Nobody wants to help us because we are dalits: acid attack survivor Chanchal Kumari
Tuesday, July 30, 2013
Nobody wants to help us because we are dalits: acid attack survivor Chanchal Kumari
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Saturday, July 27, 2013
पुलिस कर्मियों पर आई0पी0सी0 की धारा 166ए के तहत् कार्यवाही की जाय:डा0 लेनिन
26 जुलाई, 2013
सेवा
में,
श्रीमान् अध्यक्ष महोदय,
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग,
नई दिल्ली।
विषय:
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के केस सं0 42218/24/72/12-M-4 के सम्बन्ध
में।
महोदय,
वाराणसी पुलिस
द्वारा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को दिये रिपोर्ट (एस टी/ग्रा0-एन
एच आर सी-13/2013/418) का मेरे द्वारा साक्ष्य व तथ्य आधारित अधोलिखित
जबाव है:-
1. सुनील गुप्ता की पहली पत्नी सोनी
गुप्ता का प्रेम विवाह सन् 1995 में होता है और करीबन 7
साल बाद पत्नी Hanging से
मरती है। या तो उसकी हत्या की गयी या फिर खुद आत्महत्या की ? दोनों
स्थितिया बताती है कि सुनील गुप्ता का व्यवहार महिला विरोधी है, जिससे
कारण सोनी गुप्ता की अकाल मृत्यु हुई। सपना चौरसिया ने अपनी टेस्टीमनी में कहा,
‘‘उनकी
पूर्व पत्नी ने भी सम्भवतः इसी प्रकार के व्यवहार से तंग आकर घर में ही आत्महात्या
कर ली थी। जिसके बाद उनके मैके वालों से सुलह हो गया। कोई कानूनी कार्यवाही नहीं
होते से इनका मन बढ़ा है। ’’ यह स्पष्ट है कि सुनील गुप्ता का
भेलूपुर थाना में रसूख व दबदबा है जो ‘कानून के राज’ के लिए खतरा है।
इसका स्पष्ट उदाहरण मेरे व मेरी पत्नी श्रुति के खिलाफ 19 जून,
2013 को
भेलूपर थाना में मुकदमा संख्या 199/13 धारा 342, 384, 498 आई0पी0सी0 के
अन्तर्गत सुनील गुप्ता द्वारा किया गया। (संलग्नक संख्या-1) आश्चर्य
जनक बात यह है कि इसी आरोप पर सुनील गुप्ता ने 21 जनवरी 2013 को
माननीय आई0जी0 पुलिस वाराणसी रेंज को शिकायत किया। जिसकी जांच
सी0 ओ0 कैण्ट ने किया। इसका जिक्र सुनील गुप्ता ने भी
अपने बयान में किया है। इसपर 20 फरवरी 2013 को श्री राकेश
कुमार सिंह, क्षेत्रधिकारी (कैण्ट) वाराणसी द्वारा दिये गये
अपने जाँच (संख्या: सी0ओ0 कैण्ट-सी0एस0टी0/आर
जी जेड-09/ 2013) में आरोप सिद्ध नहीं पाया गया। (संलग्नक
संख्या-2) इन्ही आरोप पर सुनील गुप्ता ने माननीय उच्च
न्यायालय में हेवियस कारपस रिट पेटिसन संख्या 8753/2013, 10 फरवरी 2013 को
दायर किया। (संलग्नक संख्या-3) जिस पर 18
मार्च 2013 को सपना और उसका भाई श्याम माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत
होकर बयान दिये, जिसपर माननीय उच्च न्यायालय ने याचिका खारिज
करते हुए आदेश दिया। (संलग्नक संख्या-4) “Sunil Kumar Gupta, the
hasband of the corpus has appeared before this Court along with a five years
child who is admittedly born out of this wedlock. The question of his custody
may arise but for that purpose, corpus may apply before the
proper forum in a separate suit
if she is so advised. The petition stands disposed of, accordingly. Corpus is
set at liberty she may go anywhere as per her wish and desire. Her husband,
Sunil Kumar Gupta, is restrained from making any kind of interference in the
peaceful life and liberty of the corpus.
With the afroersaid
observations, this petition stands disposed of.”
