Wednesday, August 16, 2017

बडकागांव बर्बरता का एक और पड़ाव है


                               #बडकागांव #बर्बरता का एक और पड़ाव है

देश में कॉर्पोरेट द्वारा जबरन जमीनें हड़पने की कोशिशों में एक नया और बदनुमा अध्याय है खनिज संपदा से भरे झारखंड के हजारीबाग जिले का बडकागांव जहाँ एन टी पी सी संयंत्र के लिए ज़मीन अधिग्रहण और मुवावजे को लेकर हुए सत्याग्रह को ख़त्म करने के लिए ‘प्रायोजित’ गोलीकांड में चार लोग मारे गए और दर्जनों लोग घायल हुए . रघुबर दयाल की सरकार ने लोगों के ‘होश ठिकाने’ लगाने के लिए पुलिस को इतनी छूट दी कि पुलिसकर्मी घरों में घुसकर महिलाओं से बलात्कार करते रहे और विरोध करने पर उन्हें मारा-पीटा . बर्बरता की सभी सीमाओं को पार करने वाली इन घटनाओं के पीछे रघुबर दयाल सरकार द्वारा तमाम कायदे-कानूनों को ताक पर रख कर कॉरपोरेट्स को औने-पौने दाम पर ज़मीनें देने के विरोध में किसानों का खड़ा होना है . यह खड़ा होना बडकागांव के लोगों को कितना भारी पड़ा है वहां से लौटकर बता रहे हैं श्रुति नागवंशी , अनूप श्रीवास्तव और साथ में छाया कुमारी .

बडकागांव गोलीकांड उस समय यानी अक्तूबर 2016 में देश के उन सारे लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गया था जो जन-आंदोलनों और जनसंघर्षों से सरोकार रखते हैं लेकिन देश के शीर्ष पर हो रहे पाखंडों की पल-पल खबर रखने वाले मीडिया को इस घटना को दबाना था . हालाँकि यह कोई साधारण घटना नहीं थी लेकिन देश के कॉर्पोरेट लुटेरे और उनकी सुरक्षा में लगी सरकारें बिलकुल नहीं चाहतीं कि किसी को इस घटना का पता लगे लिहाज़ा वे लगातार ऐसी ख़बरें चलाते-दिखाते रहे जो लोगों को वास्तविकता से काट दें . जब हमारी टीम ने बडकागांव जाना तय किया तब तक शासन-प्रशासन द्वारा इस घटना पर पर्याप्त लीपापोती कर दी गई थी . हमारे पहुँचने तक गाँव पूरी तरह सियापे में डूबा हुआ था . बच्चे और महिलाओं में दहशत पैठी हुई थी . अनेक परिवारों की महिलाएं घर छोड़कर दूर-दराज अपनी रिश्तेदारियों में शरण लिए हुए थीं और घर के पुरुष शाम होते ही खेतों-जंगलों में जा छिपते हैं . पुलिस अगर गाँव में किसी को पा जाती है तो मार-मार कर उसका बुरा हाल कर देती .

