शिक्षा अधिकार भारतीय बच्चे: दृष्टिकोण बिना कैसा विकास शिक्षा अधिकारों की पैरवी में बाल पंचायतों की तीन नाट्य अभिव्यक्ति --- “हमें पढ़ाएँ बिन डंडा मार” “पढाई हुई मुहाल” एवं “आधा ही मिला शिक्षा अधिकार” बाल पंचायतो द्वारा वाराणसी चौकाघाट सांस्कृतिक संकुल में देकर शिक्षा अधिकार कानून के लागू होने में आ रही बाधाओं व बुनियादी सुविधाओं के अभावों पर ध्यान आकर्षित कराया
शिक्षा अधिकार कानून लागू होने के तीन वर्ष से भी अधिक होने को है लेकिन आज भी हर बच्चा शिक्षा से नही जुड़ पाया है जमीनी हकीकत आज भी कानून से परे है | होटल ढाबों में साडी-कालीन बिनाई में ईट भट्ठों में बालश्रम में आज भी लगे हैं वे जितना काम करने को बाध्य किये जाते हैं और उनके परिवार की परिस्थितियाँ जितनी विपरीत हैं शिक्षा उतनी ही उनसे दूर है | कानून लागू होने के इतनी अवधि के बाद भी शिक्षा व्यवस्था उनके अनुकूल नही है | ना ही जनप्रतिनिधियों के लिए यह गम्भीर मुद्दा बन सका है स्पष्ट है की कुछ खास तबकों के समुदायों के बच्चों का शिक्षा अधिकार बाधित हो रहा है जिससे यह उनके लिए महत्वपूर्ण नहीं है कार्यक्रम के आयोजन के उद्देश्यों पर अपने विचार रखते हुए समिति की मैनेजिंग ट्रष्टी श्रुति नागवंशी ने कहा |
ऐसे में मानवाधिकार जननिगरानी समिति, वाराणसी (उ०प्र०) द्वारा ग्लोबल फंड फॉर चिल्ड्रेन (USA) ,सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट एवं क्राई के संयुक्त तत्वाधान में शिक्षा अधिकार भारतीय बच्चे: दृष्टिकोण बिना कैसा विकास शिक्षा अधिकारों की पैरवी में बाल पंचायतों की नाट्य अभिव्यक्ति के माध्यम से कानून के लागू होने के बाद भी आ रही बाधाओ समस्याओं एवं मुद्दों पर जोर देने का प्रयास किया गया है | जिसमे शिक्षा अधिकार की पैरवी के समर्थन में बाल पंचायतों के बच्चों द्रारा विभिन्न महत्वपूर्ण सामाजिक विषयों – बालश्रम, बालिका शिक्षा, विधालयों की स्थिति, शिक्षकों का व्यवहार, विद्यालय में पिटाई, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं बाल अधिकार आदि विषयों पर बच्चों द्वारा नाट्य अभिव्यक्ति आयोजन किया जा रहा है |
कार्यक्रम में सकरा जौनपुर, रौप सोनभद्र एवं वाराणसी जनपद के विभिन्न गाँवो से आये हुए अतिवंचित तबके व समुदाय के बच्चों द्रारा नाट्य कार्यक्रम प्रस्तुत किया जायेगा | इस कार्यक्रम के माध्यम से बच्चे इन मुद्दों पर व समस्याओं पर आम लोगों एवं शासन-प्रशासन का ध्यान खीचने का प्रयास करेंगे एवं अपनी भावनाओं को व्यक्त करेंगे |
बच्चों की यह नाट्य अभिव्यक्ति वाराणसी के चौकाघाट स्थित साँस्कृतिक संकुल के ओपन थियेटर में हुई कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि श्री. अनिल पाराशर (ज्वाईनट रजिस्ट्रार राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, नई दिल्ली) एवं मुख्य अतिथि वरिष्ठ समाजसेवी प्रोफ़ेसर एस०एस० कुशवाहा (पूर्व कुलपति महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ) रहे |