वाराणसी के थानाध्यक्ष कैण्ट, थानाध्यक्ष महिला थाना व थानाध्यक्ष भेलूपुर को पंजीकृत पत्र भेजा (संलग्नक संख्या-5) आश्यर्च जनक बात यह है कि माननीय उच्च न्यायालय में सुनील गुप्ता ने अपनी पत्नी की तरफ से मुकदमा दायर किया गया। जिसमें मेरे अलावा जिलाधिकारी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक व जरिये गृहसचिव उत्तर प्रदेश शासन को पार्टी बनाया गया। मुझे नोटिस जारी की गयी। निश्चित है कि जिलाप्रशासन व वाराणसी पुलिस को भी नोटिस जारी की गयी होगी। किन्तु 18 मार्च, 2013 को जिलाप्रशासन व प्रशासन को कोई व्यक्ति न्यायालय में उपस्थित नहीं था। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को रपट 10 अप्रैल, 2013 को जिला पुलिस वाराणसी द्वारा प्रेषित है, किन्तु उसमें उपरोक्त तथ्यों एवं माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय का विवरण साक्ष्य मे नहीं लिया गया। जबकि सुनील गुप्ता ने अपने बयान में इसका जिक्र किया था। इससे वाराणसी पुलिस द्वारा सुनील गुप्ता को संरक्षण देना सिद्ध होता है। 03 दिसम्बर, 2012 को सपना चौरसिया माननीय वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को पंजीकृत पत्र से शिकायत भेजा (संलग्नक संख्या-6) और मैनें 5 दिसम्बर, 2012 को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक व राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को शिकायत भेजा।(संलग्नक संख्या-7) माननीय आयोग के नोटिस व गृह मंत्रालय के रिमाइन्डर के बाद वाराणसी पुलिस ने 13 मार्च, 2013 को मुकदमा संख्या 4/13 धारा 328/511/498अ/ 323/504 आई0पी0सी0 दायर किया। वही 10 अप्रैल, 2013 से पूर्व ही महत्वपूर्ण आई0पी0सी0 की धारा 328/511 को हटादिया गया। वही शेष धारा में शासनदेशानुसार मध्यस्थता हेतु प्रकरण को मध्यस्थता केन्द्र वाराणसी को भेजा गया। जिसमें मध्यस्थता की तिथि 11 अप्रैल, 2013 थी। इससे एक दिन पूर्व 10 अप्रैल 2013 को ही माननीय आयोग को रपट भेजी गयी। इससे वाराणसी पुलिस द्वारा सुनील गुप्ता को संरक्षण का पता चलता है कि पहले करीब तीन महीने बाद F.I.R दर्ज होता है, किन्तु तकरीबन 1 महीने से कम समय में दो संगीन अपराध की धाराये हटा कर मध्यस्थता का केस बना दिया जाता है। यही नहीं, पैरवी कर रहे लोगों के खिलाफ उन आरोपों पर F.I.R भेलूपुर थाना में कर दिया जाता है, जिसपर पुलिस विभाग द्वारा जांच हो चुकी है और माननीय उच्च न्यायालय ने फैसला दे दिया है। इसलिए वाराणसी पुलिस विभाग के इस कृत्य के जिम्मेदार पुलिस कर्मियों व अधिकारियो पर प्च्ब् की धारा 166ए के तहत प्राथमिकी दर्ज कर कार्यवाही करनी चाहिए। 20 जून 2013 को मैनें पुलिस महानिदेशक, मुख्य मंत्री व अध्यक्ष राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग जो मृत्यु से पूर्व अपना बयान पंजीकृत पत्र व ई-मेल से भेजा (संलग्नक संख्या-8) जिसमें मैनें वाराणसी का S.P.(City) व कैण्ट थाना के भ्रष्ट पुलिस कर्मी, भ्रष्ट स्वयं सेवी संगठन व दण्ड व महिला विरोधी पुरूषों से मिलकर हत्या करा सकते है। 24 जनवरी, 2013 को मैनें CBI या CBCID द्वारा उच्चस्तरीय जांच कराने के लिए अर्जेन्ट अपील जारी कर विभिन्न पुलिस अधिकारियों व राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को पेटिशन दिया। जिसमें मेरी जान का खतरा के साथ फर्जी मुकदमा में फॅसाने का आरोप लगाया। (संलग्नक संख्या-9) किन्तु इस पर कुछ भी नहीं हुआ। बल्कि 19 जून, 2013 को सुनील गुप्ता द्वारा मुख्य चिकित्साधिकारी, वाराणसी को लिखे पत्र पर मेरे व श्रुति के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया। 