बडकागांव की घटना से पहले भी झारखंड में ऐसी घटनाएँ हो चुकी हैं . हमेशा से यहाँ के खनिजों पर कॉरपोरेट्स और माफियाओं की आँखें गड़ी हुई थीं . जब यह राज्य अस्तित्व में आया तभी से यहाँ विकास के नाम पर अनेक परियोजनाओं की शुरुआत हुई और उनके लिए भूमि अधिग्रहण शुरू हुआ . चतरा जिले में बिजलीघर बनाने के लिए वहां एन टी पी सी की परियोजना शुरू की गई . इस परियोजना के लिए बड़े पैमाने पर कोयले की ज़रूरत होनेवाली थी इसलिए चतरा के अलावा कोडरमा और हजारीबाग जिलों की सत्तरह हज़ार एकड़ जमीन के अधिग्रहण के लिए सरकार ने मंजूरी दे दी . उसमें कोल ब्लाक के लिए जो ढाई हज़ार एकड़ ज़मीन ली जानी थी वह बहुफसली और अधिक उर्वर थी . किसानों ने जमीन देने का विरोध किया . किसानों का सवाल था की उनके पास जमीन के अलावा आजीविका का कोई साधन नहीं है तो ज़मीन न रहने पर वे क्या खायेंगे . मुवावजे की दरों से पुनर्वास का कोई समुचित बंदोबस्त नहीं होनेवाला था लिहाज़ा 2004 से उन्होंने ‘भूमि रक्षा समिति’ और ‘कर्णपुर बचाओ संघर्ष समिति’ बनाकर शांतिपूर्ण तरीके से आन्दोलन करना शुरू कर दिया . किसानों के सामने ज़मीन देने पर उचित मुवावजा , पुनर्वास और आजीविका का सवाल था लेकिन एन टी पी सी ने जबरन ज़मीन लेने की ठान ली . यह शुरुआत थी . इसके बाद से लगातार झारखंड में ज़मीन को लेकर घटनाएँ होती रहीं लेकिन इनको रोकने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया . इसके उलट वहां सौदेबाजों की एक पूरी जमात खड़ी होती गई जो पहले तो आन्दोलन में शरीक होते . किसान एकता जिंदाबाद के नारे लगाते और जब लगता कि अब अच्छी वसूली हो सकेगी तब वे कंपनी और मैनेजमेंट से जा मिलते . यह बार-बार होता रहा . आजसू , जेएमएम , कांग्रेस और बीजेपी किसी का भी दामन साफ नहीं है . इन्हीं सबका नतीजा था कि झारखंड के किसानों की मांगों को मानने की बजाय सरकारें उनका दमन करती रही हैं . सबसे ख़राब स्थिति तब होने लगी जब किसानों के हितों की एकता की जगह जातियों के आधार पर गोलबंदी होने लगी . इससे जिंदगी का सबसे महत्वपूर्ण सवाल पीछे छूटने लगा . हर जाति के नेता आते और अपने लोगों को सपने दिखाते . आन्दोलन बिखरने लगा और नेतागणों के मुंह कंपनी पैसों से भर देती . लेकिन एक समय ऐसा आया जब जनता ने इन रंगे सियारों की चालें समझ लीं . धीरे-धीरे एक स्वतःस्फूर्त आन्दोलन परवान चढ़ने लगा . इसको देखकर कंपनी और सरकार ने निश्चय किया कि पैसे से न टूटने वाले आन्दोलन को लाठी-गोली से तोड़ दिया जाय .

आन्दोलनकारी किसानों की एकता को तोड़ने के लिए पहली बार 24 जुलाई 2013 को केरेडारी ब्लाक के पगरा गाँव में पुलिस ने आन्दोलनकारियों पर गोली चलाई जिसमें एक व्यक्ति की मृत्यु हो गई और चार लोग गंभीर रूप से घायल हुए . दो साल बाद भी एक गोलीकांड में आधा दर्जन लोग घायल हुए . 17 मई 2016 को बडकागांव के चिरूडीह , सोनबरसा , सिंदुआरी , चुरचू और दांडीकलां आदि गाँवों में पुलिस ने घरों में घुसकर बच्चों और महिलाओं को बुरी तरह पीटा . बूढों और गर्भवती महिलाओं को भी नहीं बख्शा गया . इस बर्बर घटना के बाद आजसू नेता लोकनाथ महतो ने ‘चिता सत्याग्रह’ किया जो लगभग तीन हफ्ते चला और बाद में घटना की उच्च स्तरीय जांच के आश्वासन तथा किसानों की मांगों पर न्यायपूर्ण ढंग से विचार करने के वचन के साथ ख़त्म हुआ . बाकी बातें भुला दी गईं लेकिन नेता और प्रशासन के बीच कुछ ऐसा तालमेल हुआ कि सब जहाँ का तहां रह गया .
30 सितम्बर को हुए गोलीकांड की कहानी और भी विचित्रताओं से भरी है . बताया जाता है कि एन टी पी सी के ठेके को लेकर कुछ ताकतवर लोग अपने पक्ष में आन्दोलन का फायदा उठाना चाहते थे . इसी की एक कड़ी थी भूतपूर्व विधायक निर्मला देवी का कफ़न-सत्याग्रह पर बैठना . स्वयं निर्मला देवी के पति ही एन टी पी सी की एक ठेकेदार कंपनी त्रिवेणी अर्थमूवर्स से लोडिंग और ढुलाई का ठेका अपने बेटे की कंपनी के लिए चाहते थे लेकिन उनके प्रस्ताव को कंपनी ने ठुकरा दिया . इससे क्षुब्ध विधायक निर्मला देवी के पति और झारखंड के पूर्व कृषि-मंत्री ने आन्दोलनकारियों के सुर से अपना सुर मिलाना शुरू किया . वे पुरानी मांगों को लेकर ‘बुद्धिजीवी मंच’ के बैनर तले कफ़न सत्याग्रह पर जा बैठीं . यह सब दो हफ्ते चला . 30 अक्तूबर 2016 की आधी रात को पुलिस निर्मला देवी को गिरफ्तार करने आई . इस बात पर लोगों में आक्रोश फ़ैल गया . काफी जद्दोज़हद के बाद पुलिस निर्मला देवी को गाड़ी में बिठाकर ले चली . तब तक एक अक्तूबर की सुबह हो चुकी थी . आगे डांडीकलां के पास ग्रामीणों ने पुलिस की गाड़ियाँ रोक ली और निर्मला देवी को छोड़ने की मांग करने लगे . इस पर पुलिस अधिकारी को गुस्सा आ गया . उन्होंने फायर का आदेश दे दिया और देखते न देखते बंदूकें गरज उठीं . आनन-फानन में भगदड़ मच गई . जब दृश्य थोडा साफ़ हुआ तो पता चला अनेक घायलों के बीच चार लोग मर चुके हैं . मृतकों में अभिषेक राय(17) , पवन साव (16) दोनों सोनबरसा गाँव के थे और रंजन कुमार (17) गाँव सिंदुवारी के . ये सभी ट्यूशन पढने जा रहे थे . तथा महताब अंसारी (30) चेपा खुर्द गाँव के थे . महताब दिहाड़ी मजदूर थे और सुबह घर से शौच के लिए निकले थे . पुलिस ने जिन्हें आन्दोलनकारी कहकर गोली मारी थी उनमें से कोई भी आन्दोलन में शामिल नहीं था .

