Friday, October 25, 2013

मानवीय गरिमा को सुनिश्चित करने के लिए बाल मजदूरी और बन्धुआ मजदूरी के खिलाफ जनसुनवाई

मानवीय गरिमा को सुनिश्चित करने के लिए बाल मजदूरी और बन्धुआ मजदूरी के खिलाफ जनसुनवाई

भारत एक तरफ अन्तरराष्ट्रीय शक्ति बनने की ओर वंही दुनिया के सबसे अधिक बन्धुआ मजदूर (समकालीन दास) यंही पर 

आज 25 अक्तूबर 2013 को लखनऊ के हजरतगंज स्थित होटल इण्डिया अवध में मानवाधिकार जननिगरानी समिति द्रारा डेनिश इंस्टीट्यूट अगेंस्ट टार्चर (डिग्निटी) के सहयोग और वायस ऑफ़ पीपुल एवं क्यू० आई० सी० ए०सी० के संयुक्त तत्वाधान में “बंधुआ मजदूरी” एवं “बाल बंधुआ मजदूरी” के खिलाफ इंसानी गरिमा को सुनिश्चित, सुरक्षित एवं संरक्षित करने उददेश्य से एक “जनसुनवाई” आयोजित किया गया |





जनसुनवाई में मुख्य अतिथि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य और उत्तर प्रदेश बाल मज़दूरी उन्मूलन कोर कमेटी के चेयरपर्सन डा. योगेश दूबे जी, विशिष्ट अतिथि राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्या सुश्री. शमीना शफीक जी, एवं राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग से असिस्टेंट रजिस्ट्रार श्री ओम प्रकाश व्यास जी, उत्तराखंड राज्य के भूतपूर्व डी० जी० पी० श्री. ज्योतिस्वरूप पाण्डेय जी बतौर ज्यूरी के रूप में शामिल हुए | इस जनसुनवाई में विशिष्ट अतिथि के रूप में पंचायतीराज एवं राष्ट्रवादी ग्रन्थालय सभा सचिव श्री. रवीन्द्र सिंह डोंगरा जी भी शामिल हुए | इस मौके पर ज्यूरी सदस्यों द्रारा “The dark site of India” नाम से रिपोर्ट रिलीज किया गया, जो समिति द्रारा प्रकाशित की गयी है और जो कि उत्तर प्रदेश में बन्धुआ मजदूरों की विकट परिस्थियों और उनके कठोर अनुभवो पर आधारित है |
 
स्वागत भाषण और विषय प्रवेश कराते हुए समिति के निदेशक डा.लेनिन ने बताया कि पिछले ढाई सालों विभिन्न आयोग, राज्य स्तरीय एवं जिला स्तरीय प्रशासनिक पैरवी एवं क़ानूनी हस्तक्षेप के ज़रिये 243 बन्धुआ मजदूरों को मुक्त कराया गया है और 1996 से अब तक 3500 मजदूरों को ढाचागत बन्धुआ मजदूर प्रणाली से मुक्त कराया गया है| उन्होंने बताया कि यह आश्चर्यजनक तथ्य है की ये सभी बन्धुआ मजदूर अधिकांश अनुसूचित जाति, पिछड़ी जाति, आदिवासी समुदाय या फिर अल्पसंख्यक समुदाय से सम्बन्धित मिले, एक भी बन्धुआ मजदूर ऊँची जाति से नही संम्बन्धित थे | आज भी हमारे समाज में बंधुआ मजदूरी की समस्या बने रहने का प्रमुख कारण हमारे समाज की आर्थिक विषमता, जातिगत व्यवस्था, तानाशाही प्रवृति, साम्प्रदायिक मानसिकता एवं विचारधारा और पितृसत्तात्मक सोच का समाज में बने रहना है | जिससे आज इक्कीसवीं सदी में भी हाशिये पर जीने वाले समुदायों के परिवार में विशेषकर बच्चों व महिलायों की स्थिति बहुत अमानवीय एवं नारकीय है | 