20 जून, 2013 को मैनें मुख्य मंत्री, पुलिस महानिदेशक व अध्यक्ष राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को मुझे मिली धमकी एवं फर्जी केस में फॅसाने की शिकायत ई-मेल एवं पंजीकृत पत्र से किया। (संलग्नक संख्या-10) इसी बीच 26 जून 2013 को मै 8 सदस्य वाले प्रतिनिधी मण्डल के साथ माननीय मुख्यमंत्री जी के आवास पर माननीय मुख्यमंत्री एवं माननीय पुलिस महानिदेशक से मिला और विभिन्न मुद्दो के साथ इस पूरे प्रकरण पर जाँच व कार्यवाही का प्रार्थना पत्र दिया गया। (संलग्नक संख्या-11) इसी शाम मुझे फोन पर बलात्कार के फर्जी मुकदमे में फँसाने की धमकी आयी, जिसकी सूचना फेसबुक पर भी दिया। मैने लगातार 20 दिसम्बर 2012 व 16 जनवरी 2013 को फर्जी केस में फँसाने एवं जान से मारने धमकी की शिकायत पंजीकृत पत्र से माननीय आयोग के साथ विभिन्न आधिकारियों को दिया। किन्तु कुछ नहीं हुआ और 24 अप्रैल 2013 पर मेरे ऊपर जानलेवा हमला हो गया। जिस पर 25 अप्रैल, 2013 को मुकदमा संख्या 359/13 धारा 307, 452, 341, 323 दर्ज हुआ। इस पर भी एक बार के बाद कोई भी जाँच अधिकारी आकर जाँच नहीं किया। सुनील गुप्ता के नाम पर सुनील गुप्ता एवं उसका गैंग फेसबुक पर एकाउन्ट बनाकर मेरी पत्नी के गरिमा पर हमला करना शुरू किया। एवं मेरे चेचरी बहन की शादी को एन0 जी0 ओ0 को हाईफाई पार्टी बताकर श्रुति के फेसबुक एकाउन्ट की फोटो का प्रयोग किया। जिसपर श्रुति ने वाराणसी के कैन्ट थाना में मु0सं0 418/13, 66ग, 66घ, 67 बी आई0 टी0 एक्ट में किया। (संलग्नक संख्या-12) किन्तु एक बार के अलावा कोई जांच अधिकारी नहीं आया। 13 मई 2013 को इस मामले में मैने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, वाराणसी को पत्र भेजा (संलग्नक संख्या-13) 18 जून 2013 को मैने ई-मेल से आई0जी0 वाराणसी रेन्ज को शिकायत भेजा कि (संलग्नक संख्या-14) सुनील गुप्ता अपने रिश्तेदार को धमकी दिया कि सपना समझौता करले, नहीं तो परिणाम खतरनाक होगा। साथ ही गैगवार की बात करते हुए अपने को मुन्ना बजरंगी गैंग का आदमी बताता है। यह बातचीत टेप कर लिया गया। जिसका टेप सी0डी0 भी भेजा गया। (संलग्नक संख्या-15) जिसपर क्षेत्राधिकारी कैण्ट, वाराणसी जांच कर रहे। जिसमें मेरा बयान हुआ है। आगे क्या होता है ? इसकी प्रतीक्षा है। (सी0एस0टी0/ आर0टी0जेड0-997/13 दिनांक 23 जून 2013 माननीय वरिष्ठ अधीक्षक..) (संलग्नक संख्या-16) यही नहीं, जिला प्रोबेशन अधिकारी, वाराणसी द्वारा पहले ही 24 जनवरी 2013 को श्रुति की शिकायत पर वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, वाराणसी को कार्यवाही के लिए पत्र भेजा गया। (पत्रांक 2572-73/जि0 प्रोबे0 का0/सा0 वा0 पु0/शिका0/2012-13 (संलग्नक संख्या-17) पुनः सुनील गुप्ता द्वारा माननीय उच्च न्यायालय के आदेश को छिपाकर जिलाधिकारी वाराणसी को शिकायत करके जिला प्रोबेशन आधिकारी द्वारा मेरे खिलाफ पनः जांच शुरू कर दिया। (पत्रांक 778-79/जि0प्रो0का0/ शिकायत/जांच 2013-14 दिनांकित 17 जून 2013 (संलग्नक संख्या-18) इसके पूर्व सपना व मेरे द्वारा सुनील के ऊपर 182 आई0पी0सी0 के तहत कार्यवाही का निवेदन किया गया है। सुनील गुप्ता भ्रष्ट पुलिस विभाग, भ्रष्ट वकील, भ्रष्ट मीडिया एवं प्रशासनिक अधिकारियों से मिलकर मुझे एवं समिति को परेशान कर सकता है, तो सपना और उसके परिवार का क्या हालत इससे पूर्व किया होगा ? एक बार सपना के भाई श्याम को भेलूपुर पुलिस ने उठा लिया, सपना के अपने पति के घर आने पर ही श्याम जी को छोड़ा गया। वही एक बार सुनील गुप्ता सपना के बहन सोनी को उठा ले गया। श्याम जी के पहल पर वह मुक्त हुई। भेलूपुर थाना, वाराणसी ने अपने जांच पर 10 फरवरी 2013 को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, वाराणसी को लिखा कि गुमशुदा को मिलने पर इन्होंने (लेनिन ने) पुलिस को सूचना नहीं दी और नहीं उच्चाधिकारी को बताया। (संलग्नक संख्या-19) जबकि 03 दिसम्बर 2012 को तुरन्त सपना द्वारा वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक वाराणसी को पंजीकृत पत्र भेजा। (संलग्नक संख्या-20) वही माननीय आयोग को शिकायत 05 दिसम्बर 2012 को किया था, जिस पर आयोग 15 दिसम्बर 2012 को SSP वाराणसी को नोटिस दिया। 10 फरवरी 2013 से पूर्व समिति ने अनेको उच्चधिकारियों को पत्र दिया। किन्तु भेलूपुर पुलिस थाना स्वयं न्यायालय जैसा व्यवहार करते हुए भेलूपुर थाना सपना एवं मेरा बिना बयान लिये अपना निर्णय लिख देता है। इससे सुनील गुप्ता का भेलूपुर थाना पर दबदबा का पता चलता है।
