Sunday, August 10, 2014

समावेशी व बहुलतावादी संस्कृति के लिए बनारस कन्वेंशन

अंग्रेजी उपनिवेशवाद को भारत से बाहर करने और स्वतंत्रता आन्दोलन के ऐतिहासिक शुभारम्भ के दिन 09 अगस्त क्रान्ति दिवस पर सांस्कृतिक शहर बनारस में बहुलतावाद एवं समावेशी संस्कृति के मज़बूतीकरण के लिए बनारस सम्मलेन का आयोजन बनारस के मूलगादी कबीर मठ में किया गया | जिसमे हिन्दुस्तान के विभिन्न शहरों से प्रबुद्ध बुद्धिजीवी, समाजसेवी, पत्रकार, शिक्षाविद समेत उ० प्र० के विभिन्न जिलों से आये डेढ़ हजार प्रतिभागियों ने भाग लिया |
कार्यक्रम का शुभारम्भ बनारस घराने के विख्यात सरोदवादक पं० विकास महाराज एवं तबलावादक पं० प्रभाष महाराज, सितार वादक अभिषेक महाराज के शास्त्री संगीत से हुआ | कबीर के कर्मस्थली रहे कबीर के चबूतरे से बहुलतावाद व समावेशी संस्कृति एवं गंगा के निर्मलता-अविरलता के समर्थन में विभिन्न धर्मों के धार्मिक गुरुओं ने अपना विचार रखा और कार्यक्रम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हुए बहुलतावाद व समावेशी संस्कृति को बचाने के लिए अपना पूर्ण समर्थन दिया | ताकि बनारस की साझा संस्कृति को बनाये रखते हुए इसकी ताज़गी व फक्कड़पन को जिन्दा रखा जा सके | 
इस अवसर पर द्वारका पीठ के शंकराचार्य काशी प्रान्त के प्रतिनिधि स्वामी अवमुक्तेश्वरा नन्द जी, मुफ़्ती-ए-शहर बनारस मौलना अब्दुल बातिन नोमानी, वरिष्ठ इस्लामिक चिंतक मौलाना हारून रशीद नक्शबंदी, बौद्ध धर्म गुरु भंते कीर्ति नारायण, बनारस डायोसिस के निदेशक फ़ादर गैब्रील, फ़ादर आनन्द सहित बौद्ध धर्म, जैन धर्म, कबीर व रैदास पंथ के काफ़ी सम्मानित लोगों ने कार्यक्रम में भाग लिया | विभिन्न धर्म गुरुओं ने अपने-अपने धर्म के मतो, विचारों, मान्यताओं व मानवीय मूल्यों के आधार पर समावेशवाद एवं बहुलतावाद विषय पर बहुत बारीकी से प्रकाश डाला एवं गंगा के निर्मलता-अविरलता पर आम समाज व सरकार दोनों को संवेदनशील होकर मज़बूत क़दम उठाने का संयुक्त आह्वान किया | विभिन्न विचारकों ने कहा कि आधुनिक उपभोक्तावाद के समय में भी बनारस के आध्यात्मिक मूल्य व समावेशी विशेषता की महत्ता पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा है, जिसके कारण आज भी बनारस अपने फक्कड़पन जीवन शैली के साथ जीवन्त है | इस कार्यक्रम में गंगा व उसकी अन्य सहायक नदियों की दयनीय स्थिति पर भारत के विभिन्न IIT द्वारा किये गए विस्तृत शोध के उपरांत काशी में आयोजित किये गए काशी कुम्भ की रिपोर्ट का विभिन्न धार्मिक गुरुओं ने संयुक्त रूप से विमोचन किया |
