आज बनारस की महिमा के
बारे में मशहूर शायर मिर्ज़ा गालिब की लिखी निम्नलिखित पंक्तियाँ सटिक बैठती हैः
“त
आलल्ला बनारस चश्मे बद्दूर, बहिश्ते खुर्रमो फि़रदौसे मासूर
इबातत ख़ानए नाकूसियाँ
अस्त, हमाना काब-ए-हिन्दोस्तां अस्त”
(हे परमात्मा बनारस को बुरी दृष्टि से दुर रखना, क्योंकि यह आनन्दमय स्वर्ग है। यह घण्टा बजाने वालों अर्थात् हिन्दुओं की
पुजा का स्थान है। यानी यही हिन्दोस्तान का काबा है।)
दुनिया के प्राचीनतम
शहरों में एक बनारस/वाराणसी/काशी विभिन्न विचार धाराओं, धर्मों के
साथ दुनिया भर में आकषर्ण का प्रतीक रहा है। जहां यह हिन्दूओं का पवित्र
शहर है। वहीं महात्मा बुद्ध के प्रथम उपदेश (धर्म चक्र प्रवर्तन) के लिए बौद्ध
धर्मावलम्बियों का प्रमुख केन्द्र भी है। जैन धर्म के तीन तीर्थंकर यहीं
पर पैदा हुए। साम्प्रदायिकता व जातिवाद के खिलाफ संत कबीर, संत रैदास व
सेन नाई की जन्मस्थली तथा कर्मस्थली यही रही है। वही दूसरी तरफ बनारस की
बनारसी रेशमी साड़ी को मौलाना अल्वी साहब ले आये।सन 1507 ई० में सिख धर्म के
संस्थापक गुरु नानक जी काशी आये और काशी से बहुत प्रभावित हुए|समन्वयवाद के
तुलसीदास, हिन्दी व उर्दू के महान कथाकार मुंशी प्रेमचन्द, महान
साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, जयशंकर प्रसाद, डा0 श्याम
सुन्दरदास एवं आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और बनारस घराने के प्रसिद्ध संगीतकारों की जन्मभूमि व कर्मभूमि यही रही है। वाराणसी से
चार भारत रत्न महान शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ, देश के
दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी, महान सितार वादक पं०
रविशंकर और स्वतंत्रता संग्राम एवं ऐनी बेसेन्ट व हिन्दुस्तानी कल्चरल सोसाइटी से जुड़े तथा महात्मा गांधी के साथ काशी विद्यापीठ की स्थापना करने वाले डा0 भगवान दास का जुड़ाव यहीं से रहा है।
16 वीं
सदी में, मुग़ल बादशाह अकबर जब
इस शहर बनारस में आया तो वह इस शहर के सांस्कृतिक विरासत एवं गौरवशाली इतिहास को
देखकर काफ़ी अभिभूत हुआ और इस शहर के सांस्कृतिक महत्ता को देखते हुए, उसने इस शहर
के पुनरुत्थान का अनुभव
किया| मुग़ल बादशाह अकबर ने इस शहर में शिव और विष्णु को समर्पित दो बड़े मंदिरों का
निर्माण कराया| पूना के राजा के नेतृत्त्व में यहाँ अन्नपूर्णा मन्दिर और 200 मीटर
(660 फीट) की अकबरी ब्रिज का निर्माण भी बादशाह अकबर द्वारा इसी दौरान करवाया गया|
जिससे की दूर-दराज़ के श्रद्धालु, पर्यटक 16 वीं सदी
के दौरान बनारस शहर में जल्द से जल्द पहुंचने
लगे| इसी तरह 1665 ई० में फ्रांसीसी यात्री जीन बैप्टिस्ट
टवेरनियर ने गंगा के किनारे पर
निर्मित ‘विष्णु
माधव मंदिर’ की वास्तुकला के सौंदर्य
की भूरी-भूरी प्रशंसा किया है तथा उसने अपने यात्रा वृतांत में
इसका बहुत बढ़िया वर्णन किया| सड़क, यात्रियों के ठहरने,पीने योग्य पानी के लिए कुओं
का निर्माण एवं लगभग इसी शासनकाल के आस-पास सम्राट शेरशाह सूरी द्वारा कलकत्ता से
पेशावर तक मज़बूत सड़क का निर्माण कराया गया था| जो बाद में
ब्रिटिश राज के दौरान प्रसिद्ध ग्रैंड ट्रंक रोड के रूप में जाना
जाने लगा| पं० मदन मोहन मालवीय जी
द्वारा स्थापित बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय सहित पाँच उच्चस्तरीय शिक्षा केन्द्र
बनारस में है, वही भारत का राष्ट्रीय चिन्ह अशोक चक्र सारनाथ, वाराणसी के
संग्रहालय में है|
बनारस घराना के संगीतज्ञ जहाँ एक तरफ हिन्दू
देवी-देवताओं की स्तुति पर अपना शास्त्रीय संगीत प्रस्तुत करते हैं। वही