बाल पंचायतो के बच्चों द्वारा स्कूल में सजा व भेदभाव विषय पर – “हमें पढ़ाये बिन डंडा मार” प्रवासी कामकाजी बच्चों की स्थितियों पर – “पढाई हुई मुहाल” शिक्षा में आ रही बाधाओ, गुन्व्त्ताओ, विशेष रूप से बुनियादी सुविधाओं की कमियों पर – “आधा ही मिला शिक्षा अधिकार” नामक तीन नाटकों के माध्यम से बुनियादी सवाल खड़ा किया गया | इस मौके पर समिति के के अध्यक्ष डा. महेन्द्र प्रताप सिंह, गवर्निंग बोर्ड की सदस्या प्रोफेसर शाइना रिजवी, श्री. बल्लभाचार्य जी एवं महासचिव डा. लेनिन रघुवंशी मौजूद रहे | इस मौके पर बाल पंचायतो के बच्चों ने दीपावली पर पटाखा न जला कर दीप जलाकर दीवाली मनाने की अपील करते हुए पटाखों को पानी में डालकर पटखा बहिष्कार की अपील किया | कार्यक्रम का संचालन इरशाद अहमद ने किया और धन्यवाद ज्ञापन सीनियर मैनेजर सिरिन शबाना ने किया|
अवधारणा पत्र
शिक्षा अधिकार भारतीय बच्चे : दृष्टिकोण बिना कैसा विकास
शिक्षा अधिकार की पैरवी में बाल पंचायतों की नाट्य अभिव्यक्ति
1. हमें पढ़ाएँ बिन डंडा मार
विषय : स्कूल में शारीरिक दण्ड और भेद-भाव
रूपरेखा : यह नाटक बच्चो के अपने अनुभवों को प्रदर्शित करेगा जो कि शारीरिक दण्ड और भेदभाव को उजागर करेगा | यह नाटक बच्चो द्वारा स्कूल में विभिन्न तरह के भेदभाव का सामना करने के विषय में प्रदर्शित करेगा – यह जाति आधारित, वर्ग आधारित, लिंग आधारित आदि को प्रदर्शित करेगा और शारीरिक दण्ड से होने वाले क्षति को उजागर करेगा |
प्रदर्शन के माध्यम से बच्चे अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने का प्रयास करेंगे जो कि शारीरिक या भावनात्मक दण्ड से जुडा है | यह एक बच्चे के दिमाग पर है प्रतिघात का काम करता है और कैसे यह बच्चे का विकास बाधित करता है यह भी इस नाटक में प्रदर्शित किया जाएगा |
यह नाटक इस विषय पर भी दिखाने का प्रयास करेगा कि कैसे भय और भेदभाव का वातावरण बच्चो को स्कूल से दूर करता है |
2. पढाई हुई मुहाल
विषय : प्रवासी कामकाजी बच्चों की स्थिति
रूपरेखा : इस नाटक के माध्यम से बच्चे भट्ठा मजदूरों के बच्चों की शिक्षा से वंचितिकरण को चित्रित करने का प्रयास करेंगे|यह नाटक उन कारणों को भी उजागर करने का प्रयास करेगा जो बच्चो को मजदूर बनाने के लिए मजबूर करते है – यह पारिवारिक, आर्थिक या अन्य तरह के होते है जिससे बच्चो पर असर पड़ता है |
बच्चे अपनी कहानी बयान करेंगे कि कैसे का उम्र में शादी उन्हें शिक्षा से दूर ले जाती है | नाटक यह भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेगा कि कैसे कम उम्र में जिम्मेदारिया सौपी जाती है – परिवार के लिए रोटी कमाने के लिए, छोटे भाई बहन की देख रेख करने के लिए, घर के काम को स्कूल जाने की कीमत चुकाकर, उनका बचपने को लूट लेता है और उनके सुनहरे भविष्य पर एक धब्बे जैसा है |
इस नाटक के माध्यम से बच्चे यह सवाल उठायेगे और मांग करेंगे कि सभी बच्चो को शिक्षा अधिकार क़ानून से जोड़ा जाय |
3. आधा ही मिला शिक्षा अधिकार
विषय : शिक्षा के लिए बाधाओं को विशेषरूप से बुनियादी सुविधाओं की कमी पर ध्यान केंद्रित | रूपरेखा : यह नाटक बच्चो द्वारा स्कूल में आने वाली चुनौतियों को प्रस्तुत करेगा –यह स्कूल में अध्यापको की कमी से शिक्षा गुणवत्ता पर प्रभाव को दर्शायेगा, पर्याप्त कक्षा कक्ष की कमी किस प्रकार सीखने में बाधा उत्पन्न करती है | स्वच्छ शौचालय की कमी, पीने के पानी की कमी, मिड दे मील के लिए बर्तनों की कमी या फिर खेल के मैदान की कमी और इन सभी के न होने बच्चो पर का प्रभाव को भी दर्शायेगा | बच्चे अपने रोज के अनुभव को भी प्रस्तुत करेगे कि उन्हें स्कूल में शिक्षा का लाभ उठाने के संदर्भ मेंक्या काम करना होता है क्या नहीं |