साथ ही जनसुनवाई के इस विशिष्ट सन्दर्भ में उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों सोनभद्र, जौनपुर, वाराणसी, चंदौली, अलीगढ़ से कुल सत्तर से अधिक बन्धुआ मजदूरों और बाल मजदूरों के मामलो को शामिल किया गया | इनमे से पन्द्रह केसों को ज्यूरी के सामने सुनवाई के लिए रखा गया, जिसमे न्याय की आस लगाये बन्धुआ मजदूरी के शिकार पीड़ितों ने अपनी आप बीती कहानी व स्व-व्यथा कथा ख़ुद सुनाया | साथ ही यह भी बताया प्रशासन बंधुआ मजदूरों को चिन्हित करने, उनके पुनर्वास, सामाजिक विकास और कल्याण की योजनाओं में वरीयता व भागीदारी एवं बन्धुआ व बाल मजदूरी उन्मूलन कानूनों की सख्ती से लागू करने में लगातार लापरवाही करता है विदित हो कि हाल ही में मुजफ्फरनगर और शामली में हुए सांप्रदायिक दंगे के सन्दर्भ में उत्तर प्रदेश सरकार के लोक निर्माण एवं सिंचाई मंत्री माननीय श्री. शिवपाल सिंह यादव द्रारा जारी की गयी रिपोर्ट में भी बंधुआ मजदूरी के लक्षणों को चिन्हित किया गया है, किन्तु सीधा बन्धुआ मजदूरी को स्वीकार नहीं किया गया है | रिपोर्ट में दंगा पीडितो का शिविरों से अपने घर वापस न लौटने के कारणों में बिंदु संख्या 2 में बताया गया है कि कुछ पीडितो द्रारा स्थानीय लोगों और भट्ठे से कर्ज लिया गया है और वे वसूली के डर से गाँव वापस नही जा रहे हैं| बन्धुआ मजदूरी के सन्दर्भ में “बन्धुआ मुक्ति मोर्चा बनाम भारत सरकार” के फैसले में स्पष्ट कहा गया है कि यदि किसी व्यक्ति ने कर्ज लिया है और उसे कर्ज के एवज में वंही काम करने की बाध्यता हो, साथ ही उसे न्यूनतम मजदूरी नही मिलता हो, व्यक्ति डरा हो तो इस फैसले के अनुकूल यह सीधे - सीधे बन्धुआ मजदूरी का मामला है | ऐसे सभी मामलो को अविलम्ब चिन्हित करते हुए उन्हें बंधुआगिरी से मुक्त कराते हुए पुनर्वासित किया जाना चाहिए जिससे वे पुन: बन्धुआ जीवन जीने को बाध्य न हों | 


हाल ही में आस्ट्रेलिया की प्रतिष्ठित संस्था “वाक फ्री फाउन्डेशन’’ के द्वारा जारी रिपोर्ट में विश्व दासता सूचकांक 2013 के आकड़ों के अनुसार 162 देशों में सर्वेक्षण के अनुसार दुनियाभर में 3 करोड़ लोग दासता के शिकार हैं, जिसमें भारत में ही अकेले 1.39 करोड़ लोग दासता का जीवन जी रहे हैं | भारत समेत दुनिया के गरीब देशो में इंसानों की सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, परस्थितियो (जाति, लिंग, गरीबी, अशिक्षा) का फायदा उठाकर उन्हें गुलाम बनाकर बन्धुआ मजदूरी, बाल मजदूरी, मानव तस्करी, जबरन विवाह, देह व्यापर के धंधे में धकेला जाता है | छल के जरिये किसी व्यक्ति की आजादी छीनकर दबाव हिंसा के जरिये उनका आर्थिक,शारीरिक व मानसिक शोषण करना उन्हें दास बनाना अठारवीं सदी की घटनाएँ जो आज भी भारी संख्या में जबकि बंधुआ मजदूरी और बाल मजदूरी के खिलाफ कई दशक पहले कानून लागु हो चुका है और श्रम मंत्रालय के अधीन मजदूरों के कल्याण और पुनर्वास के लिए सैकड़ो योजनाए सचालित हैं | बन्धुआ मजदूरी और बाल मजदूरी से मालिकों द्वारा कई गुना मुनाफा कमाने का जरिया बना है |


जनसुनवाई की सफलता के लिए उत्त्तर प्रदेश समाज कल्याण बोर्ड एवं कृषि उत्पादन आयुक्त द्वारा शुभकामनाए दी गयी साथ ही सुनवाई में इंटरनेशनल जस्टिस मिशन, आक्सफेम सहित कई संस्थाओ के प्रतिनिधियों ने भागीदारी की और बन्धुआ एवं बाल मजदूरी को जड़ से समाप्त करने पर जोर दिया | में सत्र का संचालन वायस ऑफ़ पीपुल की राज्य संयोजिका श्रुति नागवंशी ने किया और अंत में मानवाधिकार जननिगरानी समिति के अनूप श्रीवास्तव ने ज्यूरी के सदस्यों को धन्यवाद ज्ञापन दिया|

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