अफगानिस्तान से आये सरोद, ईरान से आये शहनाई व सितार का गौरव के साथ उपयोग करते है। भारतीय दर्शन की विभिन्न शाखाओं के साथ हिन्दू, इस्लाम, ईसाई, यहूदी, बहाई, बौद्ध, जैन, सिख, सूफी सभी का बनारस से जुड़ाव रहा है। जो बनारस को बहुलतावाद व समावेशवाद का केन्द्र बनाता है और यह केन्द्र ‘गंगा तटीय सभ्यता का हेरिटेज’ है। जिससे भारत ही नहीं, पूरी दुनिया
के लोग सीख सकते है कि अपने अन्तर्विरोधों के साथ सहिष्णु व
फक्कड़ तरीके से कैसे रहा जा सकता है। इसलिए जरुरी हो गया है कि आस्था, विश्वास व तर्क के शहर बनारस को ‘हेरिटेज शहर’ घोषित किया जाये। उसे ‘गन्दा जल नहीं, गंगा जल’ मुहैया कराया जाये| नदियाँ हमारे संस्कृति व सभ्यता
का केन्द्र है| लोगों की आजीविका, धार्मिक आस्था, आध्यात्मिकता, गरिमा, जीवन व
सभ्यता इसी से जुड़ा है| इसलिए भारत सरकार को नदियों को संस्कृति विभाग के अधीन
करना चाहिये| भगवान शिव के प्रिय साड़ को बनारस शहर में
पीने का पानी और पशुचिकित्सक भी मुहैया कराया जाये। सिंगापुर की तर्ज पर
पुराने शहर को हेरिटेज के तौर पर संजोया जाय और नये शहर को आधुनिक दुनिया
की तरह बसाया जाय। वही शहर के बिनकारी, खिलौने के काम, जरदोजी को
प्रोत्साहित व संरक्षित किया जाय।
विदित है कि दुनिया के
विभिन्न सेनाओं व पुलिस के बैज भी बनारस से बनते है। हिन्दू
देवी-देवताओं के वस्त्र बनारस के मुस्लिम बुनकर बनाते हैं। बनारस के
बहुलतावाद और समावेशी इतिहास को कम से कम बनारस के स्कूलों
में जरुर पढ़ाया जाय। ये इसलिये जरुरी है कि केवल बनारस में ही नहीं, बल्कि भारत व दक्षिण एशिया में जातिवाद व साम्प्रदायिक सोच को खत्मकर इंसानों के बीच सकारात्मक एकता (Positive Conflict Resolution) स्थापित किया जा सके। जिससे जातिवाद व सम्प्रदायवाद से होने वाली यातना व संगठित हिंसा को समाप्त किया जा सके।
इसी परिपेक्ष्य में
बना रहे बनारस, बुनकर दस्तकार अधिकार मंच एवं मानवाधिकार जननिगरानी समिति
(PVCHR) के संयुक्त तत्वाधान में बनारस के मूलगादी कबीरचैरा मठ में 09 अगस्त, 2014 (शनिवार) को “बनारस सम्मेलन” कार्यक्रम का आयोजन सुबह 10.30 बजे सुबह से शुरु होगा। कार्यक्रम
की शुरुआत पं0 विकास महाराज (प्रसिद्ध सरोदवादक) व पं0 प्रभाष
महाराज (तबलावादक) के नेतृत्व में “शास्त्रीय संगीत” से होगा।
बहुलतावाद एवं समावेशी परम्परा व संस्कृति के लिए उत्कृष्ट कार्य हेतू
सुप्रसिद्ध समाजसेवी सुश्री तीस्ता सीतलवाड़, सुप्रसिद्ध पत्रकार व हिन्दुस्तान
पटना के वरिष्ठ सम्पादक डा० तीर विजय सिंह एवं भुवनेश्वर के वरिष्ठ पत्रकार श्री
नागेश्वर पटनायक को “जनमित्र सम्मान” से सम्मानित किया जाएगा| सम्मलेन में शंकराचार्य के प्रतिनिधि स्वामी
अमुक्तेश्वरा नन्द जी, मुफ़्ती-ए-शहर मौलाना अब्दुल बातिन नोमानी, मौलाना हारून रशीद नक्शबंदी, फ़ादर आनन्द सहित बौद्ध धर्म, जैन धर्म, कबीर व रैदास पंथी लोग अतिथि
के रूप में हिस्सा लेंगे| जल पुरुष राजेन्द्र सिंह व वरिष्ठ समाजसेवी संदीप
पाण्डेय भी सभा को संबोधित करेंगे| प्रेरणा कला मंच द्वारा गंगा पर “गंगा हो या गांगी” नाटक का मंचन होगा और सुप्रसिद्ध वृत्तचित्र
निर्माता व निदेशक गोपाल मेनन पूरे कार्यक्रम का वीडियो डाक्युमेंटेशन करेंगे|
सम्मलेन के बाद कबीरचौरा मठ से लहुराबीर तक “कबीर पद यात्रा” भी निकली जायेगी|
इस कार्यक्रम के आयोजक मण्डल में आचार्य महंत
विवेकदास जी, मौलाना हारून रशीद नक्शबंदी, प्रो० दीपक मलिक, प्रो० शाहिना रिज़वी, डा०
लेनिन, वल्लभाचार्य पाण्डेय, अशोक आनन्द, व्योमेश शुक्ला, अतीक अंसारी, श्रुति
नागवंशी, डा० मोहम्मद आरिफ़,
मुनीज़ा रफ़ीक खान, सिद्दीक़ हसन, इदरीश अंसारी,
महताब अहमद शामिल हैं|
बना रहे बनारस, बुनकर दस्तकार अधिकार मंच एवं मानवाधिकार जननिगरानी समिति
सा० 4/2 ए० दौलतपुर, वाराणसी – 221002 (उ० प्र०)
संपर्क न० – 09935599333,09935599331, 09415301073
ईमेल:- pvchr.india@gmail.com
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