इस अवसर पर बहुलतावाद एवं समावेशी परम्परा व संस्कृति के लिए उत्कृष्ट कार्य हेतू सुप्रसिद्ध समाजसेवी एवंमानवाधिकार कार्यकत्री सुश्री तीस्ता सीतलवाड़, सुप्रसिद्ध पत्रकार व हिन्दुस्तान पटना के वरिष्ठ सम्पादक डा० तीर विजय सिंह एवं भुवनेश्वर के इकोनॉमिक टाइम्स के वरिष्ठ पत्रकार  श्री नागेश्वर पटनायक को जनमित्र सम्मान से सम्मानित किया गया | बनारस के बहुलतावाद व समावेशी संस्कृति को शास्त्रीय संगीत के सुरीले धुनों से भारत ही नहीं पुरे विश्व में फ़ैलाने वाले व देश का नाम देश-विदेश में रोशन करने वाले विख्यात सरोदवादक पं० विकास महाराज व उनके पुत्र तबलावादक पं० प्रभाष महाराज कोमानवाधिकार जननिगरानी समिति (PVCHR) का राजदूत बनाते हुए प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया |
इस अवसर पर बनारस के कोलअसला क्षेत्र से विधायक अजय राय, रमन मैगसेसे अवार्डी व जलपुरुष राजेन्द्र सिंह, वरिष्ठ पत्रकार डा० तीर विजय सिंह, प्रो० दीपक मलिक, पदमश्री सम्मान से सम्मानित तीस्ता सीतलवाड़ ने भी सभा को संबोधित किया और सदभावना मैनुअल का विमोचन किया गया | इसके उपरान्त उपस्थित सभी गणमान्य व्यक्तियों द्वारा  बनारस कन्वेंशनमें तय प्रस्ताव को पारित सर्वसम्मति से पारित किया गया |
कार्यक्रम में आशीष मिश्रा व सहयोगियों द्वारा कबीर वाणी में गीत प्रस्तुत किया गया और प्रेरणा कला मंच द्वारा गंगा हो या गांगी शीर्षक नाटक का संवेदनशील मंचन किया गया | सुप्रसिद्ध वृत्तचित्र निर्माता व निदेशक गोपाल मेनन की मुज्जफ़रनगर दंगे पर वृत्तचित्र  का प्रदर्शन व उस पर लोक विधालय चलाया गया एवं पूरे कार्यक्रम का वीडियो डाक्युमेंटेशन किया गया| कार्यक्रम के अंत में सम्मलेन के समापन के बाद कबीरचौरा मठ से लहुराबीर आजाद पार्क तक कबीर पद यात्रा भी निकली गयी |
कन्वेंशन का संचालन सुप्रसिद्ध रंगकर्मी व्योमेश शुक्ला व समाजसेवी अतिक अंसारी द्वारा किया गया |
इस अवसर पर बनारस कन्वेंशन कार्यक्रम के उद्देश्य व विषय वस्तु पर डा० लेनिन रघुवंशी ने विस्तृत प्रकाश डाला और उन्होंने कहा कि हम लोग मिलजुल कर बनारस शहर व उसकी संस्कृति को हेरिटेज़ घोषित कराये जाने के लिए राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लगातार सरकार व यूनेस्को पर दबाव डालते रहेंगे | इसके लिए एक वेबसाइट banarasconvention.comएवं फेसबुक पेज बनाया जाएगा | कार्यक्रम में स्वागत भाषण मुनीज़ा रफ़ीक खान एवं धन्यवाद ज्ञापन श्रुति नागवंशी ने किया |
कार्यक्रम के आयोजन मण्डल में प्रो० दीपक मलिक, प्रो० शाहिना रिज़वी, डा० लेनिन, वल्लभाचार्य पाण्डेय, अशोक आनन्द, व्योमेश शुक्ला, अतीक अंसारी, श्रुति नागवंशी, डा० मोहम्मद आरिफ़, मुनीज़ा रफ़ीक खान, सिद्दीक़ हसन, इदरीश अंसारी, महताब अहमद शामिल हैं|