शिक्षा अधिकार कानून लागू होने के तीन वर्ष से भी अधिक होने को है लेकिन आज भी हर बच्चा शिक्षा से नही जुड़ पाया है जमीनी हकीकत आज भी कानून से परे है | होटल ढाबों में साडी-कालीन बिनाई में ईट भट्ठों में बालश्रम में आज भी लगे हैं वे जितना काम करने को बाध्य किये जाते हैं और उनके परिवार की परिस्थितियाँ जितनी विपरीत हैं शिक्षा उतनी ही उनसे दूर है | कानून लागू होने के इतनी अवधि के बाद भी शिक्षा व्यवस्था उनके अनुकूल नही है | ना ही जनप्रतिनिधियों के लिए यह गम्भीर मुद्दा बन सका है स्पष्ट है की कुछ खास तबकों के समुदायों के बच्चों का शिक्षा अधिकार बाधित हो रहा है जिससे यह उनके लिए महत्वपूर्ण नहीं है कार्यक्रम के आयोजन के उद्देश्यों पर अपने विचार रखते हुए समिति की मैनेजिंग ट्रष्टी श्रुति नागवंशी ने कहा |
ऐसे में मानवाधिकार जननिगरानी समिति, वाराणसी (उ०प्र०) द्वारा ग्लोबल फंड फॉर चिल्ड्रेन (USA) ,सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट एवं क्राई के संयुक्त तत्वाधान में शिक्षा अधिकार भारतीय बच्चे: दृष्टिकोण बिना कैसा विकास शिक्षा अधिकारों की पैरवी में बाल पंचायतों की नाट्य अभिव्यक्ति के माध्यम से कानून के लागू होने के बाद भी आ रही बाधाओ समस्याओं एवं मुद्दों पर जोर देने का प्रयास किया गया है | जिसमे शिक्षा अधिकार की पैरवी के समर्थन में बाल पंचायतों के बच्चों द्रारा विभिन्न महत्वपूर्ण सामाजिक विषयों – बालश्रम, बालिका शिक्षा, विधालयों की स्थिति, शिक्षकों का व्यवहार, विद्यालय में पिटाई, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा एवं बाल अधिकार आदि विषयों पर बच्चों द्वारा नाट्य अभिव्यक्ति आयोजन किया जा रहा है |
कार्यक्रम में सकरा जौनपुर, रौप सोनभद्र एवं वाराणसी जनपद के विभिन्न गाँवो से आये हुए अतिवंचित तबके व समुदाय के बच्चों द्रारा नाट्य कार्यक्रम प्रस्तुत किया जायेगा | इस कार्यक्रम के माध्यम से बच्चे इन मुद्दों पर व समस्याओं पर आम लोगों एवं शासन-प्रशासन का ध्यान खीचने का प्रयास करेंगे एवं अपनी भावनाओं को व्यक्त करेंगे |
बच्चों की यह नाट्य अभिव्यक्ति वाराणसी के चौकाघाट स्थित साँस्कृतिक संकुल के ओपन थियेटर में हुई कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि श्री. अनिल पाराशर (ज्वाईनट रजिस्ट्रार राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग, नई दिल्ली) एवं मुख्य अतिथि वरिष्ठ समाजसेवी प्रोफ़ेसर एस०एस० कुशवाहा (पूर्व कुलपति महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ) रहे |
बाल पंचायतो के बच्चों द्वारा स्कूल में सजा व भेदभाव विषय पर – “हमें पढ़ाये बिन डंडा मार” प्रवासी कामकाजी बच्चों की स्थितियों पर – “पढाई हुई मुहाल” शिक्षा में आ रही बाधाओ, गुन्व्त्ताओ, विशेष रूप से बुनियादी सुविधाओं की कमियों पर – “आधा ही मिला शिक्षा अधिकार” नामक तीन नाटकों के माध्यम से बुनियादी सवाल खड़ा किया गया | इस मौके पर समिति के के अध्यक्ष डा. महेन्द्र प्रताप सिंह, गवर्निंग बोर्ड की सदस्या प्रोफेसर शाइना रिजवी, श्री. बल्लभाचार्य जी एवं महासचिव डा. लेनिन रघुवंशी मौजूद रहे | इस मौके पर बाल पंचायतो के बच्चों ने दीपावली पर पटाखा न जला कर दीप जलाकर दीवाली मनाने की अपील करते हुए पटाखों को पानी में डालकर पटखा बहिष्कार की अपील किया | कार्यक्रम का संचालन इरशाद अहमद ने किया और धन्यवाद ज्ञापन सीनियर मैनेजर सिरिन शबाना ने किया|