वाराणसी के थानाध्यक्ष कैण्ट, थानाध्यक्ष महिला थाना व थानाध्यक्ष भेलूपुर को पंजीकृत पत्र भेजा (संलग्नक संख्या-5) आश्यर्च जनक बात यह है कि माननीय उच्च न्यायालय में सुनील गुप्ता ने अपनी पत्नी की तरफ से मुकदमा दायर किया गया। जिसमें मेरे अलावा जिलाधिकारी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक व जरिये गृहसचिव उत्तर प्रदेश शासन को पार्टी बनाया गया। मुझे नोटिस जारी की गयी। निश्चित है कि जिलाप्रशासन व वाराणसी पुलिस को भी नोटिस जारी की गयी होगी। किन्तु 18 मार्च, 2013 को जिलाप्रशासन व प्रशासन को कोई व्यक्ति न्यायालय में उपस्थित नहीं था। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को रपट 10 अप्रैल, 2013 को जिला पुलिस वाराणसी द्वारा प्रेषित है, किन्तु उसमें उपरोक्त तथ्यों एवं माननीय उच्च न्यायालय के निर्णय का विवरण साक्ष्य मे नहीं लिया गया। जबकि सुनील गुप्ता ने अपने बयान में इसका जिक्र किया था। इससे वाराणसी पुलिस द्वारा सुनील गुप्ता को संरक्षण देना सिद्ध होता है। 03 दिसम्बर, 2012 को सपना चौरसिया माननीय वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को पंजीकृत पत्र से शिकायत भेजा (संलग्नक संख्या-6) और मैनें 5 दिसम्बर, 2012 को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक व राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को शिकायत भेजा।(संलग्नक संख्या-7) माननीय आयोग के नोटिस व गृह मंत्रालय के रिमाइन्डर के बाद वाराणसी पुलिस ने 13 मार्च, 2013 को मुकदमा संख्या 4/13 धारा 328/511/498अ/ 323/504 आई0पी0सी0 दायर किया। वही 10 अप्रैल, 2013 से पूर्व ही महत्वपूर्ण आई0पी0सी0 की धारा 328/511 को हटादिया गया। वही शेष धारा में शासनदेशानुसार मध्यस्थता हेतु प्रकरण को मध्यस्थता केन्द्र वाराणसी को भेजा गया। जिसमें मध्यस्थता की तिथि 11 अप्रैल, 2013 थी। इससे एक दिन पूर्व 10 अप्रैल 2013 को ही माननीय आयोग को रपट भेजी गयी। इससे वाराणसी पुलिस द्वारा सुनील गुप्ता को संरक्षण का पता चलता है कि पहले करीब तीन महीने बाद F.I.R दर्ज होता है, किन्तु तकरीबन 1 महीने से कम समय में दो संगीन अपराध की धाराये हटा कर मध्यस्थता का केस बना दिया जाता है। यही नहीं, पैरवी कर रहे लोगों के खिलाफ उन आरोपों पर F.I.R भेलूपुर थाना में कर दिया जाता है, जिसपर पुलिस विभाग द्वारा जांच हो चुकी है और माननीय उच्च न्यायालय ने फैसला दे दिया है। इसलिए वाराणसी पुलिस विभाग के इस कृत्य के जिम्मेदार पुलिस कर्मियों व अधिकारियो पर प्च्ब् की धारा 166ए के तहत प्राथमिकी दर्ज कर कार्यवाही करनी चाहिए। 20 जून 2013 को मैनें पुलिस महानिदेशक, मुख्य मंत्री व अध्यक्ष राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग जो मृत्यु से पूर्व अपना बयान पंजीकृत पत्र व ई-मेल से भेजा (संलग्नक संख्या-8) जिसमें मैनें वाराणसी का S.P.(City) व कैण्ट थाना के भ्रष्ट पुलिस कर्मी, भ्रष्ट स्वयं सेवी संगठन व दण्ड व महिला विरोधी पुरूषों से मिलकर हत्या करा सकते है। 24 जनवरी, 2013 को मैनें CBI या CBCID द्वारा उच्चस्तरीय जांच कराने के लिए अर्जेन्ट अपील जारी कर विभिन्न पुलिस अधिकारियों व राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को पेटिशन दिया। जिसमें मेरी जान का खतरा के साथ फर्जी मुकदमा में फॅसाने का आरोप लगाया। (संलग्नक संख्या-9) किन्तु इस पर कुछ भी नहीं हुआ। बल्कि 19 जून, 2013 को सुनील गुप्ता द्वारा मुख्य चिकित्साधिकारी, वाराणसी को लिखे पत्र पर मेरे व श्रुति के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया। 