उत्तरवाहिनी गंगा के तट पर स्थित बनारस को विश्व के प्राचीनतम नगरों में से एक होने का गौरव प्राप्त है | दुनिया के प्राचीनतम शहरों में एक बनारस/वाराणसी/काशी विभिन्न विचार धाराओं, धर्मों के साथ दुनिया भर में आकषर्ण का प्रतीक रहा है । जहां यह हिन्दूओं का पवित्र शहर है । वहीं महात्मा बुद्ध के प्रथम उपदेश (धर्म चक्र प्रवर्तन) के लिए बौद्ध धर्मावलम्बियों का प्रमुख केन्द्र भी है । जैन धर्म के तीन तीर्थंकर यहीं पर पैदा हुए । साम्प्रदायिकता व जातिवाद के खिलाफ संत कबीर, संत रैदास व सेन नाई की जन्मस्थली तथा कर्मस्थली यही रही है । वही दूसरी तरफ बनारस की बनारसी रेशमी साड़ी को मौलाना अल्वी साहब ले आये । सन 1507 ई० में सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक जी काशी आये और काशी से बहुत प्रभावित हुए | समन्वयवाद के तुलसीदास, हिन्दी व उर्दू के महान कथाकार मुंशी प्रेमचन्द, महान साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, जयशंकर प्रसाद, डा0 श्याम सुन्दरदास एवं आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और बनारस घराने के प्रसिद्ध संगीतकारों की जन्मभूमि व कर्मभूमि यही रही है । वाराणसी से चार भारत रत्न महान शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ, देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी, महान सितार वादक पं० रविशंकर और स्वतंत्रता संग्राम एवं ऐनी बेसेन्ट व हिन्दुस्तानी कल्चरल सोसाइटी से जुड़े तथा महात्मा गांधी के साथ काशी विधापीठ की स्थापना करने वाले डा0 भगवान दास का जुड़ाव यहीं से रहा है ।
            16 वीं सदी में, मुग़ल बादशाह अकबर जब इस शहर बनारस में आया तो वह इस शहर के सांस्कृतिक विरासत एवं गौरवशाली इतिहास को देखकर काफ़ी अभिभूत हुआ और इस शहर के सांस्कृतिक महत्ता को देखते हुए, उसने इस शहर के पुनरुत्थान का अनुभव किया | मुग़ल बादशाह अकबर ने इस शहर में शिव और विष्णु को समर्पित दो बड़े मंदिरों का निर्माण कराया | पूना के राजा के नेतृत्त्व में यहाँ अन्नपूर्णा मन्दिर और 200 मीटर (660 फीट) की अकबरी ब्रिज का निर्माण भी बादशाह अकबर द्वारा इसी दौरान करवाया गया | जिससे की दूर-दराज़ के श्रद्धालु, पर्यटक 16 वीं सदी के दौरान बनारस शहर में जल्द से जल्द पहुंचने लगे | इसी तरह 1665 ई० में फ्रांसीसी यात्री जीन बैप्टिस्ट टवेरनियर ने गंगा के किनारे पर निर्मित विष्णु माधव मंदिर की वास्तुकला के सौंदर्य की भूरी-भूरी प्रशंसा किया है तथा उसने अपने यात्रा वृतांत में इसका बहुत बढ़िया वर्णन किया | सड़क, यात्रियों के ठहरने, पीने योग्य पानी के लिए कुओं का निर्माण एवं लगभग इसी शासनकाल के आस-पास सम्राट शेरशाह सूरी द्वारा कलकत्ता से पेशावर तक मज़बूत सड़क का निर्माण कराया गया था | जो बाद में ब्रिटिश राज के दौरान प्रसिद्ध ग्रैंड ट्रंक रोड के रूप में जाना जाने लगा | पं० मदन मोहन मालवीय जी द्वारा स्थापित बनारस हिन्दू विश्वविधालय सहित पाँच उच्चस्तरीय शिक्षा केन्द्र बनारस में है, वही भारत का राष्ट्रीय चिन्ह अशोक चक्र सारनाथ, वाराणसी के संग्रहालय में है| 