लेकिन इस जघन्य के बाद भी गाँव वालों पर अत्याचार थमा नहीं बल्कि जल्दी ही झारखंड पुलिस के उच्चाधिकारी बडकागांव आये लेकिन उत्पीड़ितों का हाल जानने की बजाय वहां तैनात पुलिसकर्मियों के साथ मीटिंग की और कुछ आदेश देकर चलते बने .  इसके बाद गाँव में झारखंड पुलिस के सैकड़ों लोगों के साथ आठ कंपनी रैपिड एक्शन फ़ोर्स लगा दी गई . इसके बाद पुलिस और पैरा मिलिट्री फ़ोर्स ने घरों में घुसकर जो बर्बरता की है वह दिल दहला देने वाला है . लोगों को घर से निकाल-निकाल पीटा गया . महिलाओं को गलियां दी गई . कपडे फाड़े गए . बदतमीजी की गई . इस घटना से मचे हाहाकार पर जब लोगों ने घटनास्थल का रुख किया तब इलाके में धारा 144 लगा दी गई .

बडकागांव एक सतत लूट , जनसाधारण और किसानों के साथ धोखाधड़ी , दमन और उत्पीडन का एक ऐसा पड़ाव है जहाँ सैकड़ों ने निरीह , निर्दोष और बेगुनाह लोगों के खून के निशान हैं . उन्हीं में से कुछ की बातें हम यहाँ रख रहे हैं .

                     बिना कसूर मेरा बेटा मारा गया

सूनी और पथराई आँखों की उम्मीद अब ख़त्म हो चुकी है लेकिन ज़िंदगी की हकीकत दूसरे सवालों में उलझाकर इस परिवार को आगे खीँच रही है . परिवार में वही गरीबी , वही ज़िल्लत , वही रोज कुआं खोदना और पानी निकालना बचा हुआ है लेकिन कफ़न सत्याग्रह में मचे बवाल में युवा कमासुत बेटे की शहादत हो चुकी है . उसकी 70 वर्षीय माँ बहुत मुश्किल से अपने आंसू रोक पाती है लेकिन आवाज का दर्द बार-बार छलक जाता है –‘मेरा नाम मजदन खातून है . मेरे पति का नाम मुअज्जम अली है . मै जाति की मुसलमान हूँ . मेरा घर ग्राम चेपाखुर्द,पोस्ट चेपाकलां , थाना बडकागांव, जिला हजारीबाग में है . यहाँ की मैं मूल निवासी हूँ . मेरी घर की आर्थिक स्थिति बिलकुल अच्छी नही है . किसी तरह मेहनत-मजूरी से घर का खर्च चल जाता है .”