20 जून, 2013 को मैनें मुख्य मंत्री, पुलिस महानिदेशक व अध्यक्ष राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को मुझे मिली धमकी एवं फर्जी केस में फॅसाने की शिकायत ई-मेल एवं पंजीकृत पत्र से किया। (संलग्नक संख्या-10) इसी बीच 26 जून 2013 को मै 8 सदस्य वाले प्रतिनिधी मण्डल के साथ माननीय मुख्यमंत्री जी के आवास पर माननीय मुख्यमंत्री एवं माननीय पुलिस महानिदेशक से मिला और विभिन्न मुद्दो के साथ इस पूरे प्रकरण पर जाँच व कार्यवाही का प्रार्थना पत्र दिया गया। (संलग्नक संख्या-11) इसी शाम मुझे फोन पर बलात्कार के फर्जी मुकदमे में फँसाने की धमकी आयी, जिसकी सूचना फेसबुक पर भी दिया। मैने लगातार 20 दिसम्बर 2012 व 16 जनवरी 2013 को फर्जी केस में फँसाने एवं जान से मारने धमकी की शिकायत पंजीकृत पत्र से माननीय आयोग के साथ विभिन्न आधिकारियों को दिया। किन्तु कुछ नहीं हुआ और 24 अप्रैल 2013 पर मेरे ऊपर जानलेवा हमला हो गया। जिस पर 25 अप्रैल, 2013 को मुकदमा संख्या 359/13 धारा 307, 452, 341, 323 दर्ज हुआ। इस पर भी एक बार के बाद कोई भी जाँच अधिकारी आकर जाँच नहीं किया। सुनील गुप्ता के नाम पर सुनील गुप्ता एवं उसका गैंग फेसबुक पर एकाउन्ट बनाकर मेरी पत्नी के गरिमा पर हमला करना शुरू किया। एवं मेरे चेचरी बहन की शादी को एन0 जी0 ओ0 को हाईफाई पार्टी बताकर श्रुति के फेसबुक एकाउन्ट की फोटो का प्रयोग किया। जिसपर श्रुति ने वाराणसी के कैन्ट थाना में मु0सं0 418/13, 66ग, 66घ, 67 बी आई0 टी0 एक्ट में किया। (संलग्नक संख्या-12) किन्तु एक बार के अलावा कोई जांच अधिकारी नहीं आया। 13 मई 2013 को इस मामले में मैने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, वाराणसी को पत्र भेजा (संलग्नक संख्या-13) 18 जून 2013 को मैने ई-मेल से आई0जी0 वाराणसी रेन्ज को शिकायत भेजा कि (संलग्नक संख्या-14) सुनील गुप्ता अपने रिश्तेदार को धमकी दिया कि सपना समझौता करले, नहीं तो परिणाम खतरनाक होगा। साथ ही गैगवार की बात करते हुए अपने को मुन्ना बजरंगी गैंग का आदमी बताता है। यह बातचीत टेप कर लिया गया। जिसका टेप सी0डी0 भी भेजा गया। (संलग्नक संख्या-15) जिसपर क्षेत्राधिकारी कैण्ट, वाराणसी जांच कर रहे। जिसमें मेरा बयान हुआ है। आगे क्या होता है ? इसकी प्रतीक्षा है। (सी0एस0टी0/ आर0टी0जेड0-997/13 दिनांक 23 जून 2013 माननीय वरिष्ठ अधीक्षक..) (संलग्नक संख्या-16) यही नहीं, जिला प्रोबेशन अधिकारी, वाराणसी द्वारा पहले ही 24 जनवरी 2013 को श्रुति की शिकायत पर वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, वाराणसी को कार्यवाही के लिए पत्र भेजा गया। (पत्रांक 2572-73/जि0 प्रोबे0 का0/सा0 वा0 पु0/शिका0/2012-13 (संलग्नक संख्या-17) पुनः सुनील गुप्ता द्वारा माननीय उच्च न्यायालय के आदेश को छिपाकर जिलाधिकारी वाराणसी को शिकायत करके जिला प्रोबेशन आधिकारी द्वारा मेरे खिलाफ पनः जांच शुरू कर दिया। (पत्रांक 778-79/जि0प्रो0का0/ शिकायत/जांच 2013-14 दिनांकित 17 जून 2013 (संलग्नक संख्या-18) इसके पूर्व सपना व मेरे द्वारा सुनील के ऊपर 182 आई0पी0सी0 के तहत कार्यवाही का निवेदन किया गया है। सुनील गुप्ता भ्रष्ट पुलिस विभाग, भ्रष्ट वकील, भ्रष्ट मीडिया एवं प्रशासनिक अधिकारियों से मिलकर मुझे एवं समिति को परेशान कर सकता है, तो सपना और उसके परिवार का क्या हालत इससे पूर्व किया होगा ? एक बार सपना के भाई श्याम को भेलूपुर पुलिस ने उठा लिया, सपना के अपने पति के घर आने पर ही श्याम जी को छोड़ा गया। वही एक बार सुनील गुप्ता सपना के बहन सोनी को उठा ले गया। श्याम जी के पहल पर वह मुक्त हुई। भेलूपुर थाना, वाराणसी ने अपने जांच पर 10 फरवरी 2013 को वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, वाराणसी को लिखा कि गुमशुदा को मिलने पर इन्होंने (लेनिन ने) पुलिस को सूचना नहीं दी और नहीं उच्चाधिकारी को बताया। (संलग्नक संख्या-19) जबकि 03 दिसम्बर 2012 को तुरन्त सपना द्वारा वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक वाराणसी को पंजीकृत पत्र भेजा। (संलग्नक संख्या-20) वही माननीय आयोग को शिकायत 05 दिसम्बर 2012 को किया था, जिस पर आयोग 15 दिसम्बर 2012 को SSP वाराणसी को नोटिस दिया। 10 फरवरी 2013 से पूर्व समिति ने अनेको उच्चधिकारियों को पत्र दिया। किन्तु भेलूपुर पुलिस थाना स्वयं न्यायालय जैसा व्यवहार करते हुए भेलूपुर थाना सपना एवं मेरा बिना बयान लिये अपना निर्णय लिख देता है। इससे सुनील गुप्ता का भेलूपुर थाना पर दबदबा का पता चलता है।