  •   बनारस घराना के संगीतज्ञ जहाँ एक तरफ हिन्दू देवी-देवताओं की स्तुति गायन के साथ अपना शास्त्रीय संगीत का शुभारम्भ करते हैं । वही अफगानिस्तान से आये सरोद, ईरान से आये शहनाई व सितार का गौरव के साथ उपयोग करते है । शास्त्रीय संगीत की इस संयुक्त परम्परा को बनारस में जीवित रखने के लिए सरकारी स्तर पर प्रयास किया जाए | बनारस में शास्त्रीय संगीत को जीवंत बनाये रखने के लिए एक बड़ा हिन्दुस्तानी संगीत संस्थान बनाया जाना चाहिये | जहाँ पर देश-विदेश के छात्र आकर संगीत शिक्षा प्राप्त कर सकें और पर्यटन को भी बढ़ावा मिले |              
  •  भारतीय धर्म एवं दर्शन - हिन्दू, बौद्ध,   इस्लाम,  ईसाई,  यहूदी,  बहाई,  जैन, सिख, संत परम्परा, सूफी पंथ सभी का बनारस से जुड़ाव रहा है । इस साझा संस्कृति व परम्परा को बचाए रखते हुए संयुक्त रूप से सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ़ लोगों को जागरूक किया जाये | ताकि बनारस की गंगा-जमुनी तहज़ीब को बरक़रार रखा जा सके |
  •  बनारस बहुलतावाद व समावेशवाद का एक बहुत बड़ा केन्द्र  है और यह केन्द्र गंगा तटीय सभ्यता का हेरिटेज है । जिससे भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के लोग सामाजिक सौहार्द, सामंजस्य व भाईचारे की भावना सीख सकते है, कि अपने अन्तर्विरोधों के साथ भी सहिष्णुता से कैसे रहा जा सकता है । इसलिए आस्था, विश्वास व तर्क के शहर बनारस के इतिहास, प्रमुख स्थलों व बनारस शहर की साझा संस्कृति को हेरिटेज घोषित किया जाए ।
  •  गंगा जी व उसकी 1500 सहायक नदियों की अविरलता को बनाये रखते हुए निर्मलता के साथ बिना अवरोध बहने दिया जाए | ताकि नदी तटीय सभ्यता को बचाया जा सके | बनारस को गन्दा जल नहीं, गंगा जल मुहैया कराया जाए |
  •  नदियाँ हमारे संस्कृति व सभ्यता का केन्द्र हैं | लोगों की आजीविका, धार्मिक आस्था, आध्यात्मिकता, गरिमा, जीवन व सभ्यता इसी से जुड़ा है| इसलिए भारत सरकार को नदियों को संस्कृति विभाग के अधीन किया जाए |
  •  भगवान शिव के प्रिय साड़ नंदी को बनारस शहर में पीने का पानी और पशुचिकित्सक भी मुहैया कराया जाए ।
  •  सिंगापुर की तर्ज पर पुराने बनारस शहर को हेरिटेज के तौर पर संजोया जाए और नये शहर को आधुनिक दुनिया की तरह पुराने शहर से अलग दूसरी जगह बसाया जाए ।
  •  बनारस शहर के शिल्प कला के बिनकारी (बनारसी साडी उधोग), लकड़ी के खिलौने के काम, जरदोजी, देवी-देवताओं के मुकुट की कला व सनत को प्रोत्साहित व संरक्षित किया जाय । इन उद्योगों को बचाने के लिए बजट में अधिक आवंटन किया जाये और इन उद्योगों से जुड़े लोगों को विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ा जाये |