मजदन खातून बताती है कि बडकागांव में एन टी पी सी में बरसों से आन्दोलन चल रहा था . इस साल (2016) सितम्बर में लड़ाई तेज हुई तब कफ़न सत्याग्रह शुरू हुआ . मुझे क्या पता था की कफन सत्याग्रह आन्दोलन में जमीन बचाने के चक्कर में बेटा खोना पड़ेगा . शांतिपूर्वक ढंग से सत्याग्रह चल रहा था उसी आन्दोलन में मेरा बेटा भी चला गया . सत्याग्रह को रोकने के लिए अचानक प्लान के मुताबिक पुलिसवाले गोली फायरिंग शुरु कर दिए . सभी लोग भागने लगे . मेरा बेटा मेहताब शौच करके लौट रहा था . वह भाग नही पाया और मेरे उसको गोली हाथ में लग गयी . हम लोगो को पता नही था कि मेरे बेटे को गोली लग गयी है . मेरा पूरा परिवार भगदड़ में खोजने के लिए इधर–उधर भाग रहा था . बच्चे हदस के मारे खेत में छुप गये .  चारो तरफ से चीखने-चिल्लाने की आवाज आने लगी थी . लोग इधर उधर भाग रहे थे |

गाँव के कुछ लोग बताये कि आपके बेटे को गोली लग गयी है . इतना सुनते ही जैसे लगा मानो बिजली सी गिर गयी है . मेरे अंदर की शक्ति खत्म हो चुकी थी . जैसे पागल सी हो गयी . मेरे पति रोते-चिल्लाते हुए बेटे के पास गये तो देखा कि बेटा खत्म हो चुका है . पुलिस वाले गाड़ी में लाश रख लिए थे . लाश मागने पर बोले की यहाँ से भाग जाओ नही तो जिस तरह तुम्हारे  बेटे को गोली मारे हैं उसी प्रकार गोली मार देंगे . मेरे पति बिनती करते रह गये लेकिन पुलिस वाले लाश पोस्टमार्डम के लिए भेज दिए |
दूसरे दिन जब मेरे बेटे की लाश मिली तो पूरे गाँव में तहलका मच गया . मेरी बहु रोते-रोते पागल हो गयी थी . जब मेरे बेटे की लाश आयी तो मेरे पूरे परिवार के ऊपर कहर टूट गया . किसी की होश नही था की कैसे अर्थी जायेगी लेकिन गाँव वाले मिलकर मेरे बेटे का अंतिम संस्कार कर दिये .

हमने सोचा भी नहीं था कि बुढ़ापे में यह दिन देखना पड़ेगा . मेरी पोती पोता अनाथ हो गये . इन बच्चों को देखकर मन में बहुत तकलीफ होती है कि ये बच्चे कैसे जियेंगे ? मेरी बहु कैसे रहेगी ? इस बुढ़ापे में कैसे बच्चो को संभालेंगे .  मन में इतनी बेचैनी हो गयी रात में नीद भी नही आती है . बराबर चिंता बनी रहती है . आगे क्या होगा सोच सोच कर मन घबराता है ? लेकिन मै चाहती हूँ कि जिन पुलिस वालो ने मारा है उन पर कानूनी कार्यवाही की जाये . जमीन के चक्कर में अब सरकार किसी बेटे की जान न ले और मेरी जमीन न छीने |  
                                                                  प्रस्तुति - छाया कुमारी

