भी नहीं मिल पा रहा है. बिजली विभाग ने अभी कई घरों के बिजली का कनेक्शन काट दिये हैं. वजह पूछने पर वो बताती हैं कि क्योंकि उनका बिजली का बिल बकाया था. पर यह आरोप लगाती है कि बिजली विभाग वाले जान-बुझकर चार-पांच महीनों तक बिजली का बिल भेजते ही नहीं. जब ज्यादा बिल हो जाता है तो बीच में ही कोई अधिकारी बिल माफ कराने का लालच देकर कुछ पैसे लेकर चलते बनता है, लेकिन बाद में बिजली विभाग कनेक्शन काट देता है. तब यह गरीब बुनकर खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं.
गज़ाला के मुताबिक इतने बड़े क्षेत्र में सिर्फ 16 आंगनबाड़ी केन्द्र हैं. वहां भी सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं है. कई मुहल्लों के लोग सरकार के इन तमाम सुविधाओं से महरूम हैं. वो बताती हैं कि पिछले साल कुपोषण के कारण इस इलाके 8-10 बच्चों की मौत हुई थी. अब भी हालात ऐसे ही बन रहे हैं. गरीबी का आलम यह है कि एक बाप अपनी ही 10 साल की बेटी को बेच डालता है…. मानवाधिकार जन निगरानी समिति इस मामले की लड़ाई लड़ रही है. हमारे ही शिकायत पर राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने ज़िलाधिकारी को नोटिस जारी किया है.
बुनकरों का भरोसा जीतने के लिए मोदी और उनकी पार्टी के तमाम वायदे आज भी सूरज के उगने का इंतज़ार कर रहे हैं. आज बुनकरों का पुरा इलाका ही पिछड़ेपन और बदहाली के अंधेरों में डुबा हुआ है. तो क्या यह मान लिया जाए कि बुनकरों को लेकर किए गए मोदी के चुनावी वायदे महज़ एक चुनावी स्टंट भर थे कि रात गई और बात गई. बजरडीहा आज भी ज़िन्दा है, अपने साथ हुए धोखे की इसी कहानी के साथ, धोखा जो बार-बार होता है, धोखा जो हर बार होता है….
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