24 जनवरी 2013 को राष्ट्रीय
मानवाधिकार आयोग से यह लिखित मांग भी की है कि इस केस में सी0बी0सी0आई0डी0 से
जाँच करायी जाय। (संलग्नक संख्या-9) पीडि़ता को
बचाने में मुझपर जानलेवा हमला हुआ, फर्जी पेटिशन में माननीय उच्च न्यायालय
जाना पड़ा, मेरे व श्रुति पर फर्जी मुकदमा हुआ, इन्टरनेट
पर उल्टा बदनाम किया गया। यह सब हुआ मानवाधिकार कार्यकर्ता के कारण, इसकी
शिकायत माननीय आयोग को किया, किन्तु आयोग के ‘हृयूमन राइट्स
डिफेन्डर डेस्क’ ने उचित व न्यायोचित कदम नहीं उठाये।
2. पुलिस रपट के साक्ष्य समीक्षा संख्या-2
में सी.डी. कैसेट्स का जिक्र है। सी0डी0 कैसट्स संलग्नक
हैं। (संलग्नक संख्या-21) -12.19 से -12.00 के
समय देखे तो मंदिर में शादी के बाद सुनील का दोस्त कहता है कि ‘‘जो
काम नाही करत वही करवावला’’ (जो काम नहीं करते वही काम करवाते है।)
शादी में सुनील के कुछ दबंग दोस्त शामिल हुए और सपना की माँ व सुनील के कुछ रिश्तेदार।
सुनील सब कुछ निर्देशित कर रहा है। सपना ने अपने टेस्टमनी में कहा है, (संलग्नक
संख्या-22) ‘‘तकरीबन चार दिन बाद मुझे अगवा कर शिव मंदिर में
शादी कर घर ले गये। मेरी माँ अकेली है और उसकी दबंगई से डर कर कुछ भी नहीं कर
पायी।’’ सपना ने कहा कि कागज पर साइन करवाया था और यह संदेश होटल मे हुआ।
मुझे पता है कि नोटरी में साइन घर पर जाकर लोग करा लेते हैं, इस
पर जांच होनी चाहिए कि सोनी गुप्ता एवं सपना का हस्ताक्षर नोटरी के रजिस्टर पर है
कि नहीं ?
दूसरी बड़ी बात कि सपना की उम्र 2012
में 23 वर्ष है, तो 2005 में 15-16 वर्ष के बीच
थी। इस तरह से यह बाल विवाह अधिनियम के अनुसार अवैध व गैर कानूनी विवाह है। किन्तु
वाराणसी पुलिस इस तथ्य को छिपा लेती है। जबकि यह एक स्पष्ट जबरदस्ती से किया गया
विवाह है, जो दबाव व भय से स्वीकार करवाया गया है। पुलिस विभाग में सुनील
गुप्ता के दबदबा का पता चलता है कि वह अपने बयान में कहता है कि वह अपने पत्नी को
मोबाइल का काल डिटेल निकलावाता है। पुलिस एस0पी0 (सिटी)
का कार्यालय इस बात की जांच नहीं करता है कि वह काल डिटेल कैसे निकालता है?
सुनील
गुप्ता द्वारा शादी का सी0डी0 कैसेट (संलग्नक
संख्या-21) देखे तो घर आकर भी सुनील गुप्ता विडियो फिल्म
बना रहा है। उसकी पत्नी सपना कहती है क्यों बना रहे हो? ध्यान से पूरा
सी0डी0 देखा जाय तो इसे किसी अन्य को नहीं देना
चाहिए। किन्तु यह सी0डी0 सुनील ने दबाव बनाते हुए श्रुति को
दिया। इस प्रकार भ्रष्ट पुलिस व दबंग सुनील गुप्ता के साथ मिलकर गैंग बनाकर एक
महिला को उत्पीड़न का शिकार बना रहे है। विदित है कि हिन्दुस्तान टाइम्स में
महिलाधिकार योगदान के लिए सपना का नाम नामित हुआ, जो कई बार
हिन्दुस्तान टाइम्स में छपा। (संलग्नक संख्या-28) वही
सपना को लखनऊ के ताज होटल में सपना को सांसद माननीया डिम्पल यादव व अभिनेत्री
माननीया शबाना आजमी के हाथों से सर्टिफिकेट मिला। (संलग्नक संख्या-29)
इसलिए
पुलिस कर्मियों पर IPC की धारा 166ए के तहत
कार्यवाही करनी चाहिए।
3. पुलिस की रपट के साक्ष्य समीक्षा सुंख्या 3
में पुलिस ने बताया कि सुनील गुप्ता ने जो साक्ष्य दिया है। वह दवाईयां सन् 2010 से
शुरू होती है, जबकि शादी 2005 में होती है। 5
साल के बीच उत्पीड़न के साथ जबरदस्ती शराब पिलाने एवं दवाईयां व इंजेक्शन दिया
जाता रहा। जब सपना की तबियत ज्यादा खराब हो गया, तो उसे डाक्टर