बेटा ट्यूशन के लिए जा रहा था , मारा गया

मेरा नाम रेशमी देवी , उम्र 35 वर्ष , पति का नाम कारिनाथ राम, ग्राम-डाडीकला, पोस्ट –चेपाकला, थाना –बडकागांव, जिला – हजारीबाग का मूल निवासी हूँ .  मेरे तीन बच्चे है .  मेरी आर्थिक स्थिति अच्छी नही है फिर भी हम अपने परिवार में अपने बच्चो के साथ खुश थे लेकिन क्या पता था कि मेरे बेटे के जीवन को ग्रहण लग जायेगा और वह मुझे छोड़ कर चला जायेगा |
घटना उस समय की है जब जमीन के मामले को लेकर कफन सत्याग्रह चल रहा था . उस समय गांव के सभी लोग आन्दोलन कर रहे थे . मेरा बड़ा बेटा रंजन कुमार दास कोचिंग पढने के लिये जा रहा था . उसी समय पुलिस वाले गोली फायरिंग करने लगे . एक गोली मेरे बेटे के सीने के आर–पार हो गई और वह जमीन पर गिर गया .  तुरंत ही उसकी मौत हो गई . हमें इस बात की जानकारी नहीं थी कि उसे गोली लगी है . जब गाँव में शोर होने लगा तो मेरा पूरा परिवार बेटे को खोजने लगा . मै सोच–सोच कर परेशान होने लगी कि अभी मेरा बेटा पढने के लिए निकला है कहाँ होगा ? किस जगह पर होगा ? पूरे गाँव में हड़कंप मचा हुआ था . चारों तरफ चीखने चिल्लाने की आवाज ही सुनाई दे रही थी . मेरा दिल बैठा जा रहा था कि अचानक यह सब क्या होने लगा है ?                                                                                                                                                                              पुलिस वाले दौड़ा–दौड़ा कर लोगों को लाठी से मार रहे थे . इतनी भीड़ में कोई पहचान में नहीं आ रहा था . मुझे समझ में नही आ रहा था कि अपने बेटे को कैसे खोजूँ ? बाहर निकलने का कोई रास्ता ही नहीं दिख रहा था . मेरे पति भी खोजने के लिए ही निकले थे . एक तरफ पति की भी चिंता सता रही थी . गोली की आवाज सुनकर दिल बैठा जा रहा था कि मै क्या करू ?
किसी तरह मेरे पति को खबर लगी कि आपके बेटे को गोली लग गयी है . बेटा खत्म हो गया . इतना सुनते ही मेरे पति धम्म से जमीन पर बैठ गए . उस समय ऐसा लग रहा था कि पुलिस वालों की बन्दूक छीनकर खुद को गोली मार लें .  मेरे बेटे की लाश को पुलिसवाले गाड़ी में रखे थे . जब मेरे पति लाश लेने का प्रयास किये तो पुलिस वाले भद्दी –भद्दी गाली देकर भगाने लगे . बोले , लाश नही मिलेगी . यहाँ से भाग जाओ नही तो तुम लोग को गोली से मार देंगे और लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया |

 मेरा पूरा परिवार रोता-चिल्लाता रह गया . जैसे लग रहा था चारो तरफ अधेरा सा छा गया है . हमारी तो दुनिया ही उजड़ गयी . दूसरे दिन मेरे बेटे की लाश मिली . उसको देखते ही मै बेहोश हो गयी . मुझे कुछ होश ही नही था कि कब मेरे बेटे की अर्थी उठायी गयी . गाँव वालों ने मिलकर मेरे परिवार को संभाला . मेरा पूरा परिवार टूट सा गया है . मेरे बच्चे अपने बड़े भाई के बारे में सोचकर रोते रहते हैं . यह देखकर बहुत दुख होता है .  इस लड़ाई से कई गाँव प्रभावित हुए हैं .
                                                                        प्रस्तुति -छाया कुमारी 

                        मैं गिरी पड़ी थी और लोग मुझे कुचलते हुए भाग रहे थे

शफीदा खातून पत्नी मुहम्मद आलम अंसारी की उम्र 65 वर्ष है . वह गाँव दांडी कलां, पोस्ट चेपाकलां, थाना बडकागांव जिला हजारीबाग की निवासी हैं .  घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नही है . मजदूरी कर के अपना जीवन निर्वाह करती हैं . कफन सत्याग्रह के दौरान हुई फायरिंग और भगदड़ में शफीदा खातून भी घटना स्थल से भाग रही थीं कि अचानक एक पुलिसकर्मी ने उनके पाँव पर निशाना साध कर डंडा मारा और वे गिर पड़ीं . चोट इतनी भारी पड़ी कि जान बचाकर भागने की भी ताकत नहीं रही लिहाज़ा भागती हुई भीड़ में वे लोगों के पांवों टेल कुचली जाती रहीं .