अवधारणा पत्र
शिक्षा अधिकार भारतीय बच्चे : दृष्टिकोण बिना कैसा विकास
शिक्षा अधिकार की पैरवी में बाल पंचायतों की नाट्य अभिव्यक्ति
1. हमें पढ़ाएँ बिन डंडा मार
विषय : स्कूल में शारीरिक दण्ड और भेद-भाव
रूपरेखा : यह नाटक बच्चो के अपने अनुभवों को प्रदर्शित करेगा जो कि शारीरिक दण्ड और भेदभाव को उजागर करेगा | यह नाटक बच्चो द्वारा स्कूल में विभिन्न तरह के भेदभाव का सामना करने के विषय में प्रदर्शित करेगा – यह जाति आधारित, वर्ग आधारित, लिंग आधारित आदि को प्रदर्शित करेगा और शारीरिक दण्ड से होने वाले क्षति को उजागर करेगा |
प्रदर्शन के माध्यम से बच्चे अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने का प्रयास करेंगे जो कि शारीरिक या भावनात्मक दण्ड से जुडा है | यह एक बच्चे के दिमाग पर है प्रतिघात का काम करता है और कैसे यह बच्चे का विकास बाधित करता है यह भी इस नाटक में प्रदर्शित किया जाएगा |
यह नाटक इस विषय पर भी दिखाने का प्रयास करेगा कि कैसे भय और भेदभाव का वातावरण बच्चो को स्कूल से दूर करता है |
2. पढाई हुई मुहाल
विषय : प्रवासी कामकाजी बच्चों की स्थिति
रूपरेखा : इस नाटक के माध्यम से बच्चे भट्ठा मजदूरों के बच्चों की शिक्षा से वंचितिकरण को चित्रित करने का प्रयास करेंगे|यह नाटक उन कारणों को भी उजागर करने का प्रयास करेगा जो बच्चो को मजदूर बनाने के लिए मजबूर करते है – यह पारिवारिक, आर्थिक या अन्य तरह के होते है जिससे बच्चो पर असर पड़ता है |
बच्चे अपनी कहानी बयान करेंगे कि कैसे का उम्र में शादी उन्हें शिक्षा से दूर ले जाती है | नाटक यह भी प्रस्तुत करने का प्रयास करेगा कि कैसे कम उम्र में जिम्मेदारिया सौपी जाती है – परिवार के लिए रोटी कमाने के लिए, छोटे भाई बहन की देख रेख करने के लिए, घर के काम को स्कूल जाने की कीमत चुकाकर, उनका बचपने को लूट लेता है और उनके सुनहरे भविष्य पर एक धब्बे जैसा है |
इस नाटक के माध्यम से बच्चे यह सवाल उठायेगे और मांग करेंगे कि सभी बच्चो को शिक्षा अधिकार क़ानून से जोड़ा जाय |
3. आधा ही मिला शिक्षा अधिकार
विषय : शिक्षा के लिए बाधाओं को विशेषरूप से बुनियादी सुविधाओं की कमी पर ध्यान केंद्रित | रूपरेखा : यह नाटक बच्चो द्वारा स्कूल में आने वाली चुनौतियों को प्रस्तुत करेगा –यह स्कूल में अध्यापको की कमी से शिक्षा गुणवत्ता पर प्रभाव को दर्शायेगा, पर्याप्त कक्षा कक्ष की कमी किस प्रकार सीखने में बाधा उत्पन्न करती है | स्वच्छ शौचालय की कमी, पीने के पानी की कमी, मिड दे मील के लिए बर्तनों की कमी या फिर खेल के मैदान की कमी और इन सभी के न होने बच्चो पर का प्रभाव को भी दर्शायेगा | बच्चे अपने रोज के अनुभव को भी प्रस्तुत करेगे कि उन्हें स्कूल में शिक्षा का लाभ उठाने के संदर्भ मेंक्या काम करना होता है क्या नहीं |