के पास ले जाया गया। चिकित्सको ने “Adjustment
disorder” बताया।
“An Adjustment disorder occur when an individual is
unable to adjustment to or cope with a pasticular stressor, Like a major life
event,” (संलग्नक
संख्या-23) आगे लिखा है....... Unlike major depression however the disorder is caused
by an ontside stressor & generally resolve once the individual is able to
adopt to situation” कम
से कम पुलिस‘‘Adjustment
disorder का पता तो लगा लेती। इसका अर्थ है कि बाहरी Stressor सुनील गुप्ता ने उसे प्रताडि़त किया,
दवा
व इंजेक्शन दिया, इसके साथ अत्याचार किया। ज्यादा बीमार होने पर
इलाज कराया। यह भी एक तथ्य है कि मेरे व श्रुति के खिलाफ 19 जून 2013 को
फर्जी मुकदमा मुख्य चिकित्साधिकारी, वाराणसी के सम्बोधित पत्र पर हुआ है।
इससे चिकित्सको, सुनील गुप्ता एवं पुलिस का खुला गठजोड़ पता
चलता है। अतः इस मामले की जाँच सी0बी0आई0 से
करते हुए महिला विरोधी गैंग के खिलाफ कानून के तहत कार्यवाही की जाय।
4. सुनील गुप्ता ने आरोप लगाया कि नवम्बर 2012
में सपना जेवर व पैसे लेकर भाग गयी। फिर जुलाई 2012 में सुनील
गुप्ता ने विदाविदाई का दावा पारिवारिक न्यायालय में क्यों किया घ् (संलग्नक
संख्या-24) सुनील गुप्ता महिला विरोधी एक शातिर व्यक्ति
है।
5. 20 दिसम्बर, 2012 को मेरे आवास
पर आकर सुनील गुप्ता ने धमकी दी। जिसकी शिकायत मैने पंजीकृत पत्र से वरिष्ठ पुलिस
अधिकारियों को की। (संलग्नक संख्या-25) फिर 16
जनवरी 2013 को मुझे मोबाइल नं0 से मेरे मोबाइल पर धमकी मिली। जिसपर
मैने 16 जनवरी 2013 को ही वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक वाराणसी
को पंजीकृत पत्र भेजा। (संलग्नक संख्या-26) किन्तु सुनील
गुप्ता ने 21 जनवरी 2013 को आई0जी0 को
पत्र भेजा, इससे पूर्व कोई जानकारी किसी पुलिस अधिकारी को 02
जनवरी, 2013 की घटना की सुनील गुप्ता द्वारा नही दी गयी।
इस बात को जाँच अधिकारियों ने तथा पुलिस रपट की समीक्षा में नहीं लिखा गया। इसका
अर्थ है कि पुलिस का एक भ्रष्ट तबका, वकीलो का एक भ्रष्ट गैंग एवं कुछ
असमाजिक तत्व मिलकर पेशबंदी के लिए 21 जनवरी 2013 को माननीय आई0जी0 महोदय
को आवेदन दिलवाया। जिस पर जांच हुई एवं सी0ओ0 कैण्ट ने जाँच
रपट दी। किन्तु मेरे द्वारा 20 दिसम्बर 2012 एवं 16
जनवरी 2013 के शिकायत पर अभी तक मेरा बयान भी नहीं हुआ है। इससे स्पष्ट सुनील
गुप्ता से स्थानीय पुलिस का गठजोड़ सिद्ध होता है। यही नहीं, धमकी
के मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को लिखे गये पत्र पर भी किसी तरह की कोई
कार्यवाही नहीं हुई।
6. सुनील गुप्ता मेरे सहपाठी पवन सिंह के साथ
चियर्स-बार आया था। यह घटना 2 जनवरी 2013 की है। सी0 ओ0
कैण्ट की रपट में भी उसका उल्लेख है। (संलग्नक संख्या-2) इस
घटना की शिकायत तकरीबन 18 दिन बाद 21 जनवरी 2013 को
सुनील गुप्ता द्वारा दिया गया। इस शिकायत में देरी के बारे में माननीय उच्च न्यायालय
ने भी संज्ञान नहीं लिखा और नहीं वाराणसी पुलिस ने। भ्रष्टाचार के पैसे की ताकत ने
‘‘कानून के राज’’ की धज्जिया उठा दी है। पुलिस ने जाँच
किया है कि मैनें अपने मोबाइल से सुनील गुप्ता को फोन किया था घ् पुलिस पूरी तरह
से आरोपी के साथ मिली हुई है।
7. महिला आरक्षी 1968 अहिल्या बाई ने
सर्चिंग की बात स्वीकार की है। अहिल्या बाई सुनील गुप्ता की ओर से दबाव बनाने के
लिए पहले सपना का सर्चिंग किया और फिर दबाव बनाया। महिला सहायता प्रकोष्ठ का अर्थ
महिला को सहायता देना हैं। जबकि इस प्रकरण में घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के
प्राविधानों का पूर्व रुप से उल्लंघन किया गया है। मुझे भी बयान में अहिल्या सिंह
ने दबाव बनाया और बेइज्जत किया। जिस पर 19 जनवरी, 2013 को श्रीमान्
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, वाराणसी को पंजीकृत पत्र भेजा। (संलग्नक
संख्या-27)
निष्कर्ष: सपना चौरसिया के मानसिक व