अपनी आपबीती सुनाते हुए शफीदा खातून की आँखों में खौफ़ साफ़-साफ़ दीखता है . वे कहती हैं कि कुछ समझ में नही आ रहा था कि मैं  कैसे उठ कर भागूं . चारो तरफ हाहाकार मचा हुआ था . भागने के चक्कर में कोई किसी को पहचान नहीं पा रहा था . पुलिस वाले भद्दी-भद्दी गाली देते चले आ रहे थे . चारों तरफ लोग लहूलुहान हो गये थे . वे कहती हैं कि अब मैं चाहती कि दोषी पुलिसवालों को सजा मिले और मुझ गरीब की जमीन न छिनी जाये .  
 प्रस्तुति- छाया कुमारी                                                          

           

            पुलिसवाले भूल गये की रात में महिलाये भी रहती हैं

पचास साल की मुनिजा खातून पत्नी रकीब अंसारी गाँव दांडीकलां , पोस्ट चिपाकला, थाना बडकागांव , जिला हजारीबाग की निवासी हैं . बेहद गरीबी में मेहनत-मशक्कत से परिवार का पालन-पोषण करने वाले इस परिवार को बडकागांव गोलीकांड के बाद बहुत भयानक अनुभवों से गुजरना पड़ा है . पुलिस के घर में घुस कर इज्जत को तार–तार कर दिया  |
मुनिजा बताती है कि मेरी बेटी बहु और बेटा घर पर सो रहे थे . रात में पुलिस ने लोगों को सबक सिखाने के लिए घरों पर हमला बोल दिया . लाठी डंडे से घर में दरवाजा तोड़ कर घुस गए और सभी को भद्दी-भद्दी गाली देना और महिलाओ के साथ छेड़खानी करना शुरू कर दिया . अडोस-पड़ोस में जिसका दरवाजा नही खुलता था उसका दरवाजा तोड़ कर घुस जाते थे . एक-एक घर में 10-15 पुलिसवाले घुस जाते थे . पुलिसवाले महिलाओं को प्राइवेट पार्ट में इतनी बुरी तरह मारे थे कि किसी से बताने में भी शर्म आती थी . हर महिला के शरीर का कपड़ा फट गया था और पूरी तरह से अस्त व्यस्त हो गयी . सभी रो-चिल्ला रही थीं तो पुलिसवाले और मारते और कहते थे कि जितना चिल्लाओगी उतना मारेंगे .

मै डर के मारे खेत में छुपी हुई थी कि कहीं पुलिसवाले देख लेंगे तो गोली न चला दें .  इसलिए मै खेत में से बाहर नही आ रही थी . किसी तरह जब घर पहुंची तो देखी घर का सारा सामान बिखरा पड़ा हुआ है . सब औरतें इधर उधर चिल्ला रही थीं . किसी का सर फटा हुआ है तो किसी को अंदरूनी चोट लगी थी .  सबको रोते-बिलखते देखकर मै भी अवाक थी . घर में जितना भी राशन था सब पुलिसवाले फेक दिए थे . मेरे घर के बहु बेटे और बच्चे का रो- रो कर बुरा हाल हो गया था . बच्चे मेरे बिलकुल हदस गये थे |                     
मै उस समय अपने घर की स्थिति देखकर सहम गयी थी कि ये क्या हो गया ? जमीन तो बचा नही पाई लेकिन घर उजड़ गये . अपने परिवार को देखकर बिलकुल टूट चुकी थी . दिन रात डर लगा रहता था कि पता नहीं कब पुलिसवाले आयेंगे और घर में घुसकर तोड़-फोड़ मचा देंगे . फिर सबको मारेंगे-पीटेंगे . घर में खाना नही बन पाता . जैसे ही घर में लोग खाना बनाने जाते वैसे ही पुलिसवाले फायरिंग शुरू कर देते थे . लोग डर के मारे फिर भागमभाग मचा देते थे . कई दिन हो गया था लोगो के घर में चूल्हा जले . लोग भूखे-प्यासे दिन बिताते रहते थे . लेकिन अब मैं चाहती हूँ कि जिस तरह पुलिसवाले मेरे घर में घुस कर लोगो के साथ दुर्व्यवहार किये हैं उन्हें उसकी सजा जरूर मिले . और हम गरीबों की ज़मीनें न छिनी जायें .
                                                                         प्रस्तुति – श्रुति नागवंशी


     
                    क्या सरकार और प्रशासन हमारे बच्चों को पालेंगे ?