  •   दुनिया के विभिन्न सेनाओं व पुलिस के बैज भी बनारस में बनते है । श्री कृष्ण का तांबे का झूला बनारस में बनाया जाता है | हिन्दू देवी-देवताओं के वस्त्र, मुकुट, माला बनारस के मुस्लिम दस्तकार व बुनकर बनाते हैं । ऐसे सभी शिल्प कला व सांस्कृतिक धरोहरों को बचाने के लिए सरकार प्रभावी योजना बनाकर ऐसे कारीगरों व तबकों को पुनर्जीवित व संरक्षित करे |
  •  बनारस के बहुलतावाद और समावेशी इतिहास को बनारस के स्कूलों, मदरसों व अन्य शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ाया जाय । जिससे अगली पीढ़ी बनारस के धरोहर को आदर और सम्मान से संभाल सके |
  •  बनारस के सभी पर्यटन स्थल, सांस्कृतिक केन्द्र को भी पर्यटन की सूची में शामिल करते हुए विकसित किया जाए और इन महत्वपूर्ण केन्द्रों को भी पर्यटन व संस्कृति विभाग से जोड़ा जाए | ताकि अधिक से अधिक पर्यटकों को बनारस की प्राचीन व गौरवशाली परम्परा व इतिहास से जोड़ा जा सके |जैसे: मार्कंडेय महादेव, बाबा विश्वनाथ मन्दिर, मृत्युन्जय महादेव, रामेश्वर, बाबा कालभैरव, संकट मोचन मन्दिर, मूलगादी कबीर मठ व कबीर जन्मस्थली, ढाई कंगूरा की मस्जिद, मानसिंह का वेधशाला, कारमाईकल लाइब्रेरी, मौलाना अल्वी की मज़ार, नागरीय प्रचारणी सभा, मुंशी प्रेमचन्द्र का घर, धरहरा की मस्जिद, जैन तीर्थंकर स्थल, चौहट्टा लाल खां का मकबरा, अनेक कुण्ड व तालाब इत्यादि |
  • बनारस उसके प्राचीन व गौरवशाली इतिहास को संजोते हुए उनके सभी महत्वपूर्ण एतेहासिक तथ्यों, पुस्तकों, दस्तावेज़ों, वस्तुओं को संस्कृति विभाग के अधीन संग्रहालय (Museum) बनाकर संरक्षित और पुनर्जीवित किया जाए |
  •  बनारस शहर में रहने वाले बेघर ग़रीब नागरिकों, वृद्धों, महिलाओं के लिए सरकारी स्तर पर आश्रय स्थल व रहने के लिए मकान, स्थान की व्यवस्था किया जाए |
  •  बनारस में गंगा किनारे रहने वाले आर्थिक रूप से कमज़ोर नाविक समाज व उनके बच्चों, बुनकरों व उनके बच्चों एवं अति वंचित मुसहरों व अन्य समुदायों को स्वास्थ्य, सुरक्षा, शिक्षा तथा सस्ते ऋण जैसे महत्वपूर्ण मूलभूत कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ा जाए और पुनर्वासित किया जाए | ताकि समाज का वह तबका भी विकास की मुख्य धारा से जुड़ सके |
  •  बनारस के गौरवशाली इतिहास के साक्षी रहे वे संस्थान व पुस्तकालय, कुण्ड, तालाब जो दबंगों व पूंजीपतियों के अवैध कब्ज़े में हैं, उन्हें मुक्त कराते हुए सरकार द्वारा अपने संरक्षण में लेकर सरकारी देख-रेख में संरक्षित और पुनर्जीवित किया जाए |
  •   संयुक्तराष्ट्र यातना विरोध कन्वेंशन (UNCAT) को भारत सरकार द्वारा अविलम्ब अनुमोदन किया जाए व यातना विरोधी कानून को राज्य सभा में शीघ्र पारित किया जाए | 
  •  सभी धर्म दासता के खिलाफ़ हैं और बनारस की परम्परा भी दासता के खिलाफ़ है | इसलिए हर तरह की दासता अविलम्ब ख़त्म किया जाए |

    09 अगस्त 2014
    मूलगादी कबीर मठ, कबीरचौरा वाराणसी (उ० प्र०) | 

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