शारीरिक शोषण को वाराणसी पुलिस अपने जाँच रपट में मनमुटाव व विवाद बताकर मामले की
लीपापोती करना चाहती है। पुलिस का एक भ्रष्ट तबका, जो महिलाधिकार
विरोधी है, उसने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पहल के बाद 05
दिसम्बर, 2012 की शिकायत पर 13 मार्च,
2013 को
मु0अ0सं0 04/2013 धारा 328/511/498ए/323/504/506
भा.द.वि. विरूद्ध सुनील गुप्ता दर्ज हुआ, किन्तु महत्वपूर्ण दो धारा 328/511 आई0पी0सी0 को
हटा दिया गया है। जबकि तथ्य यह है कि शादी 2005 में होती है।
मनोचिकित्सक को 2010 में दिखाया जाता है। मनोचिकित्सकों ने Adjustment disorder बताया, जो किसी Stressor द्वारा होता है। सबसे बड़ा Stressor सुनील गुप्ता है। किन्तु पुलिस ने
विवेचना में दो संगीन धाराओं को निकाल दिया।
यह पुलिस रपट 10 अप्रैल,
2013 को
भेजी जाती है। किन्तु 18 मार्च, 2013 को माननीय उच्च
न्यायालय के आदेश को कोई जिक्र नही किया जाता है। जिसमें माननीय उच्च न्यायालय ने 21
जनवरी, 2013 को आई0जी0, वाराणसी पुलिस
को भेजे गये आरोप पत्र खारिज कर दिया और सपना को स्वतंत्र घोषित करते हुए उसके
शांतिपूर्ण जीवन में सुनील गुप्ता द्वारा हस्तक्षेप न करने की हिदायत दी। वही सी0ओ0
कैण्ट के रपट का जिक्र भी पुलिस रपट में नही किया गया। सुनील गुप्ता से यह सवाल
नही पूछा गया कि 02 जनवरी, 2013 की घटना की
शिकायत 21 जनवरी, 2013 से पहले क्यों नही की गयी ? 16 जनवरी, 2013 को मुझे मिली
धमकी पर मैने शिकायत पंजीकृत किया, किन्तु कुछ नहीं हुआ किसी ने बयान भी
नहीं लिया। मैनें 20 दिसम्बर 2012, 16 जनवरी 2013
एवं 25 जनवरी 2013 को पत्र राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को
भेजा। (संलग्नक संख्या-21)
किन्तु आयोग ने मानवाधिकार कार्यकर्ता के लिए कोई उचित कदम नही उठाया,
जिससे
कारण मुझे माननीय उच्च न्यायालय जाना पड़ा एवं 19 जून,
2013 को
भेलूपुर थाना में मुकदमा संख्या 199/13 धारा 342, 384, 498 आई0पी0सी0
मेरे एवं श्रुति के खिलाफ हुआ, जानलेवा हमला हुआ एवं श्रुति की गरिमा
पर फेसबुक के द्वारा हमला किया गया। इस पर हुए कैण्ट थाना में पंजीकृत मुकदमा
संख्या 359/13 एवं 418/13 में जाँच का
पता ही नही चल पा रहा है। 19 जून, 2013 को भी धमकी
मिली, शिकायत किया, किन्तु कुछ नही हुआ। इस पूरे दबाव और
प्रताड़ना के चलते सपना की माँ की मृत्यु 28 मार्च,
2013 को
हो गयी।
वाराणसी पुलिस महिलाधिकार विरोधी रवैया
अपना रही है और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को प्रताडि़त करने एवं उन्हें तबाह करने
की कार्यवाही कर रही है।
आयोग का फुलबेन्च मुझे, सपना,
श्रुति,
पुलिस
अधिकारियों एवं सुनील गुप्ता को बुलाकर सुनवाई करे। आयोग के ह्यूमन राइट्स
डिफेन्डर डेस्क को मजबूत करें एवं 20 दिसम्बर, 2012 व 16
जनवरी, 2013 को मिली धमकी पर प्राथमिकी दर्ज कर जाँच की
जाय एवं मानसिक प्रताड़ना के लिए पीडि़त सपना एवं मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को
मुवायजा दिया जाए। पूरे प्रकरण की जाँच सी0बी0आई0 से
करायी जाय एवं पुलिस कर्मियों पर आई0पी0सी0 की
धारा 166ए के तहत् कार्यवाही की जाय।
प्रेषित प्रतिलिपि:-
1. श्रीमान् असिस्टेन्ट रजिस्ट्रार (लाँ),
राष्ट्रीय
मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली।
2. श्री नलीनी रंजन, अवर
सचिव, गृह मंत्रालय, भारत सरकार, नई दिल्ली।
3. श्रीमान् जिलाधिकारी, जनपद
वाराणसी।
4. श्रीमान् जिला प्रोबेशन अधिकारी,
जनपद
वाराणसी।
5. श्रीमान् चित्रांगद, पुलिस
उपमहानिरीक्षक (मानवाधिकार), उत्तर प्रदेश, लखनऊ।
6. श्रीमान्
वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, जनपद वाराणसी।
भवदीय
(डा0
लेनिन)
महासचिव
मानवाधिकार
जननिगरानी समिति,
सदस्य,
एन0जी0ओ0 कोर
कमेटी, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई
दिल्ली।
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