चेपाखुर्द गाँव के मुअज्जम अली के चेहरे पर बेबसी और आक्रोश का भाव उनके भीतर उमड़-घुमड़ रही तकलीफों और द्वंद्व का पता देते हैं . वे अपने परिवार के ऐसे मुखिया हैं जो बुढ़ापे में सुकून भरे दिनों की उम्मीद कर रहा था लेकिन बडकागांव गोलीकांड ने उसे असीमित चिंताओं से लाद दिया है . घर में रह गई बूढ़ी पत्नी , जवान विधवा बहू और छोटे-छोटे पोते-पोतियों को सँभालने और उनके भरण-पोषण के लिए कमाने की चिंताओं ने उन्हें भीतर ही भीतर तोड़ दिया है . लेकिन इससे भी अधिक उन्हें अपने बेकसूर बेटे की पुलिस द्वारा जानबूझकर की गई हत्या झकझोर रही है . वे कहते हैं कि पुलिस के लोग झूठ बोल रहे हैं कि गोली भीड़ को तितर-बितर करने के लिए चलाई गई . सच्चाई यह है कि गोली हत्या के इरादे से चलाई गई थी . उनका बेटा महताब उस समय भीड़ को देख रहा था और जब चीख-चिल्लाहट मची तो वह वहां घबराकर भागने लगा था लेकिन पुलिस ने उसे निशाना साधकर गोली चला दी और महताब तुरंत ही मर गया .

मुअज्जम अली की मुट्ठियाँ तन जाती हैं जब वे कहते हैं कि पुलिस ने न केवल हमारे बेटे को मार डाला बल्कि हमारे साथ भी बहुत बुरा बर्ताव किया .  जब हम उसकी लाश लेने गए तो हमें बुरी तरह गलियां दी गईं और गोली मारने की धमकी दी गई . लाश को छत्तीस घंटे बाद हमें सौंपा गया और पोस्टमार्टम रिपोर्ट छः महीने बाद देने को कहा गया . वे कहते हैं कि हम चाहते हैं कि सरकार हमारे घर के बाकी चार लोगों को भी गोली मार दे . हमें नहीं चाहिए मुवावजे का दो लाख रुपया . इसे रघुबर दयाल अपने लिए रखें . हम अपने दम पर अपना जीवन चला लेंगे . हमें या तो हमारा बेटा मिले या दोषी पुलिस वालों को सज़ा .

फिर बेबसी में मुअज्जम अली की आँखें भर आती हैं और आवाज मानो अपनी सारी ताकत खो चुकी हो . वे फिर अपनी ग़मगीन स्मृतियों में उतर जाते हैं -- मुझे क्या पता था की बुढ़ापे में ये दिन देखना पड़ेगा अपना जवान बेटा मेहताब को खोना पड़ेगा . पुलिस वाले ने इतने बेरहमी से मेरे बेटे के ऊपर गोली चलायी की मेरे बेटे का तुरन्त देहान्त हो गया . मेरा पूरा परिवार बिखर गया . मेरे नन्हे मुन्ने पोते-पोती अपने पिता के बिना अनाथ हो गये . कैसे कटेगा इन बच्चो का जीवन कौन करेगा ? परवरिश इन बच्चो क्या सरकार या प्रशासन अपने पास रखेगी ?

मैंने कभी सोचा भी नही था की मुझे अपने बेटे का जनाजा देखना पड़ेगा लेकिन ये मेरी बदकिस्मती ही है कि  मुझे अपने बेटे का जनाज़ा अपने कंधे पर ले जाना पड़ा . इस बुढ़ापे में मै कितना बिलख रहा हूँ यह एक बाप ही समझ सकता है . जैसे आँख से आंसू रुकता ही नहीं है . जब बच्चो का चेहरा देखता हूँ तो मन तड़प उठता है . कैसे सब्र करू इस सदमे को बिलकुल सब्र नही होता है . किसको –किसको मै समझाऊ कुछ समझ में नही आता है .  न जाने कितना दिन हो गया है घर में चूल्हा जले . सब कुछ बिखरा सा महसूस हो रहा है . जैसे लग रहा है जिंदगी ही खत्म हो गयी है लेकिन मै चाहता हूँ कि जिस पुलिस वाले ने मेरे बेटे के ऊपर गोली चलाई है उसको सजा मिले .                                                                                                                                                                      
प्रस्तुति – अनूप श्रीवास्तव                                                                               

 From: Gaon Ke Log magazine edited by Ram JI Yadav 
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